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शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

जुलाई ११, भोजपुरी हाइकु, यमक, षट्पदिक कृष्ण-कथा, लघुकथा, गीत, सॉनेट, बरसात

सलिल सृजन जुलाई ११
*
गीता जिसके उर बसे वह होता है धन्य
काम करें निष्काम हो, जीवन जिए अनन्य
.
गीता का मंथन करें, पल में छूटे मोह
करे नहीं परमात्म से, आत्म निमिष भर द्रोह
.
गीता हो मीता अगर भूल न सकते राह
कृष्ण कृपा के हेतु मन, कर गीता की चाह
.
गीता का कर अनुसरण, सच से मन मत भाग
वर विराग अनुराग का, कर पगले परित्याग
११.७.२०२५
०0०
सॉनेट
सुन
*
नदी नहाते हुए किसी के मंत्र तो सुनो,
डुबकी मारो, पैर न फिसले, सम्हल हो खड़े,
लहरों की कलकल सुन मन में नाद तो गुनो,
निकलो औरों को अवसर दो, व्यर्थ हो अड़े।
मंदिर बजते शंख-घंटियाँ क्या कहती हैं?
बाँग दे रहा मुर्गा, मस्जिद से अजान सुन,
भजन-सबद, साखी न कभी भी चुप रहती हैं,
तू गा सबके साथ; समस्या का हल भी बुन।
उस पलाश को देख वीतरागी चुप दहता,
बरगद पत्ते झरने देता नहीं रोकता,
तू क्यों अप्रिय याद को नाहक ही है तहता,
क्यों न भाड़ में नकारात्मक याद झोंकता?
रिधि-सिधि निधि-विधि बिसरा दे; मत नाहक सिर धुन।
बैठ पालथी मार; धुकधुकी चुप रहकर सुन।।
११-७-२०२३
***
दोहा सलिला
चित्र गुप्त जिसका रहा, भाव वही साकार
भाषा करती लोक में, रस लय का व्यापार
*
अक्षर अजर अमर रहे, लघुतम ध्वनि लें जान
मिलकर सार्थक रूप धर, बनें शब्द प्रतिमान
*
शब्द-भेद बन व्याकरण, करता भाषा शुद्ध
पिंगल छांदस काव्य रच, कहता पढ़ें प्रबुद्घ
*
भाषा जन्मे लोक में, गहता प्रकृति स्वतंत्र
सधुक्कड़ी मनमौज है, सरल-कठिनतम तंत्र
*
लोक गढ़े नव शब्द खुद, तत्सम-तद्भव आप
मिल समृद्ध भाषा करें, जन जन जाते व्याप
*
कर्ता करता कार्य कर, क्रिया कर्म कर मौन
कहे खासियत विशेषण, कारक रहे न मौन
*
सर्वनाम संग्या हटा, हो जाता आसीन
वंशबेल दे ज्यों पिता, सुत को किंतु न दीन
*
कह विशेषता विशेषण, गुण चर्चा कर संत
क्रिया विशेषण क्रिया के, गुण कह रहा अनंत
*
ताना-बाना बुन रहा, अव्यय निकले अर्थ
अर्थ बिना अभिव्यक्ति ही, हो जाती है व्यर्थ
*
चित्र भावमुद्रा करें, बिना कहे पर बात
मौन लकीरें भी करें, बात समझिए तात
*
भाषा जुड़ विग्यान से, हो जाती है गूढ़
शब्द-अर्थ की श्लिष्टता, समझ न पाते मूढ़
*
व्यापकता दे शब्द को, लोक गहे साहित्य
संस्कार जो समझ ले, लेखक हो आदित्य
*
तारो! तारोगे किसे, तर न सके खुद आप.
शिव जपते हैं उमा को, उमा करेन शिव जाप.
११-७-२०२०
***
लघुकथा
मोहनभोग
*
'क्षमा करना प्रभु! आज भोग नहीं लगा सका.' साथ में बाँके बिहारी के दर्शन कर रहे सज्जन ने प्रणाम करते हुए कहा.
'अरे! आपने तो मेरे साथ ही मिष्ठान्न भण्डार से नैवेद्य हेतु पेड़े लिए था, कहाँ गए?' मैंने उन्हें प्रसाद देते हुए पूछा.
पेड़े लेकर मंदिर आ रहा था कि देखा कुछ लोग एक बच्चे की पिटाई कर रहे हैं और वह बिलख रहा है. मुझसे रहा नहीं गया, बच्चे को छुडाकर कारण पूछ तो हलवाई ने बताया कि वह होटल से डबल रोटी-बिस्कुट चुराकर ले जा रहा था. बच्चे ने बताया कि उसका पिता नहीं है, माँ बुखार से पीड़ित होने के कारण काम पर नहीं जा रही, घर में खाने को कुछ नहीं है, छोटी बहिन का रोना नहीं देखा गया तो वह होटल में चार घंटे से काम कर रहा है. सेठ से कुछ खाने का सामान लेकर घर दे आने को पूछा तो वह गाली देने लगा कि रात को होटल बंद होने के बाद ही देगा. बार-बार भूखी बहिन और माँ के चेहरे याद आ रहे थे, रात तक कैसे रहेंगी? यह सोचकर साथ काम करनेवाले को बताकर डबलरोटी और बिस्किट ले जा रहा था कि घर दे आऊँ फिर रात तक काम करूंगा और जो पैसे मिलेंगे उससे दाम चुका दूंगा.
दुसरे लड़के ने उसकी बात की तस्दीक की लेकिन हलवाई उसे चोर ठहराता रहा. जब मैंने पुलिस बुलाने की बात की तब वह ठंडा पड़ा.
