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रविवार, 25 नवंबर 2012

घनाक्षरी / कवित्त रामबाबू गौतम

घनाक्षरी - कवित्त
रामबाबू गौतम                        

               चमके लली
चमके लली ललाम, गाल-लाल अभिराम,  
कमरि- कटीली तन, चले  तन-तनके
तनके  अनंग-अंग, मन  में  उमंग-संग,  
चले-चाल ये  भुजंग, बड़े  बन  ठनके
ठनके मांथा वैरियों, का देखि लली ये रूप,  
नैनन से करे वार, बड़े  जम-जमके।    
जमके ये वार-बार, हारे वैरी की कतार,  
हाथ की कटार-ढाल, लली हाथ चमके

            बिहार में विहार.

है बिहार में विहार, गढ़-वैशाली वहार,  
राजा विशाल-महल, भव्यता- परतीक है
है ये नर्तकी की भूमि, आम्रपाली रही झूमि, 
बुद्ध-प्रबुद्ध पधारे, स्वागत सटीक है।   
है घन्य-भाग्यशाली ये, भूमि-वैशाली विस्तार,  
चलके पधारे बुद्ध, धन्य ये अतीत  है। 
है विहार का प्रचार, विचार गढ़-विशाल,  
त्यागा भिक्षा-पात्र बुद्ध, दान का प्रतीक है।  
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न्यू जर्सी 
                       

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

सामयिक लोकगीत: जे पुरवैया मतवारी --रामबाबू गौतम

सामयिक लोकगीत:
जे पुरवैया मतवारी.

रामबाबू गौतम, न्यू जर्सी 
*
       मेरी गाँठिन दर्द उठाय गयी,
                         जे पुरवैया मतवारी ||

     सनन- सनन जे पुरवैया चाले,
     वैरिन साँस मेरी रहि-२ चाले,
एजी ऊपर से बरसे पुरवैया की बौछार,
                       भीगि गयी देह सारी ||  
                       जे पुरवैया मतवारी ....

  अंग - अंग जब दर्द उठे और ठहराये,
  वैरिन संग चले पुरवैया मन घबडाये,
एजी ऊपर ते पसली को दर्द करे लाचार,
                           दर्द उठे अति भारी ||
                           जे पुरवैया मतवारी ..

  कदम-कदम पे उठि- उठि बैठूं चालूँ,
  वैरिन- टाँगें साथ चलें न कैसे चालूँ?,
एजी ऊपर ते दिल - दर्द उठे अनेकों बार,
                      जाते मति गयी है मारी ||
                        जे पुरवैया मतवारी ..

   घिरि- घिरि बदरा मेरे आँगन आयें,
   वैरिन बयार चले बदरा आयें- जायें,
एजी ऊपर ते दामिन तडपे, तडपे जिया हमार,
                    डर, अकुलाइ व्याकुल मैं भारी ||
                              जे पुरवैया मतवारी ..           
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