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बुधवार, 30 जुलाई 2025

जुलाई ३०, शिव, भारत, माहिया, हाड़ौती मुक्तिका, दोहा यमक, नवगीत

सलिल सृजन जुलाई ३०
*
नवगीत
*
मेघ न बरसे
बरस रही हैं
आहत जनगण-मन की चाहत।
नहीं सुन रहीं
गूँगी-बहरी
सरकारें, क्या देंगी राहत?
*
जनप्रतिनिधि ही
जन-हित की
नीलामी करते, शर्म न आती।
सत्ता खातिर
शकुनि-सुयोधन
की चालें ही मन को भातीं।
द्रोणाचार्य
बेचते शिक्षा
व्यापम के सिरमौर बने हैं।
नाम नहीं
लिख पाते टॉपर
मेघ विपद के बहुत घने हैं।
कदम-कदम पर
शिक्षालय ही
रेप कर रहे हैं शिक्षा का।
रावण के रथ
बैठ सियासत
राम-लखन पर ढाती आफत।
*
लोकतन्त्र की
डुबा झोपड़ी
लोभतन्त्र नभ से जा देखे।
शोकतंत्र निज
बहुमत क्रय कर
भोगतंत्र की जय-जय लेखे।
कोकतंत्र नित
जीता शैशव
आश्रम रथ्यागार बन गए।
जन है दुखी
व्यथित है गण
बेमजा प्रजा को शासन शामत।
*
हँसिया
गर्दन लगा काटने,
हाथी ने बगिया रौंदी रे!
चक्र गला
जनता का काटे,
पंजे ने कबरें खोदी रे!
लालटेन से
जली झुपड़िया
कमल चुभाता पल-पल काँटे।
सेठ-हितू हैं
अफसर नेता
अँधा न्याय ढा रहा आफत।
३०-१-२०२०
***
द्विपदी
जात मजहब धर्म बोली, चाँद अपनी कह जरा
पुज रहा तू ईद में भी, संग करवा चौथ के.
**
चाँद तनहा है ईद हो कैसे? चाँदनी उसकी मीत हो कैसे??
मेघ छाये घने दहेजों के, रेप पर उसकी जीत हो कैसे??
*
चाँद का इन्तिजार करती रही, चाँदनी ने 'सलिल' गिला न किया.
तोड़्ती है समाधि शिव की नहीं, शिवा ने मौन रह सहयोग दिया.
***
गले मिले दोहा यमक
*
चल बे घर बेघर नहीं, जो भटके बिन काज
बहुत हुई कविताई अब, कलम घिसे किस व्याज?
*
पटना वाली से कहा, 'पट ना' खाई मार
चित आए पट ना पड़े, अब की सिक्का यार
*
धरती पर धरती नहीं, चींटी सिर का भार
सोचे "धर दूँ तो धरा, कैसे सके सँभार?"
*
घटना घट ना सब कहें, अघट न घटना रीत
घट-घटवासी चकित लख, क्यों मनु करे अनीत?
*
सिरा न पाये फ़िक्र हम, सिरा न आया हाथ
पटक रहे बेफिक्र हो, पत्थर पर चुप माथ
*
बेसिर-दानव शक मुआ, हरता मन का चैन
मनका ले विश्वास का, सो ले सारी रैन
*
करता कुछ करता नहीं, भरता भरता दंड
हरता हरता शांति सुख, धरता धरता खंड
*
बजा रहे करताल पर, दे न सके कर ताल
गिनते हैं कर माल फिर, पहनाते कर माल
*
जल्दी से आ भार ले, व्यक्त करूँ आभार
असह्य लगे जो भार दें, हटा तुरत साभार
*
हँस सहते हम दर्द जब, देते हैं हमदर्द
अपना पन कर रहा है सब अपनापन सर्द
*
भोग लगाकर कर रहे, पंडित जी आराम
नहीं राम से पूछते, "ग्रहण करें आ राम!"
*****
हाड़ौती मुक्तिका:
*
आस नरमदा तैर भायला
बह जावैगो बैर भायला
.
