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शनिवार, 3 अगस्त 2019

नवगीत - बारिश

नवगीत 
*
बारिश तो अब भी होती है 
लेकिन बच्चे नहीं खेलते. 
*
नाव बनाना 
कौन सिखाये?
बहे जा रहे समय नदी में.
समय न मिलता रिक्त सदी में.
काम न कोई
किसी के आये.
अपना संकट आप झेलते
बारिश तो अब भी होती है
लेकिन बच्चे नहीं खेलते.
*
डेंगू से भय-
भीत सभी हैं.
नहीं भरोसा शेष रहा है.
कोई न अपना सगा रहा है.
चेहरे सबके
पीत अभी हैं.
कितने पापड विवश बेलते
बारिश तो अब भी होती है
लेकिन बच्चे नहीं खेलते.
*
उतर गया
चेहरे का पानी
दो से दो न सम्हाले जाते
कुत्ते-गाय न रोटी पाते
कहीं न बाकी
दादी-नानी.
चूहे भूखे दंड पेलते
बारिश तो अब भी होती है
लेकिन बच्चे नहीं खेलते.
*
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा 

सोमवार, 22 जुलाई 2019

नवगीत कारे बदरा



नवगीत
कारे बदरा 
*
आ रे कारे बदरा
*
टेर रही धरती तुझे 
आकर प्यास बुझा 
रीते कूप-नदी भरने की 
आकर राह सुझा 
ओ रे कारे बदरा 
*
देर न कर अब तो बरस 
बजा-बजा तबला 
बिजली कहे न तू गरज 
नारी है सबला 
भा रे कारे बदरा 
*
लहर-लहर लहरा सके 
मछली के सँग झूम 
बीरबहूटी दूब में 
नाचे भू को चूम 
गा रे कारे बदरा 
*
लाँघ न सीमा बेरहम 
धरा न जाए डूब 
दुआ कर रहे जो वही 
मनुज न जाए ऊब 
जारे कारे बदरा 
*
हरा-भरा हर पेड़ हो 
नगमे सुना हवा 
'सलिल' बूंद नर्तन करे 
गम की बने दवा
जारे कारे बदरा
*****
२२-७-२०१६

गुरुवार, 11 जुलाई 2019

दोहे बरसात के

दोहा सलिला:
दोहे बरसात के 
*
उमड़-घुमड़ अा-जा रहे, मेघ न कर बरसात।
हाथ जोड़ सब माँगते, पानी की सौगात।।
*
मेघ पूछते गगन से, कहाँ नदी-तालाब।
वन-पर्वत दिखते नहीं, बरसूँ कहाँ जनाब।।
*
भूमि भवन से पट गई, नाले रहे न शेष।
करूँ कहाँ बरसात मैं, कब्जे हुए अशेष।।
*
लगा दिए टाइल अगिन, भू है तृषित अधीर।
समझ नहीं क्यों पा रहे, तुम माटी की पीर।।
*
स्वागत तुम करते नहीं, साध रहे हो स्वार्थ।
हरी चदरिया उढ़ाओ, भू पर हो परमार्थ।।
*
वर्षा मंगल भूलकर, ठूँस कान में यंत्र।
खोज रहे मन मुताबिक, बारिश का तुम मंत्र।।
*
जल प्रवाह के मार्ग सब, लील गया इंसान।
करूँ कहाँ बरसात कब, खोज रहा हूँ स्थान।।
*
रिमझिम गिरे फुहार तो, मच जाती है कीच।
भीग मजा लेते नहीं, प्रिय को भुज भर भींच।।
*
कजरी तुम गाते नहीं, भूले आल्हा छंद।
नेह न बरसे नैन से, प्यारा है छल-छंद।।
*
घास-दूब बाकी नहीं, बीरबहूटी लुप्त।
रौंद रहे हो प्रकृति को, हुई चेतना सुप्त।।
*
हवा सुनाती निरंतर, वसुधा का संदेश।
विरह-वेदना हर निठुर, तब जाना परदेश।।
*
प्रणय-निमंत्रण पा करूँ, जब-जब मैं बरसात।
जल-प्लावन से त्राहि हो, लगता है आघात।।
*
बरसूँ तो संत्रास है, डूब रहे हैं लोग।
ना बरसूँ तो प्यास से, जीवनांत का सोग।।
*
मनमानी आदम करे, दे कुदरत को दोष।
कैसे दूँ बरसात कर, मैं अमृत का कोष।।
*
नग्न नारियों से नहीं, हल चलवाना राह।
मेंढक पूजन से नहीं, पूरी होगी चाह।।
*
इंद्र-पूजना व्यर्थ है, चल मौसम के साथ।
हरा-भरा पर्यावरण, रखना तेरा हाथ।।
*
खोद तलैया-ताल तू, भर पानी अनमोल।
बाँध अनगिनत बाँध ले, पानी रोक न तोल।।
*
मत कर धरा सपाट तू, पौध लगा कर वृक्ष।
वन प्रांतर हों दस गुना, तभी फुलाना वक्ष।।
*
जूझ चुनौती से मनुज, श्रम को मिले न मात।
स्वागत कर आगत हुई, ले जीवन बरसात
***
11.7.2018, 7999559618

