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सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

अक्टूबर २७, करवा चौथ, मुक्तक, ताजमहल, लघुकथा, चित्रगुप्त, गीत, दोहा,नैरंतर्य छंद

सलिल सृजन अक्टूबर २७
*
भोर उठिए सुमिर प्रभु को, दोपहर में काम कर।
साँझ सुख-संतोष पा ले, रात सो शुभ स्वप्न धर।।
गीत
जीवन जी ले धीरज धरकर
सुख-दुख से मत भाग रे!
ना हो अतिशय भोग-विलासी
और न सब कुछ त्याग रे!
जो जैसा है प्रभु की माया,
काया पर ईश्वर की छाया।
कर्म किया परिणाम भोग ले,
घटे नहीं अनुराग रे!
चित्र गुप्त होता है प्रभु का,
नाहक दे आकार तू।
कर्मकांड भरमाते तुझको,
सच को बना सुहाग रे!
धर्म नंदिनी श्वास-श्वास हो,
शुभावती हर आस हो।
शिव हरि रवि राशि बारह सम,
बन जलने दे आग रे!
२७.१०.२०२४
•••
एक रचना
*
दिल जलता है तो जलने दे, दीवाली है
आँसू न बहा फरियाद न कर, दीवाली है
दीपक-बाती में नाता क्या लालू पूछे
चुप घरवाला है, चपल मुखर घरवाली है
फिर तेल धार क्या लगी तनिक यह बतलाओ
यह दाल-भात में मूसल रसमय साली है
जो बेच-खरीद रहे उनको समधी जानो
जो जला रही तीली सरहज मतवाली है
सासू याद करे अपने दिन मुस्काकर
साला बोला हाथ लगी हम्माली है
सखी-सहेली हवा छेड़ती जीजू को
भभक रही लौ लाल न जाए सँभाली है
दिल जलता है तो जलने दे दीवाली है
आँसू न बहा फरियाद न कर दीवाली है
२७-१०-२०१९
***
करवा चौथ
*
अर्चना कर सत्य की, शिव-साधना सुन्दर करें।
जग चलें गिर उठ बढ़ें, आराधना तम हर करें।।
*
कौन किसका है यहाँ?, छाया न देती साथ है।
मोह-माया कम रहे, श्रम-त्याग को सहचर करें।।
*
एक मालिक है वही, जिसने हमें पैदा किया।
मुक्त होकर अहं से, निज चित्त प्रभु-चाकर करें।।
*
वरे अक्षर निरक्षर, तब शब्द कविता से मिले।
भाव-रस-लय त्रिवेणी, अवगाह चित अनुचर करें।।
*
पूर्णिमा की चंद्र-छवि, निर्मल 'सलिल में निरखकर।
कुछ रचें; कुछ सुन-सुना, निज आत्म को मधुकर करें।।
करवा चौथ २७-१०-२०१८
***
मुक्तक
*
जीते जी मिलता प्यार नहीं, मरने पर बनते ताजमहल
यह स्वाभाविक है, स्मृतियाँ बिन बिछड़े होती नहीं प्रबल
क्यों दोष किसी को दें हम-तुम, जो साथ उसे कब याद किया?
बिन शीश कटाये बना रहे, नेता खुद अपने शीशमहल
*
जीवन में हुआ न मूल्यांकन, शिव को भी पीना पड़ा गरल
जीते जी मिलता प्यार नहीं, मरने पर बनते ताजमहल
यह दुनिया पत्थर को पूजे, सम्प्राणित को ठुकराती है
जो सचल पूजता हाथ जोड़ उसको जो निष्ठुर अटल-अचल
*
कविता होती तब सरस-सरल, जब भाव निहित हों सहज-तरल
मन से मन तक रच सेतु सबल, हों शब्द-शब्द मुखरित अविचल
जीते जी मिलता प्यार नहीं, मरने पर बनते ताजमहल
हँस रूपक बिम्ब प्रतीकों में, रस धार बहा करती अविकल
*
जन-भाषा हिंदी की जय-जय, चिरजीवी हो हिंदी पिंगल
सुरवाणी प्राकृत पाली बृज, कन्नौजी अपभ्रंशी डिंगल
इतिहास यही बतलाता है, जो सम्मुख वह अनदेखा हो
जीते जी मिलता प्यार नहीं, मरने पर बनते ताजमहल
*
दोहा सलिला -
नेह नर्मदा सलिल ही, पा नयनों का गेह
प्रवहित होता अश्रु बन, होती देह विदेह
*
स्नेह-सलिल की लहर सम, बहिये जी भर मीत
कूल न तोड़ें बाढ़ बन, यह जीवन की रीत
*
मिले प्रेरणा तो बने, दोहा गीत तुरंत
