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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 27 अक्टूबर 2025
अक्टूबर २७, करवा चौथ, मुक्तक, ताजमहल, लघुकथा, चित्रगुप्त, गीत, दोहा,नैरंतर्य छंद
शुक्रवार, 26 अगस्त 2022
ताजमहल
ताजमहल
ताजमहल को बिना सीमेंट के कैसे इतना मजबूत बनाया गया था?
दुनिया के सात अजूबों में से एक, शिवालय या ताजमहल (१६३१ ई.-१६४१ ई.) कई भूकंप आंधी तूफानों को झेलकर भी मजबूती के साथ खड़ा है। क्या आप जानते हैं कि जब इसे बनाया गया तब सीमेंट का अविष्कार नहीं हुआ था। बिना सीमेंट के इसके पत्थरों को किस तरह जोड़ा गया कि यह आज भी सुरक्षित है। ताजमहल ही नहीं अन्य इमारतों को बनाते समय भी पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए दो तरह की तकनीक काम में लाई गईं -
१. नींव में पत्थरों को एक-दूसरे पर इस तरह रख गया की उनका गुरुत्वाकर्षण केंद्र एक सीध में रहे। इसी रेखा में पत्थरों में छेड़ कर उसमें लोहे की कील (छड़ का टुकड़ा) रांगे के साथ लगे गया ताकि दोनों पत्थर न हिल सकें।
२. भवन में ईंटनुमा पत्थरों को जोड़ने के लिए एक खास तरह के मिश्रण का उपयोग किया गया। चूहा या छुई मिट्टी (चिकनी मिट्टी) को पानी में भीगा-गाला क्र उसमें से कंकर आदि अलग कर देने के बाद गुड,बताशा, बेल फल का गूदा और रस, दही, उड़द की दाल, जूट, कत्था आदि चीजों को मिलाकर कई दिनों तक मिलाया जाता था। इस मिश्रण का उपयोग गारे (मॉर्टर) की तरह किया जाता था। इसमें लाल, हरा या पीला रंग मिलकर रंगीन गारा बना लिया जाता था। जयपुर के राजमहलों में अंडे की ज़र्दी भी इस मसाले में मिलाई गई। इस कारण वे दीवारें सैंकड़ों साल बाद भी संगमरमर की तरह चिकनी और चमकदार हैं। इस इमारतों में दरारें न पड़ने का कारण मसले का धूलमुक्त होना है।
ताजमहल को सजाने के लिए हक़ीक़, फ़िरोज़ा, मूंगा, सुलेमानी, लहसुनिया, तलाई, लाजवर्त, रक्तमणि, बैरूज, पुखराज, यशब, पिटुनिया, तुरमली, ज़हर मोहरा, मिकनातिस, सिंदूरिया, नीलमणि, झाँवा, नाखोद, गोमेद, मोती, पन्ना, हीरा,माणिक, जमीनिया, फ़िरोज़ा आदि रत्न तथा बेशकीमती खाटू पत्थर, संगमरमर, सुलेमानी पत्थर आदि का प्रयोग किया गया था।
सिमेंट कब बनी?
सीमेंट का अविष्कार साल 1824 ईस्वी में इंग्लैंड के रहने वाले जोसेफ एस्पडीन ने किया था।
शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017
doha
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ताज न मंदिर-मकबरा, मात्र इमारत भव्य भूल सियासत देखिए, कला श्रेष्ठ शुचि दिव्य
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नेताओं से लीजिए, भत्ता-सुविधा छीन भाग जाएँगे चोर सब, श्रेष्ठ सकें हम बीन
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एंकर अनुशासित रहे, ठूँसे नहीं विचार वक्ता बोले विषय पर, लोग न हों बेज़ार
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जानकार वक्ता रहें, दलगत करें न बात सच उद्घाटित हो तभी, सुधर सकें हालात
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हम भी जानें बोलना, किंतु बुलाये कौन? घिसे-पिटे चेहरे बुला, सच को करते मौन
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केंद्र-राज्य में भिन्न दल, लोकतंत्र की माँग एक न मनमानी करे, खींच न पाए टांग
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salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
www.divyanarmada.in, #हिंदी_ब्लॉगर
शनिवार, 18 मई 2013
doha taj laj paryay hai acharya sanjiv verma 'salil'
ताज लाज-पर्याय है…
संजीव
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ताज लाज-पर्याय है, देखे दोहा मौन.