गेलो आपूँ आप मलैगो
मंज़िल की सुण टेर भायला
.
मुसकल है हरदा सूं खड़बो
तू आवैगो फेर भायला
.
घणू कठण है कविता करबो
आकासां की सैर भायला
.
सूल गइल पर यार सलिल' तू
चाल मेलतो पैर भायला
***
दोहा:
नेह वॄष्टि नभ ने करी, धरा गयी हँस भींज
हरियायी भू लाज से, 'सलिल' मन गयी तीज
३०-७-२०१७
***
मुक्तक:
कोशिशें करते रहो, बात बन ही जायेगी
जिन्दगी आज नहीं, कल तो मुस्कुरायेगी
हारते जो नहीं गिरने से, वो ही चल पाते-
मंजिलें आज नहीं कल तो रास आयेंगी.
***
नवगीत
*
मेघ न बरसे
बरस रही हैं
आहत जनगण-मन की चाहत।
नहीं सुन रहीं
गूँगी-बहरी
सरकारें, क्या देंगी राहत?
*
जनप्रतिनिधि ही
जन-हित की
नीलामी करते, शर्म न आती।
सत्ता खातिर
शकुनि-सुयोधन
की चालें ही मन को भातीं।
द्रोणाचार्य
बेचते शिक्षा
व्यापम के सिरमौर बने हैं।
नाम नहीं
लिख पाते टॉपर
मेघ विपद के बहुत घने हैं।
कदम-कदम पर
शिक्षालय ही
रेप कर रहे हैं शिक्षा का।
रावण के रथ
बैठ सियासत
राम-लखन पर ढाती आफत।
*
लोकतन्त्र की
डुबा झोपड़ी
लोभतन्त्र नभ से जा देखे।
शोकतंत्र निज
बहुमत क्रय कर
भोगतंत्र की जय-जय लेखे।
कोकतंत्र नित
जीता शैशव
आश्रम रथ्यागार बन गए।
जन है दुखी
व्यथित है गण
बेमजा प्रजा को शासन शामत।
*
हँसिया
गर्दन लगा काटने,
हाथी ने बगिया रौंदी रे!
चक्र गला
जनता का काटे,
पंजे ने कबरें खोदी रे!
लालटेन से
जली झुपड़िया
कमल चुभाता पल-पल काँटे।
सेठ-हितू हैं
अफसर नेता
अँधा न्याय ढा रहा आफत।
*
३०-७-२०१६
पुस्तक चर्चा
''एक सच्चाई यह भी'' - अपनी सोच अपना नज़रिया
चर्चाकार- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[पुस्तक विवरण- एक सच्चाई यह भी, विद्या लाल, लेख संग्रह, ISBN ९७८-९३-८५९४२-१२-९, वर्ष २०१६, २०.७ से.मी. x १४ से. मी., पृष्ठ १८८, मूल्य १५०/-, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, बोधि प्रकाशन, ऍफ़ ७७, सेक्टर ९, मार्ग ११, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम, जयपुर ३०२००६, ०१४१ २५०३९८९, ९८२९० १८०८७]
*
'एक सचाई यह भी' असामयिक विषयों पर लिखे गए ५४ लेखों के संग्रह है। लेखिका विद्या लाल की ५ पुस्तकें जूठन और अन्य लघुकथाएँ २०१३, किसको सोचा तुमने चाँद २०१३, नीला समंदर २०१४, बिगड़ैल लड़की २०१४, तथा ज़ख्म २०१६ प्रकाशित हो चुकी हैं। विवेच्य कृति में अधिकांश लेख स्त्री विमर्श पर हैं। सामान्यतः: स्त्रियों को शोषित, पीड़ित बताने की लीक पर चलते