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मंगलवार, 23 जनवरी 2018

navgeet mahotsav lucknow: 2014

नवगीत महोत्सव लखनऊ - २०१४


लखनऊ में नवगीत को केन्द्र में रखकर दो दिवसीय कार्यक्रम १५ तथा १६ नवम्बर २०१४ को गोमती नगर के कालिन्दी विला में स्थित अभिव्यक्ति विश्वम के सभाकक्ष एवं उन्मुक्तांगन में सम्पन्न हुआ। नवगीत की पाठशाला के नाम से वेब पर नवगीत का अनोखे ढँग से प्रचार-प्रसार करने में प्रतिबद्ध अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की अनेक विशेषताएँ इसे अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों से अलग करती हैं।

आयोजन के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में देश भर से आमंत्रित कुल आठ नवोदित रचनाकारों के दो-दो नवगीतों का पाठ हुआ। इस सत्र में पवन सिंह, सुवर्णा दीक्षित, विजेन्द्र विज, प्रदीप शुक्ल, सीमा शर्मा, हरि शर्मा, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने अभिव्यक्ति के मंच से पहली बार अपनी रचनाओं का पाठ किया। जिस पर वरिष्ठ नवगीतकारों के एक समूह, जिसके सदस्य कुमार रवीन्द्र, राम सेंगर, धनन्जय सिंह, बृजेश श्रीवास्तव, पंकज परिमल थे, ने अपनी राय रखी। 

इस अवसर पर श्रद्धेय कुमार रवीन्द्र जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में नवगीत में नवता को लेकर व्याप्त भ्रम को दूर करते हुए कहा कि शाब्दिकता तथा संप्रेषणीयता के बीच तारतम्यता के न टूटने देने के प्रति आग्रही होना नवगीतकारों का दायित्व है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रद्धेय राम सेंगर जी ने नवगीत महोत्सव को उत्सव बताते हुए कहा है कि इस प्रकार की कार्यशालाएं युवा रचनाकारों के रचनात्मक व्यकितत्व के विकास तथा उनमें नवगीत की समझ बढाने में सहायक होंगी। इस सत्र का सफल संचालन जगदीश व्योम जी ने किया। इसी सत्र के दूसरे भाग में लब्धप्रतिष्ठित गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र का 'गीत और नवगीत में अंतर' शीर्षक पर व्याख्यान हुआ। आपका कहना था कि नवगीत का प्रादुर्भाव हुआ ही इसलिये था कि एक ओर हिन्दी कविता लगातार दुरूह होती जा रही थी, और दूसरी ओर हिन्दी साहित्य में शब्द-प्रवाह को तिरोहित किया जाना बहुत कठिन था। अतः नवगीत नव-लय-ताल-छंद और कथ्य के साथ सामने आया।

इसके पश्चात नवगीतों पर आधारित ५० पोस्टरों की एक प्रदर्शनी का उद्घाटन लखनऊ ललित कला महाविद्यालय के डीन पांडेय राजीव नयन द्वारा किया गया। उन्होंने भाग लेने वाले कलाकारों- पूर्णिमा वर्मन, रोहित रूसिया अमित कल्ला और विजेन्द्र विज के बनाए पोस्टरों की सराहना की, उन्मु्क्तांगन में रखे हुए कैनवस पर रेखाचित्र बनाया और अपने हस्ताक्षर किये। इसके बाद उपस्थित अतिथियों और रचनाकारों ने उस कैनवस पर अपने हस्ताक्षर किये, जिसे स्मृति चिह्न के रूप में सहेजा गया।

भोजन अवकाश के बाद कार्यक्रम के दूसरे सत्र में देश भर से आये वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा नवगीतों का पाठ हुआ। इस सत्र के प्रमुख आकर्षण रहे - श्रद्धेय कुमार रवीन्द्र, राम सेंगर, अवध बिहारी श्रीवास्तव, राम नारायण रमण, श्याम श्रीवास्तव, ब्रजेश श्रीवास्तव, शीलेन्द्र सिंह चौहान, डॉ मृदुल, राकेश चक्र, जगदीश पंकज, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', एवं अनिल मिश्रा। कार्यक्रम के अध्यक्ष कुमार रवीन्द्र जी एवं मुख्य अतिथि राम सेंगर जी रहे। मंच संचालन अवनीश सिंह चौहान ने किया।


