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बुधवार, 30 अप्रैल 2014

gazal: rajendra swarnkar

एक ग़ज़ल श्रृंगार की


राजेंद्र स्वर्णकार


Jokes -Dr. M.C. Gupta 'khalish'

A laugh a Day ::
 

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One laugh per day is better than eating one apple a day....
 
A man was granted two wishes by God.
He asked for the best drink and the best woman ever.
He got mineral water and Mother Teresa. 

. . . . . . . . . . . 

There are three kinds of men in this world.
Some remain single and make wonders happen.

Some have girlfriends and see wonders happen.

The rest get married and wonder what happened!
 

. . . . . . . . . . . 


Wives are magicians. They can turn anything into an argument.
. . . . . . . . . . .

When asked in class; Why do women live a better, longer and a more peaceful life than men?

A very INTELLIGENT student replied:

"Because women don't have wives!"
 

. . . . . . . . . . . 


Husband to his wife: "Honey... I've invited a friend home for supper."
Wife: "What? Are you crazy? The house is a mess, I haven't been shopping, all the dishes are dirty and I don't feel like cooking a fancy meal!"

Husband: "I know all that."

Wife: "Then why did you invite a friend home for supper?"

Husband: "Because the poor fool is thinking of getting married!" 

. . . . . . . . . . .
 

Cool message to mother-in-law:
"Dear Mother-in-law, Don't teach me how to handle my children. I am living with one of yours and he needs a lot of improvement!" 

. . . . . . . . . . .
 


When a married man replies; "I'll think about it." -- What he really means is that he hasn't asked his wife for permission yet! 

. . . . . . . . . . . 

A lady says to her doctor: "My husband has a habit of talking in his sleep! What should I give him to cure it?"
The doctor replies: "Give him the opportunity to speak while he's awake!"

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

geet: samay ki karvaton ke sath -sanjiv

गीत:
समय की करवटों के साथ
संजीव
*
गले सच को लगा लूँ मैँ समय की करवटों के साथ
झुकाया, ना झुकाऊँगा असत के सामने मैं माथ...
*
करूँ मतदान तज मत-दान बदलूँगा समय-धारा
व्यवस्था से असहमत है, न जनगण किंतु है हारा
न मत दूँगा किसी को यदि नहीं है योग्य कोई भी-
न दलदल दलोँ की है साध्य, हमकों देश है प्यारा
गिरहकट, चोर, डाकू, मवाली दल  बनाकर आये
मिया मिट्ठू न जनगण को तनिक भी क़भी भी भाये
चुनें सज्जन चरित्री व्यक्ति जो घपला प्रथा छोड़ें
प्रशासन को कसे, उद्यम-दिशा को जमीं से जोड़े
विदेशी ताकतों से ले न कर्जे, पसारे मत हाथ.…
*
लगा चौपाल में संसद, बनाओ नीति जनहित क़ी
तजो सुविधाएँ-भत्ते, सादगी से रहो, चाहत की
धनी का धन घटे, निर्धन न भूखा कोई सोयेगा-
पुलिस सेवक बने जन की, न अफसर अनय बोयेगा
सुनें जज पंच बन फ़रियाद, दें निर्णय न देरी हो
वकीली फ़ीस में घर बेच ना दुनिया अँधेरी हो
मिले श्रम को प्रतिष्ठा, योग्यता ही पा सके अवसर
न मँहगाई गगनचुंबी, न जनता मात्र चेरी हो
न अबसे तंत्र होगा लोक का स्वामी, न जन का नाथ…
*

chitra par kavita: sanjiv

चित्र पर कविता:
संजीव
*
 
*
अगम अनाहद नाद हीं, सकल सृष्टि का मूल
व्यक्त करें लिख ॐ हम, सत्य कभी मत भूल
निराकार ओंकार का, चित्र न कोई एक
चित्र गुप्त कहते जिसे, उसकाचित्र हरेक
सृष्टि रचे परब्रम्ह वह, पाले विष्णु हरीश
नष्ट करे शिव बन 'सलिल', कहते सदा मनीष

कंकर-कंकर में रमा, शंका का  कर अन्त
अमृत-विष धारण करे, सत-शिव-सुन्दर संत
महाकाल के संग हैं, गौरी अमृत-कुण्ड
सलिल प्रवाहित शीश से, देखेँ चुप ग़ज़-तुण्ड
विष-अणु से जीवाणु को, रचते विष्णु हमेश
श्री अर्जित कर रम रहें, श्रीपति सुखी विशेष
ब्रम्ह-शारदा लीन हो, रचते सुर धुन ताल
अक्षर-शब्द सरस रचें, कण-कण देता ताल
नाद तरंगें संघनित, टकरातीं होँ एक
कण से नव कण उपजते, होता एक अनेक
गुप्त चित्र साकार हो, निराकार से सत्य
हर आकार विलीन हो, निराकार में नित्य
आना-जाना सभी को, यथा समय सच मान
कोई न रहता हमेशा, परम सत्य यह जान
नील गगन से जल गिरे, बहे समुद मेँ लीन
जैसे वैसे जीव हो, प्रभु से प्रगट-विलीन
कलकल नाद सतत सुनो, छिपा इसी में छंद
कलरव-गर्जन चुप सुनो, मिले गहन आनंद
बीज बने आनंद ही, जीवन का है सत्य
जल थल पर गिर जीव को, प्रगटाता शुभ कृत्य
कर्म करे फल भोग कर, जाता खाली हाथ
शेष कर्म फल भोगने, फ़िर आता नत माथ
सत्य समझ मत जोड़िये, धन-सम्पद बेकार
आये कर उपयोग दें, ओरों को कर प्यार
सलिला कब जोड़ें सलिल, कभी न रीते देख
भर-खाली हो फ़िर भरे, यह विधना का लेख

chhand salila: triloki chhand -sanjiv


छंद सलिला:
त्रिलोकी छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चंद्रायण (५ + गुरु लघु गुरु लघु, / ५ + गुरु लघु गुरु ) तथा प्लवंगम् (गुरु + ६ / ८ + गुरु लघु गुरु ) का मिश्रित रूप ।

लक्षण छंद:
पाँच मात्रा गुरु लघु / गुरु लघु पहिले लें
पाँच मात्रा गुरु लघु / गुरु चंद्रायण है 
है गुरु फ़िर छै / मात्रा छंद प्लवंगम् 
आठ तथा गुरु / लघु गुरु मात्रा रखें हम                                                                                                                                                                     

उदाहरण:
१. नाद अनाहद / जप ले रे मन बाँवरे
   याद ईश की / कर ले सो मत जाग रे
   सदाशिव ओम ओम / जप रहे ध्यान मेँ
   बोल ओम ओम ओम / संझा-विहान में  

२. काम बिन मन / कुछ न बोल कर काम तू
    नीक काम कर / तब पाये कुछ नाम तू
    कभी मत छोड़ होड़ / जय मिले होड़ से
    लक्ष्य की डोर जोड़ / पथ परे मोड़ से
 