हुए भी लेखिका ने स्त्रियाँ क्या वाकई त्याग की मूतियाँ हैं? नहीं, पुरुष नारी सहयोग के मुखापेक्षी, पुरुष प्रधान समाज पुरुषों को ही रास नहीं आता, नारी का मोहताज पुरुष दम्भ, राजनीति: खुद कितने योग्य हैं पुरुष?, पुरुष कब करेंगे स्त्री की बराबरी?, लाचार पिता आदि लेखों में पुरुष की कमी, दुर्बलता को उभारा है अर्थात स्त्री को अबला समझने की भूल पुरुष को नहीं करनी चाहिए।
स्त्रियाँ स्वर्ग रचें तो कैसे?, स्त्रियाँ कैसे कहें मेरा भारत महान? में अनेक विचारोत्तेजक प्रश्न इंगित किये गए हैं। जातीय श्रेष्ठता के भूमिसात होते स्तंभों, दलित पुरुषों द्वारा दलित स्त्रियों को हीन मानने, अपने घर की और अन्य स्त्रियों के प्रति पुरुषों की दृष्टि में भेद आदि अनेक संवेदनशील प्रश्नों को लेखिका ने स्पर्श किया है और अपने दृष्टिकोण को सामने रखा है। इन लेखों के विषय रुचिकर, शैली सहज बोधगम्य तथा प्रस्तुति शालीन है। इन्हीं विषयों पर अन्य लेखिकाएँ अश्लील भाषा का प्रयोग करती हैं किन्तु विद्या जी ने तल्ख सारे तल्ख बात कहने के लिए भी शालीनता और शिष्टता को ताक पर नहीं रखा है।
सामान्य पाठक के पढ़ने और सोचने के लिए इस पुस्तक में बहुत कुछ है। किशोरों और तरुणों को इस लेखों से अपनी मानसिकता को व्यापक और स्वास्थ्य बनाने में सहायता मिलेगी।
क्या जरूरत है छूट्टियों में राष्ट्रीय होने की?, श्री राम और अल्लाह दोनों अगर लाचार नहीं हैं, इक्कीसवीं सदी विज्ञान की या आस्था की?, पुरुष भी असहाय हैं, परमाणु परीक्षण, दोष विवेक में कमी और परवरिश की आदि लेख सर्वोपयोगी और तथ्यपरक हैं। विद्या जी की लेखन शैली 'कम लिखे को अधिक समझना की' देशज विरासत की तरह है। उनकी आगामी कृतियों की प्रतीक्षा पाठकों को बनी रहेगी।
***
शिव का माहिया पूजन
*
भोले को मना लाना,
सावन आया है
गौरी जी संग आना।
*
सब मिल अभिषेक करो
गोरस, मधु, घृत से
नहलाओ प्रभु जी को।
*
ले अभ्रक भस्म गुलाल
भक्ति सहित करिए
शंकर जी का शृंगार।
*
जौ गेहूँ अक्षत दाल
तिल शर्करा सहित
शिव अर्पित करिए माल।
*
ले बिल्व पत्र ताजा
भाँग धतूरा फूल-
फल मिल चढ़ाँय आजा।
*
नागेंद्र रहे फुफकार
मुझको मत भूलो
लो बना गले का हार।
*
नंदी पूजन मत भूल
सुख-समृद्धि दाता
सम्मुख हर लिए त्रिशूल।
*
मद काम क्रोध हैं शूल
कर में पकड़ त्रिशूल
काबू करिए बिन भूल।
*
लेकर रुद्राक्ष सुमाल
जाप नित्य करिए
शुभ-मंगल हो तत्कल।
*
हे कार्तिकेय-गणराज!