बच्चे को डबलरोटी, दूध, बिस्किट और प्रसाद की मिठाई देकर उसके घर भेजा. आरती का समय हो गया इसलिए खाली हाथ आना पड़ा और प्रभु को नहीं लगा सका भोग' उनके स्वर में पछतावा था.
'ऐसा क्यों सोचते हैं? हम तो मूर्ति ही पूजते रह गए और आपने तो साक्षात बाल कृष्ण को लगाया है मोहन भोग. आप धन्य है.' मैंने उन्हें नमन करते हुए कहा.
***
एक दोहा
तारो तरोगे किसे, तर न सके खुद आप
शिव जपते हैं उमा को, उमा करें शिव-जाप
***
दोहा सलिला:
मेघ की बात
*
उमड़-घुमड़ आ-जा रहे, मेघ न कर बरसात।
हाथ जोड़ सब माँगते, पानी की सौगात।।
*
मेघ पूछते गगन से, कहाँ नदी-तालाब।
वन-पर्वत दिखते नहीं, बरसूँ कहाँ जनाब।।
*
भूमि भवन से पट गई, नाले रहे न शेष।
करूँ कहाँ बरसात मैं, कब्जे हुए अशेष।।
*
लगा दिए टाइल अगिन, भू है तृषित अधीर।
समझ नहीं क्यों पा रहे, तुम माटी की पीर।।
*
स्वागत तुम करते नहीं, साध रहे हो स्वार्थ।
हरी चदरिया उढ़ाओ, भू पर हो परमार्थ।।
*
वर्षा मंगल भूलकर, ठूँस कान में यंत्र।
खोज रहे मन मुताबिक, बारिश का तुम मंत्र।।
*
जल प्रवाह के मार्ग सब, लील गया इंसान।
करूँ कहाँ बरसात कब, खोज रहा हूँ स्थान।।
*
रिमझिम गिरे फुहार तो, मच जाती है कीच।
भीग मजा लेते नहीं, प्रिय को भुज भर भींच।।
*
कजरी तुम गाते नहीं, भूले आल्हा छंद।
नेह न बरसे नैन से, प्यारा है छल-छंद।।
*
घास-दूब बाकी नहीं, बीरबहूटी लुप्त।
रौंद रहे हो प्रकृति को, हुई चेतना सुप्त।।
*
हवा सुनाती निरंतर, वसुधा का संदेश।
विरह-वेदना हर निठुर, तब जाना परदेश।।
*
प्रणय-निमंत्रण पा करूँ, जब-जब मैं बरसात।
जल-प्लावन से त्राहि हो, लगता है आघात।।
*
बरसूँ तो संत्रास है, डूब रहे हैं लोग।
ना बरसूँ तो प्यास से, जीवनांत का सोग।।
*
मनमानी आदम करे, दे कुदरत को दोष।
कैसे दूँ बरसात कर, मैं अमृत का कोष।।
*
नग्न नारियों से नहीं, हल चलवाना राह।
मेंढक पूजन से नहीं, पूरी होगी चाह।।
*
इंद्र-पूजना व्यर्थ है, चल मौसम के साथ।
हरा-भरा पर्यावरण, रखना तेरा हाथ।।
*
खोद तलैया-ताल तू, भर पानी अनमोल।
बाँध अनगिनत बाँध ले, पानी रोक न तोल।।
*
मत कर धरा सपाट तू, पौध लगा कर वृक्ष।
वन प्रांतर हों दस गुना, तभी फुलाना वक्ष।।
*
जूझ चुनौती से मनोज, श्रम को मिले न मात।
स्वागत कर आगत हुई, ले जीवन बरसात
११.७.२०१८
***
नवगीत
समारोह है
*
समारोह है
सभागार में।
*
ख़ास-ख़ास आसंदी पर हैं,
खासुलखास मंच पर बैठे।
आयोजक-संचालक गर्वित-
ज्यों कौओं में बगुले ऐंठे।
करतल ध्वनि,
चित्रों-खबरों में
रूचि सबकी है
निज प्रचार में।
*
कुशल-निपुण अभियंता आए,
छाती ताने, शीश उठाए।
गुणवत्ता बिन कार्य हो रहे,
इन्हें न मतलब, आँख चुराए।
नीति-दिशा क्या सरकारों की?
