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रविवार, 18 नवंबर 2012

नवगीत: जितनी आँखें उतने सपने... संजीव 'सलिल'

नवगीत:






जितनी आँखें उतने सपने...
संजीव 'सलिल'
*
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
मैंने पाए कर-कमल,
तुमने पाए हाथ।
मेरा सर ऊंचा रहे,
झुके तुम्हारा माथ।।

प्राण-प्रिया तुमको कहा,
बना तुम्हारा नाथ।
हरजाई हो, चाहता-
जनम-जनम का साथ।।

बेहद बेढब
प्यारे नपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*
घडियाली आँसू बहा,
करता हूँ संतोष।
अश्रु न तेरे पोछता,
अनदेखा कर रोष।।

टोटा टटके टकों का,
रीता मेरा कोष।
अपने मुँह से कर रहा,
अपना ही जयघोष।।

सोच कर्म-फल
लगता कंपने,
जितनी आँखें
उतने सपने...
*