ग्रहण कीजिए भोग
मन मंदिर सदा विराज।
*
मन भावन सावन मास
सबके हिया हुलास
भर गौरी-गौरीनाथ।
***
हर मुख शोभित मास्क कह रहा मैं भारत हूँ।
देश-प्रगति का टास्क कह रहा मैं भारत हूँ।।
मत अतीत को कोसो, उससे सबक सीख लो-
मोर करो कम आस्क, कहो तब मैं भारत हूँ।।
***
शिव पर दोहे
*
शंभु नाथ हैं जगत के, रूप सुदर्शन दिव्य।
तेज प्रताप सुविदित है, शंकर छवि है भव्य।।
*
अंबर तक यश व्यापता, जग पूजित नागेंद्र।
प्रिया भवानी शिवानी, शीश सजे तारेंद्र।।
*
शिवाधार पा सलिल है, धन्य गंग बन तात।
करे जीव संजीव दे, मुक्ति सत्य विख्यात।।
*
सत्-शिव-सुंदर सृजनकर, अहंकार तज नित्य।
मैं मेरा से मुक्त हो, बहता पवन अनित्य। ।
*
शंका-अरि शंकारि शिव, हैं शुभ में विश्वास।
श्रद्धा हैं मैया उमा, सुत गणपति हैं श्वास।।
*
कार्तिकेय संकल्प हैं, नंदी है श्रम मूर्त।
मूषक मति चातुर्य है, सर्प गरल स्फूर्त। ।
*
रुद्र अक्ष सह भस्म मिल, करे काम निष्काम।
काम क्रोध मद शूल त्रय, सिंह विक्रम बलधाम।।
----------------------
वंदे भारत भारती! कहता जगकर भोर।
उषा किरण ला परिंदे, मचा रहे हैं शोर।।
मचा रहे हैं शोर, थक गया अरुणचूर भी।
जागा नहीं मनुष्य, मोह में रहा चूर ही।।
दिन कर दिनकर दुखी, देख मानव के धंधे।
दुपहर संझा रात, परेशां नेक न बंदे।।
----------------------
। मैं भारत हूँ बोलिए ।
। ऐक्य भावना घोलिए।
*
। मैं भारत, मैं भारतवासी ।
। हर दिन होली, रात दिवाली।
*
। पीहू पोंगल बैसाखी ।
। गुड़ीपाड़वा संक्रांति ।
। मैं भारत हूँ, नदियाँ मेरी ।
। जय गुंजातीं सदियाँ मेरी ।
*
। मेरा हर दिन मेहनत पर्व।
।हूँ भारतवासी, है गर्व ।
*
। भारत होली-दीवाली ।
। ऊषा-संध्या रसवाली ।
। गेहूँ-मक्के की बाली ।
। चैया की प्याली थाली ।
*
। मुझको भारत बोले दुनिया ।
। मैया पप्पा मुन्नू मुनिया ।
*
। था, हूँ सदा रहूँगा भारत ।
। सब मिल बोलो मैं हूँ भारत।
*
। रसगुल्ला इडली दोसा ।
। छोला अरु लिट्टी चोखा ।
। पोहा दूध-जलेबी खा ।
। मैं भारत हूँ मिल गुंजा ।
*
। है आरंभ, नहीं यह अंत ।
। भारत कहते सुर-नर-संत।
*
। मैं भारत हूँ सभी कहें ।
। ऐक्य भाव में सभी बहें ।
*
। एक देश है, नाम एक है ।
। मैं भारत हूँ, नियत नेक है ।
***
शिव पर दोहे
*
शिव सत हैं; रहते सदा, असत-अशुचि से दूर।
आत्मलीन परमात्म हैं, मोहमुक्त तमचूर।।
*
शिव सोकर भी जागते, भव से दूर-अदूर।
उन्मीलित श्यामल नयन, करुणा से भरपूर।।
*
शिव में राग-विराग है, शिव हैं क्रूर-अक्रूर।
भक्त विहँस अवलोकते, शिव का अद्भुत नूर।।
*
शिव शव का सच जानते, करते नहीं गुरूर।
काम वाम जा दग्ध हो, चढ़ता नहीं सुरूर।।
*
शिव न योग या भोग को, त्याग हुए मगरूर ।
