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शनिवार, 30 जुलाई 2022

गीत देश हमारा है

गीत
देश हमारा है
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
देश हमारा है, सरकार हमारी है,
क्यों न निभाई, हमने जिम्मेदारी है?
*
नियम व्यवस्था का पालन हम नहीं करें,
दोष गैर पर निज, दोषों का नहीं धरें।
खुद क्या बेहतर कर सकते हैं, वही करें।
सोचें त्रुटियाँ कितनी कहाँ सुधारी हैं?...
*
भाँग कुएँ में घोल, हुए मदहोश सभी
किसके मन में किसके प्रति आक्रोश नहीं?
खोज-थके, हारे पाया सन्तोष नहीं।
फ़र्ज़ भुला, हक़ चाहें मति गई मारी है...
*
एक अँगुली जब तुम को मैंने दिखलाई।
तीन अंगुलियाँ उठीं आप पर, शरमाईं
मति न दोष खुद के देखे थी भरमाई।
सोचें क्या-कब हमने दशा सुधारी है?...
*
जैसा भी है तन्त्र, हमारा अपना है।
यह भी सच है बेमानी हर नपना है।
अँधा न्याय-प्रशासन, सत्य न तकना है।
कद्र न उसकी जिसमें कुछ खुद्दारी है...
*
कौन सुधारे किसको? आप सुधर जाएँ।
देखें अपनी कमी, न केवल दिखलायें।
स्वार्थ भुला, सर्वार्थों की जय-जय गायें।
अपनी माटी सारे जग से न्यारी है ...
*
संपर्क : विश्ववाणी हिंदी संस्थान 
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१ 
९४२५१८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com 

बुधवार, 26 जनवरी 2022

गीत, नवगीत, गणतंत्र दिवस


अगिन नमन गणतंत्र महान
जनगण गाए मंगलगान
*
दसों दिशाएँ लिए आरती
नजर उतारे मातु भारती
धरणि पल्लवित-पुष्पित करती
नेह नर्मदा पुलक तारती
नीलगगन विस्तीर्ण वितान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
ध्वजा तिरंगी फहरा फरफर
जनगण की जय बोले फिर फिर
रवि बन जग को दें प्रकाश मिल
तम घिर विकल न हो मन्वन्तर
सत्-शिव-सुंदर मूल्य महान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
नीव सुदृढ़ मजदूर-किसान
रक्षक हैं सैनिक बलवान
अभियंता निर्माण करें नव
मूल्य सनातन बन इंसान
सुख-दुख सह समभाव सकें हँस
श्वास-श्वास हो रस की खान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
केसरिया बलिदान-क्रांति है
श्वेत स्नेह सद्भाव शांति है
हरी जनाकांक्षा नव सपने-
नील चक्र निर्मूल भ्रांति है
रज्जु बंध, निर्बंध उड़ान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
कंकर हैं शंकर बन पाएँ
मानवता की जय जय गाएँ
अडिग अथक निष्काम काम कर
बिंदु सिंधु बनकर लहराएँ
करे समय अपना जयगान
संजीव
२६-१-२०२१
***
अगिन नमन गणतंत्र महान
जनगण गाए मंगलगान
*
दसों दिशाएँ लिए आरती
नजर उतारे मातु भारती
धरणि पल्लवित-पुष्पित करती
नेह नर्मदा पुलक तारती
नीलगगन विस्तीर्ण वितान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
ध्वजा तिरंगी फहरा फरफर
जनगण की जय बोले फिर फिर
रवि बन जग को दें प्रकाश मिल
तम घिर विकल न हो मन्वन्तर
सत्-शिव-सुंदर मूल्य महान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
नीव सुदृढ़ मजदूर-किसान
रक्षक हैं सैनिक बलवान
अभियंता निर्माण करें नव
मूल्य सनातन बन इंसान
सुख-दुख सह समभाव सकें हँस
श्वास-श्वास हो रस की खान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
केसरिया बलिदान-क्रांति है
श्वेत स्नेह सद्भाव शांति है
हरी जनाकांक्षा नव सपने-
नील चक्र निर्मूल भ्रांति है
रज्जु बंध, निर्बंध उड़ान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
कंकर हैं शंकर बन पाएँ
मानवता की जय जय गाएँ
अडिग अथक निष्काम काम कर
बिंदु सिंधु बनकर लहराएँ
करे समय अपना जयगान
संजीव
२६-१-२०२१
***

