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रविवार, 29 अक्टूबर 2017

navgeet

नवगीत:
देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे
राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं
अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे
भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते
हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे
मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है
पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे
***

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

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देव उठानी एकादशी पर नव गीत सोये बहुत देव अब जागो * सोये बहुत देव! अब जागो... तम ने निगला है उजास को। गम ने मारा है हुलास को। बाधाएँ छलती प्रयास को। कोशिश को जी भर अनुरागो... रवि-शशि को छलती है संध्या। अधरा धरा न हो हरि! वन्ध्या। बहुत झुका अब झुके न विन्ध्या। ऋषि अगस्त दक्षिण मत भागो... पलता दीपक तले अँधेरा । हो निशांत फ़िर नया सवेरा। टूटे स्वप्न न मिटे बसेरा। कथनी-करनी संग-संग पागो... **************

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देव उठनी एकादशी (गन्ना ग्यारस) पर नवगीत:
* देव सोये तो सोये रहें हम मानव जागेंगे राक्षस अति संचय करते हैं दानव अमन-शांति हरते हैं असुर क्रूर कोलाहल करते दनुज निबल की जां हरते हैं अनाचार का शीश पकड़ हम मानव काटेंगे भोग-विलास देवता करते बिन श्रम सुर हर सुविधा वरते ईश्वर पाप गैर सर धरते प्रभु अधिकार और का हरते हर अधिकार विशेष चीन हम मानव वारेंगे मेहनत अपना दीन-धर्म है सच्चा साथी सिर्फ कर्म है धर्म-मर्म संकोच-शर्म है पीड़ित के आँसू पोछेंगे मिलकर तारेंगे