सती सतासत पंथ चल, गहतीं सत्य जरूर।।
*
शिव से शिवा न भिन्न हैं, भेद करे जो सूर।
शिवा न शिव से खिन्न हैं, विरह नहीं मंजूर।।
*
शिव शंका के शत्रु हैं, सकल लोक मशहूर।
शिव-प्रति श्रद्धा हैं शिवा, ऐच्छिक कब मजबूर।।
*
शिव का चिर विश्वास हैं, शिवा भक्ति का पूर।
निराकार साकार हो, तज दें अहं हुजूर।।
*
शिव की नवधा भक्ति कर, तन-मन-धन है धूर।
नेह नर्मदा सलिल बन, हो संजीव मजूर।।
***
। देश हमारा भारत है ।
। इसे सदा भारत कहें।
*
। एक देश एक नाम।
। अपना भारत महान।
*
। जन जन का यह नारा है ।
।। भारत नाम हमारा है ।।
*
। ज़र्रे ज़र्रे की हुंकार ।
। मुझको है भारत से प्यार।
*
है प्रकाश पाने में जो रत ।
। नाम इसी देश का भारत ।
*
। कल से कल को आज जोड़ता ।
। भारत देश न सत्य छोड़ता ।
*
। भारत माता की संतान ।
। भारत नाम हमारी आन ।
*
। हिमगिरि से सागर तक देश ।
। भारत महिमावान विशेष ।
*
। ध्वजा तिरंगी अपनी आन ।
। भारत नाम हमारी शान ।
*
। सिंधु नर्मदा गंगा कृष्णा ।
। भारत प्यारा रंग-बिरंगा ।
*
। जनगण-मन की यही पुकार ।
। भारत बोले सब संसार ।
***
आदरणीय की पसंद
------------------
धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्णजी भी पधारे । वे कहने लगे - "मुझे भी कुछ काम दो।"
युधिष्ठिर ने कहा- "आपको क्या काम दें? आप हमारे लिए आदरणीय हैं। आपके लायक हमारे पास कोई काम नहीं है ।"
श्रीकृष्ण ने कहा - "मैं आदरणीय हूँ तो क्या अयोग्य भी हूँ ? भई! मैं भी काम कर सकता हूँ ।"
"आप ही अपना काम ढूँढ लीजिए ।"
तो श्रीकृष्ण ने क्या काम लिया ?
जूठी पत्तलें उठाने और यज्ञ परिसर को लीपने का ।
- आचार्य विनोवा भावे

मंगलवार, 22 जुलाई 2025

जुलाई २२, सुग्गा,हाड़ौती मुक्तिका, रामकिसोर, यमक, महिला क्रिकेट, पुर, सॉनेट, मेघ

सलिल सृजन जुलाई २२
विश्व मस्तिष्क दिवस
*
पूर्णिका
मत हो चंचल
मन रह अविचल
देख रहा वह
कण-कण हर पल
देख सका है 
कहो कौन कल?
छलिए पर जय
पाने कर छल
सबल वही जो
निर्बल का बल
यदि कल उगना 
आज मौन ढल
सलिल नयन में
बन सपना पल
२२.७.२०२५
०0०
मेघ
मेघदूत संदेश यक्ष का पहुँचाना भूले,
मेघासुर सम रूप बदलकर लड़ते-भिड़ते हैं,
पवन झुलाता झूला फिर भी शांत न होते हैं,
गरज गरज कर गुस्सा करते, गिरते-उठते हैं।
मल्ल लड़ाते पंजा, पल पल दांँव बदलते हैं,
झपट पकड़ते, बगली देते, टाँग अड़ाते हैं,
रपट फिसलते, सँभल न गिरते, मचल लपकते हैं,
कुछ न किसी को कभी समझते फँसा-गिराते हैं।
रूपवती दामिनी अदा दिखला भरमा गिरती,
घर घमंड का खाली होता फूटे जल-गगरी,
कोष लुटा सिर पीटें पर तकदीर नहीं जगती,
ठेंगा दिखा भागती आती हाथ न गिर बिजुरी।
वसुधा गिरा सलिल संचित कर हँस हरियाती है।