३. पुरातन देश-भूमि / पूजिए धन्य हो
    मूल्य सनातन / सदा मानते प्रणम्य हो
    हवा पाश्चात्य ये न / दे बदल आपको
    छोड़िये न जड़ / न ही उखड़ें अनम्य हो
          ******************************

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
।। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल । 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल ।।

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

geet: yah kaisa jantantra? -sanjiv

गीत:
यह कैसा जनतंत्र...
संजीव
*
यह कैसा जनतंत्र कि सहमत होना, हुआ गुनाह ?
आह भरें वे जो न और क़ी सह सकते हैं वाह...
*
सत्ता और विपक्षी दल में नेता हुए विभाजित
एक जयी तो कहे दूसरा, मैं हो गया पराजित
नूरा कुश्ती खेल-खेलकर जनगण-मन को ठगते-
स्वार्थ और सत्ता हित पल मेँ हाथ मिलाये मिलते
मेरी भी जय, तेरी भी जय, करते देश तबाह...
*
अहंकार के गुब्बारे मेँ बैठ गगन मेँ उड़ते
जड़ न जानते, चेतन जड़ के बल जमीन से जुड़ते
खुद को सही, गलत औरों को कहना- पाला शौक
आक्रामक भाषा ज्यों दौड़े सारमेय मिल-भौंक
दूर पंक से निर्मल चादर रखिए सही सलाह...
*
दुर्योधन पर विदुर नियंत्रण कर पायेगा कैसे?
शकुनी बिन सद्भाव मिटाये जी पाएगा कैसे??
धर्मराज की अनदेखी लख, पार्थ-भीम भी मौन
कृष्ण नहीं तो पीर सखा की न्यून करेगा कौन?
टल पाए विनाश, सज्जन ही सदा करें परवाह...
*
वेश भक्त का किंतु कुदृष्टि उमा पर रखे दशानन
दबे अँगूठे के नीचे तब स्तोत्र रचे मनभावन
सच जानें महेश लेकिन वे नहीं छोड़ते लीला
राम मिटाते मार, रहे फिर भी सिय-आँचल  गीला
सत को क्यों वनवास? असत वाग्मी क्यों गहे पनाह?...
*
कुसुम न काँटों से उलझे, तब देव-शीश पर चढ़ता
सलिल न पत्थर से लडता तब  बनकर पूजता
ढाँक हँसे घन श्याम, किन्तु राकेश न देता ध्यान
घट-बढ़कर भी बाँट चंद्रिका,  जग को दे वरदान
जो गहरे वे शांत, मिले कब किसको  मन की  थाह...
*
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रविवार, 27 अप्रैल 2014

chhand salila: kudanli chhand -sanjiv


छंद सलिला:
कुडंली छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणांत गुरु गुरु (यगण, मगण), यति ११-१०।

लक्षण छंद:

छंद रचें इक्कीस / कला ले कुडंली
दो गुरु से चरणान्त / छंद रचना भली
रखें ग्यारह-दस पर, यति- न चूकें आप
भाव बिम्ब कथ्य रस, लय रहे नित व्याप

उदाहरण:
१. राजनीति कोठरी, काजल की कारी
   हर युग हर काल में, आफत की मारी
   कहती परमार्थ पर, साधे सदा स्वार्थ
   घरवाली से अधिक, लगती है प्यारी

२. बोल-बोल थक गये, बातें बेमानी
    कोई सुनता नहीं, जनता है स्यानी
    नेता और जनता , नहले पर दहला
    बदले तेवर दिखा, देती दिल दहला
 
३. कली-कली चूमता, भँवरा हरजाई
    गली-गली घूमता, झूठा सौदाई
    बिसराये वायदे, साध-साध कायदे
    तोड़े सब कायदे, घर मिला ना घाट
          ******************************

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
।। हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल । 'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल ।।

chhand salila: bhanu chhand -sanjiv


छंद सलिला:भानु छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणांत गुरु लघु (तगण, जगण), यति ६-१५।

लक्षण छंद:

भानु धन्य / त्रैलोक को देकर उजास


हो सबसे / इक्किस नहीँ करता प्रयास


छै-पंद्रह / पर यति, गुरु-लघु से कर अन्त

छंद रचे / कवि मन मौन-शांत ज्यों संत

उदाहरण:
१. अनीतियाँ / देखकर सुलग उठा पलाश
   कुरीतियाँ / देखकर लड़ें न हों निराश
   धूप-छाँव / के मिलन का नाम ज़िन्दगी-
   साथ-साथ / हाथ-हाथ लो न हो हताश

२. हार नहीं / प्रियतम को मीत बढ़ पुकार
    खार नहीं / कली-फूल-प्रीत को पुकार
    शूल-धूल / धार-कूल भूल कर प्रयास
    डाल-डाल / पात-पात खोज ले हुलास
 
३. भानु भोर / उषा को पुलक रहा तलाश
    सिहर-सिहर / हुलस-हुलस मल रहा अबीर
    चाह बाँह / में समेट ख़्वाब लूँ तराश
    सुना रहा / कान में कवित लगा अबीर
      *********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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शनिवार, 26 अप्रैल 2014

chhand salila: plawangam chhand -sanjiv


​​ॐ
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल
'सलिल' संस्कृत सान  दे, पूरी बने कमाल

छंद सलिला:

प्लवंगम् छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणारंभ गुरु, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति ८-१३।

लक्षण छंद:

प्लवंगम् में  / रगण हो सदा अन्त में

आठ - तेरह न / भूलें यति हो अन्त में

आरम्भ करे / गुरु- लय न कभी छोड़िये

जीत लें सभी / मुश्किलें मुँह न मोड़िए

उदाहरण:
१. मुग्ध उषा का / सूरज करे सिंगार है
   भाल सिंदूरी / हुआ लाल अंगार है
   माँ वसुधा नभ / पिता-ह्रदय बलिहार है
   बंधु नाचता / पवन लुटाता प्यार है

२. राधा-राधा / जपते प्रति पल श्याम ज़ू
    सीता को उर / धरते प्रति पल राम ज़ू
    शंकरजी के / उर में उमा विराजतीं
    ब्रम्ह - शारदा / भव सागर से तारतीं
 
३. दादी -नानी / कथा-कहानी गुमे कहाँ?
    नाती-पोतों / बिन बूढ़ा मन रमें कहाँ?
    चंदा मामा / गुमा- शेष अब मून है
    चैट-ऐप में फँसा बाल-मन सून है
      *********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

chhand salila: chandrayan chhand -sanjiv

छंद सलिला:
चंद्रायण छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), ६ वीं से १० वीं मात्रा रगण, ८ वीं से ११ वीं मात्रा जगण, यति ११-१०।

लक्षण छंद:

