छाया से वार्तालाप :
संजीव 'सलिल'
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काया से छाया मिली, करने बैठी बात.
रहे अबोला हैं नहीं, ऐसे तो हालात..
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छाया बोली: ''तुम किशन, मैं राधा हूँ संग.
तन पर चढ़ा न, मन-चढ़ा, श्याम तिहारा रंग..
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तुम नटखट पीछा छुड़ा, भाग रहे चितचोर.
मैं चटपट हो साथ ली, होकर भाव विभोर''..
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मैं अवाक सा रह गया, सुन ध्वनि एकाएक.
समझा तो राहत मिली, सुहृद सखी है नेक..
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'दूर द्वैत से हम रहे, चिर अद्वैती साथ.
जैसे माया-ब्रम्ह हैं, जगलीला-जगनाथ..
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वेणु, राधिका, जमुन-जल, ब्रज की पावन धूल.
जैसी ही तू प्रिय सखी, शंकाएँ निर्मूल'..
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''शंका तनिक न है मुझे, जिज्ञासा है एक.
नहीं अकेली मैं तुम्हें, प्रिय हैं और अनेक..
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कहाँ सतासत है कहो?, तुमसे कौन अभिन्न?
कौन भरम उपजा रहा?, किससे तुम विच्छिन्न?"
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'दीप ज्योति मन, शिखा तन, दीपक मेरे तात.
जीवन संगिनी स्नेह है, बाती मेरी मात..
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दीप तले छाया पले, जग को लगती दूर.
ज्योति संग बन-मिट रही, देख न पाते सूर'..
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"स्नेह पले मन में सदा, बाधक बनूँ न मीत.
साधक मैं तुम साधना, कौन कामना क्रीत?.
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क्यों इसकी चिंता करूँ?, किसका थामे हाथ?
धन्य हुई आ-जा रही, यदि मैं प्रिय के साथ..
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भव-संगिनी का तुम करो, पूरा हर अरमान.
चिर-संगिनी मैं मौन हो, करूँ तुम्हारा ध्यान..
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हम दोनों सुर-ताल हैं, तुम वादक हो आद्य.
द्वेष न हममें तुम्हीं हो, दोनों के आराध्य..
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लक्ष्य तुम्हीं हैं पथिक हम, पंथ हमारा प्रेम.
तुमसे ही है हमारी, जग में जीवन-क्षेम''..
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'चकित सुनूँ स्तब्ध मैं, गुनूँ स्नेह-माहात्म.
प्रिय में होकर लीं ही, आत्म बने परमात्म..
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धन्य 'सलिल' जिसको मिलीं, छाया-माया साथ.
श्वास-आस सम तुम्हें पा, मैं हो सका सनाथ..'
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.