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शनिवार, 6 अगस्त 2011

राखी पर काव्यांजलि: शुभद राखी मन मोहे.. अम्बरीश श्रीवास्तव

राखी पर काव्यांजलि:                                                                    
शुभद राखी मन मोहे..
अम्बरीश श्रीवास्तव
*


एक छप्पय:
*
लेकर पूजन-थाल प्रात ही बहिना आई.
उपजे नेह प्रभाव, बहुत हर्षित हो भाई..
पूजे वह सब देव, तिलक माथे पर सोहे.
बँधे दायें हाथ, शुभद राखी मन मोहे..
हों धागे कच्चे ही भले, बंधन दिल के शेष हैं.
पुनि सौम्य उतारे आरती, राखी पर्व विशेष है..
दो कुण्डलियाँ:
रक्षा बंधन पर्व दे, खुशियाँ शत अनमोल,
बहना-भैया हैं मगन, मीठा-मीठा बोल.      
मीठा-मीठा बोल, सभी से बढ़कर आगे.
बंधन सदा अटूट, बने राखी के धागे,        
अम्बरीष यह नेह, मिला तो पुण्य फले हैं.
रक्षा करें बहिन की, ले संकल्प चले हैं..

आई श्रावण-पूर्णिमा, रक्षाबंधन नाम,
जन-जन में उल्लास है, हर्षित अपने राम.
हर्षित अपने राम, खिलाये सिवईं बहना,
सदा रहे खुशहाल,यही हम सबका कहना.
अम्बरीष जो आज, प्रकृति खुशहाली लाई.
सब वृक्षों को बाँध, सभी संग राखी भाई..
*

सोमवार, 7 मार्च 2011

दोहा मुक्तिका (दोहा ग़ज़ल): दोहा का रंग होली के संग : --संजीव वर्मा 'सलिल'

दोहा मुक्तिका (दोहा ग़ज़ल):                                                                                                                       
दोहा का रंग होली के संग :
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
होली हो ली हो रहा, अब तो बंटाधार. 
मँहगाई ने लील ली, होली की रस-धार..
*
अन्यायी पर न्याय की, जीत हुई हर बार..
होली यही बता रही, चेत सके सरकार.. *                                                                             आम-खास सब एक है, करें सत्य स्वीकार.
दिल के द्वारे पर करें, हँस सबका सत्कार..
*
ससुर-जेठ देवर लगें, करें विहँस सहकार.
हँसी-ठिठोली कर रही, बहू बनी हुरियार..
*
कचरा-कूड़ा दो जला, साफ़ रहे संसार.
दिल से दिल का मेल ही, साँसों का सिंगार..
*                                                                       
जाति, धर्म, भाषा, वसन, सबके भिन्न विचार. 
हँसी-ठहाके एक हैं, नाचो-गाओ यार..
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गुझिया खाते-खिलाते, गले मिलें नर-नार.
होरी-फागें गा रहे, हर मतभेद बिसार..
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तन-मन पुलकित हुआ जब, पड़ी रंग की धार.
मूँछें रंगें गुलाल से, मेंहदी कर इसरार..
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यह भागी, उसने पकड़, डाला रंग निहार.
उस पर यह भी हो गयी, बिन बोले बलिहार..
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नैन लड़े, झुक, उठ, मिले, कर न सके इंकार.
गाल गुलाबी हो गए, नयन शराबी चार..
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दिलवर को दिलरुबा ने, तरसाया इस बार.
सखियों बीच छिपी रही, पिचकारी से मार..
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बौरा-गौरा ने किये, तन-मन-प्राण निसार.
द्वैत मिटा अद्वैत वर, जीवन लिया सँवार..
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रतिपति की गति याद कर, किंशुक है अंगार.
दिल की आग बुझा रहा, खिल-खिल बरसा प्यार..
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मन्मथ मन मथ थक गया, छेड़ प्रीत-झंकार.
तन ने नत होकर किया, बंद कामना-द्वार..
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'सलिल' सकल जग का करे, स्नेह-प्रेम उद्धार.
युगों-युगों मानता रहे, होली का त्यौहार..
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