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बुधवार, 11 नवंबर 2015

mahalakshayamashtak stotra

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II मूल पाठ-तद्रिन, हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल' II ॐ II











II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत. शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन. सरे पाप-ताप की हर्ता, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी. सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया. सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा. योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा सूक्ष्म-स्थूल. महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे. जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया. जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र. पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल. पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश. हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं II तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण. नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत.. ******************************************* आरती क्यों और कैसे? संजीव 'सलिल' * ईश्वर के आव्हान तथा पूजन के पश्चात् भगवान की आरती, नैवेद्य (भोग) समर्पण तथा अंत में विसर्जन किया जाता है। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। आरती करने ही नहीं, इसमें सम्मिलित होंने से भी पुण्य मिलता है। देवता की आरती करते समय उन्हें 3बार पुष्प अर्पित करें। आरती का गायन स्पष्ट, शुद्ध तथा उच्च स्वर से किया जाता है। इस मध्य शंख, मृदंग, ढोल, नगाड़े , घड़ियाल, मंजीरे, मटका आदि मंगल वाद्य बजाकर जयकारा लगाया जाना चाहिए। आरती हेतु शुभ पात्र में विषम संख्या (1, 3, 5 या 7) में रुई या कपास से बनी बत्तियां रखकर गाय के दूध से निर्मित शुद्ध घी भरें। दीप-बाती जलाएं। एक थाली या तश्तरी में अक्षत (चांवल) के दाने रखकर उस पर आरती रखें। आरती का जल, चन्दन, रोली, हल्दी तथा पुष्प से पूजन करें। आरती को तीन या पाँच बार घड़ी के काँटों की दिशा में गोलाकार तथा अर्ध गोलाकार घुमाएँ। आरती गायन पूर्ण होने तक यह क्रम जरी रहे। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग [मस्तिष्क, दोनों हाथ-पांव] से। आरती पूर्ण होने पर थाली में अक्षत पर कपूर रखकर जलाएं तथा कपूर से आरती करते हुए मन्त्र पढ़ें: कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारं। सदावसन्तं हृदयारवंदे, भवं भवानी सहितं नमामि।। पांच बत्तियों से आरती को पंच प्रदीप या पंचारती कहते हैं। यह शरीर के पंच-प्राणों या पञ्च तत्वों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव पंच-प्राणों (पूर्ण चेतना) से ईश्वर को पुकारने का हो। दीप-ज्योति जीवात्मा की प्रतीक है। आरती करते समय ज्योति का बुझना अशुभ, अमंगलसूचक होता है। आरती पूर्ण होने पर घड़ी के काँटों की दिशा में अपने स्थान पट तीन परिक्रमा करते हुए मन्त्र पढ़ें: यानि कानि च पापानि, जन्मान्तर कृतानि च। तानि-तानि प्रदक्ष्यंती, प्रदक्षिणां पदे-पदे।। अब आरती पर से तीन बार जल घुमाकर पृथ्वी पर छोड़ें। आरती प्रभु की प्रतिमा के समीप लेजाकर दाहिने हाथ से प्रभु को आरती दें। अंत में स्वयं आरती लें तथा सभी उपस्थितों को आरती दें। आरती देने-लेने के लिए दीप-ज्योति के निकट कुछ क्षण हथेली रखकर सिर तथा चेहरे पर फिराएं तथा दंडवत प्रणाम करें। सामान्यतः आरती लेते समय थाली में कुछ धन रखा जाता है जिसे पुरोहित या पुजारी ग्रहण करता है। भाव यह हो कि दीप की ऊर्जा हमारी अंतरात्मा को जागृत करे तथा ज्योति के प्रकाश से हमारा चेहरा दमकता रहे। सामग्री का महत्व आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं। कलश-कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं। यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंतिहै कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है। जल-जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं। दीपमालिका कल हर दीपक अमल-विमल यश-कीर्ति धवल दे...... शक्ति-शारदा-लक्ष्मी मैया, 'सलिल' सौख्य-संतोष नवल दें...

