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सोमवार, 12 जुलाई 2021

समस्या पूर्ति

समस्या पूर्ति चरण-तब लगती है चोट
*
तब लगती है चोट जब, दुनिया करे सवाल.
अपनी करनी जाँच लें, तो क्यों मचे बवाल.
*
खुले आम बेपर्द जब, तब लगती है चोट.
हैं हमाम में नग्न सब, फिर भी रखते ओट.
*
लाख गिला-शिकवा करें, सह लेते हम देर.
तब लगती है चोट, जब होता है अंधेर.
*
होती जब निज आचरण, में न तनिक भी खोट.
दोषी करें सवाल जब, तब लगती है चोट.
*
१२-७-२०१८ 

सोमवार, 31 मई 2021

दोहा सलिला, समस्या पूर्ति

दोहा सलिला
दुनिया में नित घूमिए, पाएँ-देकर मान।
घर में घर जैसे रहें, क्यों न आप श्रीमान।।
*
प्राध्यापक से क्यों कहें, 'खोज लाइए छात्र'।
शिक्षास्तर तब उठे जब, कहें: 'पढ़ाओ मात्र।।
*
जो अपूर्व वह पूर्व से, उदित हो रहा नित्य।
पल-पल मिटाता जा रहा, फिर भी रहे अनित्य।।
*
गौरव गरिमा सुशोभित, हो विद्या का गेह।
ज्ञान नर्मदा प्रवाहित, रहे लहर हो नेह।।
*
करे पूँछ से साफ़ भू, तब ही बैठे श्वान।
करे गंदगी धरा पर, क्यों बोले इंसान।।
*
समस्या पूर्ति:
मुझे नहीं स्वीकार -प्रथम चरण
*
मुझे नहीं स्वीकार है, मीत! प्रीत का मोल.
लाख अकिंचन तन मगर, मन मेरा अनमोल.
*
मुझे नहीं स्वीकार है, जुमलों का व्यापार.
अच्छे दिन आए नहीं, बुरे मिले सरकार.
*
मुझे नहीं स्वीकार -द्वितीय चरण
*
प्रीत पराई पालना, मुझे नहीं स्वीकार.
लगन लगे उस एक से, जो न दिखे साकार.
*
ध्यान गैर का क्यों करूँ?, मुझे नहीं स्वीकार.
अपने मन में डूब लूँ, हो तेरा दीदार.
*
मुझे नहीं स्वीकार -तृतीय चरण
*
माँ सी मौसी हो नहीं, रखिए इसका ध्यान.
मुझे नहीं स्वीकार है, हिंदी का अपमान.
*
बहू-सुता सी हो सदा, सुत सा कब दामाद?
मुझे नहीं स्वीकार पर, अंतर है आबाद.
*
मुझे नहीं स्वीकार -चतुर्थ चरण
*
अन्य करे तो सर झुका, मानूँ मैं आभार.
अपने मुँह निज प्रशंसा, मुझे नहीं स्वीकार.
*
नहीं सिया-सत सी रही, आज सियासत यार!.
स्वर्ण मृगों को पूजना, मुझे नहीं स्वीकार.
***
३१.५.२०१८, ७९९९५५९६१८

रविवार, 24 मार्च 2019

समस्या पूर्ति

समस्या पूर्ति

cover photo, चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, फूल

उक्त चित्र पर गद्य या पद्य में कुछ लिखें।
शब्द सीमा २५० शब्द 

बुधवार, 29 नवंबर 2017

samasyapurti: naak

समस्या पूर्ति: 
नाक   
*
नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है 
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है 
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ राह निकालें
नाक नकेल भी डाल सखे हो, न कटे जंजाल तो बाँह चढ़ा लें