बुधवार, 11 जुलाई 2018

दोहा सलिला:

मेघ की बात
*
उमड़-घुमड़ अा-जा रहे, मेघ न कर बरसात।
हाथ जोड़ सब माँगते,  पानी की सौगात।।
*
मेघ पूछते गगन से, कहाँ नदी-तालाब।
वन-पर्वत दिखते नहीं, बरसूँ कहाँ जनाब।।
*
भूमि भवन से पट गई, नाले रहे न शेष।
करूँ कहाँ बरसात मैं, कब्जे हुए अशेष।।
*
लगा दिए टाइल अगिन, भू है तृषित अधीर।
समझ नहीं क्यों पा रहे, तुम माटी की पीर।।
*
स्वागत तुम करते नहीं, साध रहे हो स्वार्थ।
हरी चदरिया उढ़ाओ, भू पर हो परमार्थ।।
*
वर्षा मंगल भूलकर, ठूँस कान में यंत्र।
खोज रहे मन मुताबिक, बारिश का तुम मंत्र।।
*
जल प्रवाह के मार्ग सब, लील गया इंसान।
करूँ कहाँ बरसात कब, खोज रहा हूँ स्थान।।
*
रिमझिम गिरे फुहार तो, मच जाती है कीच।
भीग मजा लेते नहीं, प्रिय को भुज भर भींच।।
*
कजरी तुम गाते नहीं, भूले आल्हा छंद।
नेह न बरसे नैन से, प्यारा है छल-छंद।।
*
घास-दूब बाकी नहीं, बीरबहूटी लुप्त।
रौंद रहे हो प्रकृति को,  हुई चेतना सुप्त।।
*
हवा सुनाती निरंतर, वसुधा का संदेश।
विरह-वेदना हर निठुर, तब जाना परदेश।।
*
प्रणय-निमंत्रण पा करूँ, जब-जब मैं बरसात।
जल-प्लावन से त्राहि हो, लगता है आघात।।
*
बरसूँ तो संत्रास है, डूब रहे हैं लोग।
ना बरसूँ तो प्यास से,  जीवनांत का सोग।।
*
मनमानी आदम करे, दे कुदरत को दोष।
कैसे दूँ बरसात कर, मैं अमृत का कोष।।
*
नग्न नारियों से नहीं, हल चलवाना राह।
मेंढक पूजन से नहीं, पूरी होगी चाह।।
*
इंद्र-पूजना व्यर्थ है, चल मौसम के साथ।
हरा-भरा पर्यावरण, रखना तेरा हाथ।।
*
खोद तलैया-ताल तू, भर पानी अनमोल।
बाँध अनगिनत बाँध ले, पानी रोक न तोल।।
*
मत कर धरा सपाट तू, पौध लगा कर वृक्ष।
वन प्रांतर हों दस गुना, तभी फुलाना वक्ष।।
*
जूझ चुनौती से मनोज, श्रम को मिले न मात।
स्वागत कर आगत हुई, ले जीवन बरसात
***
11.7.2018, 7999559618