कार्यक्रम के प्रथम दिवस के तीसरे और अंतिम सत्र सांस्कृतिक संध्या का आयोजन खुले आँगन में किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ आशीष और सौम्या की गणपति वंदना से हुआ। पेड़ छतनार शीर्षक से एक नुक्कड़ नाटक खेला गया जिसे पूर्णिमा वर्मन ने लिखा और अमित कल्ला ने निर्देशित किया था भाग लेने वाले कलाकार थे- पवन प्रताप सिंह, सुवर्णा दीक्षित, रोहित रूसिया, रामशंकर वर्मा, अमित कल्ला तथा सौम्या। इस नाटक में यश मालवीय, कुमार रवीन्द्र, श्याम श्रीवास्तव, पूर्णिमा वर्मन, डॉ राजेन्द्र गौतम, निर्मल शुक्ल, श्याम निर्मम, सुरेन्द्र सुकुमार, कल्पना रामानी, पंकज परिमल, रामशंकर वर्मा, और राधेश्याम बंधु, के नवगीत, नवगीतों के अंश, कुछ पंक्तियाँ या कुछ पद्याशों का प्रयोग किया गया था। 

इसके बाद डॉ. शिव बहादुर भदौरिया के नवगीत "पुरवा जो डोल गई'' पर सृष्टि श्रीवास्तव ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया। नवगीतों का गायन सम्राट राजकुमार, अमित कल्ला और रोहित रूसिया ने किया। पूरे कार्यक्रम में गिटार पर सम्राट राजकुमार, तबले पर सिद्धांत सिंह और रजत श्रीवास्तव तथा की बोर्ड पर मयंक सिंह ने संगत की। कार्यक्रम का अंत विजेन्द्र विज द्वारा नवगीतों पर बनाई गई छह लघु फिल्मों से हुआ।

दूसरे दिन के पहले सत्र में देश भर से गीति-काव्य के नवगीत विधा के मूर्धन्य विद्वानों ने इस विधा की वैधानिकता तथा इसके शिल्प पर प्रकाश डाला। विधा के विभिन्न विन्दुओं को समेटते हुए गीत और नवगीत में अंतर, नवगीत की दशा और दिशा, इसकी संरचना, इसके रचाव पर चर्चा की। डॉ. जगदीश व्योम ने नयी कविता तथा नवगीत के मध्य के अंतर को रेखांकित किया। रचनाओं के शिल्प में गेयता-लय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि प्रस्तुतियों में छंदों और लय का अभाव हिन्दी रचनाओं के लिए घातक सिद्ध हुआ। कविताओं के प्रति पाठकों द्वारा अन्यमन्स्कता का मुख्य कारण यही रहा कि कविताओं से गेयता निकल गयी। कवितायें अनावश्यक रूप से बोझिल हो गयीं। 

डॉ. धनन्जय सिंह की उद्घोषणा इन अर्थों में व्यापक रही कि नवगीत संज्ञा नहीं वस्तुतः विशेषण है। आपने कहा कि आजकी मुख्य आवश्यकता शास्त्र की जड़ता मुक्ति है न कि शास्त्र की गति से मुक्ति। डॉ. धनन्जय सिंह के व्याख्यान का शीर्षक ’नवगीत की दशा और दिशा’ था। ’रचना के रचाव तत्त्व’ पर बोलते हुए डॉ. पंकज परिमल ने कहा कि शब्द, तुक, लय, प्रतीक मात्र से रचना नहीं होती, बल्कि रचनाकार को रचाव की प्रक्रिया से भी गुजरना होता है। रचाव के बिना कोई भाव शाब्दिक भले हो जायें, रचना नहीं हो सकते। आपने रचना प्रक्रिया में अंतर्क्रिया तथा अंतर्वर्ण की सोदाहरण व्याख्या की। प्रथम सत्र के आज के अन्य वक्ताओं में डॉ. मधुकर अष्ठाना तथा राम सेंगर प्रमुख थे। द्वितीय दिवस का यह सत्र कार्यशाला के तौर पर आयोजित हुआ था, जिसके अंतर्गत उद्बोधनों के बाद अन्यान्य नवगीतकारों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के वक्ताओं ने समुचित उत्तर दिये।

