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शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

das matrik chhand

दस मात्रिक छंद
२५. १० लघु मात्रा
हर दम छल मत कर
शुभ तज, अशुभ न वर
पथ पर बढ़, मत रुक
नित नव करतब कर
.
'सलिल' प्रवह कलकल
सुख गहकर पल-पल
रुक मत कल रख चल
मनुज न बन अब कल
*
२६. ८ लघु, १ गुरु
नित नर्तित नटवर
गुरु गर्वित गिरिधर
चिर चर्चित चंचल
मन हरकर मनहर
*
२७. ६ लघु, २ गुरु
नित महकती कली
खिल चहकती भली
ललच भँवरे मिले
हँस, बहकती कली
राह फिसलन भरी
झट सँभलती कली
प्रीत कर मत अभी
बहुत सँकरी गली
संयमित रह सदा
सुरभि देकर ढली
*
२८. ४ लघु, ३ गुरु
धन्य-धन्य शंकर
वन्दन संकर्षण
भोले प्रलयंकर
दृढ़ हो आकर्षण
आओ! डमरूधर
शाश्वत संघर्षण
प्रगटे गुप्तेश्वर
करें कृपा-वर्षण
.
हमें साथ रहना
मिला हाथ रहना
सुख-दुःख हैं सांझा
उठा माथ कहना
*
२९. २ लघु, ४ गुरु
बोलो, सच बोलो
पोल नहीं खोलो
सँग तुम्हारे जो
तुम भी तो हो लो
.
तू क्यों है बेबस?
जागो-भागो हँस
कोई देगा न साथ
सोते-रोते नाथ?
*
३०. ५ गुरु
जो चाहो बोलो
बातों को तोलो
झूठों को छोड़ा
सच्चे तो हो लो
.
जो होना है हो
रोकोगे? रोको
पाया खो दोगे
खोया पा लोगे
*