सदा सदय माँ शारदा, साक्षी दिशा-दिगंतदोहा
२७-१०-२०१६
***
लघुकथा:
प्यार के नाम
*
पलट रहा हूँ फेसबुक आउट वाट्स ऐप के पन्ने, कहीं गीत-ग़ज़ल है, कहीं शेरो-शायरी, कहीं किस्से-कहानी, कहीं कहीं मदमस्त अदायें और चुलबुले कमेंट्स, लिव इन की खबरें, सबका दावा है कि वे उनका जीवन है सिर्फ प्यार के नाम.…
तलाश कर थक गया लेकिन नहीं मिला कोई भजन, प्रार्थना, सबद, अरदास, हम्द, नात, प्रेयर उसके नाम जिसने बनाई है यह कायनात, जो पूरी करता है सबकी मुरादें, कहें नहीं है चंद सतरें-कोई पैगाम उसके प्यार के नाम।
***
मुक्तक:
जुदा-जुदा किस्से हैं अपने
जुदा-जुदा हिस्से हैं अपने
पीड़ा सबकी एक रही है-
जुदा-जुदा सपने हैं अपने
*
कौन किसको प्यार कर पाया यहाँ?
कौन किससे प्यारा पा पाया यहाँ?
अपने सुर में बात अपनी कह रहे-
कौन सबकी बात कर पाया यहाँ?
*
अक्षर-अक्षर अलग रहा तो कह न सका कुछ
शब्द-शब्द से विलग रहा तो सह न सका कुछ
अक्षर-शब्द मिले तो मैं-तुम से हम होकर
नहीं कह सका ऐसा बाकी नहीं रहा कुछ
२७-१०-२०१५
***
नवगीत:
चित्रगुप्त को
पूज रहे हैं
गुप्त चित्र
आकार नहीं
होता है
साकार वही
कथा कही
आधार नहीं
बुद्धिपूर्ण
आचार नहीं
बिन समझे
हल बूझ रहे हैं
कलम उठाये
उलटा हाथ
भू पर वे हैं
जिनका नाथ
खुद को प्रभु के
जोड़ा साथ
फल यह कोई
नवाए न माथ
खुद से खुद ही
जूझ रहे हैं
पड़ी समय की
बेहद मार
फिर भी
आया नहीं सुधार
अकल अजीर्ण
हुए बेज़ार
नव पीढ़ी का
बंटाधार
हल न कहीं भी
सूझ रहे हैं
***
नवगीत:
ऐसा कैसा
पर्व मनाया ?
मनुज सभ्य है
करते दावा
बोल रहे
कुदरत पर धावा
कोई काम
न करते सादा
करते कभी
न पूरा वादा
अवसर पाकर
स्वार्थ भुनाया
धुआँ, धूल
कचरा फैलाते
हल्ला-गुल्ला
शोर मचाते
आज पूज
कल फेकें प्रतिमा
समझें नहीं
ईश की गरिमा
अपनों को ही
किया पराया
धनवानों ने
किया प्रदर्शन
लंघन करता
भूखा-निर्धन
फूट रहे हैं
सरहद पर बम
नहीं किसी को
थोड़ा भी गम
तजी सफाई
किया सफाया
***
नैरंतर्य छंद
रात जा रही, उषा आ रही
उषा आ रही, प्रात ला रही
प्रात ला रही, गीत गा रही
गीत गा रही, मीत भा रही
मीत भा रही, जीत पा रही
जीत पा रही, रात आ रही
गुप-चुप डोलो, राज न खोलो
राज न खोलो, सच मत तोलो
सच मत तोलो,मन तुम सो लो
मन तुम सो लो, नव रस घोलो
नव रस घोलो, घर जा सो लो
घर जा सो लो, गुप-चुप डोलो
***
दोहा सलिला :
कथ्य भाव रस छंद लय, पंच तत्व की खान
पड़े कान में ह्रदय छू, काव्य करे संप्राण
मिलने हम मिल में गये, मिल न सके दिल साथ
हमदम मिले मशीन बन, रहे हाथ में हाथ
हिल-मिलकर हम खुश रहें, दोनों बने अमीर
मिल-जुलकर हँस जोर से, महका सकें समीर.
मन दर्पण में देख रे!, दिख जायेगा अक्स
वो जिससे तू दूर है, पर जिसका बरअक्स
जिस देहरी ने जन्म से, अब तक करी सम्हार
छोड़ चली मैं अब उसे, भला करे करतार
माटी माटी में मिले, माटी को स्वीकार
माटी माटी से मिले, माटी ले आकार
मैं ना हूँ तो तू रहे, दोनों मिट हों हम
मैना - कोयल मिल गले, कभी मिटायें गम
२७-१०-२०१४

*** 

शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

ताजमहल

ताजमहल 

ताजमहल को बिना सीमेंट के कैसे इतना मजबूत बनाया गया था?

