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मंगलवार, 31 मार्च 2020

लघुकथा: मनोरम पत्नी - अरुण भटनागर

लघुकथा
मनोरम पत्नी
अरुण भटनागर
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चैत्र नवरात्रि के व्रत चल रहे हैं, नित्य सुबह-शाम मां दुर्गा की आराधना कवच ‌और अर्गला स्त्रोत के पाठ से पूर्ण होती है। कल रात्रि ,मैं करीब ११ बजे सोया और गहन‌ निद्रा में चला गया। स्वप्न में देखा कि माँ दुर्गा साक्षात प्रगट हो गयी हैं और उनका प्रकाश चारों ओर फैला हुआ है। माँ मुझे देखकर प्रेम और करुणा भरी मुद्रा में मन्द मन्द मुस्करा रही हैं।

मैंने प्रणामकर पूछा : "माँ! मेरी चेतना, मूलाधार चक्र से उठकर अनाहत चक्र तक तो‌ आ गयी है तो फिर विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र आदि को भेदकर सहस्त्रार चक्र में पहुँचने का पथ क्यों सुगम्य नहीं कर रहीं हैं? मुझे मुक्त मन क्यों नहीं बना देती हो? मैं आपके 'अर्गला स्त्रोत' का पाठ नित्य करता हूँ फिर भी मुझे रूप, विजय और यश क्यों नहीं मिलता? काम, क्रोध,मद,मोह आदि शत्रुओं का नाश क्यों नहीं होता है। मैं क्या प्रार्थनाकरूँ कि आप प्रसन्न हो जायें एवं मुझे अभीष्ट सिद्धि प्रदान करें।"

माँ ने कहा : "पुत्र! तू मुझसे अपने मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्नी प्रदान करने की प्रार्थना करता है- "पत्नी मनोरमाम देहि मनोवृत्तानुसारिणीं" मैं वैसा ही वरदान‌ तुझे दे देती हूँ। जिस दिन तू तू मुझसे यह प्रार्थना करेगा कि मुझे ऐसी मनोरम पत्नी प्रदान करो जिसके समक्ष आते ही मेरी समस्त मनोवृत्तियाँ शान्त हो जायें, उसी दिन तू मुक्त हो जायेगा और इस संसार में ही मोक्ष प्राप्त कर लेगा।"
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लघुकथा : कारण -अरुण भटनागर

लघुकथा :
कारण
अभियंता अरुण भटनागर, जबलपुर
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रजनीश एक प्रायवेट इंजीनियरिंग कॉलेज का छात्र था। वह अपने घर से कालेज जा रहा था, अचानक ट्रेफिक जाम हो गया। उस भीड़ में उसने अपने सामने स्कूटी पर एक सरल लड़की को देखा जो सहज भाव से मुस्कुरा कर बार बार पीछे मुड़कर सबको देखती जा रही थी और स्कूटी भी चलाती जा रही थी।

भीड़ छटी तो उस लड़की ने अपनी स्कूटी की गति कुछ तेज कर दी पर बार बार पीछे मुड़कर सबको मुस्कराकर देखने का उसका सिलसिला टूट ही‌ नहीं रहा था। रजनीश को उसकी मुस्कराहट में कुछ खिंचाव सा लगा तो उसने जब उसकी गाड़ी उस लड़की की स्कूटी के बिल्कुल करीब पहुंची तो परिचय बढ़ाने का साहस किया और कुछ पूछा।

लड़की ने कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, बार बार पीछे पलटकर मुस्कराकर देखने के सिवा और सम्मान्य रूप से अपनी स्कूटी चलाती रही। रजनीश को लगा वह कुछ कहना चाह रही है पर कुछ कह नहीं पा रही है। रजनीश उसके पीछे-पीछे हो लिया, लड़की का पलट-पलटकर मुस्कराकर देखने का क्रम जारी था।

करीब तीन किलोमीटर जाने के बाद लड़की मुस्करा कर एक गेट के भीतर घुस गयी। रजनीश ने गेट पर लगे बोर्ड को ध्यान से पढ़ा। उस पर बड़े बड़े अक्षरों में अंध, मूक, बधिर स्कूल लिखा हुआ था।रजनीश वापिस लौट पड़ा, उसे ज्ञात हो गया था लड़की के असामान्य आचरण का कारण।
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