जलो दीप बनकर अमावस में ऐसे
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए…
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गीत:
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए…
संजीव
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पलो आँख में स्वप्न बनकर सदा तुम
नयन-जल में काजल कहीं बह न जाए.जलो दीप बनकर अमावस में ऐसे
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए…
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अपनों ने अपना सदा रंग दिखाया,
न नपनों ने नपने को दिल में बसाया.
लगन लग गयी तो अगन ही सगन को
सहन कर न पायी पलीता लगाया.
दिलवर का दिल वर लो, दिल में छिपा लो
जले दिलजले जलजले आ न पाए...
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कुटिया ही महलों को देती उजाला
कंकर के शंकर को पूजे शिवाला.
मुट्ठी बँधी बाँधती कर्म-बंधन
खोलो न मोले तनिक काम-कंचन.
बहो, जड़ बनो मत शिलाओं सरीखे
नरमदा सपरना न मन भूल जाए...
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सहो पीर धर धीर बनकर फकीरा
जले दिलजले जलजले आ न पाए...
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कुटिया ही महलों को देती उजाला
कंकर के शंकर को पूजे शिवाला.
मुट्ठी बँधी बाँधती कर्म-बंधन
खोलो न मोले तनिक काम-कंचन.
बहो, जड़ बनो मत शिलाओं सरीखे
नरमदा सपरना न मन भूल जाए...
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सहो पीर धर धीर बनकर फकीरा
तभी हो सको सूर मीरा कबीरा.
पढ़ो ढाई आखर, नहा स्नेह-सागर
भरो फेफड़ों में सुवासित समीरा.
मगन हो गगन को निहारो, सुनाओ
'सलिल' नाद अनहद कहीं खो जाए...
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सगन = शगुन, जलजला = भूकंप, नरमदा = नर्मदा, सपरना = स्नान करना
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सगन = शगुन, जलजला = भूकंप, नरमदा = नर्मदा, सपरना = स्नान करना
Sanjiv verma 'Salil'
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