मंजुतिलका छंद रचिए हों न भ्रांत
बीस मात्री हर चरण हो दिव्यकांत
जगण से चरणान्त कर रच 'सलिल' छंद
सत्य ही द्युतिमान होता है न मंद
लक्ष्य पाता विराट

उदाहरण:
१. अनवरत राम राम, भक्तजन बोलते
   जो जपें श्याम श्याम, प्राण-रस घोलते
   एक हैं राम-श्याम, मतिमान मानते
   भक्तगण मोह छोड़, कर्तव्य जानते

२. सत्य ही बोल यार!, झूठ मत बोलना 
    सोच ले मोह पाल, पाप मत ओढ़ना
    धर्म है त्याग राग, वासना जीतना 
    पालना द्वेष को न, क्रोध को छोड़ना
   
३. आपका वंश-नाम!, है न कुछ आपका
    मीत-प्रीत काम-धाम, था न कल आपका
    आप हैं अंश ईश, के इसे जान लें   
    ज़िंदगी देन देव, से मिली मान लें
   
      *********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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विश्व हिंदी विकास परिषद
समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१
पत्रांक:  १०५  / वे आ / दिल्ली / २०१४                                                                       जबलपुर दिनांक: २४-४-२०१४

प्रति:
नुख्या चुनाव आयुक्त
चुनाव आयोग
भारत सरकार दिल्ली।
विषय: हिंदी वेब साइट ।
मान्यवर,
            राष्ट्रीय चनाव आयोग की हिंदी वेब साइट के श्री गणेश हेतु आपको तथा सभी योगदानकर्ताओ को धन्यवाद । निस्संदेह  अंग्रेजी वेब साइट की तुलना में हिंदी वेब साइट  जानकारियां नगण्य हैं किन्तु 'वेल बिगिन इज  हाफ डन ' के अनुसार कुछ न होने से कुछ होना बेहतर है.
            सादर अनुरोध है कि:

१. संसदीय राजभाषा समिति के ८वें  प्रतिवेदन की अनुशंसा क्रमांक ४४ एवं ६६ के अनुसार भारत सरकार से सम्बंधित सभी उपक्रमों की वेब साइट पूरी तरह द्विभाषी होना अनिवार्य है किन्तु जानकारी विहीन साइट निरुपयोगी होगीं। अतः, आयोग की अंग्रेजी वेब साइट पर उपलब्ध जानकारी तत्काल हिंदी में  अनुवादित कर उपलब्ध करायी जाए.
२. आयोग द्वारा  विज्ञप्ति, प्रश्नोत्तरी, भर्ती सूचना आदि केवल अंग्रेजी भाषा में प्रसारित किया जाना राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा ३ (३) के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है. अतः,  आयोग द्वारा प्रसारित आदेशों / निर्देशों / समाचार विज्ञप्तियों का हिंदी अनुवाद साइट पर उपलब्ध कराया जाए तथा भविष्य में दोनों भाषाओं में एक साथ जरी हॉं.

३. राजभाषा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आयोग की बैठकों की कार्यवाही तथा   कार्यवृत्त (मिनट्स) हिंदी में होना आवश्यक है जिसका पालन अपेक्षित है.
४. आयोग की मुहरें (रबर स्टैम्प्स), लिफाफे (एनवलप), पत्र शीर्ष (लैटर हैड ) आदि द्विभाषी होना चाहिए।
५. आयोग जन सामान्य को  उत्तरदायित्व की अनुभूति करने के लिये लगातर जन शिक्षण हेतु प्रयासरत है किन्तु देशवासियों से संवाद के विदेशी भाषा को प्राथमिकता दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर के  अनुसार :

               ‘‘किसी भी सभ्य देश में विदेशी भाषा शिक्षा का माध्यम नहीं है । विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से विद्यार्थियों  का मन विकारग्रस्त हो जाता है और वे  अपने ही देश में स्वयं को विदेशी अनुभव करते हैं।’’         
                अतः , आयोग की विज्ञप्तियां, आदेश आदि हिंदी तथा प्रादेशिक / आंचलिक भाषाओँ / बोलिओं में  हों में हॉं यह आवश्यक है. हमें विश्वास है कि आपके कुशल नेतृत्व में आयोग प्रभावी कदम उठाएगा तथा अधोहस्ताक्षरकर्ता को सूचित किया जाएगा.  यदि हिंदी में अनुवाद य लेखन की कठिनाई हो तो सूचना मिलने पर अनेक हिंदी प्रेमी सहायता हेतु अपनी सेवाएँ सहर्ष देंगें।
                  जय भारत, जय भारती
शुभाकांक्षी                                                                      

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पत्रांक:  १०७  / चु आ / दिल्ली / २०१४                           जबलपुर दिनांक: २५-४-२०१४
प्रति-
       सुश्री नीता चौधरी 
       सचिवराजभाषा विभाग 
 
       श्रीमती नीलम कपूर
       प्रधान महानिदेशकपत्र सूचना कार्यालय 
 
       श्री वीएस संपत,
       मुख्य चुनाव आयुक्तभारत निर्वाचन आयोग 
       निर्वाचन सदनअशोक रोडनई दिल्ली -110001
 
       सुश्री मनीषा वर्मा 
       लोक शिकायत अधिकारीपत्र सूचना कार्यालय 
 
विषय: चुनाव आयोग की हिंदी वेबसाइट।
 
माननीय,
         वन्दे मातरम।
         निवेदन है कि:
1.    चुनाव आयोग द्वारा आम चुनाव पर केन्द्रित पोर्टल http://pib.nic.in/ elections2014/default.aspx राष्ट्रपति महोदय द्वारा दिनांक 02.07.2008 को जारी अनिवार्य आदेश के अनुरूप नहीं है जिसमें आदेशित है कि हर सरकारी निकाय अपनी वेबसाइट का शत-प्रतिशत द्विभाषी होना सुनिश्चित करे.देखें- (संसदीय राजभाषा समितिके ८वें  प्रतिवेदन की अनुशंसा क्रमांक ४४ एवं ६६ की सिफारिशों पर महामहिम राष्ट्रपति जी के आदेश). चुनाव आयोग का यह विशेष पोर्टल पूरी तरह से अंग्रेजी में है. 

2.    अनेक नागरिकों तथा संस्थाओं द्वारा लगातार अनुरोध किये जाने के बाद भी आयोग द्वारा हिंदी वेबसाइट के नाम पर केवल आवरण बनाया गया है. आयोग की अंग्रेजी वेबसाइट में बहुत सी जानकारी, दस्तावेज, प्रपत्र और मार्गदर्शन उपलब्ध है किन्तु हिंदी वेबसाइट मेन वही सामग्री नहीं है. भारत में हिंदी में लिखने व अनुवादकों का अकाल नहीं है. समझ के परे है कि चुनाव आयोग जैसा साधन सम्पन्न निकाय हिंदी वेबसाइट पर समस्त सामग्री क्यों नहीं उपलब्ध करा सका? 
 