गुरुवार, 28 जून 2018

बरसाती गीत

गीत:
कजरारे बादल
अविनाश ब्योहार 
*
अंबर पर
छा रहे हैं
कजरारे बादल। 

नाच रहे हैं
मोर बागन में,
छम-छम बरसीं
बूँदें आँगन में। 
पत्र मेह के
बाँट रहे हैं
हरकारे बादल 

मौसम में हरियाली ने
है रंग भरा,
दुबली-पतली नदिया
का है अंग भरा। 
फटी धरा की
प्यास बुझाये
मतवारे बादल 
*
रायल एस्टेट, माढ़ोताल,
कटंगी रोड, जबलपुर।

बुधवार, 27 जून 2018

दोहा सलिला:

दोहे बूँदाबाँदी के:
*
झरझर बूँदे झर रहीं, करें पवन सँग नृत्य।
पत्ते ताली बजाते,  मनुज हुए कृतकृत्य।।
*
माटी की सौंधी महक, दे तन-मन को स्फूर्ति।
संप्राणित चैतन्य है, वसुंधरा की मूर्ति।।
*
पानी पानीदार है, पानी-पानी ऊष्म।
बिन पानी सूना न हो, धरती जाओ ग्रीष्म।।
*
कुहू-कुहू कोयल करे, प्रेम-पत्रिका बाँच।
पी कहँ पूछे पपीहा, झुलस विरह की आँच।।
*
नभ-शिव नेहिल नर्मदा, निर्मल वर्षा-धार।
पल में आतप दूर हो, नहा; न जा मँझधार।।
*
जल की बूँदे अमिय सम, हरें धरा का ताप।
ढाँक न माटी रे मनुज!, पछताएगा आप।।
*
माटी पानी सोखकर, भरती जल-भंडार।
जी न सकेगा मनुज यदि, सूखे जल-आगार।।
*
हरियाली ओढ़े धरा, जड़ें जमा ले दूब।
बीरबहूटी जब दिखे,  तब खुशियाँ हों खूब।।
*
पौधे अगिन लगाइए, पालें ज्यों संतान।
संतति माँगे संपदा, पेड़ करें धनवान।।
*
पूत लगाता आग पर, पेड़ जलें खुद साथ।
उसके पालें; काटते, क्यों इसको मनु-हाथ।।
*
बूँद-बूँद जल बचाओ,  बची रहेगी सृष्टि।
आँखें रहते अंध क्यों?, मानव! पूछे वृष्टि।।
***
२७.६.२०१८, salil.sanjiv@gmail.com
७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४ 

मंगलवार, 17 अक्टूबर 2017

doha

दोहा सलिला
*
प्रभु सारे जग का रखे, बिन चूके नित ध्यान। 
मैं जग से बाहर नहीं, इतना तो हैं भान।। 
*
कौन किसी को कर रहा, कहें जगत में याद?
जिसने सब जग रचा है, बिसरा जग बर्बाद
*
जिसके मन में जो बसा वही रहे बस याद
उसकी ही मुस्कान से सदा रहे दिलशाद
*
दिल दिलवर दिलदार का, नाता जाने कौन?
दुनिया कब समझी इसे?, बेहतर रहिए मौन
*
स्नेह न कांता से किया, समझो फूटे भाग
सावन की बरसात भी, बुझा न पाए आग
*
होती करवा चौथ यदि, कांता हो नाराज
करे कृपा तो फाँकिये, चूरन जिस-तिस व्याज
*

प्रभु सारे जग का रखें, बिन चूके नित ध्यान।
मैं जग से बाहर नहीं, इतना तो हैं भान।।
*
कौन किसी को कर रहा, कहें जगत में याद?
जिसने सब जग रचा है, बिसरा जग बर्बाद
*
जिसके मन में जो बसा वही रहे बस याद
उसकी ही मुस्कान से सदा रहे दिलशाद
*
दिल दिलवर दिलदार का, नाता जाने कौन?
दुनिया कब समझी इसे?, बेहतर रहिए मौन
*
स्नेह न कांता से किया, समझो फूटे भाग
सावन की बरसात भी, बुझा न पाए आग
*
होती करवा चौथ यदि, कांता हो नाराज
करे कृपा तो फाँकिये, चूरन जिस-तिस व्याज
*

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salil.sanjiv@gmail.com
#hindi_blogger

शनिवार, 12 अगस्त 2017

navgeet

नवगीत / दोहा गीत :

बरसो राम धडाके से...