दुनिया के सात अजूबों में से एक, शिवालय या ताजमहल (१६३१ ई.-१६४१ ई.) कई भूकंप आंधी तूफानों को झेलकर भी मजबूती के साथ खड़ा है। क्या आप जानते हैं कि जब इसे बनाया गया तब सीमेंट का अविष्कार नहीं हुआ था। बिना सीमेंट के इसके पत्थरों को किस तरह जोड़ा गया कि यह आज भी सुरक्षित है। ताजमहल ही नहीं अन्य इमारतों को बनाते समय भी  पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए दो तरह की तकनीक काम में लाई गईं -

१. नींव में पत्थरों को एक-दूसरे पर इस तरह रख गया की उनका गुरुत्वाकर्षण केंद्र एक सीध में रहे। इसी रेखा में पत्थरों में छेड़ कर उसमें लोहे की कील (छड़ का टुकड़ा) रांगे के साथ लगे गया ताकि दोनों पत्थर न हिल सकें। 

२. भवन में ईंटनुमा पत्थरों को जोड़ने के लिए एक खास तरह के मिश्रण का उपयोग किया गया। चूहा या छुई मिट्टी (चिकनी मिट्टी)  को पानी में भीगा-गाला क्र उसमें से कंकर आदि अलग कर देने के बाद गुड,बताशा, बेल फल का गूदा और रस, दही, उड़द की दाल, जूट, कत्था आदि  चीजों को मिलाकर कई दिनों तक मिलाया जाता था।  इस मिश्रण का उपयोग गारे (मॉर्टर) की तरह किया जाता था। इसमें लाल, हरा या पीला रंग मिलकर रंगीन गारा बना लिया जाता था। जयपुर के राजमहलों में अंडे की ज़र्दी भी इस मसाले में मिलाई गई। इस कारण वे दीवारें सैंकड़ों साल बाद भी संगमरमर की तरह चिकनी और चमकदार हैं। इस इमारतों में दरारें न पड़ने का कारण मसले का धूलमुक्त होना है।  

ताजमहल को सजाने के लिए हक़ीक़, फ़िरोज़ा, मूंगा, सुलेमानी, लहसुनिया, तलाई, लाजवर्त, रक्तमणि, बैरूज, पुखराज, यशब, पिटुनिया, तुरमली, ज़हर मोहरा, मिकनातिस, सिंदूरिया, नीलमणि, झाँवा, नाखोद, गोमेद, मोती, पन्ना, हीरा,माणिक,  जमीनिया, फ़िरोज़ा आदि रत्न तथा बेशकीमती खाटू पत्थर, संगमरमर, सुलेमानी पत्थर आदि का प्रयोग किया गया था। 

सिमेंट कब बनी?

सीमेंट का अविष्कार साल 1824 ईस्वी में इंग्लैंड के रहने वाले जोसेफ एस्पडीन ने किया था।

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

doha

दोहा सलिला
*
ताज न मंदिर-मकबरा, मात्र इमारत भव्य भूल सियासत देखिए, कला श्रेष्ठ शुचि दिव्य
*
नेताओं से लीजिए, भत्ता-सुविधा छीन भाग जाएँगे चोर सब, श्रेष्ठ सकें हम बीन
*
एंकर अनुशासित रहे, ठूँसे नहीं विचार वक्ता बोले विषय पर, लोग न हों बेज़ार
*
जानकार वक्ता रहें, दलगत करें न बात सच उद्घाटित हो तभी, सुधर सकें हालात
*
हम भी जानें बोलना, किंतु बुलाये कौन? घिसे-पिटे चेहरे बुला, सच को करते मौन
*
केंद्र-राज्य में भिन्न दल, लोकतंत्र की माँग एक न मनमानी करे, खींच न पाए टांग
*
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
www.divyanarmada.in, #हिंदी_ब्लॉगर

