गीत सलिला:
राकेश खंडेलवाल
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Rakesh Khandelwal <rakesh518@yahoo.com>
राकेश खंडेलवाल
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच हैऐसा ही यह प्रश्न तुम्हारा तुमसे कितना प्यार मुझे हैसंभव कहाँ शब्द में बांधू गहराई मैं मीत प्यार कीप्याले में कर सकूं कैद मैं गति गंगा की तीव्र धार कीआदि अंत से परे रहा जो अविरल है अविराम निरंतरमुट्ठी में क्या सिमटेगी विस्तृतता तुमसे मेरे प्यार कीअसफल सभी चेष्टा मेरी कितना भी चाहा हो वर्णितलेकिन हुआ नहीं परिभाषित तुमसे कितना प्यार मुझे हैअर्थ प्यार का शब्द तुम्हें भी ज्ञात नहीं बतला सकते हैंमन के बंधन जो गहरे हैं, होंठ कभी क्या गा सकते हैंढाई अक्षर कहाँ कबीरा, बतलासकी दीवानी मीरायह अंतस की बोल प्रकाशन पूरा कैसे पा सकते हैंश्रमिक-स्वेद कण के नाते को रेख सिंदूरी से सुहाग काजितना होता प्यार जान लो तुमसे उतना प्यार मुझे हैग्रंथों ने अनगिनत कथाएं रचीं और हर बार बखानीनल दमयंती, लैला मजनू, बाजीराव और मस्तानीलेकिन अक्षम रहा बताये प्यार पैठता कितना गहरेजितना भी डूबे उतना ही गहरा हो जाता है पानीशायद एक तुम्हों हो जो यह सत्य मुझे बतला सकता हैतुम ही तो अनुभूत कर रहे तुमसे कितना प्यार मुझे है।
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Rakesh Khandelwal <rakesh518@yahoo.com>