जब दिखता है कहीं बदरवा, मोद मनाती है।।
२२-७-२०२३
•••
छंद सलिला : सॉनेट
तिरंगा
ध्वज न केवल मैं तिरंगा
चिरंतन बलिदान हूँ मैं
लोक के हित सदा बेकल
सनातन अरमान हूँ मैं
सद्भाव हूँ मैं, शांति हूँ
चाहता सबका भला नित
नव सृजन की क्रांति भी हूँ
साध्य केवल लोक का हित
हरितिमा हूँ, भाग्य-भाषा
अहर्निश उन्नति-परिश्रम
स्वेद उपजी नवल आशा
जन प्रगति का चक्र अनुपम
आत्म जेता लो न पंगा
ध्वज न केवल मैं तिरंगा
(शेक्सपीरियन सॉनेट)
●●●
छंद सलिला : (अभिनव प्रयोगः प्रदोष सॉनेट)
मुखिया
नव मुखिया को नमन है
सबके प्रति समभाव हो
अधिक न न्यून लगाव हो
हर्षित पूरा वतन है
भवन-विराजी है कुटी
जड़ जमीन से है जुड़ी
जीवटता की है धनी
धीरज की प्रतिमा धुनी
अग्नि परीक्षा है कड़ी
दिल्ली के दरबार में
सीता फिर से है खड़ी
राह न किंचित सहज है
साथ सभी का मिल सके
यह संयोग न महज है
२२-७-२०२२
•••
छंद सलिला : (अभिनव प्रयोगः प्रदोष सॉनेट)
प्रदोष रहिए खुशी से
हमेशा करें व्रत-कथा
जीतें हर बाधा-व्यथा
आशीष मिले शिवा से
प्रदोष रचिए हमेशा
अठ-पच कल मिल खेलिए
सुख-दुख सम चुप झेलिए
विनम्र रहिए हमेशा
गुरु लघु हो न पदांत में
आस्था मिले न भ्रांत में
रखिए शांति दिनांत में
चौदह पद सॉनेट में
चौ चौ चौ दो या रहे
चौ चौ त्रै त्रै पद सदा
२२-७-२०२२
•••
नवगीत
तुम्हें प्रणाम
*
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
सूक्ष्म काय थे,
चित्र गुप्त विधि ,
अणु-परमाणु-विषाणु विष्णु हो धारे तुमने।
कोष-वृद्धि कर
'श्री' पाई है।
जल-थल--नभ पर
कीर्ति-पताका
फहराई है।
पंचतत्व तुम
नाम अनाम।
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
भू-नभ
दिग्दिगंत यश गाते।
भूत-अभूत तुम्हीं ने नाते, बना निभाए।
द्वैत दिखा,
अद्वैत-पथ वरा।
कहा प्रकृति ने
मनुज है खरा।
लड़, मर-मिटे
सुरासुर लेकिन
मिलकर जिए
रहे तुम आम।
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
धरा-पुत्र हे!
प्रकृति-मित्र हे!
गही विरासत हाय! न हमने, चूक यही।
रौंद प्रकृति को
'ख़ास' हो रहे।
नाश बीज का
आप बो रहे।
खाली हाथों
जाना फिर भी
जोड़ मर रहे
विधि है वाम।
२२-७-२०१९
***
मुक्तक
दीप्ति तम हरकर उजाला बाँट दे
अब न शर्मा शतक से तम छांट दे
दस दिशाओं से सुनो तुम तालियाँ
फाइनल लो जीत धोबीपाट दे
*
एकता है तो मिलेगी विजय भी
गेंद की गति दिशा होगी मलय सी
खाए चक्कर ब्रिटिश बल्लेबाज सब
तिरंगा फ़हरा सके, हो जयी भी
***
महिला क्रिकेट के दोहे
स्मृति का बल्ला चला, गेंद हुई रॉकेट.
पलक झपकते नभ छुए, गेंदबाज अपसेट.
*
कैसे करती अंगुलियाँ, पल में कहो कमाल.
मात दे रही पेस से, झूलन मचा धमाल.
*
दीप्ति कौंधती दामिनी, गिरे उड़ा दे होश.