भोजनावकाश के बाद दूसरे सत्र में विभिन्न प्रकाशनों से प्रकाशित कुल छः नवगीत-संग्रहों का लोकार्पण हुआ। जिसके उपरान्त विभिन्न विद्वानों ने समीक्षकीय चर्चा की। रोहित रूसिया के नवगीत-संग्रह ’नदी की धार सी संवेदनाएँ’ पर डॉ. गुलाब सिंह ने समीक्षा की। डॉ. गुलाब सिंह की अनुपस्थिति में उनका वक्तव्य वीनस केसरी ने पढ़कर सुनाया। वरिष्ठ गीतकार डॉ. महेन्द्र भटनागर के नये संग्रह ’दृष्टि और सृष्टि’ पर बृजेश श्रीवास्तव ने समीक्षा प्रस्तुत की। ओमप्रकाश तिवारी के नवगीत-संग्रह ’खिड़कियाँ खोलो’ पर सौरभ पाण्डेय ने समीक्षा प्रस्तुत की। यश मालवीय के संग्रह ’नींद काग़ज़ की तरह’ पर निर्मल शुक्ल ने समीक्षा प्रस्तुत की। तथा, निर्मल शुक्ल के नवगीत-संग्रह ’कुछ भी असंभव’ पर मधुकर अष्ठाना ने समीक्षा प्रस्तुत की। पूर्णिमा वर्मन के नवगीत-संग्रह ’चोंच में आकाश’ पर आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने समीक्षा प्रस्तुत की। सभी समीक्षकों ने नवगीत-संगहों भाव तथा शिल्प पक्षों पर खुल कर अपनी बातें कहीं। सत्र का संचालन डॉ. अवनीश सिंह चौहान किया।

तीसरे सत्र में आयोजन की परिपाटी के अनुसार सभी रचनाकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं का पाठ किया. इस वर्ष के आमंत्रित कवियों में चेक गणराज्य से पधारे डॉ. ज्देन्येक वग्नेर विशेष कवि रहे। उनके अतिरिक्त इस सत्र में जयराम जय, पंकज परिमल, शैलेन्द्र शर्मा, ब्रजभूषण गौतम, वीरेन्द्र आस्तिक, निर्मल शुक्ल, पूर्णिमा वर्मन, डॉ. जगदीश व्योम, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', वीनस केसरी, रोहित रूसिया, डॉ. प्रदीप शुक्ला, रामशंकर वर्मा, मधु प्रधान, संध्या सिंह, अवनीश सिंह चौहान, ब्रजेश श्रीवास्तव, कुमार रवीन्द्र, कमलेश भट्ट कमल, शरद सक्सेना, आभा खरे, सौरभ पांडे, चंद्रभाल सुकुमार, अनिल वर्मा आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।

नवगीत पाठ के पूर्व अभिव्यक्ति-अनुभूति संस्था की ओर से नवगीत नवांकुर पुरस्कार का वितरण किया गया। अवनीश सिंह चौहान को उनके नवगीत संग्रह ’टुकड़ा काग़ज़ का’ के लिये २०११ का, कल्पना रामानी को उनके नवगीत संग्रह ’हौसलों के पंख’ के लिये २०१२ का तथा रोहित रूसिया को उनके नवगीत संग्रह ’नदी की धार सी संवेदनाएँ’ के लिए २०१३ का नवगीत नवांकुर पुरस्कार दिया गया। विद्वानों द्वारा नवगीत विधा के बहुमुखी विकास की संभावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ ही ’नवगीत महोत्सव २०१४’ का समापन हुआ।