कुल पेज दृश्य

नवगीत: गर्मी के दिन... संजीव 'सलिल' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नवगीत: गर्मी के दिन... संजीव 'सलिल' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 31 मई 2012

नवगीत: गर्मी के दिन... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
गर्मी के दिन...
संजीव 'सलिल'
*
बतियाते-इठलाते
गर्मी के दिन..
*
ठंडी से ठिठुर रहे.
मौसम के पाँव.
सूरज ले उषा किरण
आया हँस गाँव.
नयनों में सपनों ने
पायी फिर ठाँव.
अपनों की पलकों में
खोज रहे छाँव.
महुआ से मदिराए
पनघट के दिन.
चुक जाते-थक जाते
गर्मी के दिन..
*
पेड़ों का कत्ल देख
सिसकता पलाश.
पर्वत का अंत देख
नदी हुई लाश.
शहरों में सीमेंटी
घर हैं या ताश?
जल-भुनता इंसां
फँस यंत्रों के पाश.
होली की लपटें-
चौपालों के दिन.
मुरझाते झुलसाते
गर्मी के दिन..
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in