क्या हो?, बात न
है विचार में।
*
मस्ती-मौज इष्ट है यारों,
चुनौतियों से भागो प्यारों।
पाया-भोगो, हँसो-हँसाओ-
वंचित को बिसराओ, हारो।
जो होता है, वह होने दो।
तनिक न रूचि
रखना सुधार में।
११-७-२०१७
***
लघुकथा
अकेले
*
'बिचारी को अकेले ही सारी जिंदगी गुजारनी पड़ी।'
'हाँ री! बेचारी का दुर्भाग्य कि उसके पति ने भी साथ नहीं दिया।'
'ईश्वर ऐसा पति किसी को न दे।'
दिवंगता के अन्तिम दर्शन कर उनके सहयोगी अपनी भावनाएँ व्यक्त कर रहे थे।
'क्यों क्या आप उनके साथ नहीं थीं? हर दिन आप सब सामाजिक गतिविधियाँ करती थीं। जबसे उनहोंने बिस्तर पकड़ा, आप लोगों ने मुड़कर नहीं देखा।
उन्होंने स्वेच्छा से पारिवारिक जीवन पर सामाजिक कार्यक्रमों को वरीयता दी। पिता जी असहमत होते हुए भी कभी बाधक नहीं हुए, उनकी जिम्मेदारी पिताजी ने निभायी। हम बच्चों को पिता के अनुशासन के साथ-साथ माँ की ममता भी दी। तभी माँ हमारी ओर से निश्चिन्त थीं। पिताजी बिना बताये माँ की हर गतिविधि में सहयोग करते रहेऔर आप लोग बिना सत्य जानें उनकी निंदा कर रही हैं।' बेटे ने उग्र स्वर में कहा।
'शांत रहो भैया! ये महिला विमर्श के नाम पर राजनैतिक रोटियाँ सेंकने वाले प्यार, समर्पण और बलिदान क्या जानें? रोज कसमें खाते थे अंतिम दम तक साथ रहेंगे, संघर्ष करेंगे लेकिन जैसे ही माँ से आर्थिक मदद मिलना बंद हुई, उन्हें भुला दिया। '
'इन्हें क्या पता कि अलग होने के बाद भी पापा के पर्स में हमेश माँ का चित्र रहा और माँ के बटुए में पापा का। अपनी गलतियों के लिए माँ लज्जित न हों इसलिए पिता जी खुद नहीं आये पर माँ की बीमारी की खबर मिलते ही हमें भेजा कि दवा-इलाज में कोइ कसर ना रहे।' बेटी ने सहयोगियों को बाहर ले जाते हुए कहा 'माँ-पिताजी पल-पल एक दूसरे के साथ थे और रहेंगे। अब गलती से भी मत कहियेगा कि माँ ने जिंदगी गुजारी अकेले।
२-५-२०१७
***
गीत
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
दरक रे मैदान-खेत सब
मुरझा रए खलिहान।
माँगे सीतल पेय भिखारी
ले न रुपया दान।
संझा ने अधरों पे बहिना
लगा रखो है खून।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
धोंय, निचोरें सूखें कपरा
पहने गीले होंय।
चलत-चलत कूलर हीटर भओ
पंखें चल-थक रोंय।
आँख मिचौरी खेरे बिजुरी
मलमल लग रओ ऊन।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
गरमा गरम नें कोऊ चाहे
रोएँ चूल्हा-भट्टी।
सब खों लगे तरावट नीकी
पनहा, अमिया खट्टी।
धारें झरें नई नैनन सें
बहें बदन सें दून।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
लिखो तजुरबा, पढ़ तरबूजा
चक्कर खांय दिमाग।
मृगनैनी खों लू खें झोंकें
लगे लगा रए आग।
अब नें सरक पे घूमें रसिया
चौक परे रे! सून।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
अंधड़ रेत-बगूले घेरे
लगी सहर में आग।
कितै गए पनघट अमराई
कोयल गाए नें राग।
आँखों मिर्ची झौंके मौसम
लगा र ओ रे चून।
धरती की छाती पै होरा
रओ रे सूरज भून।
*
***
दोहा सलिला
*
पाठक मैं आनंद का, गले मिले आनंद
बाहों में आनंद हो, श्वास-श्वास मकरंद
*
आनंदित आनंद हो, बाँटे नित आनंद
हाथ पसारे है 'सलिल', सुख दो आनंदकंद!
*
जब गुड्डो दादी बने, अनुशासन भरपूर
जब दादी गुड्डो बने, हो मस्ती में चूर
*
जिया लगा जीवन जिया, रजिया है हर श्वास
भजिया-कोफी ने दिया, बारिश में उल्लास
*
पता लापता जब हुआ, उड़ी पताका खूब
पता न पाया तो पता, पता कर रहा डूब
११-७-२०१७
***
षट्पदिक कृष्ण-कथा
देवकी-वसुदेव सुत कारा-प्रगट, गोकुल गया
नंद-जसुदा लाल, माखन चोर, गिरिधर बन गया
रास-लीला, वेणु-वादन, कंस-वध, जा द्वारिका
रुक्मिणी हर, द्रौपदी का बन्धु-रक्षक बन गया
बिन लड़े, रण जीतने हित ज्ञान गीता का दिया
व्याध-शर का वार सह, प्रस्थान धरती से किया
(महाभागवतजातीय गीतिका छंद, यति ३-१०-१७-२४, पदांत लघु गुरु)
११-७-२०१६
***
गीत
*
सत्य
अपने निकट पायें
कलम
केवल तब उठायें
*
क्या लिखना है?
क्यों लिखना है?
कैसे लिखना है
यह सोचें
नाहक केश न
सर के नोचें
नवसंवेदन
जब गह पायें
सत्य
अपने निकट पायें
कलम
केवल तब उठायें
*
लिखना कविता
होना सविता
बहती सरिता
मिटा पिपासा
आगे बढ़ना
बढ़े हुलासा
दीप
सम श्वासें जलायें
सत्य
अपने निकट पायें
कलम
केवल तब उठायें
*
बहा पसीना
सीखें जीना
निज दुःख पीकर
खुशियाँ बाँटें
मनमानी को
रोकें-डाँटें
स्वार्थ
प्रथम अपना तज गायें
सत्य
अपने निकट पायें
कलम
केवल तब उठायें
११-७-२०१५
***
गले मिले दोहा यमक
*
चंद चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान
***
मुक्तक:
आसमान पर भा/व आम जनता/ का जीवन कठिन हो रहा
त्राहिमाम सब ओ/र सँभल शासन, / जनता का धैर्य खो रहा
पूंजीपतियों! धन / लिप्सा तज भा/व् घटा जन को राहत दो
पेट भर सके मे/हनतकश भी, र/हे न भूखा, स्वप्न बो रहा
११-७-२०१४
***
भोजपुरी हाइकु: संजीव वर्मा 'सलिल'
*
पावन भूमि / भारत देसवा के / प्रेरणा-स्रोत.
भुला दिहिल / बटोहिया गीत के / हम कृतघ्न.
देश-उत्थान? / आपन अवदान? / खुद से पूछ.
साँच साबित/ गुलामी के जंजीर / अंगरेजी के.