बुधवार, 14 नवंबर 2012

महालक्ष्मी स्तोत्र

  
 

महालक्ष्मी स्तोत्र  
*
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । 
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।1 
 
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । 

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।2
 

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् 
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।3 
 

कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । 
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।4 
 

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । 
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।5 
 

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः। 
तस्य फलानि तपसानुदन्तुमायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः 6 
 

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह । प्
रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।7 
 

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुदमे गृहात् ।8 
 

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । 
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।9 
 

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि। 
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।10 
 

कर्दमेन प्रजाभूतामयि सम्भवकर्दम। 
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।11 
 

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीतवसमे गृहे। 
निचदेवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।12 
 

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्। 
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।13 
 

आर्द्रां यःकरिणीं यष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्। 
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।14 
 

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। 
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावोदास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ।15
 

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। 
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ।16
 

पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे। 
तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ।17 
 

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने। 
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ।18
 

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि। 
विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व ।19
 

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्। 
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ।20

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः। 
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते ।21
************

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

हमने दीपावली मनाई

 II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II 

मूल पाठ-तद्रिन, 

                                          हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल'

 II  ॐ II

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II 

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II

सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.
शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II

कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.
सरे पाप-ताप की हर्ता,  नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II

सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.
सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II

भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.
सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II

हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.
योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II

महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा  सूक्ष्म-स्थूल.
महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I
परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II

कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.
जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II

दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.
जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II

जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.
पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II

एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.
पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I
महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II

तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.
हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

 II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं  II

तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.
नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

*******************************************
आरती क्यों और कैसे?
संजीव 'सलिल'
*

ईश्वर के आव्हान तथा पूजन के पश्चात्
भगवान की आरती, नैवेद्य (भोग) समर्पण तथा अंत में विसर्जन किया जाता है। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है।  आरती करने ही नहीं, इसमें सम्मिलित होंने से भी पुण्य मिलता है। देवता की आरती करते समय उन्हें 3बार पुष्प अर्पित करें। आरती का गायन स्पष्ट, शुद्ध तथा उच्च स्वर से किया जाता है। इस मध्य शंख, मृदंग, ढोल, नगाड़े , घड़ियाल, मंजीरे, मटका आदि मंगल वाद्य बजाकर जयकारा लगाया जाना चाहिए।

आरती हेतु शुभ पात्र में
विषम संख्या (1, 3, 5 या 7) में रुई या कपास से बनी बत्तियां रखकर गाय के दूध से निर्मित शुद्ध घी भरें। दीप-बाती  जलाएं। एक थाली या तश्तरी में अक्षत (चांवल) के दाने रखकर उस पर आरती रखें। आरती का जल, चन्दन, रोली, हल्दी तथा पुष्प से पूजन करें। आरती को तीन या पाँच बार घड़ी के काँटों की दिशा में गोलाकार तथा अर्ध गोलाकार घुमाएँ। आरती गायन पूर्ण होने तक यह क्रम जरी रहे। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग [मस्तिष्क, दोनों हाथ-पांव] से। आरती पूर्ण होने पर थाली में अक्षत पर कपूर रखकर जलाएं तथा कपूर से आरती करते हुए मन्त्र पढ़ें:
कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारं। 
सदावसन्तं हृदयारवंदे, भवं भवानी सहितं नमामि।।  
 पांच बत्तियों से आरती को पंच प्रदीप या पंचारती कहते हैं। यह  शरीर के पंच-प्राणों या पञ्च तत्वों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव पंच-प्राणों (पूर्ण चेतना) से ईश्वर को पुकारने का हो। दीप-ज्योति जीवात्मा की प्रतीक है। आरती करते समय ज्योति का बुझना अशुभ, अमंगलसूचक होता है। आरती पूर्ण होने पर घड़ी के काँटों की दिशा में अपने स्थान पट तीन परिक्रमा करते हुए मन्त्र पढ़ें:
यानि कानि च पापानि, जन्मान्तर कृतानि च।
तानि-तानि प्रदक्ष्यंती, प्रदक्षिणां पदे-पदे।। 
अब आरती पर से तीन बार जल घुमाकर पृथ्वी पर छोड़ें। आरती प्रभु की प्रतिमा के समीप लेजाकर दाहिने हाथ से प्रभु को आरती दें। अंत में स्वयं आरती लें तथा सभी उपस्थितों को आरती दें। आरती देने-लेने के लिए दीप-ज्योति के निकट कुछ क्षण हथेली रखकर सिर तथा चेहरे पर फिराएं तथा दंडवत प्रणाम करें। सामान्यतः आरती लेते समय थाली में कुछ धन रखा जाता है जिसे पुरोहित या पुजारी ग्रहण करता है।  भाव यह हो कि दीप की ऊर्जा हमारी अंतरात्मा को जागृत करे तथा ज्योति के प्रकाश से हमारा चेहरा दमकता रहे।   
सामग्री का महत्व आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।