चमके दमके निरंतर, कभी न रीते कोश.
*
पूनम उतरी तो हुई, अजब अनोखी बात.
घिरे विपक्षी तिमिर में, कहें अमावस तात.
*
शर संधाना तो हुई, टीम विरोधी ढेर.
मंधाना के वार से, नहीं किसी की खैर.
२२.७.१७
***
मनहरण छन्द
विधान: 8-8-8-7 वर्ण
.
चीनियों को ठोंककर, पाकियों को पीटकर, फ़हरा तिरंगा आज, हम मुसकाएँगे.
लाख मतभेद रहें, पर मनभेद ना हों, जन गण मन, वंदे मातरम गाएँगे.
सिक्किम भूटान नेपाल की न बात करो, तिब्बत को भी 'सलिल', आजाद हम कराएँगे.
भारत के भाग, किसी वक्त जो अलग हुए, एक साथ जोड़, आर्यावर्त हम बनाएँगे.
***
गीत
कारे बदरा
*
आ रे कारे बदरा
*
टेर रही धरती तुझे
आकर प्यास बुझा
रीते कूप-नदी भरने की
आकर राह सुझा
ओ रे कारे बदरा
*
देर न कर अब तो बरस
बजा-बजा तबला
बिजली कहे न तू गरज
नारी है सबला
भा रे कारे बदरा
*
लहर-लहर लहरा सके
मछली के सँग झूम
बीरबहूटी दूब में
नाचे भू को चूम
गा रे कारे बदरा
*
लाँघ न सीमा बेरहम
धरा न जाए डूब
दुआ कर रहे जो वही
मनुज न जाए ऊब
जारे कारे बदरा
*
हरा-भरा हर पेड़ हो
नगमे सुना हवा
'सलिल' बूंद नर्तन करे
गम की बने दवा
जारे कारे बदरा
२२-७-२०१६
***
दोहा-यमक
*
गले मिले दोहा यमक, गणपति दें आशीष।
हो समृद्ध गणतंत्र यह, गणपति बने मनीष।।
*
वीणावादिनि शत नमन, साध सकूं कुछ राग ।
वीणावादिनि है विनत, मन में ले अनुराग। ।
*
अक्षर क्षर हो दे रहा, क्षर अक्षर ज्ञान।
शब्द ब्रह्म को नमन कर, भव तरते मतिमान।।
*
चित्र गुप्त है चित्र में, देख सके तो देख।
चित्रगुप्त प्रति प्रणत हो, अमिट कर्म का लेख।।
*
दोहा ने दोहा सदा, भाषा गौ को मीत।
गीत प्रीत के गुँजाता, दोहा रीत पुनीत।।
*
भेंट रहे दोहा-यमक, ले हाथों में हार।
हार न कोई मानता, प्यार हुआ मनुहार।।
*
नीर क्षीर दोहा यमक, अर्पित पिंगल नाग।
बीन छंद, लय सरस धुन, झूम उठे सुन नाग।।
*
गले मिले दोहा-यमक, झपट झपट-लिपट चिर मीत।
गले भेद के हिम शिखर, दमके ऐक्य पुनीत।।
*
ग्यारह-तेरह यति रखें, गुरु-लघु हो पद अंत।
जगण निषिद्ध पदादि में, गुरु-लघु सम यति संत।।
*
नाहक हक ना त्याग तू, ना हक पीछे भाग।
ना मन में अनुराग रख, ना तन में बैराग।।
*
ना हक की तू माँग कर, कर पहले कर कर्तव्य।
नाहक भूला आज को, सोच रहा भवितव्य।।
२२-६-२०१६
***
एक रचना:
का बिगार दओ?
*
काए फूँक रओ बेदर्दी सें
हो खें भाव बिभोर?
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
हँस खेलत ती
संग पवन खें
पेंग भरत ती खूब।
तेंदू बिरछा
बाँह झुलाउत
रओ खुसी में डूब।
कें की नजर
लग गई दइया!