मुक्तिका
*
जनगण सेवी तंत्र बने राधे माधव
लोक जागृति मंत्र बने राधे माधव
प्रजा पर्व गणतंत्र दिवस यह अमर रहे
देश हेतु जन यंत्र बने राधे माधव
हों मतभेद न पर मनभेद कभी हममें
कोटि-कोटि जन एक बने राधे माधव
पक्ष-विपक्ष विनम्र सहिष्णु विवेकी हों
दाऊ-कन्हैया सदृश सदा राधे माधव
हों नर-नारी पूरक शंकर-उमा बनें
संतति सीता-राम रहे राधे माधव
हो संजीवित जग जीवन की जय बोलें
हो न महाभारत भारत राधे माधव
आर्यावर्त बने भारत सुख-शांतिप्रदा
रिद्धि-सिद्धि-विघ्नेश बसें राधे माधव
देव कलम के! शब्द-शक्ति की जय जय हो
शारद सुत हों सदा सुखी राधे माधव
जगवाणी हिंदी की दस दिश जय गूँजे
स्नेह सलिल अभिषेक करे राधे माधव
२६-१-२०२०
***

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत:
लोकतंत्र की वर्षगांठ पर
*
लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर
भारत माता का वंदन...
हम सब माता की संतानें,
नभ पर ध्वज फहराएंगे.
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर
'जन गण मन' गुन्जायेंगे.
'झंडा ऊंचा रहे हमारा',
'वन्दे मातरम' गायेंगे.
वीर शहीदों के माथे पर
शोभित हो अक्षत-चन्दन...
नेता नहीं, नागरिक बनकर
करें देश का नव निर्माण.
लगन-परिश्रम, त्याग-समर्पण,
पत्थर में भी फूंकें प्राण.
खेत-कारखाने, मन-मन्दिर,
स्नेह भाव से हों संप्राण.
स्नेह-'सलिल' से मरुथल में भी
हरिया दें हम नन्दन वन...
दूर करेंगे भेद-भाव मिल,
सबको अवसर मिलें समान.
शीघ्र और सस्ता होगा अब
सतत न्याय का सच्चा दान.
जो भी दुश्मन है भारत का
पहुंचा देंगे उसे मसान.
सारी दुनिया लोहा मने
विश्व-शांति का हो मंचन...
२६-१-२०१३
***

शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

गीत: कब होंगे आजाद

गीत:
कब होंगे आजाद
इं. संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*

रविवार, 26 जनवरी 2020

गणतंत्र

जनगण सेवी तंत्र बने राधे माधव
लोक जागृति मंत्र बने राधे माधव
प्रजा पर्व गणतंत्र दिवस यह अमर रहे
देश हेतु जन यंत्र बने राधे माधव
हों मतभेद न पर मनभेद कभी हममें
कोटि-कोटि जन एक बने राधे माधव
पक्ष-विपक्ष विनम्र सहिष्णु विवेकी हों
दाऊ-कन्हैया सदृश सदा राधे माधव
हों नर-नारी पूरक शंकर-उमा बनें
संतति सीता-राम रहे राधे माधव
हो संजीवित जग जीवन की जय बोलें
हो न महाभारत भारत राधे माधव
आर्यावर्त बने भारत सुख-शांतिप्रदा
रिद्धि-सिद्धि-विघ्नेश बसें राधे माधव
देव कलम के! शब्द-शक्ति की जय जय हो
शारद सुत हों सदा सुखी राधे माधव
जगवाणी हिंदी की दस दिश जय गूँजे
स्नेह सलिल अभिषेक करे राधे माधव
***
संजीव
गणतंत्र दिवस २०२०
९४२५१८३२४४

शनिवार, 26 जनवरी 2013

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत: ध्वजा तिरंगी... संजीव 'सलिल'

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत:
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ध्वजा तिरंगी...