*

बुधवार, 8 नवंबर 2017

samasya purti karya shala

समस्या पूर्ति कार्यशाला- ७-११-१७ 
आज का विषय- पथ का चुनाव 
अपनी प्रस्तुति टिप्पणी में दें।
किसी भी विधा में रचना प्रस्तुत कर सकते हैं। 
रचना की विधा तथा रचना नियमों का उल्लेख करें। 
समुचित प्रतिक्रिया शालीनता तथा सन्दर्भ सहित दें।
रचना पर प्राप्त सम्मतियों को सहिष्णुता तथा समादर सहित लें।
किसी अन्य की रचना हो तो रचनाकार का नाम, तथा अन्य संदर्भ दें।
*
हाइकु
सहज नहीं
है 'पथ का चुनाव'
​विकल्प कई.
(जापानी त्रिपदिक वार्णिक छंद, ध्वनि ५-७-५)
*
जनक छंद
*
झेल हर संकट-अभाव
करें कोशिश से निभाव
कीजिए पथ का चुनाव
*
मुक्तक
पथ का चुनाव आप करें देख-भालकर
सारे अभाव मौन सहें, लोभ टालकर
​पालें लगाव तो न तजें, शूल देखकर
भुलाइये 'सलिल' को न संबंध पालकर ​
​(२२ मात्रिक चतुष्पदिक मुक्तक छंद, पंक्त्यांत रगण नगण)
*
प्रेरणा गुप्ता, कानपुर

दिव्य दृष्टि से
ही पथ का चुनाव
करना राही।

सदा सहज
है पथ का चुनाव
मन चेते तो।

सही दिशा में
पथ का चुनाव तू
करते जाना।

याद रखना
पथ का चुनाव हो
सत्य की यात्रा।

पीड़ा में डूबों
को पथ का चुनाव
करना सिखा।

रखना ध्यान
पथ का चुनाव हो
सत्य अहिंसा।

सच्चे राही ही
तो पथ का चुनाव
करते सही।
*
कल्पना भट्ट, भोपाल
पथ का चुनाव आप करें देख भालकर
क्यों चलें इधर उधर सब कुछ जानकार
रखें कदम हर पथ पर सम्भल सम्भलकर
मिल ही जायेगी मन्ज़िल किसी पथ पर ।
*
साधना वैद,
धूप छाँह शूल फूल सब हमें क़ुबूल हैं
पंथ की कठिनाइयों को सोचना भी भूल है
लक्ष्य हो अभीष्ट और सही हो पथ का चुनाव
फिर किसी आपद विपद की धारणा निर्मूल है !
***

salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५९६१८
www.divyanarmada.in,#हिंदी_ब्लॉगर

बुधवार, 13 सितंबर 2017

samasya purti

समस्या पूर्ति
किसी अधर पर नहीं
आप भी अपनी प्रविष्टियाँ प्रस्तुत करें-
*
किसी अधर पर नहीं शिवा-शिव की महिमा है
हरिश्चन्द्र की शेष न किंचित भी गरिमा है
विश्वनाथ सुनते अजान नित मन को मारे
सीढ़ी, सांड़, रांड़ काशी में, नहीं क्षमा है
*
किसी अधर पर नहीं शेष है राम नाम अब
राजनीति हैं खूब, नहीं मन में प्रणाम अब
अवध सत्य का वध कर सीता को भेजे वन
जान न पाया नेताजी को, हैं अनाम अब
*
किसी अधर पर नहीं मिले मुस्कान सुहानी
किसी डगर पर नहीं किशन या राधा रानी
नन्द-यशोदा, विदुर-सुदामा कहीं न मिलते
कंस हर जगह मुश्किल उनसे जान बचानी
*
किसी अधर पर नहीं प्रशंसा शेष किसी की
इसकी, उसकी निंदा ही हो रही न किसकी
दलदल मचा रहे हैं दल, संसद में जब-तब
हुआ उपेक्षित जनगण सुनता कोई न सिसकी
*
किसी अधर पर नहीं सोहती हिंदी भाषा
गलत बोलते अंग्रेजी, खुद बने तमाशा
माँ को भूले, चरण छापते है बीबी के-
जिनके सर पर है उधार उनसे क्या आशा?
*
किसी अधर पर नहीं परिश्रम-प्रति लगाव है
आसमान पर मँहगाई सँग चढ़े भाव हैं
टैक्स बढ़ा सरकारें लूट रहीं जनता को
दुष्कर होता जाता अब करना निभाव है
*
किसी अधर पर नहीं शेष अब जन-गण-मन है
स्त्री हो या पुरुष रह गया केवल तन है
माध्यम जन को कठिन हुआ है जीना-मरना
नेता-अभिनेता-अफसर का हुआ वतन है
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salil.sajiv@gmail.com, 9425183244
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