३. आयोग द्वारा विज्ञप्ति, प्रश्नोत्तरी, भर्ती सूचना आदि केवल अंग्रेजी भाषा में प्रसारित किया जाना राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा ३ (३) के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है. अतः,  आयोग द्वारा प्रसारित आदेशों / निर्देशों / समाचार विज्ञप्तियों का हिंदी अनुवाद साइट पर तत्काल उपलब्ध कराया जाए तथा भविष्य में सभी सामग्री दोनों भाषाओं में एक साथ जारी हॉं.
३. राजभाषा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आयोग की बैठकों की कार्यवाही तथा   कार्यवृत्त (मिनट्स) हिंदी में होना आवश्यक है जिसका पालन अपेक्षित है.
४. आयोग की मुहरें (रबर स्टैम्प्स), लिफाफे (एनवलप), पत्र शीर्ष (लैटर हैड ) आदि द्विभाषी होना चाहिए।
५. आयोग जन सामान्य को  उत्तरदायित्व की अनुभूति करने के लिये लगातर जन शिक्षण हेतु प्रयासरत है किन्तु देशवासियों से संवाद के विदेशी भाषा को प्राथमिकता दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर के  अनुसार :

               ‘‘किसी भी सभ्य देश में विदेशी भाषा शिक्षा का माध्यम नहीं है । विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से विद्यार्थियों  का मन विकारग्रस्त हो जाता है और वे  अपने ही देश में स्वयं को विदेशी अनुभव करते हैं।’’         
                अतः , आयोग की विज्ञप्तियां, आदेश आदि हिंदी तथा प्रादेशिक / आंचलिक भाषाओँ / बोलिओं में  हों में हॉं यह आवश्यक है. हमें विश्वास है कि आयोग प्रभावी कदम उठाएगा तथा अधोहस्ताक्षरकर्ता को सूचित किया जाएगा.  यदि हिंदी में अनुवाद या लेखन की कठिनाई हो तो सूचना मिलने पर अनेक हिंदी प्रेमी सहायता हेतु अपनी सेवाएँ सहर्ष देंगें।
                   आपसे अनुरोध है कि राष्ट्रपति जी की गरिमा और पद का मान रखते हुए उक्त दोनों वेबसाइटों को अविलम्ब पूरी तरह द्विभाषी रूप में उपलब्ध करवाएं और उनके द्वारा जारी आदेशों का उल्लंघन रोकें
जय भारत, जय भारती
                                                                                                                                               शुभाकांक्षी
                                                                           
संदेश में फोटो देखें
​संजीव वर्मा ' सलिल'
अधिवक्ताउच्च न्यायालय मध्य प्रदेश http://divyanarmada.blogspot.in
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मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

CHHAND SALILA: Manjutilka chhand -sanjiv

छंद सलिला:
मंजुतिलका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत लघु गुरु लघु (जगण)।

लक्षण छंद:

मंजुतिलका छंद रचिए हों न भ्रांत
बीस मात्री हर चरण हो दिव्यकांत
जगण से चरणान्त कर रच 'सलिल' छंद
सत्य ही द्युतिमान होता है न मंद
लक्ष्य पाता विराट

उदाहरण:
१. कण-कण से विराट बनी है यह सृष्टि
   हरि की हर एक के प्रति है सम दृष्टि
   जो बोया सो काटो है सत्य धर्म
   जो लाए सो ले जाओ समझ मर्म
 
२. गरल पी है शांत, पार्वती संग कांत 
    अधर पर मुस्कान, सुनें कलरव गान
    शीश सोहे गंग, विनत हुए अनंग
    धन्य करें शशीश, विनत हैं जगदीश
    आम आये बौर, हुए हर्षित गौर
    फले कदली घौर, मिला शुभ को ठौर
    अमियधर को चूम, रहा विषधर झूम
    नर्मदा तट ठाँव, अमरकंटी छाँव
    उमाघाट प्रवास, गुप्त ईश्वर हास
    पूर्ण करते आस, न हो मंद प्रयास
   
      *********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

lekh: chitragupt rahasya sanjiv

लेख                                 :चित्रगुप्त रहस्य:                                                                                                     

                                                                  आचार्य संजीव 'सलिल'

*
चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं

              परात्पर परमब्रम्ह श्री चित्रगुप्त जी सकल सृष्टि के कर्मदेवता हैं, केवल कायस्थों के नहीं। उनके अतिरिक्त किसी अन्य कर्म देवता का उल्लेख किसी भी धर्म में नहीं है, न ही कोई धर्म उनके कर्म देव होने पर आपत्ति करता है। अतः, निस्संदेह उनकी सत्ता सकल सृष्टि के समस्त जड़-चेतनों तक है। पुराणकार कहता है:
Photo: JAI CHITRAGUPTA MAHARAJ KI

DHARMVEER KHARE''चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानाम सर्व देहिनाम.''
              अर्थात श्री चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं जो आत्मा के रूप में सर्व देहधारियों में स्थित हैं. आत्मा क्या है? सभी जानते और मानते हैं कि 'आत्मा सो परमात्मा' अर्थात परमात्मा का अंश ही आत्मा है। स्पष्ट है कि श्री चित्रगुप्त जी ही आत्मा के रूप में समस्त सृष्टि के कण-कण में विराजमान हैं। इसलिए वे सबके पूज्य हैं सिर्फ कायस्थों के नहीं।
चित्रगुप्त निर्गुण परमात्मा हैं
            