सुख के धूप / सँग-सँग मिलल / दुःख के छाँव.
नेह अबीर / जे के मस्तक पर / वही अमीर.
अँखिया खोली / हो गइल अंजोर / माथे बिंदिया.
भोर चिरैया / कानन में मिसरी / घोल गइल.
काहे उदास? / हिम्मत मत हार / करल प्रयास.
११-७-२०१०
***
एक दोहा
जब भी 'मैं' की छूटती, 'हम' की हो अनुभूति.
तब ही 'उस' से मिलन हो, सबकी यही प्रतीति..
७-७-२०१०

मंगलवार, 8 जुलाई 2025

जुलाई ८, सॉनेट, अवधी हाइकु, भोजपुरी हाइकु, दुर्मिला छंद, बुन्देली मुक्तिका, मन,

सलिल सृजन जुलाई ८
*
नवगीत:
पैर हमारे लात हैं....
*
पैर हमारे लात हैं,
उनके चरण कमल.
ह्रदय हमारे सरोवर-
उनके हैं पंकिल...
*
पगडंडी काफी है हमको,
उनको राजमार्ग भी कम है.
दस पैसे में हम जी लेते,
नब्बे निगल रहा वह यम है.
भारतवासी आम आदमी -
दो पाटों के बीच पिस रहे.
आँख मूँद जो न्याय तौलते
ऐश करें, हम पैर घिस रहे.
टाट लपेटे हम फिरें
वे धारे मलमल.
धरा हमारा बिछौना
उनका है मखमल...
*
अफसर, नेता, जज, व्यापारी,
अवसरवादी-अत्याचारी.
खून चूसते नित जनता का,
देश लूटते भ्रष्टाचारी.
हम मर-खप उत्पादन करते,
लूट तिजोरी में वे भरते.
फूट डाल हमको लड़वाते.
थाना कोर्ट जेल भिजवाते.
पद-मद उनका साध्य है,
श्रम है अपना बल.
वे चंचल ध्वज, 'सलिल' हम
हैं नींवें अविचल...
*
पुष्कर, पुहुकर, नीलोफर हम,
उनमें कुछ काँटें बबूल के.
कुई, कुंद, पंकज, नीरज हम,
वे बैरी तालाब-कूल के.
'सलिल'ज क्षीरज हम, वे गगनज
हम अपने हैं, वे सपने हैं.
हम हरिकर, वे श्रीपद-लोलुप
मनमाने थोपे नपने हैं.
उन्हें स्वार्थ आराध्य है,
हम न चाहते छल.
दलदल वे दल बन करें
हम उत्पल शतदल...
***
सॉनेट
दाग
पाक-साफ मतदान करेंगे
सोच गए मतदान केंद्र हम
सियासती आरोप सुनेंगे
सच्चाई का निकलेगा दम
कहाँ सोच पाए थे अँगुली
जो उठती अब तक औरों पर
रही हमेशा सबसे कहती
लौट कहेगी वही सिसककर
दागदार होकर लौटी मैं
कैसे उठूँ कहो औरों पर
दाग छुड़ाते जो विज्ञापन
छुड़ा न पाए दाग जतनकर
दागदार चुन दागदार को
शानदार कह दागदार को
८-७-२०२२
•••
सॉनेट
आस्था
आस्था क्षणभंगुर चोटिल हो
पल-पल में कुछ भी सुन-पढ़कर
दुश्मन की आसान राह है
हमें लड़ाए नित कुछ कहकर
मैं-तुम चतुर हद्द से ज्यादा
शीश छिपाते शुतुरमुर्ग सम
बंद नयन जब आए तूफां
भले निकल जाए चुप रह दम
रक्तबीज का रक्त पी लिया
जिसने वह क्या शाकाहारी?
क्या सच ही पानी, खूं अपना
जो पीता नहिं मांसाहारी
आस्था-अंधभक्त की जय-जय
रंग बदलो, हो गिरगिट निर्भय
८-७-२०२२
•••
***
एक मुक्तकी राम-लीला
*
राम जन्मे, वन गए, तारी अहल्या, सिय वरी।
स्वर्णमृग-बाली वधा, सुग्रीव की पीड़ा हरी ।।
सिय हरण, लाँघा समुद,लड़-मार रावण को दिया-
विभीषण-अभिषेक, गद्दी अवध की शोभित करी।।
*
८-७-२०१६
रामकथा
* एक श्लोकी रामायण *
अदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणम्।
वालि निग्रहणं समुद्र तरणं लंका पुरी दास्हम्।
पाश्चाद् रावण कुंभकर्ण हननं तद्धि रामायणम्।
यदि इसे भी रामायण माने तो यह विश्व की सबसे छोटी एक श्लोकी रामायण है. इसे रचने वाले कवि गोस्वामी तुलसीदास माने जाते हैं .
'रामायण' का विश्लेषित रुप 'राम का अयन' है जिसका अर्थ है 'राम का यात्रा पथ', क्योंकि अयन यात्रापथवाची है। इसकी अर्थवत्ता इस तथ्य में भी अंतर्निहित है कि यह मूलत: राम की दो विजय यात्राओं पर आधारित है जिसमें प्रथम यात्रा यदि प्रेम-संयोग, हास-परिहास तथा आनंद-उल्लास से परिपूर्ण है, तो दूसरी क्लेश, क्लांति, वियोग, व्याकुलता, विवशता और वेदना से आवृत्त। विश्व के अधिकतर विद्वान दूसरी यात्रा को ही रामकथा का मूल आधार मानते हैं। एक श्लोकी रामायण में राम वन गमन से रावण वध तक की कथा ही रूपायित हुई है।
***
अवधी हाइकु सलिला:
*
सुखा औ दुखा
रहत है भइया
घर मइहाँ.
