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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

चित्र पर कविता:

चित्र पर कविता








*
हाथों में प्याला रखता हूँ

दिल हिम्मतवाला रखता हूँ.
*
हिंदी सा उजला तन लिखें

इंग्लिश-मन काला रखता हूँ.
*
माटी हो, माटी को घुरूँ

माटी में हाला रखता हूँ.
*
छप्पन इंची सीने के सँग

दिल-दिमाग आला रखता हूँ
*
अलगू-जुम्मन को फुसलाने

क्यों बोलूँ खाला रखता हूँ.
*
दिखे मंच पर सिर्फ सचाई

पीछे घोटाला रखता हूँ
*
नफरत की पैनी नोकों पर

'सलिल' स्नेह-छाला रखता हूँ
*
सत्ता की मधुशाला में भी

जनमत गौशाला रखता हूँ.
*** 

शनिवार, 5 सितंबर 2015

चित्र पर कविता










एक अभिनव अनुष्ठान:
प्रसंग है एक नवयुवती छज्जे पर क्रोधित मुख मुद्रा में है।
उसे देखकर लग रहा है कि जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है।
विभिन्न कवियों से अगर इस पर लिखने को कहा जाता तो वो कैसे लिखते ?
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मैथिलीशरण गुप्त
अट्टालिका पर एक रमणी अनमनी सी है अहो
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो?
धीरज धरो संसार में, किसके नही दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।
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रामधारी सिंह दिनकर
दग्ध ह्रदय में धधक रही,
उत्तप्त प्रेम की ज्वाला,
हिमगिरी के उत्स निचोड़,
फोड़ पाताल, बनो विकराला,
ले ध्वन्सो के निर्माण त्रान से,
गोद भरो पृथ्वी की,
छत पर से मत गिरो,
गिरो अम्बर से वज्र सरीखी.
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श्याम नारायण पांडे
ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी
सिंहनी की ठान से, आन बान शान से
मान से, गुमान से, तुम गिरो मकान से
तुम डगर डगर गिरो, तुम नगर नगर गिरो
तुम गिरो अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।
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गोपाल दास नीरज
रूपसी उदास न हो, आज मुस्कुराती जा
मौत में भी जिन्दगी, के फूल कुछ खिलाती जा
जाना तो हर एक को, यद्यपि जहान से यहाँ
जाते जाते मेरा मगर, गीत गुनगुनाती जा..
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गोपाल प्रसाद व्यास
छत पर उदास क्युं बैठी है
तू मेरे पास चली आ री ।
जीवन का सुख दुख कट जाये ,
कुछ मैं गाऊं,कुछ तू गा री। तू
जहां कहीं भी जायेगी
जीवन भर कष्ट उठायेगी ।
यारों के साथ रहेगी तो
मथुरा के पेडे खायेगी।
___________________
सुमित्रानन्दन पंत
स्वर्ण सौध के रजत शिखर पर
चिर नूतन चिर सुन्दर प्रतिपल
उन्मन उन्मन अपलक नीरव
शशि मुख पर कोमल कुन्तल पट
कसमस कसमस चिर यौवन घट
पल पल प्रतिपल
छल छल करती ,निर्मल दृग जल
ज्यों निर्झर के दो नीलकमल
यह रूप चपल, ज्यों धूप धवल
अतिमौन, कौन?
रूपसि बोलो,प्रिय, बोलो न?
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काका हाथरसी
गोरी छज्जे पर चढ़ी, कूदन को तैयार
नीचे पक्का फर्श है, भली करें करतार
भली करें करतार, सभी जन हक्का बक्का