Photo: Ashutosh Shrivastava
|| चित्रगुप्त चालिसा ||

ब्रह्मा पुत्र नमामि नमामि, चित्रगुप्त अक्षर कुल स्वामी ||
अक्षरदायक ज्ञान विमलकर, न्यायतुलापति नीर-छीर धर ||
हे विश्रामहीन जनदेवता, जन्म-मृत्यु के अधिनेवता ||
हे अंकुश सभ्यता सृष्टि के, धर्म नीति संगरक्षक गति के ||
चले आपसे यह जग सुंदर, है नैयायिक दृष्टि समंदर || 
हे संदेश मित्र दर्शन के, हे आदर्श परिश्रम वन के ||
हे यममित्र पुराण प्रतिष्ठित, हे विधिदाता जन-जन पूजित ||
हे महानकर्मा मन मौनम, चिंतनशील अशांति प्रशमनम ||
हे प्रातः प्राची नव दर्शन, अरुणपूर्व रक्तिम आवर्तन ||
हे कायस्थ प्रथम हो परिघन, विष्णु हृद्‌य के रोमकुसुमघन ||
हे एकांग जनन श्रुति हंता, हे सर्वांग प्रभूत नियंता ||
ब्रह्म समाधि योगमाया से, तुम जन्मे पूरी काया से ||
लंबी भुजा साँवले रंग के, सुंदर और विचित्र अंग के ||
चक्राकृत गोला मुखमंडल, नेत्र कमलवत ग्रीवा शंखल ||
अति तेजस्वी स्थिर द्रष्टा, पृथ्वी पर सेवाफल स्रष्टा || 
तुम ही ब्रह्मा-विष्णु-रुद्र हो, ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शुद्र हो ||
चित्रित चारु सुवर्ण सिंहासन, बैठे किये सृष्टि पे शासन ||
कलम तथा करवाल हाथ मे, खड़िया स्याही लिए साथ में ||
कृत्याकृत्य विचारक जन हो, अर्पित भूषण और वसन हो ||
तीर्थ अनेक तोय अभिमंत्रित, दुर्वा-चंदन अर्घ्य सुगंधित ||
गम-गम कुमकुम रोली चंदन, हे कायस्थ सुगंधित अर्चन ||
पुष्प-प्रदीप धूप गुग्गुल से, जौ-तिल समिधा उत्तम कुल के ||
सेवा करूँ अनेको बरसो, तुम्हें चढाँऊ पीली सरसों ||
बुक्का हल्दी नागवल्लि दल, दूध-दहि-घृत मधु पुंगिफल ||
ऋतुफल केसर और मिठाई, कलमदान नूतन रोशनाई ||
जलपूरित नव कलश सजा कर, भेरि शंख मृदंग बजाकर ||
जो कोई प्रभु तुमको पूजे, उसकी जय-जय घर-घर गुंजे ||
तुमने श्रम संदेश दिया है, सेवा का सम्मान किया है ||
श्रम से हो सकते हम देवता, ये बतलाये हो श्रमदेवता ||
तुमको पूजे सब मिल जाये, यह जग स्वर्ग सदृश्य खिल जाए ||
निंदा और घमंड निझाये, उत्तम वृत्ति-फसल लहराये ||
हे यथार्थ आदर्श प्रयोगी, ज्ञान-कर्म के अद्‌भुत योगी ||
मुझको नाथ शरण मे लीजे, और पथिक सत्पथ का कीजे ||
चित्रगुप्त कर्मठता दिजे, मुझको वचन बध्दता दीजे ||
कुंठित मन अज्ञान सतावे, स्वाद और सुखभोग रुलावे ||
आलस में उत्थान रुका है, साहस का अभियान रुका है ||
मैं बैठा किस्मत पे रोऊ, जो पाया उसको भी खोऊ ||
शब्द-शब्द का अर्थ मांगते, भू पर स्वर्ग तदर्थ माँगते ||
आशीर्वाद आपका चाहू, मैं चरणो की सेवा चाहू ||
सौ-सौ अर्चन सौ-सौ पूजन, सौ-सौ वंदन और निवेदन || 
~Kayastha~सभी जानते हैं कि परमात्मा और उनका अंश आत्मा निराकार है। आकार के बिना चित्र नहीं बनाया जा सकता। चित्र न होने को चित्र गुप्त होना कहा जाना पूरी तरह सही है। आत्मा ही नहीं आत्मा का मूल परमात्मा भी मूलतः निराकार है इसलिए उन्हें 'चित्रगुप्त' कहा जाना स्वाभाविक है। निराकार परमात्मा अनादि (आरंभहीन) तथा (अंतहीन) तथा निर्गुण (राग, द्वेष आदि से परे) हैं। 

चित्रगुप्त पूर्ण हैं 
            अनादि-अनंत वही हो सकता है जो पूर्ण हो। अपूर्णता का लक्षण आरम्भ तथा अंत से युक्त होना है। पूर्ण वह है जिसका क्षय (ह्रास या घटाव) नहीं होता। पूर्ण में से पूर्ण को निकल देने पर भी पूर्ण ही शेष बचता है, पूर्ण में पूर्ण मिला देने पर भी पूर्ण ही रहता है। इसे 'ॐ' से व्यक्त किया जाता है। दूज पूजन के समय कोरे कागज़ पर चन्दन, केसर, हल्दी, रोली तथा जल से ॐ लिखकर अक्षत (जिसका क्षय न हुआ हो आम भाषा में साबित चांवल)से चित्रगुप्त जी पूजन कायस्थ जन करते हैं।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते 
*
पूर्ण है यह, पूर्ण है वह, पूर्ण कण-कण सृष्टि सब
पूर्ण में पूर्ण को यदि दें निकाल, पूर्ण तब भी शेष रहता है सदा।

चित्रगुप्त निर्गुण तथा सगुण दोनों हैं  
  
                                                                 
         चित्रगुप्त निराकार-निर्गुण ही नहीं साकार-सगुण भी है। वे अजर, अमर, अक्षय, अनादि तथा अनंत हैं। परमेश्वर के इस स्वरूप की अनुभूति सिद्ध ही कर सकते हैं इसलिए सामान्य मनुष्यों के लिये वे साकार-सगुण रूप में प्रगट हुए वर्णित किये गए हैं। सकल सृष्टि का मूल होने के कारन उनके माता-पिता नहीं हो सकते। इसलिए उन्हें ब्रम्हा की काया से ध्यान पश्चात उत्पन्न बताया गया है. आरम्भ में वैदिक काल में ईश्वर को निराकार और निर्गुण मानकर उनकी उपस्थिति हवा, अग्नि (सूर्य), धरती, आकाश तथा पानी में अनुभूत की गयी क्योंकि इनके बिना जीवन संभव नहीं है। इन पञ्च तत्वों को जीवन का उद्गम और अंत कहा गया। काया की उत्पत्ति पञ्चतत्वों से होना और मृत्यु पश्चात् आत्मा का परमात्मा में तथा काया का पञ्च तत्वों में विलीन होने का सत्य सभी मानते हैं।

अनिल अनल भू नभ सलिल, पञ्च तत्वमय देह.
परमात्मा का अंश है, आत्मा निस्संदेह।।
*
परमब्रम्ह के अंश कर, कर्म भोग परिणाम 
जा मिलते परमात्म से, अगर कर्म निष्काम।।

कर्म ही वर्ण का आधार 


           श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण कहते हैं: 'चातुर्वर्ण्यमयासृष्टं गुणकर्म विभागशः' अर्थात गुण-कर्मों के अनुसार चारों वर्ण मेरे द्वारा ही बनाये गये हैं। स्पष्ट है कि वर्ण जन्म पर आधारित नहीं हो था। वह कर्म पर आधारित था। कर्म जन्म के बाद ही किया जा सकता है, पहले नहीं। अतः, किसी जातक या व्यक्ति में  बुद्धि, शक्ति, व्यवसाय या सेवा वृत्ति की प्रधानता तथा योग्यता के आधार पर ही उसे क्रमशः ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र वर्ग में रखा जा सकता था। एक पिता की चार संतानें चार वर्णों में हो सकती थीं। मूलतः कोई वर्ण किसी अन्य वर्ण से  हीन या अछूत नहीं था। सभी वर्ण समान सम्मान, अवसरों तथा रोटी-बेटी सम्बन्ध के लिये मान्य थे। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक अथवा शैक्षणिक स्तर पर कोई भेदभाव मान्य नहीं था। कालांतर में यह स्थिति पूरी तरह बदल कर वर्ण को जन्म पर आधारित मान लिया गया।

चित्रगुप्त पूजन क्यों और कैसे? 