धर लओ मो खों तोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
काट-सुखा
भर दई तमाखू
डोरा दओ लपेट।
काय नें समझें
महाकाल सें
कर लई तुरतई भेंट।
लत नें लगईयो
बीमारी सौ
दैहें तोय झिंझोर
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
जिओ, जियन दो
बात मान ल्यो
पीओ नें फूकों यार!
बढ़े फेंफडे में
दम तुरतई
गाड़ी हो नें उलार।
चुप्पै-चाप
मान लें बतिया
सुनें न कौनऊ सोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
अपनों नें तो
मेहरारू-टाबर
का करो ख़याल।
गुटखा-पान,
बिड़ी लत छोड़ो
नई तें होय बबाल।
करत नसा नें
कब्बऊ कौनों
पंछी, डंगर, ढोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
बात मान लें
निज हित की जो
बोई कहाउत सयानो।
तेन कैसो
नादाँ है बीरन
साँच नई पहचानो।
भौत करी अंधेर
जगो रे!
टेरे उजरी भोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
२१-११-२०१५
कालिंदी विहार लखनऊ
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हाड़ौती मुक्तिका:
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तनखा पूड़ी, घूस मलाई
मत देखै तू पीर पराई
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अंग्रेजी में गिट-पिट कर लै
हिंदी की मत करै पढ़ाई
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बेसी धन सूं मन हरखायो
आछी लागी श्याम कमाई
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कंसराज को खाड कालज्यो
लार सुदामा करी मिताई
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बना भेंट कै नाक चढ़ावै
ऊँ ई सांचो जगत गुसाई
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धोला कपड़ा, मैला मन सूं
भव सागर सूँ पार न्ह पाई
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आतंकी रावण की लंका
सिरी राम ने जा'र ढहाई
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आपण सबका पाप धो'र भी
यार 'सलिल' नंदी हरखाई
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दोहे का रंग कविता के संग
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बाहर कम भीतर अधिक जब-जब झाँकें आप
तब कविता होती प्रगट, अंतर्मन में व्याप
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औरों की देखें कमी, दुनिया का दस्तूर
निज कमियाँ देखो बजे, कविता का संतूर
*
कविता मन की संगिनी, तन से रखे न काम
धन से रहती दूर यह, प्रिय जैसे संतान
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कविता सविता तिमिर हर, देते दिव्य प्रकाश
महक उठे मन-मोगरा, निकट लगे आकाश
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काव्य -कामिनी ने कभी, करी न कोई चाह
बैठे चुप थक-हारकर, कांत न पाएं थाह
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मुक्तिका
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मापनी: २१२२ १२१२ २२
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आँख से आँख जब मिलाते हैं
ख्वाहिशें आप क्यों छिपाते हैं?
आइना गैर को दिखाते हैं
और खुद से नज़र चुराते हैं
वक़्त का दे रहे दुहाई जो
फ़र्ज़ का क़र्ज़ कब चुकाते हैं?
रौशनी भीख माँगती उनसे
जो मशालें जला उठाते हैं
मैं 'सलिल' ज़िंदगी का जीवन हूँ
आप बेकार क्यों बहाते हैं?
२२-७-२०१५
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गीतः
सुग्गा बोलो
जय सिया राम...
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सुग्गा बोलो
जय सिया राम...
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काने कौए कुर्सी को
पकड़ सयाने बन बैठे
भूल गये रुकना-झुकना
देख आईना हँस एँठे
खिसकी पाँव तले धरती
नाम हुआ बेहद बदनाम...
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मोहन ने फिर व्यूह रचा
किया पार्थ ने शर-सन्धान
कौरव हुए धराशायी
जनगण सिद्ध हुआ मतिमान
खुश मत हो, सच याद रखो
जन-हित बिन होगे गुमनाम...
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हर चूल्हे में आग जले
गौ-भिक्षुक रोटी पाये
सांझ-सकारे गली-गली
दाता की जय-जय गाये
मौका पाये काबलियत
मेहनत पाये अपना दाम...
२२-७-२०१४
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