कलश-कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं।

यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंतिहै कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।

जल-जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।
दीपमालिका कल हर दीपक अमल-विमल यश-कीर्ति धवल दे......
                      शक्ति-शारदा-लक्ष्मी मैया, 'सलिल' सौख्य-संतोष नवल दें...






































 

बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II मूल पाठ-तद्रिन, हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल'

 II  ॐ II

***********************************II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II

( मूल पाठ-तद्रिन हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल' )

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II

सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.
शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II

कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.
सरे पाप-ताप की हर्ता,  नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II

सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.
सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II

भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.
सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II

हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.
योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II

महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा  सूक्ष्म-स्थूल.
महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I
परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II

कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.
जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II

दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.
जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II

जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.
पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II

एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.
पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I
महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II

तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.
हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

 II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं  II

तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.
नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

*********

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

दोहा गीत: मातृ ज्योति-दीपक पिता, - संजीव 'सलिल'


दोहा गीत:
मातृ ज्योति-दीपक पिता,
- संजीव 'सलिल'
*

 










*

विजय विषमता तिमिर पर,
कर दे- साम्य हुलास..
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....

*
जिसने कालिख-तम पिया,
वह काली माँ धन्य.
नव प्रकाश लाईं प्रखर,
दुर्गा देवी अनन्य.
भर अभाव को भाव से,
लक्ष्मी हुईं प्रणम्य.
ताल-नाद, स्वर-सुर सधे,
शारद कृपा सुरम्य.

वाक् भारती माँ, भरें
जीवन में उल्लास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास...

*

सुख-समृद्धि की कामना,
सबका है अधिकार.
अंतर से अंतर मिटा,
ख़त्म करो तकरार.
जीवन-जगत न हो महज-
क्रय-विक्रय व्यापार.
सत-शिव-सुन्दर को करें
सब मिलकर स्वीकार.

विषम घटे, सम बढ़ सके,
हो प्रयास- सायास.
मातृ ज्योति- दीपक पिता,
शाश्वत चाह उजास....

**************
= दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
--
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