संजीव 'सलिल'
*
ध्वजा तिरंगी मात्र न झंडा
जन गण का अभिमान है.
कभी न किंचित झुकने देंगे,
बस इतना अरमान है...
*
वीर शहीदों के वारिस हम,
जान हथेली पर लेकर
बलिदानों का पन्थ गहेंगे,
राष्ट्र-शत्रु की बलि देकर.
सरे जग को दिखला देंगे
भारत देश महान है...
*
रिश्वत-दुराचार दानव को,
अनुशासन से मारेंगे.
पौधारोपण, जल-संरक्षण,
जीवन नया निखारेंगे.
श्रम-कौशल को मिले प्रतिष्ठा,
कण-कण में भगवान है...
*
हिंदी ही होगी जग-वाणी,
यह अपना संकल्प है.
'सलिल' योग्यता अवसर पाए,
दूजा नहीं विकल्प है.
सारी दुनिया कहे हर्ष से,
भारत स्वर्ग समान है...
****

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत: लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर संजीव 'सलिल'

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत: 
लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर
संजीव 'सलिल'
*
लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर
भारत माता का वंदन...

हम सब माता की संतानें,
नभ पर ध्वज फहराएंगे.
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर
'जन गण मन' गुन्जायेंगे.
'झंडा ऊंचा रहे हमारा',
'वन्दे मातरम' गायेंगे.
वीर शहीदों के माथे पर
शोभित हो अक्षत-चन्दन...

नेता नहीं, नागरिक बनकर
करें देश का नव निर्माण.
लगन-परिश्रम, त्याग-समर्पण,
पत्थर में भी फूंकें प्राण.
खेत-कारखाने, मन-मन्दिर,
स्नेह भाव से हों संप्राण.
स्नेह-'सलिल' से मरुथल में भी
हरिया दें हम नन्दन वन... 

दूर करेंगे भेद-भाव मिल,
सबको अवसर मिलें समान.
शीघ्र और सस्ता होगा अब
सतत न्याय का सच्चा दान.
जो भी दुश्मन है भारत का
पहुंचा देंगे उसे मसान.
सारी दुनिया लोहा मने
विश्व-शांति का हो मंचन...

***

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

गणतंत्र दिवस पर विशेष : गीत, कविता, लघु कथा, नव गीत

गणतंत्र दिवस पर विशेष :
गीत

सारा का सारा हिंदी है

आचार्य संजीव 'सलिल'
*
जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
*
मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है.

लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है.

गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल,

ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल.

लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
*
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान.

प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान.

स्नेह-सलिल में नित्य नहाओ निर्माणों के दीप जला.

बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्का.

पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
*
जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार.

गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार.

अरावली, सतपुड़ा , हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर.

ठहरे-ठहरे गाँव हमारे, आपाधापी लिए शहर.

कुटी, महल, अँगना, चौबारा, हर घर-द्वारा हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
*
सरसों, मका, बाजरा, चाँवल, गेहूँ, अरहर, मूँग, चना.

झुका किसी का मस्तक नीचे, 'सलिल' किसी का शीश तना.

कीर्तन, प्रेयर, सबद, प्रार्थना, बाईबिल, गीता, ग्रंथ, कुरान.

गौतम, गाँधी, नानक, अकबर, महावीर, शिव, राम महान.

रास कृष्ण का, तांडव शिव का, लास्य-हास्य सब हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
*
ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.

आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.

शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास, कबीरा, मीरा, सूर.

तुलसी, रामकृष्ण, रामानुज, माँ, अरविन्द खुदाई नूर.
 
विवेक, रवींद्र, विनोबा, ओशो, जयप्रकाश भी हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....

