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रविवार, 7 जनवरी 2018

२००१८ की लघुकथाएँ

२०१८ की लघुकथाएँ:
कोल्हू का बैल  
*
विवाह पश्चात माता-पिता की देख-भाल, बेटे-बेटियों की शिक्षा-नौकरी और विवाह हो जाने पर उसने चैन की साँस ली। पारिवारिक जिम्मेदारियाँ निभाते-निभाते कब किशोर से प्रौढ़ हो गया पता ही न चला। 
देर आयद दुरुस्त आयद... अब कुछ मन की भी कर ली जाए, सोचकर उसने पहले पुस्तकालय की सदस्यता ली, फिर कलम थाम कर गद्य-पद्य में हाथ आजमाने लगा। कहते है हौसलेवालों की कभी हार नहीं होती। शीघ्र ही उसका लिखा सराहा जाने लगा और यत्र-तत्र प्रकाशित-पुरस्कृत भी होने लगा।  
एक रात कुछ अंतराल से बेटे-बेटी का फोन आया जिसमें उसे ताकीद की गयी कि वह पहले की तरह ठीक से घर की देख-भाल क्यों नहीं करता?, क्यों आलतू-फालतू के मित्रों और कामों में समय और धन बर्बाद करता है? उसने 'काटो तो खून नहीं' की स्थिति का अनुभव किया। मन तो हुआ था कि पूछे- 'बेटा! खेल के चक्कर में दो साल और बिटिया! नृत्य के चक्कर में एक साल, बेशकीमती धन बर्बाद करने के बारे में कभी सोचा है। इसके बाद भी कोचिंग और ट्यूशन, फिर भी कम अंकों के कारन निजी संस्थाओं में पढ़ाई पर जो समय और धन लगा उसका कसूरवार कौन है?  
किंतु व्यर्थ कड़वाहट न बढ़े  सोचकर फोन काट दिया। मुड़कर देखा तो वह बंकिम दृष्टि से देखते हुए  व्यंग्यात्मक मुस्कान बिखेर रही थी। उसे तत्क्षण ही प्रतीति हुई कि वह भले ही मन-प्राण से निछावर होता रहा है किंतु उसे अब समाजः गया है सिर्फ कोल्हू का बैल।
*** ७-१-२०१८ ***
salil.sanjiv@gmail.com ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४ www.divyanarmada.in 

2018 ki laghukathayen

२०१८ की लघुकथाएँ: ४
दोषी
*
वे बचपन से एक-साथ खेलते-कूदते हुए बड़े हुए, संयोगवश एक ही विद्यालय में साथ ही पढ़ रहे थे। परीक्षाफल आया तो वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण था किंतु वह अनुत्तीर्ण हो गयी थी।
इसे अपनी सफलता की ख़ुशी से अधिक दुःख उसकी असफलता का था क्योंकि उसी की पुस्तकें लेकर यह साल भर पढ़ता रहा था।
शाम को उद्यान में दोनों मिले तो वह बधाई देते हुए इसके गले लग गयी। यह अवाक था यह देखकर कि कि वह अपनी असफलता से दुखी कम और इसकी सफलता से सुखी अधिक थी। इसने तय किया कि अब ऐसा नहीं होगा , वह अपने साथ-साथ इसकी तैयारी पर भी ध्यान देगा।
दोनों अपने-अपने घर लौटे।  इसने अपने घर पर कहर बरपा हुआ पाया। उसके माता-पिता इसके माता-पिता पर नाराज हो रहे थे कि इसकी संगत में वह बिगड़ गई है। इसके माता-पिता बोले कि वह बिगड़ी है, इससे दूर रहे।
इसके घर पर सन्नाटा पसरा हुआ था, माता-पिता ने लौटकर बताया कि वे क्या कर आये थे।
दोनों नासमझ नहीं समझ पा रहे थे कि जो कुछ घटा मिल-जुलकर उसे सुधारने का अवसर दें के स्थान पर उसे सुधारने के स्थान पर समझदार उन्हें क्यों ठहरा रहे हैं दोषी?   
५-१-२०१८, TIETJabalpur -------------------
salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४, www.divyanarmada.in