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रविवार, 24 जुलाई 2016

doha-yamak 3

दोहा सलिला  
गले मिले दोहा-यमक 
*
गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम
 नहीं अधर में अधर धर, वेणु बजाते श्याम 
*
कृष्ण वेणु के स्वर सुने, गोप सराहें भाग 
सुन न सके वे जो रहे, श्री के पीछे भाग 
*
हल धर कर हलधर चले, हलधर कर थे रिक्त 
चषक थाम कर अधर पर, हुए अधर द्वय सिक्त 
*
 बरस-बरस घन बरस कर, करें धरा को तृप्त 
गगन मगन बादल नचे, पर नर रहा अतृप्त 
*
असुर न सुर को समझते, अ-सुर न सुर के मीत 
ससुर-सुता को स-सुर लख, बढ़ा रहे सुर प्रीत 
*
पग तल पर रख दो बढें, उनके पग तल लक्ष्य
हिम्मत यदि हारे नहीं, सुलभ लगे दुर्लक्ष्य
*  
ताल तरंगें पवन संग, लेतीं पुलक हिलोर 
पत्ते देते ताल सुन, ऊषा भाव-विभोर 
*
दिल कर रहा न संग दिल, जो वह है संगदिल 
दिल का बिल देता नहीं, नाकाबिल बेदिल 
*
हसीं लबों का तिल लगे, कितना कातिल यार 
बरबस परबस  दिल हुआ, लगा लुटाने प्यार 
*
दिलवर दिल वर झूमता, लिए दिलरुबा हाथ 
हर दिल हर दिल में बसा, वह अनाथ का नाथ 
*
रीझा हर-सिंगार पर, पुष्पित हरसिंगार 
आया हरसिंगार हँस,  बनने हर-सिंगार
*

रविवार, 17 जुलाई 2016

janak chhand

जनक छन्द सलिला 
*
श्याम नाम जपिए 'सलिल'
काम करें निष्काम ही 
मत कहिये किस्मत बदा 
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आराधा प्रति पल सतत
जब राधा ने श्याम को
बही भक्ति धारा प्रबल
*
श्याम-शरण पाता वही
जो भजता श्री राम भी
दोनों हरि-अवतार हैं
*
श्याम न भजते पहनते
नित्य श्याम परिधान ही
उनके मन भी श्याम हैं
*
काला कोट बदल करें
श्वेत, श्याम परिधान को
न्याय तभी जन को मिले
*
शपथ उठाते पर नहीं
रखते गीता याद वे
मिथ्या साक्षी जो बने
*
आँख बाँध तौले वज़न
तब देता है न्याय जो
न्यायालय कैसे कहें?
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(तेरह मात्रिक भागवत जातीय जनक छंद, पदांत बंधन नहीं)