           श्री चित्रगुप्त का पूजन कायस्थों में प्रतिदिन प्रातः-संध्या में तथा विशेषकर यम द्वितीया को किया जाता है। कायस्थ उदार प्रवृत्ति के सनातन (जो सदा था, है और रहेगा) धर्मी हैं। उनकी विशेषता सत्य की खोज करना है इसलिए सत्य की तलाश में वे हर धर्म और पंथ में मिल जाते हैं। कायस्थ यह जानता और मानता है कि परमात्मा निराकार-निर्गुण है इसलिए उसका कोई चित्र या मूर्ति नहीं है, उसका चित्र गुप्त है। वह हर चित्त में गुप्त है अर्थात हर देहधारी में उसका अंश होने पर भी वह अदृश्य है। जिस तरह खाने की थाली में पानी न होने पर भी हर खाद्यान्न में पानी होता है उसी तरह समस्त देहधारियों में चित्रगुप्त अपने अंश आत्मा रूप में विराजमान होते हैं। चित्रगुप्त ही सकल सृष्टि के मूल तथा निर्माणकर्ता हैं। सृष्टि में ब्रम्हांड के निर्माण, पालन तथा विनाश हेतु उनके अंश ब्रम्हा-महासरस्वती, विष्णु-महालक्ष्मी तथा शिव-महाशक्ति के रूप में सक्रिय होते हैं। सर्वाधिक चेतन जीव मनुष्य की आत्मा परमात्मा का ही अंश है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य परम सत्य परमात्मा की प्राप्ति कर उसमें विलीन हो जाना है। अपनी इस चितन धारा के अनुरूप ही कायस्थजन यम द्वितीय पर चित्रगुप्त पूजन करते हैं।

सृष्टि निर्माण और विकास का रहस्य:
        
 

               आध्यात्म के अनुसार सृष्टिकर्ता की उपस्थिति अनहद नाद से जानी जाती है। यह अनहद नाद सिद्ध योगियों के कानों में प्रति पल भँवरे की गुनगुन की तरह गूँजता हुआ कहा जाता है। इसे 'ॐ' से अभिव्यक्त किया जाता है। विज्ञान सम्मत बिग बैंग थ्योरी के अनुसार ब्रम्हांड का निर्माण एक विशाल विस्फोट से हुआ जिसका मूल यही अनहद नाद है। इससे उत्पन्न ध्वनि तरंगें संघनित होकर कण (बोसान पार्टिकल) तथा क्रमश: शेष ब्रम्हांड बना। यम द्वितीया पर कायस्थ एक कोरा सफ़ेद कागज़ लेकर उस पर चन्दन, हल्दी, रोली, केसर के तरल 'ॐ' अंकित करते हैं। यह अंतरिक्ष में परमात्मा चित्रगुप्त की उपस्थिति दर्शाता है। 'ॐ' परमात्मा का निराकार रूप है। निराकार के साकार होने की क्रिया को इंगित करने के लिये 'ॐ' को सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ काया मानव का रूप देने के लिये  उसमें हाथ, पैर, नेत्र आदि बनाये जाते हैं। तत्पश्चात ज्ञान की प्रतीक शिखा मस्तक से जोड़ी जाती है। शिखा का मुक्त छोर ऊर्ध्वमुखी (ऊपर की ओर उठा) रखा जाता है जिसका आशय यह है कि हमें ज्ञान प्राप्त कर परमात्मा में विलीन (मुक्त) होना है।

बहुदेववाद की परंपरा

          इसके नीचे श्री के साथ देवी-देवताओं के नाम लिखे जाते हैं, फिर दो पंक्तियों में 9 अंक इस प्रकार लिखे जाते हैं कि उनका योग 9 बार 9 आये। परिवार के सभी सदस्य अपने हस्ताक्षर करते हैं और इस कागज़ के साथ कलम रखकर उसका पूजन कर दण्डवत प्रणाम करते हैं। पूजन के पश्चात् उस दिन कलम नहीं उठायी जाती। इस पूजन विधि का अर्थ समझें। 
         प्रथम चरण में निराकार निर्गुण परमब्रम्ह चित्रगुप्त के साकार होकर सृष्टि निर्माण करने के सत्य को अभिव्यक्त करने के पश्चात् दूसरे चरण में निराकार प्रभु द्वारा सृष्टि के कल्याण के लिये विविध देवी-देवताओं का रूप धारण कर जीव मात्र का ज्ञान के माध्यम से कल्याण करने के प्रति आभार, विविध देवी-देवताओं के नाम लिखकर व्यक्त किया जाता है। ये देवी शक्तियां ज्ञान के विविध शाखाओं के प्रमुख हैं. ज्ञान का शुद्धतम रूप गणित है। सृष्टि में जन्म-मरण के आवागमन का परिणाम मुक्ति के रूप में मिले तो और क्या चाहिए? यह भाव पहले देवी-देवताओं के नाम लिखकर फिर दो पंक्तियों में आठ-आठ अंक इस प्रकार लिखकर अभिव्यक्त किया जाता है कि योगफल नौ बार नौ आये व्यक्त किया जाता है।

पूर्णता प्राप्ति का उद्देश्य 

        निर्गुण निराकार प्रभु चित्रगुप्त द्वारा अनहद नाद से साकार सृष्टि के निर्माण, पालन तथा नाश हेतु देव-देवी त्रयी तथा ज्ञान प्रदाय हेतु अन्य देवियों-देवताओं की उत्पत्ति, ज्ञान प्राप्त कर पूर्णता पाने की कामना तथा मुक्त होकर पुनः परमात्मा में विलीन होने का समुच गूढ़ जीवन दर्शन यम द्वितीया को परम्परगत रूप से किये जाते चित्रगुप्त पूजन में अन्तर्निहित है। इससे बड़ा सत्य कलम व्यक्त नहीं कर सकती तथा इस सत्य की अभिव्यक्ति कर कलम भी पूज्य हो जाती है इसलिए कलम को देव के समीप रखकर उसकी पूजा की जाती है। इस गूढ़ धार्मिक तथा वैज्ञानिक रहस्य को जानने तथा मानने के प्रमाण स्वरूप परिवार के सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे-बच्चियाँ अपने हस्ताक्षर करते हैं, जो बच्चे लिख नहीं पाते उनके अंगूठे का निशान लगाया जाता है। उस दिन कोई सांसारिक कार्य (व्यवसायिक, मैथुन आदि) न कर आध्यात्मिक चिंतन में लीन रहने की परम्परा है।
          'ॐ' की ही अभिव्यक्ति अल्लाह और ईसा में भी होती है। सिख पंथ इसी 'ॐ' की रक्षा हेतु स्थापित किया गया। 'ॐ' की अग्नि आर्य समाज और पारसियों द्वारा पूजित है। सूर्य पूजन का विधान 'ॐ' की ऊर्जा से ही प्रचलित हुआ है।

उदारता तथा समरसता की विरासत
          यम द्वितीया पर चित्रगुप्त पूजन की आध्यात्मिक-वैज्ञानिक पूजन विधि ने कायस्थों को एक अभिनव संस्कृति से संपन्न किया है। सभी देवताओं की उत्पत्ति चित्रगुप्त जी से होने का सत्य ज्ञात होने के कारण कायस्थ किसी धर्म, पंथ या सम्प्रदाय से द्वेष नहीं करते। वे सभी देवताओं, महापुरुषों के प्रति आदर भाव रखते हैं। वे धार्मिक कर्म कांड पर ज्ञान प्राप्ति को वरीयता देते हैं। इसलिए उन्हें औरों से अधिक बुद्धिमान कहा गया है. चित्रगुप्त जी के कर्म विधान के प्रति विश्वास के कारण कायस्थ अपने देश, समाज और कर्त्तव्य के प्रति समर्पित होते हैं। मानव सभ्यता में कायस्थों का योगदान अप्रतिम है। कायस्थ ब्रम्ह के निर्गुण-सगुण दोनों रूपों की उपासना करते हैं। कायस्थ परिवारों में शैव, वैष्णव, गाणपत्य, शाक्त, राम, कृष्ण, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा आदि देवी-देवताओं के साथ समाज सुधारकों दयानंद सरस्वती, आचार्य श्री राम शर्मा, सत्य साल बाबा, माचार्य महेश योगी आदि का पूजन-अनुकरण किया जाता है।  कायस्थ मानवता, विश्व तथा देश कल्याण के हर कार्य में योगदान करते मिलते हैं. 
_____________________________
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chhand salila: visheshika chhand - sanjiv

छंद सलिला:
विशेषिका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत तीन लघु लघु  गुरु (सगण)।

लक्षण छंद:

'विशेषिका' कलाएँ बीस संग रहे 
विशेष भावनाएँ कह दे बिन कहे
कमल ज्यों नर्मदा में हँस भ्रमण करे
'सलिल' चरण के अंत में सगण रहे

उदाहरण:
१. नेता जी! सीखो जनसेवा, सुधरो
   रिश्वत लेना छोडो अब तो ससुरों!
   जनगण ने देखे मत तोड़ो सपने
   मानो कानून सभी मानक अपने
 
२. कान्हा रणछोड़ न जा बज मुरलिया
    राधा का काँप रहा धड़कता जिया
    निष्ठुर शुक मैना को छोड़ उड़ रहा
    यमुना की लहरों का रंग उड़ रहा
    नीलाम्बर मौन है, कदम्ब सिसकता
    पीताम्बर अनकहनी कहे ठिठकता
    समय महाबली नाच नचा हँस रहा
    नटवर हो विवश काल-जाल फँस रहा
   
 ३. बंदर मामा पहन पजामा सजते
     मामी जी पर रोब ज़माने लगते
     चूहा देखा उठकर भागे घबरा
     मामी मन ही मन मुस्काईं इतरा
   
      *********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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सोमवार, 21 अप्रैल 2014

chhand salila: deepkee chhand -sanjiv

छंद सलिला:
दीपकी छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत तीन लघु या गुरु लघु (जगण , तगण, नगण)।

लक्षण छंद:
'दीपकी' प्रकाश ने जब दिया उजास 
तब प्रकाश ने दिया सृष्टि को हुलास
मनुज ने 'जतन' किया हँसे धरा-गगन
बीसियों से छंद रच फिर रहो मगन

उदाहरण:
१. खतों-किताबत अब नहीं करते आप
   मुहब्बत की कहो किस तरह हो माप?
   वह कैसे आएगा वतन के काम?
   जिससे खिदमत ना पा सके माँ-बाप
 
२. गीत जब भी लिखो रस कलश की तरह
    मीत जब भी चुनो नीम रस की तरह
    रोककर-टोंककर कर सके जो जिरह
    हाथ छोड़े नहीं ज्यों बँधी हो गिरह

 ३. हार हिम्मत नहीं कर निरंतर जतन 
     है हमारा सँवारें सभी मिल वतन
     धूल में फूल हो शूल को दूरकर-
     एक हों नेक हों भेद सब भूलकर
   
      *********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

chhand salila: hemant chhand -sanjiv



छंद सलिला:

हेमंत छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति बंधन नहीं।

लक्षण छंद:
बीस-बीस दिनों सूर्य दिख नहीं रहा
बदन कँपे गुरु लघु गुरु दिख नहीं रहा
यति भाये गति मन को लग रही सजा
ओढ़ ली रजाई तो आ गया मजा

उदाहरण:
१. रंग से रँग रही झूमकर होलिका
   छिप रही गुटककर भांग की गोलिका
   आयी ऐसी हँसी रुकती ही नहीं
   कौन कैसे कहे क्या गलत, क्या सही?
 
२. देख ऋतुराज को आम बौरा गया
    रूठ गौरा गयीं काल बौरा गया
    काम निष्काम का काम कैसे करे?
    प्रीत को यादकर भीत दौरा गया

 ३.नाद अनहद हुआ, घोर रव था भरा
    ध्वनि तरंगों से बना कण था खरा
    कण से कण मिल नये कण बन छा गये
    भार-द्रव्यमान पा नव कथा गा गये
    सृष्टि रचना हुई, काल-दिशाएँ बनीं
    एक डमरू बजा, एक बाँसुरी बजी
    नभ-धरा मध्य थी वायु सनसनाती
    सूर्य-चंदा सजे, चाँदनी लुभाती
      *********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
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रविवार, 20 अप्रैल 2014

chhand salila: arun chhand -sanjiv

छंद सलिला:
अरुण छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति ५-५-१०


लक्षण छंद:
शिशु अरुण को नमन कर ;सलिल; सर्वदा 
मत रगड़ एड़ियाँ मंज़िलें पा सदा 
कर्म कर, ज्ञान वर, मन व्रती पारखी   
एक दो एक पग अंत में हो सखी 
 
उदाहरण:
१. प्रेयसी! लाल हैं उषा से गाल क्यों
   मुझ अरुण को कहो क्यों रही टाल हो?
   नत नयन, मृदु बयन हर रहे चित्त को-
   बँधो भुज पाश में कहो क्या हाल हो?
  