शनिवार, 18 मई 2013

doha taj laj paryay hai acharya sanjiv verma 'salil'




दोहा सलिल:
ताज लाज-पर्याय है…





संजीव
*
ताज लाज-पर्याय है, देखे दोहा मौन.
दर्दनाक सच सिसकता, धीर धराये कौन?
*
मंदिर था मकबरा है, ताज महल है नाम.
बलिहारी है समय की, कहें सुबह को शाम।।
*
संगमरमरी शान का, जीवित दस्तावेज।
हृदयहीनता छिपी है, यहाँ सनसनीखेज।।
*
तहखाने में बंद हैं, शिव कब हो उद्धार।
कब्रों का पाखंड है, शमशानी श्रृंगार।।
*
बूँद-बूँद जल टपकता, शिव गुम नीचे कब्र।
कब तक करना पडेगा, पाषणों को सब्र।।
*
चिन्ह मांगलिक सुशोभित, कई कमल-ओंकार।
नाम मकबरे का महल, कहीं न जग में यार।।
*
जितने बरस विवाह के, उतनी हों संतान।
तन सह पाए किस तरह, असमय निकली जान।।
*
बच्चे जनने की बनी, बीबी सिर्फ मशीन।
खेल वासना का हुआ, नाम प्यार की बीन।।
*
कैद बाप को कर हुए, जो सुत सत्तासीन।
दें दुहाई वे प्यार की, पद-मद में जो लीन।।
*
प्रथम जोड़ सम्बन्ध फिर, मान लिया आधीन।
छीन महल अपमान कर, तड़पाया कर दीन।।
*
कब तक पढ़ सुन कहेंगे, हम झूठा इतिहास?
पूछें पत्थर ताज के, हो गमगीन-उदास।।
*
मुक्तक
मुहब्बत है किसे कितनी, नहीं पत्थर बताएँगे?
नहीं दिल पास जिनके, कैसे दिल के गीत गायेंगे?
प्यार के नाम पर जनता के धन के फूंकनेवाले-
गरीबों की मुहब्बत को, न क्यों नीचा दिखायेंगे?
*
दोष होता न समरथ का, न मानेंगे कभी यारों,
सचाई सामने लाना है लो संकल्प यह सारों।
करो मत स्वार्थ, सत्ता या सियासत की अधिक चिंता-
न सच से आँख मूंदो, निडर हो सच ही कहो प्यारों।।
*
salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.blogspot.in

शनिवार, 7 अगस्त 2010

विचित्र किन्तु सत्य: 'तेजोमहालय' बन गया 'ताजमहल'

विचित्र किन्तु सत्य:

           'तेजोमहालय' बन गया 'ताजमहल'

cid:part3.09080704.08060501@oracle.com
 
 इमारत के सामने की मीनारें और जलागार 

कहते हैं 'truth is strange than fiction' अर्थात सत्य कल्पना से भी अधिक विचित्र होता है. विश्व के सात आश्चर्यों में से एक तथाकथित ताजमहल के सम्बन्ध में यह पूरी तरह सत्य है. मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के चापलूस इतिहासकारों ने सरासर झूठ लिखा और इतिहास की आँखों में धूल झोंकने का प्रयास किया कि इस खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताजमहल की मृत्यु के पश्चात् उसकी स्मृति में बनवाया. 

यह भी कहा जाता है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छुपते. यही सत्य के बारे में भी है. कितना भी छिपाओ सच कहीं न कहीं से प्रगट हो ही जाता है.  

सदियों तक प्रयास करने के बाद भी सच छिप नहीं सका. देश की सर्वेक्षण सेवा के सर्वोपरि अधिकारी स्व. पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी कृति 'ताजमहल कभी राजपूती महल था में अकाट्य प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि ताजमहल का वास्तविक नाम तेजोमहालय था. यह राजपूत राजाओं का महल था जिसमें भगवान शिव का विशाल मंदिर था. शाहजहाँ एक विलासी राजा था, जिसे हर रात एक नयी औरत के बिताने का शौक था. उसके सैंकड़ों बच्चे थे. लगभग हर साल  बच्चे जनने से बेहद कमजोर हो गयी बेगम की मौत एक प्रसूति के बाद हुई जिसे बुरहानपुर में दफन किया गया. बाद में बादशाह के आगरा आने पर मुस्लिम दरबारियों ने राजपूतों के प्रभाव और वीरता से ईर्ष्या के कारण उन्हें नीचा दिखाने के लिये बादशाह को उकसाया कि बेगम की याद में शानदार मकबरा हो. लगातार लड़ाइयों के कारण खाली शाही खजाने पर बोझ न पड़े इसलिए बादशाह को सुझाव दिया गया कि राजपूतों के इस महल को मकबरे में बदल दिया जाए. बादशाह के प्रति निष्ठां के सवाल पर राजपूतों ने इसे खाली किया. 