*
घाम-छांहिक
फूला फुलवारिम
जानी-अंजानी.
*
कवि मनवा
कविता किरनिया
झरझरात.
*
प्रेम फुलवा
ई दुनियां मइहां
महकत है.
*
रंग-बिरंगे
सपनक भित्तर
फुलवा हन.
*
नेह नर्मदा
हे हमार बहिनी
छलछलात.
*
अवधी बोली
गजब के मिठास
मिसरी नाई.
*
अवधी केर
अलग पहचान
हृदयस्पर्शी.
*
बेरोजगारी
बिखरा घर-बार
बिदेस प्रवास.
*
बोली चिरैया
झरत झरनवा
संगीत धारा.
***
भोजपुरी हाइकु
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
पावन भूमि
भारत देसवा के
प्रेरण-स्रोत.
*
भुला दिहिल
बटोहिया गीत के
हम कृतघ्न.
*
देश-उत्थान?
आपन अवदान?
खुद से पूछ.
*
अंगरेजी के
गुलामी के जंजीर
साँच साबित.
*
सुख के धूप
सँग-सँग मिलल
दुःख के छाँव.
*
नेह अबीर
जे के मस्तक पर
वही अमीर.
*
अँखिया खोली
हो गइल अंजोर
माथे बिंदिया.
*
भोर चिरैया
कानन में मिसरी
घोल गइल.
*
काहे उदास?
हिम्मत मत हार
करल प्रयास.
*
छंद सलिला:
दुर्मिला छंद
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-१४, पदांत गुरु गुरु, चौकल में लघु गुरु लघु (पयोधर या जगण) वर्जित।
लक्षण छंद:
दिशा योग विद्या / पर यति हो, पद / आखिर हरदम दो गुरु हों
छंद दुर्मिला रच / कवि खुश हो, पर / जगण चौकलों में हों
(संकेत: दिशा = १०, योग = ८, विद्या = १४)
उदाहरण:
१. बहुत रहे हम, अब / न रहेंगे दू/र मिलाओ हाथ मिलो भी
बगिया में हो धू/ल - शूल कुछ फू/ल सरीखे साथ खिलो भी
कितनी भी आफत / आये पर भू/ल नहीं डट रहो हिलो भी
जिसको जो कहना / है कह ले, मुँह / मत खोलो अधर सिलो भी
२. समय कह रहा है / चेतो अनुशा/सित होकर देश बचाओ
सुविधा-छूट-लूट / का पथ तज कद/म कड़े कुछ आज उठाओ
घपलों-घोटालों / ने किया कबा/ड़ा जन-विश्वास डिगाया
कमजोरी जीतो / न पड़ोसी आँ/ख दिखाये- धाक जमाओ
३. आसमान पर भा/व आम जनता/ का जीवन कठिन हो रहा
त्राहिमाम सब ओ/र सँभल शासन, / जनता का धैर्य खो रहा
पूंजीपतियों! धन / लिप्सा तज भा/व् घटा जन को राहत दो
पेट भर सके मे/हनतकश भी, र/हे न भूखा, स्वप्न बो रहा
----------
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिभंगी, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दुर्मिला, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, समान, सरस, सवाई, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
***
पारंपरिक लघु कथा : दृष्टांत कथा
गुरु क्यों?
*
स्वामी रामकृष्ण परमहंस की खेती सुनकर तरुण नरेन्द्र ने एक दिन उनसे कहा, " स्वामीजी! मैं रामायण जानता हूँ , भगवद्गीता जानता हूँ, सारे वेद पढ़े हैं और हर विषय पर अच्छा व्याख्यान दे लेता हूँ, फिर मुझे गुरु की आवश्यकता क्यों ?"
परमहंस ने कोई उत्तर नहीं दिया। सिर्फ मुस्कुरा दिए।
कुछ दिनों बाद परमहंस ने नरेन्द्र को बुलवाया, कुछ सामान और मान-पते की एक पर्ची देकर कहा, " इसे नदी के पार इनको कल दे आओ।"
नरेन्द्र ने सामान ले लिया। दूसरे दिन सवेरे उस गाँव की तरफ निकल पड़े ताकि जल्दी से देकर वापस आ सकें। रास्ते में एक नदी पड़ती थी जहाँ नाव तैयार थी, नाविक उन्हें लेकर चल पड़ा। नदी के पार उतर कर उन्होंने देखा कि घाट से कई सारे रास्तेे, कई गाँवों की तरफ जाते हैं। उन्होंने नाविक से पूछा, "भैया ! इस गाँव तक पहुँचने का रास्ता कौन सा है ?
नाविक ने कहा, "मुझे नहीं मालुम। "
नरेन्द्र असमंजस में पड़ गए। अब क्या करें ? यहाँ तो कई रास्ते हैं, किससे जाएँ कि बिना भटके सही गाँव में पहुँच जाएँ। काफी देर तक देखते रहे, कोइ अन्य जानकार नहीं आया तो नाववाले से बोले, "भैया, मुझे वापस ले चलो। बिना रास्ता जाने ही चला आया। इस बार पूछ कर आऊँगा।"
वापस आकर नरेन्द्र स्वामी परमहंस के पास रास्ता पूछने गए तो उन्होंने रास्ता बताने के स्थान पर सामान वापिस ले लिया और कहा कि अब पहुँचाने की आवश्यकता नहीं है यह तो तुम्हारे उस दिन के प्रश्न का उत्तर है। गंतव्य स्थान पर जाने के लिए तुम्हारे पास माध्यम (नाव) है, संसाधन (नाविक) है, यह भी मालूम है कि क्या करना है (सामान देना है), कहाँ जाना है, लेकिन रास्ता नहीं मालूम ! बिना मार्गदर्शन के किस रास्ते से भटकते रह जाएगा।
नरेंद्र समझ गए कि गुरु मार्गदर्शक होता है। उसे पता होता है कि किस शिष्य को कौन सा सामान देना है, कौन सी राह बतानी है?