संजीव वर्मा 'सलिल'
*



*
बरसो राम धड़ाके से,
मरे न दुनिया फाके से....
*
लोकतंत्र की जमीं पर,
लोभतंत्र के पैर.
अंगद जैसे जम गए-
अब कैसे हो खैर?.

 अपनेपन की आड़ ले,
भुना रहे हैं बैर.
देश पड़ोसी मगर बन-
कहें मछरिया तैर..

मारो इन्हें कड़ाके से,
बरसो राम धड़ाके से,
मरे न दुनिया फाके से....
*
कर विनाश मिल, कह रहे,
बेहद हुआ विकास.
तम की का आराधना-
उल्लू कहें उजास..

भाँग कुंए में घोलकर,
बुझा रहे हैं प्यास.
दाल दल रहे आम की-
छाती पर कुछ खास..

पिंड छुड़ाओ डाके से,
बरसो राम धड़ाके से,
मरे न दुनिया फाके से....
*
मगरमच्छ अफसर मुए,
व्यापारी घड़ियाल.
नेता गर्दभ रेंकते-
ओढ़ शेर की खाल.

देखो लंगड़े नाचते,
लूले देते ताल.
बहरे शीश हिला रहे-
.गूँगे करें सवाल..

चोरी होती नाके से,
बरसो राम धड़ाके से,
मरे न दुनिया फाके से....
*
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४ 

http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर 

शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

haiku

हाइकु
(एक प्रयोग)
*भोर सुहानी
फूँक रही बेमोल
जान में जान। .
*
जान में जान
आ गयी, झूमी-नाची
बूँदों के साथ।
*
बूँदों के साथ
जी लिया बचपन
आज फिर से।
*
आज फिर से
मचेगा हुडदंग
संसद सत्र।
*
संसद सत्र
दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध
फैलाओ इत्र।
***
१४-७-२०१७
salil.sanjiv@gmail.com
#हिंदी_ब्लॉगिंग
#हिंदीब्लॉगर.कॉम


रविवार, 17 जुलाई 2016

navgeet

एक रचना 
संजीव 
*
नहा रहे हैं
बरसातों में 
हरे-भरे बतियाते झाड़
अपनी जगह
हमेशा ठांड़े
झूम-झूम मस्ताते झाड़
*
सूर्य-बल्ब
जब होता रौशन
मेक'प करते बिना छिपे.
शाखाओं,
कलियों फूलों से
मिलते, नहीं लजाते झाड़
नहा रहे हैं
बरसातों में
हरे-भरे बतियाते झाड़
अपनी जगह
हमेशा ठांड़े
झूम-झूम मस्ताते झाड़
*
बऊ धरती
आँखें दिखलाये
बहिना हवा उड़ाये मजाक
पर्वत दद्दा
आँख झुकाये,
लता संग इतराते झाड़
नहा रहे हैं
बरसातों में
हरे-भरे बतियाते झाड़
अपनी जगह
हमेशा ठांड़े
झूम-झूम मस्ताते झाड़
*
कमसिन सपने
देख थिरकते
डेटिंग करें बिना हिचके
बिना गये
कर रहे आउटिंग
कभी नहीं पछताते
नहा रहे हैं
बरसातों में
हरे-भरे बतियाते झाड़
अपनी जगह
हमेशा ठांड़े
झूम-झूम मस्ताते झाड़
*

मंगलवार, 5 जुलाई 2016

haiku

हाइकू सलिला
*
हाइकू लिखा
मन में झाँककर
अदेखा दिखा।
*
पानी बरसा
तपिश शांत हुई
मन विहँसा।
*
दादुर कूदा
पोखर में झट से
छप - छपाक।
*
पतंग उड़ी
पवन बहकर
लगा डराने
*
हाथ ले डोर
नचा रहा पतंग
दूसरी ओर
*

शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

doha salila : barsat

दोहा सलिला:
कुछ दोहे बरसात के
संजीव
*
गरज नहीं बादल रहे, झलक दिखाकर मौन
बरस नहीं बादल रहे, क्यों? बतलाये कौन??
*
उमस-पसीने से हुआ, है जनगण हैरान
जल्द न देते जल तनिक, आफत में है जान
*
जो गरजे बरसे नहीं, हुई कहावत सत्य
बिन गरजे बरसे नहीं, पल में हुई असत्य
*
आँख और पानी सदृश, नभ-पानी अनुबंध
बन बरसे तड़पे जिया, बरसे छाये धुंध
*
पानी-पानी हैं सलिल, पानी खो घनश्याम
पानी-पानी हो रहे, दही चुरा घनश्याम
*
बरसे तो बरपा दिया, कहर न बाकी शांति
बरसे बिन बरपा दिया, कहर न बाकी कांति
*
धन-वितरण सम विषम क्यों, जल वितरण जगदीश?
कहीं बाढ़ सूखा कहीं,  पूछे क्षुब्ध गिरीश
*
अधिक बरस तांडव किया, जन-जीवन संत्रस्त
बिन बरसे तांडव किया, जन-जीवन अभिशप्त
*
महाकाल से माँगते, जल बरसे वरदान
वर देकर डूबे विवश, महाकाल हैरान
***

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

navgeet :

नवगीत:
संजीव
*
मेघ बजे

नभ ठाकुर की ड्योढ़ी पर
फिर मेघ बजे
ठुमुक बिजुरिया
नचे बेड़नी बिना लजे
*
दादुर देते ताल,
पपीहा-प्यास बुझी
मिले मयूर-मयूरी
मन में छाई खुशी

तोड़ कूल-मरजाद
नदी उफनाई तो
बाबुल पर्वत रूठे
तनया तुरत तजे
*
पल्लव की करताल
बजाती नीम मुई
खेत कजलियाँ लिये
मेड़ छुईमुई हुई

जन्मे माखनचोर
हरीरा भक्त पिये
गणपति बप्पा, लाये
मोदक हुए मजे
*
टप-टप टपके टीन
चू गयी है बाखर
डूबी शाला हाय!
पढ़ाये को आखर?

डूबी गैल, बके गाली
अभियंता को
डुकरो काँपें, 'सलिल'
जोड़ कर राम भजे

सोमवार, 4 अगस्त 2014

doha salila: kuchh dohe barsat ke... -sanjiv

चित्र पर कविता:
संजीव
*

चित्र: सुमन कपूर 

मेघदूत संदेश ले, आये भू के द्वार 
स्नेह-रश्मि पा सु-मन हँस, उमड़े बन जल-धार    

*
पल्लव झूमे गले मिल, कभी करें तकरार
कभी गले मिलकर 'सलिल', करें मान मनुहार 
*
आदम दुबका नीड़ में, हुआ प्रकृति से दूर 
वर्षा-मंगल भूलकर, कोसे प्रभु को सूर 

शनिवार, 2 अगस्त 2014

baal geet: barase paani -sanjiv

बाल गीत:

बरसे पानी

संजीव 'सलिल'
*


रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.



बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.



वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.



छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.



कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.



काश कहीं झूला मिल जाता,
सुनते-गाते कजरी-बानी.

'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.

सोमवार, 16 जुलाई 2012

मौसमी कविता: झम झम बरसै पानी - एस. एन. शर्मा 'कमल'

मौसमी कविता: 
 
 
झम झम बरसै पानी
 




- एस. एन. शर्मा 'कमल'

बदरा आये वर्षा लाये चलै पवन मस्तानी
दामिनि दमकै हियरा दरकै झम झम बरसै  पानी
                                  
हाय,  झम झम बरसै पानी

धरती की छाती गदराई लखि पावस की तरुणाई

पात पात डोलै पुरवाई डार डार कोयल बौराई
बुलबुल चहकै बेला महकै नाचै मुदित मोर अभिमानी
                                    हाय , झम झम बरसै पानी

