मुक्तक:
फसल हो मोगरा चंपा चमेली जुही केसर की 
फसल रौंदे न कोई उठी हो तलवार नाहर की 
अहिंसा-शांति का आशय न कायरता हुआ करता 
चढ़ा सर शत्रु के कदमों पे भारत माँ की प्रेयर की 
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फसल हो समझदारी, भाईचारे, स्नेह, साहस की 
फसल हो गौतमी परित्याग, सुजाता के पायस की 
फसल हो स्वच्छता, मेहनत, नए निर्माण की निश-दिन
फसल संघर्ष की अरि दल को भूनें गोलियाँ अनगिन 
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