उत चिल्लाये सास, कैच ले लीजो कक्का
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढ़ियो
उधर कूदियो नार, मुझे बख्शे ही रहियो।
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उपरोक्त कविताओं के रचनाकार ओम प्रकाश 'आदित्य' जी हैं. इस प्रसंग पर वर्तमान कवि भी अपनी बात कहें तो अंडंड में वृद्धि होगी.
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
गोरी छज्जे पर चढ़ी, एक पांव इस पार.
परिवारीजन काँपते, करते सब मनुहार.
करते सब मनुहार, बख्श दे हमको देवी.
छज्जे से मत कूद. मालकिन हम हैं सेवी.
तेरा ही है राज, फँसा मत हमको छोरी.
धाराएँ बहु एक, लगा मत हम पर गोरी..
छोड़ूंगी कतई नहीं, पहुँचाऊंगी जेल.
सात साल कुनबा सड़े, कानूनी यह खेल.
कानूनी यह खेल, पटकनी मैं ही दूंगी.
रहूँ सदा स्वच्छंद, माल सारा ले लूंगी.
लेकर प्रेमी साथ, प्रेम-रुख मैं मोड़ूंगी.
होगी अपनी मौज, तुम्हें क्योंकर छोड़ूंगी..
लड़की करती मौज है, लड़के का हो खून.
एक आँख से देखता, एक-पक्ष क़ानून.
एक-पक्ष क़ानून, मुक़दमे फर्जी होते.
पुलिस कचेहरी मस्त, नित्यप्रति लड़के रोते.
लुट जाता घर बार, हाथ आती बस कड़की.
करना नहीं विवाह, देखना मत अब लड़की..
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बुआश्री महीयसी महादेवी वर्मा से क्षमा प्रार्थना सहित
क्यों कूदूँ मैं छत से रे?
तुझ में दम है तो आ घर में बात डैड से कर ले रे!
चरण धूल अम्मा की लेकर माँग आप ही भर ले रे!
पदरज पाकर तर जायेगा जग जाएगा भाग रे!
देर न कर मेरे दिल में है लगी विरह की आग रे!
बात न मानी अगर समझ तू अवसर जाए चूक रे!
किसी सुर के दिल को देगी छेद नज़र बंदूक रे!
कई और भी लाइन में हैं सिर्फ न तुझसे प्यार रे! प्रिय-प्रिय जपते तुझ से ढेरों करते हैं मनुहार रे!
मेरी समिधा:
स्थिति १ :
सबको धोखा दे रही, नहीं कूदती नार
वह प्रेमी को रोकती, छत पर मत चढ़ यार
दरवाज़े पर रुक ज़रा, आ देती हूँ खोल
पति दौरे पर, रात भर, पढ़ लेना भूगोल
स्थिति २
खाली हाथों आये हो खड़े रहो हसबैंड
द्वार नहीं मैं खोलती बजा तुम्हारा बैंड
शीघ्र डिनर ले आओ तो दोनों लें आनंद
वरना बाहर ही सहो खलिश, लिखो कुछ छंद
स्थिति ३:
लेडी गब्बर चढ़ गयी छत पर करती शोर
मम्मी-डैडी मान लो बात करो मत बोर
बॉय फ्रेंड से ब्याह दो वरना जाऊँ भाग
छिपा रखा है रूम में भरवा लूँगी माँग
भरवा लूँगी माँग टापते रह जाओगे
होगा जग-उपहास कहो तो क्या पाओगे?
कहे 'सलिल' कवि मम्मी-डैडी बेबस रेड़ी
मनमानी करती है घर-घर गब्बर लेडी
*
सभी साथी अपनी समिधा हेतु साथी आमंत्रित हैं.
टीप: महीयसी की मूल रचना:
क्या पूजा क्या अर्चन रे!
उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे!
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनन्दन रे!
पदरज को धोने उमड़े आते लोचन में जलकण रे!
अक्षत पुलकित रोम, मधुर मेरी पीड़ा का चन्दन रे!
स्नेहभरा जलता है झिलमिल मेरा यह दीपक-मन रे!
मेरे दृग के तारक में नव उत्पल का उन्मीलन रे!
धूप बने उड़ते जाते हैं प्रतिपल मेरे स्पंदन रे
प्रिय-प्रिय जपते अधर, ताल देता पलकों का नर्तन रे!