ताजमहल का आकाशीय दृश्य......

cid:part1.00050203.06090602@oracle.com
 


ओक कहते हैं कि......
 

ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर
,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था. 

अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था. शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत १०००  से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है, खंड एक के पृष्ठ ४०२ और ४०३ पर इस बात का उल्लेख है कि शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी को मृत्यु के बादबुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था मौत के के ०६ माह बाद, तारीख़ 15 ज़मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार,को उसके शव को मकबरे से निकाल कर अकबराबाद आगरा लाया गया. फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से छीने गए, आगरा स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में पुनः दफनाया गया. लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे. 
 

cid:part2.06030804.06010503@oracle.com
 ताजमहल के अन्दर जल कूप. हिन्दू मंदिरों में स्नान के बाद शिव का जलाभिषेक करने की प्रथा है

जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे....... 
 
सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, हिन्दुओं से छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था , उदाहरणार्थ हुमायूँअकबरएतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं.

=>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है--------- 

गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य
 
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==>ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद-बूँद पानी टपकता है. विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद-बूँद कर पानी नहीं टपकाया जाता. शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद-बूँद जल गिराकर अभ्बिशेक करने की परंपरा है.

मकबरा महल नहीं होता:
 ="महलशब्दअफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता. यहाँ यह व्याख्या करना कि 'महल' शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है--------- 

पहला -----
शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल नही, मुमताज-उल-ज़मानी था.

और दूसरा-----
किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए, यह समझ से परे है... 

 ..cid:part5.03000607.02030403@oracle.com 
 ताज का शिखर: मंदिरों के शिखर पर कलश बनाया जाता है. 

 प्रो.ओक का दावा है कि, ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है. उनके अनुसार मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है. शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है..... 
 
आँगन में शिखर के छायाचित्र का रूपांकन
 
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==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर १९८५ में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् १३५९ के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग ३०० वर्ष पुराना है...

==>मुमताज की मृत्यु सन १६३१ में हुई थी उसी वर्ष भारत आए अंग्रेज भ्रमणकर्ता पीटर मुंडी के अनुसा: ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था.
 
प्रवेश द्वार पर कमल:
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कमल का पुष्प विष्णु और लक्ष्मी  का प्रतीक है

==>
यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् १६३८ (मुमताज कि मृत्यु के ०७ साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया. परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य १६३१ से १६५१ तक जोर-शोर से चल रहा था.
  
ताज के पिछले हिस्से में बाइस कमरे: 
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==>
औरंगजेब की ताजपोशी के समय भारत आये और दस साल यहाँ रहे फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो के अनुसार: औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.

पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजे:

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विशेषतः वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा
 cid:part10.09070103.01050702@oracle.com   


मकबरे के पास संगीतालय:एक विरोधाभास
 
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ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........


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ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से आज तक बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं.   
 

निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह

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दीवारों पर बने फूलों में ओम् ( ॐ )

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प्रो. ओक.जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति, त्रिशूल, कलश और ॐ आदि चिन्ह प्रयोग किये जाते हैं. 

निचले तल पर जाने के लिए सीढियां
 
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राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....
कमरों के मध्य 300फीट लंबा गलियारा..
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निचले तल के २२ गुप्त कमरों मे से एक कमरा
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२२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य

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अन्य बंद कमरों में से एक आतंरिक दृश्य
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एक बंद कमरे की वैदिक शैली में निर्मित छत


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ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान .....

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अन्य कमरों से गुप्त संपर्क हेतु दरवाजों में गुप्त दीवार


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साक्ष्यों छुपाने के लिए,गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा

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बुरहानपुर स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी की मृत्यु हुई

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बादशाहनामा के अनुसार मुमताज यहाँ दफनाई गईं
  cid:part25.05090007.00040404@oracle.com

 
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाएऔर अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे .
 
 आंसू टपक रहे हैंहवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें
,कुदरत के काम से,,,,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......
 













आभार: अनुपम  कुलश्रेष्ठ,  वकील,  Rajasthan High Court Jaipur