जन्माष्टमी पर कुण्डलियाँ:
बजे बाँसुरी कृष्ण की
संजीव 'सलिल'
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बजे बाँसुरी कृष्ण की, हर तन-मन की पीर.
'सलिल' आपको कर सके, सबसे बड़ा अमीर..
सबसे बड़ा अमीर, फकीरी मन को भाए.
पिज्जा-आइसक्रीम फेंक, दधि-माखन खाए.
पद-धन का मद मिटे, न पनपे वृत्ति आसुरी.
'सलिल' जगत में पुनः कृष्ण की बजे बाँसुरी..
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बजे बाँसुरी कृष्ण की, कटें न जंगल-वृक्ष.
गोवर्धन गिरि ना खुदे, बचे न कंस सुदक्ष..
बचे न कंस सुदक्ष, पूतनाएँ दण्डित हों.
कौरव सत्तासीन न, महिमा से मंडित हों.
कहे 'सलिल' कविराय, न यमुना पाये त्रास री.
लहर-लहर लहराए, कृष्ण की बजे बाँसुरी..
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बजे बाँसुरी कृष्ण की, यमुना-तट हो रास.
गोप-गोपियों के मिटें, पल में सारे त्रास.
पल में सारे त्रास, संगठित होकर जूझें.
कौन पहेली जिसका हल वे संग न बूझें..
कहे 'सलिल' कवि, तजें न मुश्किल में प्रयास री.
मंजिल चूमे कदम, कृष्ण की बजे बाँसुरी..
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बजी बाँसुरी कृष्ण की, दुर्योधन हैरान.
कैसे यह सच-झूठ को लेता है पहचान?
लेता है पहचान, कौन दोषी-निर्दोषी?
लालच सके न व्याप, वृत्ति है चिर संतोषी..
राजमहल तज विदुर-कुटी में खाए शाक री.
द्रुपदसुता जी गयी, कृष्ण की बजी बाँसुरी..
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बजी बाँसुरी कृष्ण की, हुए पितामह मौन.
तोड़ शपथ ले शस्त्र यह दौड़ा आता कौन?
दौड़ा आता कौन, भक्त का बन संरक्षक.
हर विसंगति हर बुराई का है यह भक्षक.
साध कनिष्ठा घुमा रहा है तीव्र चाक री.
समयचक्र थम गया, कृष्ण की बजी बाँसुरी..
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बजी बाँसुरी कृष्ण की,आशाओं को सींच.
पांडव वंशज सुरक्षित, आया दुनिया बीच..
आया दुनिया बीच, अबोले कृष्ण रहे कह.
चलो समेटो जाल, लिखेगा नई कथा यह..
सुरा-मोह ने किया यादवी कुल-विनाश री.
तीर चरण में लगा, कृष्ण की बजी बाँसुरी..
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बजी बाँसुरी कृष्ण की, कुल-वधु लूटें भील.
निबल धनञ्जय रो रहे, हँसते कौए-चील..
हँसते कौए-चील, गया है हार धनञ्जय.
कहीं न दिखते विदुर, कर्ण, धृतराष्ट्र, न संजय..
हिमगिरि जाते पथिक काल भी भरे आह री.
प्रगट हुआ कलिकाल, कृष्ण की बजी बाँसुरी..
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बजी बाँसुरी कृष्ण की, सूरदास बेचैन.
मीरा ने पाया नहीं, पल भर भी सुख-चैन..
पल भर भी सुख-चैन न जब तक उसको देखें.
आज न ऐसा कोई कथा हम जिसकी लेखें.
रुक्मी कौरव कंस कर्ण भी हैं उदास री.
कौन सुने कब-कहाँ कृष्ण की बजी बाँसुरी..
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम