कुल पेज दृश्य

dohe लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
dohe लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 3 अगस्त 2019

दोहा दुनिया

दोहा दुनिया 
*
मटक-मटक जो फिर रहे, अटक रहे हर ठौर। 
सटके; फटक न सफलता, अटकें; करिए गौर।।

*
कृष्णा-कृष्णा सब करें, कृष्ण हँस रहे देख 
द्रुपदसुता का नाम ले, क्यों मेरा उल्लेख?

*
कंकर भी शंकर बने, कर विराट का संग
रंग नहीं बदरंग हो, अगर करो सत्संग

*
प्राण गए तो देह के, अंग दीजिए दान.
जो मरते जी सकेंगे, ऐसे कुछ इंसान.

*
दिल के दिल में क्या छिपा, बेदिल से मत बोल 
संग न सँगदिल का करो, रह जाएगी झोल

*
सही करो तो गलत क्यों, समझें-मानें लोग? 
गलत करो तो सही, कह; बढ़ा रहे हैं रोग.

*
सजे अधर पर जब हँसी, धन्य हो गयी आप 
पैमाना कोई नहीं, जो खुशियाँ ले नाप

*
अर्थ न रहे अनर्थ में, अर्थ बिना सब व्यर्थ 
समझ न पाया किस तरह, समझा सकता अर्थ.
*
लिखा बिन लिखे आज कुछ, पढ़ा बिन पढ़े आज 
केर-बेर के संग से, सधे न साधे काज




शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

मुक्तक, द्विपदी दोहे,

मुक्तक 

खिलखिलाती रहो, चहचहाती रहो 
जिंदगी में सदा गुनगुनाती रहो
मेघ तम के चलें जब गगन ढाँकने
सूर्य को आईना हँस दिखाती रहो
*
गए मिलने गले पड़ने नहीं,पर तुम न मानोगे.
दबाने-काटने के जुर्म में, बंदूक तानोगे.
चलाओ स्वच्छ भारत का भले अभियान हल्ला कर-
सियासत कीचड़ी कर, हाथ से निज पंक सानोगे
*
द्विपदी 
ग़ज़ल कहती न तू आ भा, ग़ज़ल कहती है जी मुझको 
बताऊँ मैं उसे कैसे, जिया है हमेशा तुझको
*
न बारिश तुम इसे समझो, गिरा है आँख से पानी. 
जो आहों का असर होगा, कहाँ जाओगे ये सोचो.
*
न केवल बात में, हालात में भी है वहाँ सीलन 
जहाँ फौजों के साए में, चुनावी जीत होती है
*


दोहे 

डर से डर ही उपजता, मिले स्नेह को स्नेह. 
निष्ठा पर निष्ठा अडिग, सम हो गेह-अगेह.



*
मन के मनसबदार! तुम, कहो हुए क्यों मौन?
तनकर तन झट झुक गया, यहाँ किसी का कौन?
*
हम सब कारिंदे महज, एक राम दीवान
करा रहा वह; भ्रम हमें, अपना होता मान 
*
वही द्विवेदी जो पढ़े, योग-भोग दो वेद.
अंत समय में हो नहीं, उसको किंचित खेद.
*
शोक न करता जो कभी, कहिए उसे अशोक.
जो होता होता रहे, कोई न सकता रोक
*
जहाँ अँधेरा घोर हो, बालें वहीं प्रदीप 
पल में तम कर दूर दे, ज्यों मोती सह सीप
*
विजय भास्कर की तभी, तिमिर न हो जब शेष
ऊषा दुपहर साँझ को, बाँटे नेह अशेष
*
चमक रहे चमचे चतुर, गोल-मोल हर बात 
पोल ढोल की खुल रही, नाजुक हैं हालात
*
सेना नौटंकी करे, कहकर आम चुनाव.
जिसको चाहे लड़ा दे, डगमग है अब नाव
*

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

'शब्द' पर दोहे

'शब्द' पर दोहे
*
अक्षर मिलकर शब्द हों, शब्द-शब्द में अर्थ।
शब्द मिलें तो वाक्य हों, पढ़ समझें निहितार्थ।।
*
करें शब्द से मित्रता, तभी रच सकें काव्य।
शब्द असर कर कर सकें, असंभाव्य संभाव्य।।
*
भाषा-संस्कृति शब्द से, बनती अधिक समृद्ध।
सम्यक् शब्द-प्रयोग कर, मनुज बने मतिवृद्ध।।
*
सीमित शब्दों में भरें, आप असीमित भाव।
चोटिल करते शब्द ही, शब्द मिटाते घाव।।आद्या
*
दें शब्दों का तोहफा, दूरी कर दें दूर।
मिले शब्द-उपहार लें, बनकर मित्र हुजूर।।
*
निराकार हैं शब्द पर, व्यक्त करें आकार।
खुद ईश्वर भी शब्द में, हो जाता साकार।।
*
जो जड़ वे जानें नहीं, क्या होता है शब्द।
जीव-जंतु ध्वनि से करें, भाव व्यक्त बेशब्द।।
*
बेहतर नागर सभ्यता, शब्द-शक्ति के साथ।
सुर नर वानर असुर के, शब्द बन गए हाथ।।
*
पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ें, मिट-घट सकें न शब्द।
कहें, लिखें, पढ़िए सतत, कभी न रहें निशब्द।।
*
शब्द भाव-भंडार हैं, सरस शब्द रस-धार।
शब्द नए नित सीखिए, सबसे सब साभार।।
*
शब्द विरासत; प्रथा भी, परंपरा लें जान।
रीति-नीति; व्यवहार है, करें शब्द का मान।।
*
शब्द न अपना-गैर हो, बोलें बिन संकोच।
लें-दें कर लगता नहीं, घूस न यह उत्कोच।।
*
शब्द सभ्यता-दूत हैं, शब्द संस्कृति पूत।
शब्द-शक्ति सामर्थ्य है, मानें सत्य अकूत।।
*
शब्द न देशी-विदेशी, शब्द न अपने-गैर।
व्यक्त करें अनुभूति हर, भाव-रसों के पैर।।
*
शब्द-शब्द में प्राण है, मत मानें निर्जीव।
सही प्रयोग करें सभी, शब्द बने संजीव।।
*
शब्द-सिद्धि कर सृजन के, पथ पर चलें सुजान।
शब्द-वृद्धि कर ही बने, रचनाकार महान।।
*
शब्द न नाहक बोलिए, हो जाएंगे शोर।
मत अनचाहे शब्द कह, काटें स्नेहिल डोर।।
*
समझ शऊर तमीज सच, सिखा बनाते बुद्ध।
युद्घ कराते-रोकते, करते शब्द प्रबुद्ध।।
*
शब्द जुबां को जुबां दें, दिल को दिल से जोड़।
व्यर्थ होड़ मत कीजिए, शब्द न दें दिल तोड़।।
*
बातचीत संवाद गप, गोष्ठी वार्ता शब्द।
बतरस गपशप चुगलियाँ, होती नहीं निशब्द।।
*
दोधारी तलवार सम, करें शब्द भी वार।
सिलें-तुरप; करते रफू, शब्द न रखें उधार।।
*
शब्दों से व्यापार है, शब्दों से बाजार।
भाव-रस रहित मत करें, व्यर्थ शब्द-व्यापार।।
*
शब्द आरती भजन जस, प्रेयर हम्द अजान।
लोरी गारी बंदिशें, हुक्म कभी फरमान।।
*
विनय प्रार्थना वंदना, झिड़क डाँट-फटकार।
ऑर्डर विधि आदेश हैं, शब्द दंड की मार।।
*
शब्द-साधना दूत बन, करें शब्द से प्यार।
शब्द जिव्हा-शोभा बढ़ा, हो जाए गलहार।।
***
salil.sanjiv@gmail.com
18.7.2018, 7999559618

बुधवार, 17 जुलाई 2019

दोहे- नाम अनाम

दोहे- नाम अनाम
संजीव
*
पूर्वाग्रह पाले बहुत, जब रखते हम नाम
सबको यद्यपि ज्ञात है, आये-गये अनाम
कैकेयी वीरांगना, विदुषी रखा न नाम
मंदोदरी पतिव्रता, नाम न आया काम
रास रचाती रही जो, राधा रखते नाम
रास रचाये सुता तो, घर भर होता वाम
काली की पूजा करें, डरें- न रखते नाम
अंगूरी रख नाम दें, कहें न थामो जाम
अपनी अपनी सोच है, छिपी सोच में लोच
निज दुर्गुण देखें नहीं, पर गुण लखें न पोच
--------------------------

मंगलवार, 16 जुलाई 2019

दोहे

दोहे 
सर्वोदय को भूलकर, करें दलोदय लोग. 
निज हित साधन ही हुआ, लक्ष्य यही है रोग. 

*
क्रांति करें संपूर्ण, यह मिलकर किया विचार.
सत्ता पाते ही किए, भ्रांति भरे आचार.

*

दोहे

दोहा सलिला 
*
सीमा की सीमा कहाँ, सकल सृष्टि निस्सीम 
मन से लेकर गगन तक, बस्ता वही असीम 
*
जब-जब अमृत मिलेगा, सलिल करेगा पान
अरुण-रश्मियों से मिले ऊर्जा, हो गुणवान
*
हरि की सीमा है नहीं, हरि के सीमा साथ
गीत-ग़ज़ल सुनकर 'सलिल', आभारी नत माथ
*
कांता-सम्मति मानिए, तभी रहेगी खैर
जल में रहकर कीजिए, नहीं मगर से बैर
*
व्यग्र न पाया व्यग्र को, शांत धीर-गंभीर
हिंदी सेवा में मगन, गढ़ें गीत-प्राचीर
*
शरतचंद्र की कांति हो, शुक्ला अमृत सींच
मिला बूँद भर भी जिसे, ले प्राणों में भींच
*
शरतचंद्र की कांति हो, शुक्ला अमृत सींच
मिला बूँद भर भी जिसे, ले प्राणों में भींच
*
जीवन मूल्य खरे-खरे, पालें रखकर प्रीति
डॉक्टर निकट न जाइये, यही उचित है रीति
*
कलाकार की कल्पना, जब होती साकार
एक नयी ही सृष्टि तब, लेती है आकार
*
कौन किसी को कर रहा, कहें जगत में याद?
जिसने सब जग रचा है, बिसरा जग बर्बाद
*
जिसके मन में जो बसा वही रहे बस याद
उसकी ही मुस्कान से सदा रहे दिलशाद
*
दिल दिलवर दिलदार का, नाता जाने कौन?
दुनिया कब समझी इसे?, बेहतर रहिए मौन
*
स्नेह न कांता से किया, समझो फूटे भाग
सावन की बरसात भी, बुझा न पाए आग
*
होती करवा चौथ यदि, कांता हो नाराज
करे कृपा तो फाँकिये, चूरन जिस-तिस व्याज
*
ज्वाला से बचकर रहें, सब कुछ बारे आग
ज्वाला बिन कैसे बुझे, कहें पेट की आग
*
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

दोहे

दोहा सलिला: 
संजीव 'सलिल'
*
कथ्य, भाव, रस, शिल्प, लय, साधें कवि गुणवान.
कम न अधिक कोई तनिक, मिल कविता की जान..
*
कहें चाहते जिया को, नहीं जिया में चाह 
निज खातिर जीवन जिया, जिया न कर परवाह
*
मेघदूत के पत्र को, सके न अब तक बाँच.
पानी रहा न आँख में, किससे बोलें साँच..
ऋतुओं का आनंद लें, बाकी नहीं शऊर.
भवनों में घुस कोसते. मौसम को भरपूर..
पावस ठंडी ग्रीष्म के. फूट गये हैं भाग.
मनुज सिकोड़े नाक-भौं, कहीं नहीं अनुराग..
मन भाये हेमंत जब, प्यारा लगे बसंत.
मिले शिशिर से जो गले, उसको कहिये संत..
पौधों का रोपण करे, तरु का करे बचाव.
भू गिरि नद से खेलता, ऋषि रख बालक-भाव..
मुनि-मन कलरव सुन रचे, कलकल ध्वनिमय मंत्र.
सुन-गा किलकिल दूर हो, विहँसे प्रकृति-तंत्र..
पत्थर खा फल-फूल दे, हवा शुद्ध कर छाँव.
जो तरु सम वह देव है, शीश झुका छू पाँव..
तरु गिरि नद भू बैल के, बौरा-गौरा प्राण .
अमृत-गरल समभाव से, पचा हुए सम्प्राण..
सिया भूमि श्री राम नभ, लखन अग्नि का ताप.
भरत सलिल शत्रुघ्न हैं, वायु- जानिए आप..
नाद-थाप राधा-किशन, ग्वाल-बाल स्वर-राग.
नंद छंद, रस देवकी, जसुदा लय सुन जाग..
वृक्ष काट, गिरि खोदकर, पाट रहे तालाब.
भू कब्जाकर बेचते, दानव-दैत्य ख़राब..
पवन, धूप, भू, वृक्ष, जल, पाये हैं बिन मोल.
क्रय-विक्रय करते असुर, ओढ़े मानव खोल..
कलकल जिनका प्राण है, कलरव जिनकी जान.
वे किन्नर गुणवान हैं, गा-नाचें रस-खान..
वृक्षमित्र वानर करें, उछल-कूद दिन-रात.
हरा-भरा रख प्रकृति को, पूजें कह पितु-मात..
ऋक्ष वृक्ष-वन में बसें, करें मस्त मधुपान.
जो उलूक वे तिमिर में, देख सकें सच मान..
रहते भू की कोख में, नाग न छेड़ें आप.
क्रुद्ध हुए तो शांति तज, गरल उगल दें शाप..
***********************************

रविवार, 14 जुलाई 2019

दोहे

दोहे 
*
दोष गैर का देख जब, ऊँगली उठती एक 
तीन कहें निज दोष लख, बन जा मानव नेक
*
जब करते निर्माण हम, तब लाते विध्वंस 
पूर्व कृष्ण के जगत में, आ जाता है कंस
*

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

दोहे चोट

समस्या पूर्ति चरण-तब लगती है चोट
*
तब लगती है चोट जब, दुनिया करे सवाल. 
अपनी करनी जाँच लें, तो क्यों मचे बवाल.
*
खुले आम बेपर्द जब, तब लगती है चोट.
हैं हमाम में नग्न सब, फिर भी रखते ओट.
*
लाख गिला-शिकवा करें, सह लेते हम देर.
तब लगती है चोट, जब होता है अंधेर.
*
होती जब निज आचरण, में न तनिक भी खोट.
दोषी करें सवाल जब, तब लगती है चोट.
*

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
कथ्य, भाव, रस, शिल्प, लय, साधें कवि गुणवान.
कम न अधिक कोई तनिक, मिल कविता की जान..
*
मेघदूत के पत्र को, सके न अब तक बाँच.
पानी रहा न आँख में, किससे बोलें साँच..
ऋतुओं का आनंद लें, बाकी नहीं शऊर.
भवनों में घुस कोसते. मौसम को भरपूर..
पावस ठंडी ग्रीष्म के. फूट गये हैं भाग.
मनुज सिकोड़े नाक-भौं, कहीं नहीं अनुराग..
मन भाये हेमंत जब, प्यारा लगे बसंत.
मिले शिशिर से जो गले, उसको कहिये संत..
पौधों का रोपण करे, तरु का करे बचाव.
भू गिरि नद से खेलता, ऋषि रख बालक-भाव..
मुनि-मन कलरव सुन रचे, कलकल ध्वनिमय मंत्र.
सुन-गा किलकिल दूर हो, विहँसे प्रकृति-तंत्र..
पत्थर खा फल-फूल दे, हवा शुद्ध कर छाँव.
जो तरु सम वह देव है, शीश झुका छू पाँव..
तरु गिरि नद भू बैल के, बौरा-गौरा प्राण .
अमृत-गरल समभाव से, पचा हुए सम्प्राण..
सिया भूमि श्री राम नभ, लखन अग्नि का ताप.
भरत सलिल शत्रुघ्न हैं, वायु- जानिए आप..
नाद-थाप राधा-किशन, ग्वाल-बाल स्वर-राग.
नंद छंद, रस देवकी, जसुदा लय सुन जाग..
वृक्ष काट, गिरि खोदकर, पाट रहे तालाब.
भू कब्जाकर बेचते, दानव-दैत्य ख़राब..
पवन, धूप, भू, वृक्ष, जल, पाये हैं बिन मोल.
क्रय-विक्रय करते असुर, ओढ़े मानव खोल..
कलकल जिनका प्राण है, कलरव जिनकी जान.
वे किन्नर गुणवान हैं, गा-नाचें रस-खान..
वृक्षमित्र वानर करें, उछल-कूद दिन-रात.
हरा-भरा रख प्रकृति को, पूजें कह पितु-मात..
ऋक्ष वृक्ष-वन में बसें, करें मस्त मधुपान.
जो उलूक वे तिमिर में, देख सकें सच मान..
रहते भू की कोख में, नाग न छेड़ें आप.
क्रुद्ध हुए तो शांति तज, गरल उगल दें शाप..
***********************************

गुरुवार, 11 जुलाई 2019

दोहे बरसात के

दोहा सलिला:
दोहे बरसात के 
*
उमड़-घुमड़ अा-जा रहे, मेघ न कर बरसात।
हाथ जोड़ सब माँगते, पानी की सौगात।।
*
मेघ पूछते गगन से, कहाँ नदी-तालाब।
वन-पर्वत दिखते नहीं, बरसूँ कहाँ जनाब।।
*
भूमि भवन से पट गई, नाले रहे न शेष।
करूँ कहाँ बरसात मैं, कब्जे हुए अशेष।।
*
लगा दिए टाइल अगिन, भू है तृषित अधीर।
समझ नहीं क्यों पा रहे, तुम माटी की पीर।।
*
स्वागत तुम करते नहीं, साध रहे हो स्वार्थ।
हरी चदरिया उढ़ाओ, भू पर हो परमार्थ।।
*
वर्षा मंगल भूलकर, ठूँस कान में यंत्र।
खोज रहे मन मुताबिक, बारिश का तुम मंत्र।।
*
जल प्रवाह के मार्ग सब, लील गया इंसान।
करूँ कहाँ बरसात कब, खोज रहा हूँ स्थान।।
*
रिमझिम गिरे फुहार तो, मच जाती है कीच।
भीग मजा लेते नहीं, प्रिय को भुज भर भींच।।
*
कजरी तुम गाते नहीं, भूले आल्हा छंद।
नेह न बरसे नैन से, प्यारा है छल-छंद।।
*
घास-दूब बाकी नहीं, बीरबहूटी लुप्त।
रौंद रहे हो प्रकृति को, हुई चेतना सुप्त।।
*
हवा सुनाती निरंतर, वसुधा का संदेश।
विरह-वेदना हर निठुर, तब जाना परदेश।।
*
प्रणय-निमंत्रण पा करूँ, जब-जब मैं बरसात।
जल-प्लावन से त्राहि हो, लगता है आघात।।
*
बरसूँ तो संत्रास है, डूब रहे हैं लोग।
ना बरसूँ तो प्यास से, जीवनांत का सोग।।
*
मनमानी आदम करे, दे कुदरत को दोष।
कैसे दूँ बरसात कर, मैं अमृत का कोष।।
*
नग्न नारियों से नहीं, हल चलवाना राह।
मेंढक पूजन से नहीं, पूरी होगी चाह।।
*
इंद्र-पूजना व्यर्थ है, चल मौसम के साथ।
हरा-भरा पर्यावरण, रखना तेरा हाथ।।
*
खोद तलैया-ताल तू, भर पानी अनमोल।
बाँध अनगिनत बाँध ले, पानी रोक न तोल।।
*
मत कर धरा सपाट तू, पौध लगा कर वृक्ष।
वन प्रांतर हों दस गुना, तभी फुलाना वक्ष।।
*
जूझ चुनौती से मनुज, श्रम को मिले न मात।
स्वागत कर आगत हुई, ले जीवन बरसात
***
11.7.2018, 7999559618

बुधवार, 10 जुलाई 2019

गुरु पर दोहे

: विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर :
गुरु पूर्णिमा पर दोहोपहार 
*
दर्शन को बेज़ार हूँ, अर्पित करूँ प्रणाम 
सिखा रहे गुरु ज्ञात कुछ, कुछ अज्ञात-अनाम
*

नहीं रमा का, दिलों पर, है रमेश का राज।
दौड़े तेवरी कार पर, पहने ताली ताज।।
*
आ दिनेश संग चंद्र जब, छू लेता आकाश।
धूप चाँदनी हों भ्रमित, किसको बाँधे पाश।।
*
श्री वास्तव में साथ ले, तम हरता आलोक।
पैर जमाकर धरा पर, नभ हाथों पर रोक।।
*
चन्द्र कांता खोजता, कांति सूर्य के साथ।
अग्नि होत्री सितारे, करते दो दो हाथ।।
*
देख अरुण शर्मा उषा, हुई शर्म से लाल।
आसमान के गाल पर, जैसे लगा गुलाल।।
*
खिल बसन्त में मंजरी, देती है पैगाम।
देख आम में खास तू, भला करेंगे राम।।
*
जो दे सबको प्रेरणा, उसका जीवन धन्य।
गुप्त रहे या हो प्रगट, है अवदान अनन्य।।
*
जो दे सबको प्रेरणा, उसका जीवन धन्य।
गुप्त रहे या हो प्रगट, है अवदान अनन्य।।
*
वही पूर्णिमा निरूपमा, जो दे जग उजियार।
चंदा तारे नभ धरा, उस पर हों बलिहार।।
*
प्रभा लाल लख उषा की, अनिल रहा है झूम।
भोर सुहानी क्यों हुई, किसको है मालूम?
*
श्वास सुनीता हो सदा, आस रहे शालीन।
प्यास पुनीता हो अगर, त्रास न कर दे दीन।।
*
भाव अल्पना डालिए, कर कल्पना नवीन।
शब्दों का ऐपन सरस, बिम्ब-प्रतीक नवीन।।
*
हीरा लाल न जोड़ते, लखे नेह अनिमेष।
रहे विनीता मनीषा, मन मोहे मिथलेश।।
*
जिया न रज़िया बिन लगे,बेकल बहुत दिनेश।
उषा दुपहरी साँझ की, आभा शेष अशेष।।
*
कांता-कांति न घट सके, साक्षी अरुण-उजास।
जय प्रकाश की हो सदा, वर दे इंद्र हुलास ।।
*

गुरुवार, 27 जून 2019

दोहा सलिला

दोहा सलिला 
*
जिसे बसाया छाँव में, छीन रहा वह ठाँव 
आश्रय मिले न शहर में, शरण न देता गाँव 
*
जो पैरों पर खड़े हैं, 'सलिल' उन्हीं की खैर
पैर फिसलते ही बनें, बंधु-मित्र भी गैर
*
सपने देखे तो नहीं, तुमने किया गुनाह
किये नहीं साकार सो, जीवन लगता भार
*
दाम लागने की कला, सीख किया व्यापार
नेह किया नीलाम जब, साँस हुई दुश्वार
*
माटी में मिल गए हैं, बड़े-बड़े रणवीर
किन्तु समझ पाए नहीं, वे माटी की पीर
*
नाम रख रहे आज वे, बुला-मनाकर पर्व
नाम रख रहे देख जन, अहं प्रदर्शन गर्व
*
हैं पत्थर के सनम भी, पानी-पानी आज
पानी शेष न आँख में, देख आ रही लाज
*

गुरुवार, 20 जून 2019

कुछ दोहे श्रृंगार के

दोहा सलिला
*
जूही-चमेली देखकर, हुआ मोगरा मस्त 
सदा सुहागिन ने बिगड़, किया हौसला पस्त 
*
नैन मटक्का कर रहे, महुआ-सरसों झूम
बरगद बब्बा खाँसते। क्यों? किसको मालूम?
*
अमलतास ने झूमकर, किया प्रेम-संकेत
नीम षोडशी लजाई, महका पनघट-खेत
*
अमरबेल के मोह में, फँसकर सूखे आम
कहे वंशलोचन सम्हल, हो न विधाता वाम
*
शेफाली के हाथ पर, नाम लिखा कचनार
सुर्ख हिना के भेद ने, खोदे भेद हजार
*
गुलबकावली ने किया, इन्तिज़ार हर शाम
अमन-चैन कर दिया है,पारिजात के नाम
*
गौरा हेरें आम को, बौरा हुईं उदास
मिले निकट आ क्यों नहीं, बौरा रहे उदास?
*
बौरा कर हो गया है, आम आम से ख़ास
बौरा बौराये, करे दुनिया नहक हास
***
२०-६-२०१६
lnct jabalpur