कलियन पर अलियन की गुन गुन सरगम छाये बगियन में
झूम झूम कजरी गाने की होड़ मचि रही सखियन में
उनके  अल्हड़पन  पर  चुपके आई  उतर  जवानी
                                  हाय झम झम बरसै पानी

बाग़ बगीचे हुए पल्लवित वन उपवन हरियाली छाई
ताल तलैयाँ उफनाये सब बाँस बाँस नदिया गहराई
दादुर मोर पपीहा बोलै  कोयल कूकै बनी दीवानी                                 
                               हाय, झम झम बरसै पानी

ठौर ठौर पर आल्हा जमते बजते ढोल नगाड़े
रस फुहार में नाच नाच रसिया गाते मतवारे
खनक उठी गगरी पनघट पर बोलैं बोल सयानी
                                हाय, झम झम बरसै पानी

पायल बिछिया कंगना बिंदिया कब से कहा था लाने
पर तुम टस से मस न हुए बस करते रहे बहाने
मैं मर गई निहोरे कर कर तुमने एक न मानी
                             हाय झम झम बरसै पानी

कनखी मारै लाज न आवै मटकै सांझ सबेरे
दैय्या रे दैय्या हाय रे मैय्या कागा बैठ मुंडेरे 
बार बार चितवै हरजाई बोलै बानि  अजानी
                           हाय, झम झम बरसै पानी

           बदरा आये वर्षा लाये चलै पवन मस्तानी
           दामिनि दमकै हियरा दरकै  झमझम बरसै पानी


************
- sn Sharma  ahutee@gmail.com

रविवार, 8 जुलाई 2012

कविता:: 'बारिश ' --शिशिर साराभाई

            कविता:: 
            'बारिश '
                  
               शिशिर साराभाई 
    


   बारिश  आती  है, तो  कितनी  यादें  साथ  लाती है 
   सौंधी खुशबू के साथ, कभी  अमराई  साथ आती है
   कभी  फूलों  से भरे घर  के बगीचे की याद आती  है 
   कभी तेरे-मेंरे  बीच  की  प्यारी बात  गुनगुनाती  है 
   बारिश  आती  है, तो  कितनी  यादें  साथ  लाती है


  


   कभी माँ  की आवाज़ दूर से आती सुनाई  पडती है
  कभी बूढ़े  बाबा   की  मीठी  पुकार  लहरा उठती है
   कभी बहन  की  शहद सी हँसी  खनखना  उठती है 
   कभी   छोटू  की   याद   में  आँखें  भीग उठती   है 
   बारिश  आती  है,तो  कितनी  यादें  साथ  लाती है
             
              **************
              Shishir Sarabhai <shishirsarabhai@yahoo.com>  

शनिवार, 7 जुलाई 2012

लोकगीत:: बनरा मोरा ब्याहन आया .....!! अनुपमा त्रिपाठी

लोकगीत::

बनरा मोरा ब्याहन आया .....!! 

अनुपमा त्रिपाठी

री सखी ...
देख न ..
सुहाग के बादल छाये ....
उमड़ घुमड़ घिर आये ...
सरित मन तरंग उठे....
हुलसाये ...!!


झड़ी सावन की लागि ...
माथे लड़ियन झड़ियन  बुंदियन सेहरा ...
गले मुतियन बुंदियन हार पहन .....
बनरा मोरा ब्याहन आया ...!


मन उमंग लाया ....
जिया हरषाया ...
सलोना सजन 
धर रूप सावन आया ....!!
धरा पलक पुलक छाया ..
हिरदय हर्षाया ....!!
बनरा मोरा ब्याहन आया ....!



संगीत मे बंदिशों के बोल इसी प्रकार के होते है .......जिनका अर्थ शाब्दिक न लेकर उनकी अनुभुती से लिया जाता है ............बनरा की प्रतीक्षा कर रही बनरी ....या वर्षा की प्रतीक्षा कर रही धरा .....या राग के सधने की प्रतीक्षा कर रहा है मन ....या ...कविता के और निखरने की प्रतीक्षा कर रहा है कवि ....या ....अरे अब इस अनुभुति मे ना जाने क्या क्या जुड़ जाये .....
यही अनुभुति .....यही स्पंदन तो संचार है जीवन का .....