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

दस मात्रिक छंद

दस मात्रिक छंद
९. पदांत यगण
मनुआ! जग गा रे!
प्राची रवि लाई
ऊषा मुसकाई
रहा टेर कागा
पहुना सुधि आई
विधना झट ला रे!
कुण्डी खटकाई
गोरी झट आई
अँखियाँ टकराईं
झुक-उठ शरमाईं
मुड़कर मात जारे!
हुई मन मिलाई
सुध-बुध बिसराई
गयी खनक चूड़ी
ननदी झट आई
चट-पट छिप जा रे!
*
१०. पदांत मगण
मन क्यों आवारा?
जैसे बंजारा
हर दम चाहे हो
केवल पौबारा
*
११. पदांत तगण
ख्वाब में हैं आप
साथ में हैं आप
हम जहाँ मौजूद
न हों पर हैं आप
*
१२. पदांत रगण
बात जब कीजिए
साथ चल दीजिए
सच नहीं भी रुचे
तो नहीं खीजिए
कर मिलें, ना मिलें
मन मिला लीजिए
आँख से भी कभी
कुछ लगा पीजिए
नेह के नीर में
सँग नहा भीजिए
*
१३. पदांत जगण ६+१२१
किसे कहें अनाथ?
सभी मनुज सनाथ
सबका ईश एक
झुकाएँ नित माथ
*
१४. पदांत भगण
लाया है सावन
त्यौहार सुपावन
मिल इसे मनायें
राखी मन भावन
.
सीमा पर दुर्जन
दें मार सैन्य जन
अरि के घर मातम
बोयेगा सावन
*
१५, पदांत नगण
जब से गए सजन
बेसुध सा तन-मन
दस दिश चहल-पहल
सूना मन-मधुवन
किया सतत सुमिरन
हर दिन, हर पल-छिन
पौधारोपण कर
जी पायें फिर वन
वह दिखता रहबर
हो न कहीं रहजन
*
१६. पदांत सगण
हमको है कहना
दूर नहीं रहना
चुप, कब तक पहनें
सुधियों का गहना?
मजबूरी अपनी
विरह व्यथा तहना
सलिला कब कहती
मुझे नहीं बहना?
मंगल मन रही
क्यों केवल बहना?
*
१७. २ यगण
निहारो-निहारो
सितारों निहारो
सदा भारती की
करो आरती ही
हसीं चाँदनी को
धरा पर उतारो
सँवारो-सँवारो
धरा को सँवारो
१८. २ तगण
सीता वरें राम
सीता तजें राम
छोड़ें नहीं राग
सीता भजें राम
१९. २ रगण
आपसे काम ना
हो, यही कामना
गर्व का वास ना
हो, नहीं वासना
स्वार्थ को साध ना
छंद को साधना
माप की नाप ना
नाप ही नापना
उच्च हो भाव ना
शुद्ध हो भावना
*
२०. यगण तगण
कहीं है नीलाभ
कहीं है पीताभ
कपासी भी मेघ
कहीं क्यों रक्ताभ?
कड़े हो या नर्म
रहो जैसे डाभ
सहेगा जो हानि
कमाएगा लाभ
२१. तगण यगण
वादा न निभाया
कर्जा न चुकाया
जोड़ा धन थोड़ा
मोहे मत माया
जो पुन्य कमाया
आ अंत भुनाया
ठानो न करोगे
जो काम न भाया
२१. यगण रगण
किये जाओ मजा
चली आती क़ज़ा
किया तो भोग भी
यही दैवी रजा
कहो तो स्वार्थ को
कभी क्या है तजा?
रही है सत्य की
सदा ऊँची ध्वजा
न बोले प्रेयसी
'मुझे क्या जा-न जा'
*
२२. रगण यगण
आपका सहारा
दे रहा इशारा
हैं यही मुरादें
साथ हो हमारा
दूर जा पुकारा
पास आ निहारा
याद है न वादा?
प्यार हो न कारा?
आँख में बसा है
रूप ये तुम्हारा
*
२३. तगण रगण २२१ २१२
आओ! कहीं चलें
बोलो कहाँ मिलें?
माँगें यही दुआ
कोई नहीं छले
*
२४. रगण तगण
आज का पैगाम
जीत पाए लाम
आपका सौभाग्य
आप आये काम
सोचते हैं लोग
है विधाता वाम
चाहिए क्यों पुण्य
कर्म है निष्काम
खूब पाया नाम
बात है ये ख़ास
प्रेरणा लें आम
*

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

दस मात्रिक छंद

ॐ 
दस मात्रिक छंद 
१. पदादि यगण 
सुनो हे धनन्जय!
हुआ है न यह जग 
किसी का कभी भी।
तुम्हारा, न मेरा
करो मोह क्यों तुम?
तजो मोह तत्क्षण।
न रिश्ते, न नाते
हमेशा सुहाते।
उठाओ धनुष फिर
चढ़ा तीर मारो।
मरे हैं सभी वे
यहाँ हैं खड़े जो
उठो हे परन्तप!
*
२. पदादि मगण
सूनी चौपालें
सूना है पनघट
सूना है नुक्कड़
जैसे हो मरघट
पूछें तो किससे?
बूझें तो कैसे?
बोया है जैसा
काटेंगे वैसा
नाते ना पाले
चाहा है पैसा
*
३. पदादि तगण
चाहा न सायास
पाया अनायास
कैसे मिले श्वास?
कैसे मिले वास?
खोया कहाँ नेह?
खोया कहाँ हास?
बाकी रहा द्वेष
बाकी रहा त्रास
होगा न खग्रास
टूटी नहीं आस
ऊगी हरी घास
भौंरा-कली-रास
होता सुखाभास
मौका यही ख़ास
*
४. पदादि रगण
वायवी सियासत
शेष ना सिया-सत
वायदे भुलाकर
दे रहे नसीहत
हो रही प्रजा की
व्यर्थ ही फजीहत
कुद्ध हो रही है
रोकिए न, कुदरत
फेंकिए न जुमले
हो नहीं बगावत
भूलिए अदावत
बेच दे अदालत
कुश्तियाँ न असली
है छिपी सखावत
*
५. पदादि जगण
नसीब है अपना
सलीब का मिलना
न भोर में उगना
न साँझ में ढलना
हमें बदलना है
न काम का नपना
भुला दिया जिसको
उसे न तू जपना
हुआ वही सूरज
जिसे पड़ा तपना
नहीं 'सलिल' रुकना
तुझे सदा बहना
न स्नेह तज देना
न द्वेष को तहना
*
६. पदादि भगण
बोकर काट फसल
हो तब ख़ुशी प्रबल
भूल न जाना जड़
हो तब नयी नसल
पैर तले चीटी
नाहक तू न मसल
रूप नहीं शाश्वत
चाह न पाल, न ढल
रूह न मरती है
देह रही है छल
तू न 'सलिल' रुकना
निर्मल देह नवल
*
७. पदादि नगण
कलकल बहता जल
श्रमित न आज न कल
रवि उगता देखे
दिनकर-छवि लेखे
दिन भर तपता है
हँसकर संझा ढल
रहता है अविचल
रहता चुप अविकल
कलकल बहता जल
नभचर नित गाते
तनिक न अलसाते
चुगकर जो लाते
सुत-सुता-खिलाते
कल क्या? कब सोचें?
कलरव कर हर पल
कलरव सुन हर पल
कलकल बहता जल
नर न कभी रुकता
कह न सही झुकता
निज मन को ठगता
विवश अंत-चुकता
समय सदय हो तो
समझ रहा निज बल
समझ रहा निर्बल
कलकल बहता जल
*
८. पदादि सगण
चल पंछी उड़ जा
जब आये तूफां
जब पानी बरसे
मत नादानी कर
मत यूँ तू अड़ जा
पहचाने अवसर
फिर जाने क्षमता
जिद ठाने क्यों तू?
झट पीछे मुड़ जा
तज दे मत धीरज
निकलेगा सूरज
वरने निज मंजिल
चटपट हँस बढ़ जा
***
संपर्क - ९४२५१८३२४४ / salil.sanjiv@gmail.com

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

das matrik chhand

दस  मात्रिक छंद
२५. १० लघु मात्रा
हर दम छल मत कर
शुभ तज, अशुभ न वर
पथ पर बढ़,  मत रुक
नित नव करतब कर
.
'सलिल' प्रवह कलकल
सुख गहकर पल-पल
रुक मत कल रख चल
मनुज न बन अब कल
*
२६. ८ लघु, १ गुरु
नित नर्तित नटवर
गुरु गर्वित गिरिधर
चिर चर्चित चंचल
मन हरकर मनहर
*
२७. ६ लघु, २ गुरु
नित महकती कली
खिल चहकती भली
ललच भँवरे मिले
हँस, बहकती कली
राह फिसलन भरी
झट सँभलती कली
प्रीत कर मत अभी
बहुत सँकरी गली
संयमित रह सदा
सुरभि देकर ढली
*
२८. ४ लघु, ३ गुरु
धन्य-धन्य शंकर
वन्दन संकर्षण
भोले प्रलयंकर
दृढ़ हो आकर्षण
आओ! डमरूधर
शाश्वत संघर्षण
प्रगटे गुप्तेश्वर
करें कृपा-वर्षण
.
हमें साथ रहना
मिला हाथ रहना
सुख-दुःख हैं सांझा
उठा माथ कहना
*
२९. २ लघु, ४ गुरु
बोलो, सच बोलो
पोल नहीं खोलो
सँग तुम्हारे जो
तुम भी तो हो लो
.
तू क्यों है बेबस?
जागो-भागो हँस
कोई देगा न साथ
सोते-रोते नाथ?
*
३०. ५ गुरु
जो चाहो बोलो
बातों को तोलो
झूठों को छोड़ा
सच्चे तो हो लो
.
जो होना है हो
रोकोगे? रोको
पाया खो दोगे
खोया पा लोगे
*