***
दोहा सलिला:
मन के दोहे
*
मन जब-जब उन्मन हुआ, मन ने थामी बाँह.
मन से मिल मन शांत हो, सोया आँचल-छाँह.
*
मन से मन को राह है, मन को मन की चाह.
तन-धन हों यदि सहायक, मन पाता यश-वाह.
*
चमन तभी गुलज़ार हो, जब मन को हो चैन.
अमन रहे तब जब कहे, मन से मन मृदु बैन.
*
द्वेष वमन जो कर रहे, दहशत जिन्हें पसंद.
मन कठोर हो दंड दे, मिट जाए छल-छंद.
*
मन मँजीरा हो रहा, तन कीर्तन में लीन.
मनहर छवि लख इष्ट की, श्वास-आस धुन-बीन.
*
नेह-नर्मदा सलिल बन, मन पाता आनंद.
अंतर्मन में गोंजते, उमड़-घुमड़कर छंद.
*
मन की आँखें जब खुलीं, तब पाया आभास.
जो मन से अति दूर है, वह मन के अति पास.
*
मन की सुन चेता नहीं, मनुआ बेपरवाह.
मन की धुन पूरी करी, नाहक भरता आह.
*
मन की थाह अथाह है, नाप सका कब-कौन?
अंतर्मन में लीन हो, ध्यान रमाकर मौन.
*
धुनी धूनी सुलगा रहा, धुन में हो तल्लीन.
मन सुन-गुन सुन-गुन करे, सुने बिन बजी बीन.
*
मन को मन में हो रहे, हैं मन के दीदार.
मन से मिल मन प्रफुल्लित, सर पटके दीवार.
*
८.७.२०१८
***
बुन्देली मुक्तिका:
बखत बदल गओ
*
बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।
सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।
*
लतियाउत तें कल लों जिनखों
बे नेतन सें हात जुरा रए।।
*
पाँव कबर मां लटकाए हैं
कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।
*
पान तमाखू गुटका खा खें
भरी जवानी गाल झुरा रए।।
*
झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें
सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।
८-७-२०१४
***
गीत
किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.
मात-पिता बेटे-बेटी में-
अगर न हों तो दिखला दो...
*
बीज हमेशा रहे पेड़ में,
और पेड़ पर फलता बीज.
मुर्गी-अंडे का जो रिश्ता
कभी न किंचित सकता छीज..
माया-मायापति अभिन्न हैं-
नियति-नियामक जतला दो...
*
कण में अणु है, अणु में कण है
रूप काल का- युग है, क्षण है.
कंकर-शंकर एक नहीं क्या?-
जो विराट है, वह ही तृण है..
मत भरमाओ और न भरमो-
सत-शिव-सुन्दर सिखला दो...
*
अक्षर-अक्षर शब्द समाये.
शब्द-शब्द अक्षर हो जाये.
भाव बिम्ब बिन रहे अधूरा-
बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...
८-७-२०१०
***
गीत
गीत जिसने कविता को स्वीकारा, कविता ने उसको उपकारा.
शब्द ब्रह्म को नमन करे जो, उसका है हरदम पौ बारा..
हो राकेश दिनेश सलिल वह, प्रतिभा उसकी परखी जाती-
होम करे पल-पल प्राणों का, तब जलती कविता की बाती..
भाव बिम्ब रस शिल्प और लय, पञ्च तत्व से जो समरस हो.
उस कविता में, उसके कवि में, पावस शिशिर बसंत सरस हो..
कविता भाषा की आत्मा है, कविता है मानव की प्रेरक.
राजमार्ग की हेरक भी है, पगडंडी की है उत्प्रेरक..
कविता सविता बन उजास दे, दे विश्राम तिमिर को लाकर.
कविता कभी न स्वामी होती, स्वामी हों कविता के चाकर..
कविता चरखा, कविता चमडा, कविता है करताल-मंजीरा.
लेकिन कभी न कविता चाहे, होना तिजोरियों का हीरा..
कविता पनघट, अमराई है, घर-आँगन, चौपाल, तलैया.
कविता साली-भौजाई है, बेटा-बेटी, बाबुल-मैया..
कविता सरगम, ताल, नाद, लय, कविता स्वर, सुर वाद्य समर्पण.
कविता अपने अहम्-वहम का, शरद-पग में विनत विसर्जन..
शब्द-साधना, सताराधना, शिवानुभूति 'सलिल' सुन्दर है.
कह-सुन-गुन कवितामय होना, करना निज मन को मंदिर है..
******************************
जब भी 'मैं' की छूटती, 'हम' की हो अनुभूति.
तब ही 'उस' से मिलन हो, सबकी यही प्रतीति..