शनिवार, 15 जून 2019

दोहे पिता

पितृ दिवस पर- 
पिता सूर्य सम प्रकाशक :
संजीव 

पिता सूर्य सम प्रकाशक, जगा कहें कर कर्म 
कर्म-धर्म से महत्तम, अन्य न कोई मर्म
*

गृहस्वामी मार्तण्ड हैं, पिता जानिए सत्य
सुखकर्ता भर्ता पिता, रवि श्रीमान अनित्य
*
भास्कर-शशि माता-पिता, तारे हैं संतान
भू अम्बर गृह मेघ सम, दिक् दीवार समान
*
आपद-विपदा तम हरें, पिता चक्षु दें खोल
हाथ थाम कंधे बिठा, दिखा रहे भूगोल
*
विवस्वान सम जनक भी, हैं प्रकाश का रूप
हैं विदेह मन-प्राण का, सम्बल देव अनूप
*
छाया थे पितु ताप में, और शीत में ताप
छाता बारिश में रहे, हारकर हर संताप
*
बीज नाम कुल तन दिया, तुमने मुझको तात
अन्धकार की कोख से, लाकर दिया प्रभात
*
गोदी आँचल लोरियाँ, उँगली कंधा बाँह
माँ-पापा जब तक रहे, रही शीश पर छाँह
*
शुभाशीष से भरा था, जब तक जीवन पात्र
जान न पाया रिक्तता, अब हूँ याचक मात्र
*
पितृ-चरण स्पर्श बिन, कैसे हो त्यौहार
चित्र देख मन विकल हो, करता हाहाकार
*
तन-मन की दृढ़ता अतुल, खुद से बेपरवाह
सबकी चिंता-पीर हर, ढाढ़स दिया अथाह
*
श्वास पिता की धरोहर, माँ की थाती आस
हास बंधु, तिय लास है, सुता-पुत्र मृदु हास
*

सोमवार, 8 अप्रैल 2019

सामयिक दोहे

सामायिक दोहे
*
बेचो घोड़े-गधे भी, सोओ होकर मस्त।
खर्राटे ऊँचे भरो, करो सभी को त्रस्त।।
*
दूर रहो उससे सदा, जो धोता हो हाथ।
झट पीछे पड़ गया तो, पीटोगे निज माथ।।
*
टाँग अड़ाना है 'सलिल', जन्म सिद्ध अधिकार।
समझ सको कुछ या नहीं, दो सलाह हर बार।।
*
देवी दर्शन कीजिए, भंडारे के रोज।
देवी खुश हो जब मिले, बिना पकाए भोज।।
*
हर ऊँची दूकान के, फीके हैं पकवान।
भाषण सुनकर हो गया, बच्चों को भी ज्ञान।।
*
नोट वोट नोटा मिलें, जब हों आम चुनाव।
फिर वोटर भूखा मरे, कहीं न मिलता भाव।।
*
देवी खड़ीं चुनाव में, नित रखती नौ रूप।
कहें भिखारी से हुई, मैं भिक्षुक तुम भूप।।
*
कौन किसी का सगा है, कहो पराया कौन?
प्रश्न किया जब भी मिला, उत्तर केवल मौन।।
*
ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन बना बसंत।
दूर गईं पतझड़ हुआ, मन बैरागी संत।।
*
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद।
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गूँजे छंद।।
*
तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक मन थे दूर।
तू-मैं मिल ज्यों हम हुए, साँस हुई संतूर।।
*
दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ।
हँसें अधर मिल-लज नयन, कहें सार्थक साथ।।
*
नयन मिला छवि कैद कर, मूँदे नयन कपाट।
हुए चार दो रह गए, नयना खुद को हार।।
***

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

कुण्डलिया, त्रिपदी, मुक्तक, दोहे,

दो कवि एक कुंडली 
नर-नारी 
*
नारी-वसुधा का रहा, सदा एक व्यवहार 
ऊपर परतें बर्फ कि, भीतर हैं अंगार -संध्या सिंह 
भीतर हैं अंगार, सिंगार न केवल देखें
जीवन को उपहार, मूल्य समुचित अवलेखें
पूरक नर-नारी एक-दूजे के हों आभारी
नर सम, बेहतर नहीं, नहीं कमतर है नारी - संजीव
*
एक त्रिपदी
वायदे पर जो ऐतबार किया
कहा जुमला उन्होंने मुस्काकर
रह गए हैं ठगे से हम यारों
*
मुक्तक
आप अच्छी है तो कथा अच्छी
बात सच्ची है तो कथा सच्ची
कुछ तो बोलेगी दिल की बात कभी
कुछ न बोले तो है कथा बच्ची
*
खुश हुए वो, जहे-नसीब
चाँद को चाँदनी ने ज्यों घेरा
चाहकर भूल न पाए जिसको
हाय रे! आज उसने फिर टेरा
*
सदा कीचड़ में कमल खिलता है
नहीं कीचड़ में सन-फिसलता है
जिन्दगी कोठरी है काजल की
नहीं चेहरे पे कोई मलता है
***
छंद न रचता है मनुज, छंद उतरता आप
शब्द-ब्रम्ह खुद मनस में, पल में जाता व्याप
हो सचेत-संजीव मन, गह ले भाव तरंग
तत्क्षण वरना छंद भी नहीं छोड़ता छाप
*
दोहे
उसने कम्प्यूटर कहा, मुझे किया बेजान
यंत्र बताकर छीन ली मुझसे मेरी जान
*
गुमी चेतना, रह गया होकर तू निर्जीव
मिले प्रेरणा किस तरह?, अब तुझको संजीव?
***

शनिवार, 21 जुलाई 2018

द्विपदी - दोहे साथ में


बसा लो दिल में, दिल में बस जाओ                                                                                  फिर भुला दो तो कोई बात नहीं
*
खुद्कुशी अश्क की कहते हो जिसे 
वो आंसुओं का पुनर्जन्म हुआ
*
अल्पना कल्पना की हो ऐसी 
 द्वार जीवन का जरा सज जाये.
*
गौर गुरु! मीत की बातों पे करो 
दिल किसी का दुखाना ठीक नहीं
*
श्री वास्तव में हो वहीं, जहां रहे श्रम साथ 
 जीवन में ऊँचा रखे श्रम ही हरदम माथ
*
खरे खरा व्यवहार कर, लेते हैं मन जीत 
जो इन्सान न हो खरे, उनसे करें न प्रीत.
*
गौर करें मन में नहीं, 'सलिल' तनिक हो मैल
कोल्हू खीन्चे द्वेष का, इन्सां बनकर बैल
*
काया की माया नहीं जिसको पाती मोह, 
वही सही कायस्थ है, करे गलत से द्रोह.

रविवार, 17 दिसंबर 2017

bal dohe

बाल दोहे:
*
आर्युश को अच्छा लगा, गौरैया का साथ
गया पकड़ने उड़ गई, फुर्र न आई हाथ
*
तितली बैठी फूल पर, आर्यन खींचे चित्र
पेन्सिल से रंग भर रहा, देख सराहें मित्र
*
पापा अँगुली पकड़कर, ले जाते बाज़ार
नदी गोमती घुमाकर, आ पढ़ते अखबार
*
मम्मी चुम्मी ले कहे, लड़ो न, रहना एक
पाठ आज का आज ही, याद करो बन नेक
*
आर्युष-आर्यन खेलते, हैं पढ़ने के बाद
कक्षा में आते प्रथम, पाठ सभी कर याद
*

मंगलवार, 15 मार्च 2016

sher aur dohe

द्विपदियाँ / अश'आर
*
जिस दर पर सजदा किया, मिला एक ही सत्य 
दुनिया ने बुत तराशे, जिसके उसे भुलाया 
*
कितनों से कहा, उससे मगर कह न सके हम 
जिसने हमें बनाया, आ! एक बार मिल 
*
चेहरे पे है सजाया, जिस नाज़नीं ने तिल 
कैसे उसे बतायें, यह है किसी का दिल
*
जैसे ही यह बताया हम हैं किसी काबिल
माशूक ने भिजवाया अपनी अदा का बिल
*
दोहा
तेवर देखें वक़्त के, करें सतत तदबीर
बदल सकेंगे तभी हम, कोशिश की तक़दीर
*
हाथ मिला, मुँह मोड़ना, है सत्ता का खेल
केर-बेर का ही हुआ, राजनीति में मेल
*