दर्दनाक सच सिसकता, धीर धराये कौन?
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मंदिर था मकबरा है, ताज महल है नाम.
बलिहारी है समय की, कहें सुबह को शाम।।
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संगमरमरी शान का, जीवित दस्तावेज।
हृदयहीनता छिपी है, यहाँ सनसनीखेज।।
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तहखाने में बंद हैं, शिव कब हो उद्धार।
कब्रों का पाखंड है, शमशानी श्रृंगार।।
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बूँद-बूँद जल टपकता, शिव गुम नीचे कब्र।
कब तक करना पडेगा, पाषणों को सब्र।।
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चिन्ह मांगलिक सुशोभित, कई कमल-ओंकार।
नाम मकबरे का महल, कहीं न जग में यार।।
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जितने बरस विवाह के, उतनी हों संतान।
तन सह पाए किस तरह, असमय निकली जान।।
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बच्चे जनने की बनी, बीबी सिर्फ मशीन।
खेल वासना का हुआ, नाम प्यार की बीन।।
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कैद बाप को कर हुए, जो सुत सत्तासीन।
दें दुहाई वे प्यार की, पद-मद में जो लीन।।
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प्रथम जोड़ सम्बन्ध फिर, मान लिया आधीन।
छीन महल अपमान कर, तड़पाया कर दीन।।
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कब तक पढ़ सुन कहेंगे, हम झूठा इतिहास?
पूछें पत्थर ताज के, हो गमगीन-उदास।।
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मुक्तक
मुहब्बत है किसे कितनी, नहीं पत्थर बताएँगे?
नहीं दिल पास जिनके, कैसे दिल के गीत गायेंगे?
प्यार के नाम पर जनता के धन के फूंकनेवाले-
गरीबों की मुहब्बत को, न क्यों नीचा दिखायेंगे?
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दोष होता न समरथ का, न मानेंगे कभी यारों,
सचाई सामने लाना है लो संकल्प यह सारों।
करो मत स्वार्थ, सत्ता या सियासत की अधिक चिंता-
न सच से आँख मूंदो, निडर हो सच ही कहो प्यारों।।
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salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.blogspot.in
शनिवार, 7 अगस्त 2010
विचित्र किन्तु सत्य: 'तेजोमहालय' बन गया 'ताजमहल'
ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.
अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था. शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत १००० से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है, खंड एक के पृष्ठ ४०२ और ४०३ पर इस बात का उल्लेख है कि शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी को मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था. मौत के के ०६ माह बाद, तारीख़ 15 ज़मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार,को उसके शव को मकबरे से निकाल कर अकबराबाद आगरा लाया गया. फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से छीने गए, आगरा स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में पुनः दफनाया गया. लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, हिन्दुओं से छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था , उदाहरणार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं.
मकबरा महल नहीं होता:
पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल नही, मुमताज-उल-ज़मानी था.
और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए, यह समझ से परे है...
आँगन में शिखर के छायाचित्र का रूपांकन
==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर १९८५ में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् १३५९ के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग ३०० वर्ष पुराना है...
==>मुमताज की मृत्यु सन १६३१ में हुई थी उसी वर्ष भारत आए अंग्रेज भ्रमणकर्ता पीटर मुंडी के अनुसा: ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था.
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् १६३८ (मुमताज कि मृत्यु के ०७ साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया. परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य १६३१ से १६५१ तक जोर-शोर से चल रहा था.
==>औरंगजेब की ताजपोशी के समय भारत आये और दस साल यहाँ रहे फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो के अनुसार: औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.
ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........
निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह
दीवारों पर बने फूलों में ओम् ( ॐ )
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे .
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें,कुदरत के काम से,,,,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......