७-७- २०१०
*

सोमवार, 30 जून 2025

जून ३०, भोजपुरी हाइकु, दण्डकला छंद, इसरो, तुलसी, समुच्चय, आक्षेप, अलंकार, घनाक्षरी, सॉनेट, सरस्वती

सलिल सृजन जून ३०
क्षुद्र ग्रह (ऐस्टरॉइड) दिवस
*
मन-बगिया पधराओ सारद महरानी 
बीना मधुर बजाओ सारद महरानी
कली फूल फल पत्ते टेरें 
भू-बनमाली ब्याकुल हेरें।  
तितली-भँवरे करें प्रार्थना- 
माया-मोह नें नाहक घेरें। 
चरन-सरन दिलबाओ सारद महरानी
मन-बगिया पधराओ सारद महरानी 
ऊँच-नींच पथ पे पग फिसरो
धूप-छाँव में बैंया पकरो।  
स्वार्थ सधे के सगरे नाते- 
बिपदा में बैरी जग सगरो। 
अपनों सें मिलबाओ  सारद महरानी
मन-बगिया पधराओ सारद महरानी
मैया! 'इकनी एक' सिखा दे 
'अ' अनार का पाठ पढ़ा दे 
सबद-सबक पुस्तक सें यारी- 
कंकर में संकर दिखला दे। 
अनहद नाद सुनाओ सारद महरानी
मन-बगिया पधराओ सारद महरानी
३०.६.२०२५      
***
क्षुद्र ग्रह (ऐस्टरॉइड) दिवस
क्षुद्रग्रह खगोलीय पिंड होते है जो ब्रह्माण्ड में विचरण करते रहते है। यह अपने आकार में ग्रहों से छोटे और उल्का पिंडों से बड़े होते हैं। खोजा जाने वाला पहला क्षुद्रग्रह, सेरेस, १८१९ में ग्यूसेप पियाज़ी द्वारा पाया गया था और इसे मूल रूप से एक नया ग्रह माना जाता था।
* १९०५ आइंस्टीन ने सापेक्षता सिद्धांत प्रकाशित किया।
३० जून, १९०५ को अल्बर्ट आइंस्टीन ने जर्मन भौतिकी पत्रिका एनालेन डेर फिजिक में "ज़ूर इलेक्ट्रोडायनामिक बेवेग्टर कोर्पर (चलती वस्तुओं के इलेक्ट्रोडायनामिक्स पर)" नामक एक पेपर प्रकाशित किया, जो उनके विशेष सापेक्षता के सिद्धांत को प्रस्तुत करता है। आइंस्टीन के इस अभूतपूर्व कार्य ने भौतिकी की नींव हिला दी।
स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में फेडरल पॉलिटेक्निक स्कूल में पढ़ने के बाद, आइंस्टीन ने १९०२ से १९०९ तक बर्न में स्विस पेटेंट कार्यालय में काम किया। उन्हें "तृतीय श्रेणी के तकनीकी विशेषज्ञ" के रूप में नियुक्त किया गया था, जहाँ वे आविष्कारों की पेटेंट योग्यता की जाँच करते थे, संभवतः उनमें बजरी छाँटने की मशीन और मौसम संकेतक शामिल थे। अपने मित्र मिशेल बेसो को लिखे एक पत्र में, आइंस्टीन ने पेटेंट कार्यालय को " वह धर्मनिरपेक्ष मठ माना जहाँ मैंने अपने सबसे सुंदर विचारों को जन्म दिया ।"
इनमें से सबसे गहन विचार १९०५ में एक के बाद एक लिखे गए पाँच सैद्धांतिक शोधपत्रों में उभरे, जिन्होंने २० वीं सदी के वैज्ञानिक विचारों में क्रांति ला दी। इतिहासकारों ने बाद में इस अवधि को आइंस्टीन के एनस मिराबिलिस या "चमत्कार वर्ष" के रूप में संदर्भित किया। उनके पहले शोधपत्र में प्रकाश के कण सिद्धांत का वर्णन किया गया था, जिसके लिए उन्हें बाद में १९२१ में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। उनके दूसरे शोधपत्र ने आणविक आकार निर्धारित करने के लिए एक नई विधि बनाई, और उनके तीसरे शोधपत्र ने ब्राउनियन गति की जांच की, जिसमें द्रव में निलंबित कणों की गति के लिए गणितीय व्याख्या प्रस्तुत की गई।
आइंस्टीन का चौथा पेपर, जिसे अक्सर भौतिकी के क्षेत्र में प्रकाशित सबसे महत्वपूर्ण पेपरों में से एक माना जाता है, ने सापेक्षता के अपने विशेष सिद्धांत को प्रस्तुत किया, जिसने ब्रह्मांड के लंबे समय से स्थापित विचारों को पलट दिया जो आइजैक न्यूटन द्वारा गति के नियमों को पेश करने के बाद से प्रचलित थे। न्यूटन ने लिखा, "समय, किसी भी बाहरी चीज़ से संबंध के बिना समान रूप से बहता है," जबकि अंतरिक्ष "हमेशा समान और अचल रहता है।" हालाँकि, आइंस्टीन के कट्टरपंथी सिद्धांत ने माना कि समय और स्थान निरपेक्ष नहीं हैं, बल्कि पर्यवेक्षक की गति के सापेक्ष हैं।