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

CHITR PAR KAVITA: SANJIV

चित्र पर कविता:
संजीव
*

बैल!
तुम सभ्य तो हुए नहीं,
मनुज बनना तुम्हें नहीं भाया।
एक बात पूछूँ?, उत्तर दोगे??
लड़ना कहाँ से सीखा?
भागना कहाँ से आया??
***
(स्व. अज्ञेय जी से क्षमा प्रार्थना सहित)

शनिवार, 13 जुलाई 2013

chitra par kavita: kahan ja rahe ho... -sanjiv

चित्र पर कविता:
प्रस्तुत है चित्र, रच दीजिए इस पर सरस कविता 
http://static.mydailyhonk.com/wp-content/uploads/2013/05/Rich-2.jpg
नव गीत:कहाँ जा रहे हो…
संजीव
*
पाखी समय का
ठिठक पूछता है
कहाँ जा रहे हो?...
*
उमड़ आ रहे हैं बादल गगन पर
तूफां में उड़ते पंछी भटककर
लिये हाथ में हाथ जाते कहाँ हो?
बैठे हो क्यों बन्धु! खुद में सिमटकर
साथी प्रलय से
सतत जूझता और
सुस्ता रहे हो?...
*
मलय कोई देखे कैसे नयन भर
विलय कोई लेखे कैसे शयन कर
निलय काँपते देख झंझा-झकोरे
मनुज क्यों सशंकित थमकर, ठिठककर  
साथी 'सलिल' का 
नहीं सूझता देख
मुस्का रहे हो?...
*


 

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

चित्र पर कविता: विश्राम

चित्र पर कविता:
विश्राम  

इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ अब तक प्रकाशित चित्रों में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य के विविध आयामों को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं हैं. संभवतः हममें से कोई भी किसी चित्र के उतने पहलुओं पर नहीं लिख पाता जितने पहलुओं पर हमने रचनाएँ पढ़ीं. 

चित्र और कविता की कड़ी में संवाद, स्वल्पाहार,
दिल-दौलत, प्रकृति, ममता,  पद-चिन्ह, जागरण,  परिश्रम, स्मरण, उमंग, सद्भाव, रसपान आदि के पश्चात् प्रस्तुत है नया चित्र  विश्राम . ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.

Photo: bhool gaye is chaar paai ka maza aur  neem ki chhanv 

चिर - विश्राम
एस. एन. शर्मा कमल 

वीराने में पडी हुई जाने कब से एकाकी खाट
कभी न आने वाले की शायद जोह रही है बाट

सुधियों की कितनी गाँठे अंतस में लिए हुए है
सुख दुःख की कितनी घरिओं के आंसू पिए हुए है

इसके बोझिल ताने बाने में कितनी पीर समाई है
कितने सपने कितने निश्वासों की लिए गवाही है

झेल रही है बियाबान में अब सूनेपन का अभिशाप
किसी परित्यकता दमयंती सी मूर्र्छित तरुतले खाट

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खटिया माई 

प्रणव भारती 


       कुछ सहमी  हो,कुछ झुंझलाई ,
       चुप -चुप सी हो खटिया माई ।
       खबर मुझे है चढकर तुम पर, 
       बच्चों ने की हाथापाई ।
                 तुम भी हल्ला मचा रही थीं,
                  चीख और चिल्ला रहींथी।
                  झूठ न बोलो खटिया रानी ,
                  उन्हें डांट  तुम पिला रही थीं । 
        फिर उनके जाने पर हो चुप ,
        गुमसुम सी हो,हो तुम गुपचुप।
        कल सब बच्चे फिर आयेंगे,
        हँसेंगे और तुम्हें हँसायेंगे । 
                  घने वृक्ष की इस छाया में ,
                  तुम भी ज़रा करो विश्राम,
                  जब तक बच्चे फिर आ करके,
                  न करदें तुमको हैरान।।

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 संतोष भाऊवाला
 
खेत में बिछी एक अकेली खटिया,
कर रही श्रमिक से मन की बतिया
 
माथे पर तेरे चिलक रहे श्रम कण
पड़ रही सूरज की तिरछी किरण 
 
भोर की पहली किरण संग जाग 
किया पुरे दिन तूने अथक परिश्रम 
 
अब वटवृक्ष की घनी छाँव तले 
घडी भर ले ले तनिक विश्राम
 
होगा तुझमे नव् ऊर्जा का  संचार 
मै भी इतरा लूंगी निज भाग्य पर 
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