****************************************

जनगण के मन में: -संजीव सलिल

जनतंत्र की सोच को समर्पित कविता           

-संजीव सलिल
*
जनगण के मन में जल पाया,
नहीं आस का दीपक.
कैसे हम स्वाधीन देश जब
लगता हमको क्षेपक?

हम में से
हर एक मानता,
निज हित सबसे पहले।
नहीं देश-हित कभी साधता
कोई कुछ भी कह ले।

कुछ घंटों 'मेरे देश की धरती'
फिर हो 'छैंया-छैंया'।
वन काटे, पर्वत खोदे,
भारत माँ घायल भैया।

किसको चिंता? यहाँ देश की?
सबको है निज हित की।
सत्ता पा- निज मूर्ति लगाकर,
भारत की दुर्गति की।
श्रद्धा, आस्था, निष्ठा बेचो
स्वार्थ साध लो अपना।
जाये भाड़ में किसको चिंता
नेताजी का सपना।

कौन हुआ आजाद?
भगत है कौन देश का बोलो?
झंडा फहराने के पहले
निज मन जरा टटोलो।

तंत्र न जन का
तो कैसा जनतंत्र तनिक समझाओ?
प्रजा उपेक्षित प्रजातंत्र में
क्यों कारण बतलाओ?

लोक तंत्र में लोक मौन क्यों?
नेता क्यों वाचाल?
गण की चिंता तंत्र न करता
जनमत है लाचार।

गए विदेशी, आये स्वदेशी,
शासक मद में चूर।
सिर्फ मुनाफाखोरी करता
व्यापारी भरपूर।

न्याय बेचते जज-वकील मिल
शोषित- अब भी शोषित।
दुर्योधनी प्रशासन में हो
सत्य किस तरह पोषित?

आज विचारें
कैसे देश हमारा साध्य बनेगा?
स्वार्थ नहीं सर्वार्थ
'सलिल' क्या हरदम आराध्य रहेगा?
****

लघु कथा: शब्द और अर्थ --संजीव वर्मा "सलिल "


शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त किया...कमर सीधी कर लूँ , सोचते हुए लेटा कि काम की मेज पर कुछ खटपट सुनायी दी... मन मसोसते हुए उठा और देखा कि यथास्थान रखे शब्दों के समूह में से निकल कर कुछ शब्द बाहर आ गए थे। चश्मा लगाकर पढ़ा , वे शब्द 'लोकतंत्र', प्रजातंत्र', 'गणतंत्र' और 'जनतंत्र' थे।

शब्द कोशकार चौका - ' अरे! अभी कुछ देर पहले ही तो मैंने इन्हें यथास्थान रखा रखा था, फ़िर ये बाहर कैसे...?'

'चौंको मत...तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे अब हमें अनर्थ लगते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोक तंत्र लोभ तंत्र में बदल गया है। प्रजा तंत्र में तंत्र के लिए प्रजा की कोई अहमियत ही नहीं है। गण विहीन गण तंत्र का अस्तित्व ही सम्भव नहीं है। जन गण मन गाकर जनतंत्र की दुहाई देने वाला देश सारे संसाधनों को तंत्र के सुख के लिए जुटा रहा है। -शब्दों ने एक के बाद एक मुखर होते हुए कहा


****************************
नव गीत
संजीव 'सलिल'
शहनाई बज रही ...
*
शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आये...
*
जन-गण को कर दूर
निकट नेता-अधिकारी.
इन्हें बनायें सूर
छिपाकर कमियाँ सारी.
सबकी कोशिश
करे मजूरी
भूखी सुखिया
फिर भी गाये.
शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आये...
*
है सच का आभास
कर रहे वादे झूठे.
करते यही प्रयास
वोट जन गण से लूटें.
लोकतंत्र की
लख मजबूरी,
लोभतंत्र
दुखिया पछताये.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...

*

आये-गये अखबार रँगे,
रेला-रैली में.
शामिल थे बटमार
कर्म-चादर मैली में.
अंधे देखें,
बहरे सुन,
गूंगे बोलें,
हम चुप रह जाएँ.
शहनाई बज रही
शहर में
मुखिया आये...
*