रविवार, 19 जून 2011

घनाक्षरी छंद : राजनीति का अखाड़ा..... --संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी छंद :
राजनीति का अखाड़ा.....
संजीव 'सलिल'
*
अपनी भी कहें कुछ, औरों की भी सुनें कुछ, बात-बात में न बात, अपनी चलाइए.
कोई दूर जाए  गर, कोई रूठ जाए गर, नेह-प्रेम बात कर, उसको मनाइए.
बेटी हो, जमाई हो  या, बेटा-बहू, नाती-पोते, भूल से भी भूलकर, शीश न चढ़ाइए.
दूसरों से जैसा चाहें, वैसा व्यवहार करें, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइए..
*
एक देश अपना है, माटी अपनी है एक, भिन्नता का भाव कोई, मन में न लाइए.
भारत की, भारती की, आरती उतारकर, हथेली पे जान धरें, शीश भी चढ़ाइए..
भाषा-भूषा, जात-पांत,वाद-पंथ कोई भी हो, हाथ मिला, गले मिलें, दूरियाँ मिटाइए.
पक्ष या विपक्ष में हों, राष्ट्र-हित सर्वोपरि, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइए..
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सुख-दुःख, धूप-छाँव, आते-जाते जिंदगी में, डरिए न धैर्य धर, बढ़ते ही जाइये.
संकटों में, कंटकों में, एक-एक पग रख, कठिनाई सीढ़ी पर, चढ़ते ही जाइये..
रसलीन, रसनिधि, रसखान बनें आप, श्वास-श्वास महाकाव्य, पढ़ते ही जाइये.
शारदा की सेवा करें, लक्ष्मी मैया! मेवा वरें, शक्ति-साधना का पंथ, गढ़ते ही जाइये..
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शनिवार, 6 नवंबर 2010

व्यंग्य रचना: दीवाली : कुछ शब्द चित्र: संजीव 'सलिल'

व्यंग्य रचना:                                                                                   
दीवाली : कुछ शब्द चित्र:
संजीव 'सलिल'
*
माँ-बाप को
ठेंगा दिखायें.
सास-ससुर पर
बलि-बलि जायें.
अधिकारी को
तेल लगायें.
गृह-लक्ष्मी के
चरण दबायें.
दिवाली मनाएँ..
*
लक्ष्मी पूजन के
महापर्व को
सार्थक बनायें.
ससुरे से मांगें
नगद-नारायण.
न मिले लक्ष्मी
तो गृह-लक्ष्मी को
होलिका बनायें.
दूसरी को खोजकर,
दीवाली मनायें..
*
बहुमत न मिले
तो खरीदें.
नैतिकता को
लगायें पलीते.
कुर्सी पर
येन-केन-प्रकारेण
डट जाए.
झूम-झूमकर
दीवाली मनायें..
*
बोरी में भरकर
धन ले जाएँ.
मुट्ठी में समान
खरीदकर लायें.
मँहगाई मैया की
जट-जयकार गुंजायें
दीवाली मनायें..
*
बेरोजगारों के लिये
बिना पूंजी का धंधा,
न कोई उतार-चढ़ाव,
न कभी पड़ता मंदा.
समूह बनायें,
चंदा जुटायें,
बेईमानी का माल
ईमानदारी से पचायें.
दीवाली मनायें..
*
लक्ष्मीपतियों और
लक्ष्मीपुत्रों की
दासों उँगलियाँ घी में
और सिर कढ़ाई में.
शारदासुतों  की बदहाली,
शब्दपुत्रों की फटेहाली,
निकल रहा है दीवाला,
मना रहे हैं दीवाली..
*
राजनीति और प्रशासन,
अनाचार और दुशासन.
साध रहे स्वार्थ,
तजकर परमार्थ.
सच के मुँह पर ताला.
बहुत मजबूत
अलीगढ़वाला.
माना रहे दीवाली,
देश का दीवाला..
*
ईमानदार की जेब
हमेशा खाली.
कैसे मनाये होली?
ख़ाक मनाये दीवाली..
*
अंतहीन शोषण,
स्वार्थों का पोषण,
पीर, व्यथा, दर्द दुःख,
कथ्य कहें या आमुख?
लालच की लंका में
कैद संयम की सीता.
दिशाहीन धोबी सा
जनमत हिरनी भीता.
अफसरों के करतब देख
बजा रहा है ताली.
हो रहे धमाके
तुम कहते हो दीवाली??
*
अरमानों की मिठाई,
सपनों के वस्त्र,
ख़्वाबों में खिलौने
आम लोग त्रस्त.
पाते ही चुक गई
तनखा हरजाई.
मुँह फाड़े मँहगाई
जैसे सुरसा आई.
फिर भी ना हारेंगे.
कोशिश से हौसलों की
आरती उतारेंगे.
दिया एक जलाएंगे
दिवाली मनाएंगे..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com