२. आप को आप ने आप ही दी सदा
    आप ने आप के भाग्य में क्या लिखा"
    व्योम में मोम हो सोम ढल क्यों गया?
    पाप या शाप चुक, कल उगे हो नया 
 
 ३. लाल को गोपियाँ टोंकती ही रहीं 
    'बस करो' माँ उन्हें रोकती ही रहीं 
    ग्वाल थे छिप खड़े, ताक में थे अड़े
    प्रीत नवनीत से भाग भी थे बड़े 
    घर गयीं गोपियाँ आ गयीं टोलियाँ 
    जुट गयीं हट गयीं लूटकर मटकियाँ
    
      *********************************************

(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)
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chhand salila: - sanjiv


छंद सलिला:
शास्त्र छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु (तगण, जगण)


लक्षण छंद:
पढ़ो उठकर शास्त्र समझ-गुन कर याद 
रचो सुमधुर छंद याद रख मर्याद
कला बीसी रखें हर चरण पर्यन्त
हर चरण में कन्त रहे गुरु लघु अंत
उदाहरण:
१. शेष जब तक श्वास नहीं तजना आस
   लक्ष्य लाये पास लगातार प्रयास 
   शूल हो या फूल पड़े सब पर धूल
   सम न हो समय प्रतिकूल या अनुकूल
  
२. किया है सच सचाई को ही प्रणाम
    हुआ है सच भलाई  का ही सुनाम
    रहा है समय का ईश्वर भी गुलाम   
    हुआ बदनाम फिर भी मिला है नाम 

३. निर्भय होकर वन्देमातरम बोल 
    जियो ना पीटो लोकतंत्र का ढोल
    कर मतदान, ना करना रे मत-दान
    करो पराजित दल- नेता बेइमान
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विशेष टिप्पणी : 
हिंदी के 'शास्त्र' छंद से उर्दू के छंद 'बहरे-हज़ज़' (मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन) की मुफ़र्रद बह्र 'मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईल' की समानता देखिये. 
उदाहरण: 
१. हुए जिसके लिए बर्बाद अफ़सोस 
   वो करता भी नहीं अब याद अफ़सोस
२. फलक हर रोज लाता है नया रूप 
    बदलता है ये क्या-क्या बहुरूपिया रूप
३. उन्हें खुद अपनी यकताई पे है नाज़
    ये हुस्ने-ज़न है सूरत-आफ़रीं से
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)
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शनिवार, 19 अप्रैल 2014

chhand salila: yog chhand -sanjiv

छंद सलिला:
योग छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, यति १२ - ८, चरणांत लघु गुरु गुरु (यगण).


लक्षण छंद:
योग छोड़ और कहाँ, राह मिलेगी?
यति बारह-आठ रखो, वाह मिलेगी 
लघु गुरु गुरु अंत रहे, छाँह मिलेगी
टेर देव को समीप, बांह मिलेगी

उदाहरण:
१. हम सब हैं एक भेद-भाव तजो रे
   धूप-छाँव भूल राम-नाम भजो रे
   फूल-शूल जो भी हो, प्रसाद गहो रे
   निर्मल जल धार सदृश, शांत बहो रे 
  
२. भारत सी पुण्य भूमि और नहीं है
    धरती पर स्वर्ग कहीं खोज- यहीं है
    तरसें भगवान जन्म हिन्द में मिले 
    गीता सा ग्रन्थ बोल और कहीं है?

३. लेकर क्या आये थे? सोच बताओ 
    लेकर क्या जाओगे? जोड़-घटाओ
    जोड़ो या छोडो कुछ शेष न होगा
    रिश्वत ले पाप व्यर्थ अब न कमाओ 
 
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसगति, हंसी)
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deewar hi deewar

विषय एक पहलू अनेक : 

दीवार ही दीवार 

*

एक विषय पर विविध रचनाकारों की काव्य पंक्तियों को प्रस्तुत करने का उद्देश्य उस विषय के विविध पहलुओं को जानने के साथ-साथ बात को कहने के तरीके और सलीके को समझना भी है. आप भी इस विषय पर अपनी बात कहें और इसे अधिक समृद्ध बनायें। सामान्यतः उर्दू में दो पंक्तियों में बात कहने की सशक्त परंपरा है।क्या हिंदी कवि खुद को इस कसौटी पर कसेंगे? (आभार नवीन चतुर्वेदी, साहित्यं)

हवा आयेगी आग पहने हुए
समा जायेगी घर की दीवार में – स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’
*
पता तो चले कम से कम दिन तो है
झरोखा ये रहने दो दीवार में – याक़ूब आज़म
*
न परदा ही सरका, न खिड़की खुली
ठनी थी गली और दीवार में – गौतम राजरिशी
*
पहाड़ों में खोजूँगा झरना कोई
मैं खिड़की तलाशूँगा दीवार में – सौरभ शेखर
*
पसे-दर मकां में सभी अंधे हैं
दरीचे हज़ारों हैं दीवार में – खुर्शीद खैराड़ी
पसेदर – दरवाज़े के पीछे, दरीचा – खिड़की
*
हवा, रौशनी, धूप आने लगें
खुले इक दरीचा जो दीवार में – अदील जाफ़री
*
हरिक संग शीशे सा है इन दिनों
नज़र आता है मुँह भी दीवार में – मयंक अवस्थी
संग – पत्थर
*
फिर इक रोज़ दिल का खँडर ढह गया
नमी थी लगातार दीवार में – नवनीत शर्मा
*
नदी सर पटकती रही बाँध पर
नहीं राह मिल पाई दीवार में – दिनेश नायडू
*
खुला भेद पहली ही बौछार में
कई दर निकल आये दीवार में – इरशाद ख़ान सिकन्दर
*
उदासी भी उसने वहीं पर रखी
ख़ुशी का जो आला था दीवार में – शबाब मेरठी
*
ये छत को सहारा न दे पायेगी
अगर इतने दर होंगे दीवार में – आदिक भारती
*
फ़क़त एक दस्तक ही बारिश ने दी
दरारें उभर आईं दीवार में – विकास शर्मा ‘राज़’
*
कोई मौज बेचैन है उस तरफ़
लगाये कोई नक़्ब दीवार में – पवन कुमार
मौज – लहर, नक़्ब – सेंध
*
मुहब्बत को चुनवा के दीवार में
कहां ख़ुश था अकबर भी दरबार में – शफ़ीक़ रायपुरी
*
फिराती रही वहशते-दिल मुझे
न दर में रहा और न दीवार में – असलम इलाहाबादी
*
दबाया था आहों को मैंने बहुत
दरार आ गयी दिल की दीवार में – तुफ़ैल चतुर्वेदी
*
दरीचों से बोली गुज़रती हवा
कोई दर भी होता था दीवार में – आदिल रज़ा मंसूरी
*
मिरे इश्क़ का घर बना जब, जुड़ी
तिरे नाम की ईंट दीवार में – प्रकाश सिंह अर्श
*
दरो-दीवार पर हसरत की नज़र करते हैं 
खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं. -संकलित 
*
सारे शहर में दिख रहीं दीवार ही दीवार 
बंद खिड़कियां हुईं हैं, बंद है हर द्वार 
कैसे रहेगा खुश कोई यह तो बताइये 
दीवार से कैसे करे इसरार या तकरार -संजीव
*