मान लीजिए कि दो पर्यवेक्षक हैं; एक ट्रेन की पटरी पर स्थिर खड़ा है, जबकि दूसरा ट्रेन के बीच में बैठकर एक समान गति से ट्रेन से यात्रा कर रहा है। यदि ट्रेन के दोनों छोर पर बिजली गिरती है, ठीक उसी समय जब ट्रेन का मध्य बिंदु स्थिर पर्यवेक्षक से गुजरता है, तो प्रत्येक बिजली के झटके से प्रकाश को पर्यवेक्षक तक पहुंचने में समान समय लगेगा। वह सही ढंग से मान लेगा कि बिजली के झटके एक साथ हुए थे। हालाँकि, ट्रेन यात्री घटनाओं को अलग तरह से देखेगा। प्रकाश की गति स्थिर रहने पर, पीछे से आने वाला प्रकाश सामने से आने वाले प्रकाश की तुलना में बाद में दिखाई देगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि पीछे से आने वाले प्रकाश को यात्री तक पहुँचने के लिए अधिक दूरी तय करनी पड़ती है क्योंकि वह पीछे से आने वाले बिजली के झटके से दूर जा रही थी और सामने से आने वाले बिजली के झटके की ओर जा रही थी। इसलिए, यात्री को लगेगा कि बिजली के दो झटके एक साथ नहीं हुए हैं, और यह सही भी होगा। सितंबर में, आइंस्टीन ने विशेष सापेक्षता के गणितीय अन्वेषण के साथ पांचवां पेपर प्रकाशित किया: E=mc 2 , जिसमें ऊर्जा (E) द्रव्यमान (m) गुणा प्रकाश की गति (c) वर्ग ( 2 ) के बराबर है। दुनिया में सबसे प्रसिद्ध समीकरण यह माना गया कि द्रव्यमान और ऊर्जा एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं और एक ही चीज़ को मापने के अलग-अलग तरीके हैं। इस खोज के दूरगामी परिणाम हुए और इसने परमाणु ऊर्जा और परमाणु बम के अंतिम विकास के लिए मंच तैयार किया, जिसमें आइंस्टीन की कोई प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं थी। वास्तव में, शुरुआत में अमेरिका द्वारा परमाणु बम विकसित करने के समर्थक होने के बावजूद, आइंस्टीन ने उस समर्थन को पूरी तरह से त्याग दिया।

एस्टेरॉइड्स, जिन्हें क्षुद्रग्रह भी कहा जाता है, अंतरिक्ष की अजीब और पत्थर जैसी चट्टानें होती हैं जो सूरज के चारों ओर घूमती हैं। ये न तो ग्रह होते हैं और न ही धूमकेतु। ये चट्टान, धातु या बर्फ से बने होते हैं। कुछ एस्टेरॉइड बहुत छोटे होते हैं, जैसे मलबा, जबकि कुछ इतने बड़े होते हैं कि वे छोटे ग्रह जैसे दिखते हैं। इनके पास कोई हवा या वातावरण नहीं होता, लेकिन फिर भी ये बहुत खतरनाक हो सकते हैं। अगर कोई एस्टेरॉइड धरती से टकरा जाए, तो भारी नुकसान हो सकता है। ३० जून १९०८ को तुंगुस्का घटना की सालगिरह पर जब एक उल्कापिंड के हवाई विस्फोट ने साइबेरिया , रूस में लगभग २,१५० वर्ग कि.मी. जंगल को नष्ट कर दिया था । क्षुद्रग्रह दिवस की स्थापना २०१४ में (२०१३ चेल्याबिंस्क उल्कापिंड वायु विस्फोट के बाद के वर्ष में) भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग , बी ६१२ फाउंडेशन की अध्यक्ष डेनिका रेमी, अपोलो ९ के अंतरिक्ष यात्री रस्टी श्वेकार्ट , फिल्म निर्माता ग्रिगोरी रिक्टर और ब्रायन मे (क्वीन गिटारवादक और खगोल भौतिकीविद्) द्वारा की गई थी। २०१६ में, संयुक्त राष्ट्र ने अपने संकल्प में हर साल 30 जून को विश्व स्तर पर क्षुद्रग्रह दिवस मनाने की घोषणा की। इस आयोजन का उद्देश्य क्षुद्रग्रहों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और भविष्य में कोई एस्टेरॉइड धरती से टकराया, तो इसका असर कितना गंभीर हो सकता है, यह बताना है।
***
सॉनेट
सरकार
जाको ईंटा, बाको रोड़ो
आई बहुरिया, मैया बिसरी
भओ पराओ अपनो मोड़ो
जा पसरी, बा एड़ी घिस रई
पल मा पाला बदल ऐंठ रए
खाल ओढ़ लई रे गर्दभ की
धोबी के हो सेर रेंक रए
बारी बंदर के करतब की
मूँड़ मुड़ाओ, सीस झुकाओ
बदलो पाला, लै लो माला
राजा जी की जै-जै गाओ
करो रात-दिन गड़बड़झाला
मनमानी कर लो हर बार
जोड़-तोड़ कर, बन सरकार
३०-६-२०२२
•••
बुंदेली लोकगीत
काए टेरो
*
काए टेरो?, मैया काए टेरो?
सो रओ थो, कओ मैया काए टेरो?
*
दोरा की कुंडी बज रई खटखट
कौना पाहुना हेरो झटपट?
कौना लगा रओ पगफेरो?
काय टेरो?, मैया काए टेरो?...
*
हांत पाँव मों तुरतई धुलाओ
भुज नें भेंटियो, दूरई बिठाओ
मों पै लेओ गमछा घेरो
काय टेरो?, मैया काए टेरो?
*
बिन धोए सामान नें लइयो
बिन कारज बाहर नें जइयो
घरई डार रइओ डेरो
काए टेरो?, मैया काए टेरो
३०-६-२०२०
***
दोहा सलिला
*
नहीं कार्य का अंत है, नहीं कार्य में तंत।
माया है सारा जगत, कहते ज्ञानी संत।।
*
आता-जाता कब समय, आते-जाते लोग।
जो चाहें वह कार्य कर, नहीं मनाएँ सोग।।
*
अपनी-पानी चाह है, अपनी-पानी राह।
करें वही जो मन रुचे, पाएँ उसकी थाह।।
*
एक वही है चौधरी, जग जिसकी चौपाल।
विनय उसी से सब करें, सुन कर करे निहाल।।
*
जीव न जग में उलझकर, देखे उसकी ओर।
हो संजीव न चाहता, हटे कृपा की कोर।।
*
मंजुल मूरत श्याम की, कण-कण में अभिराम।
देख सके तो देख ले, करले विनत प्रणाम।।
*
कृष्णा से कब रह सके, कृष्ण कभी भी दूर।
उनके कर में बाँसुरी, इनका मन संतूर।।
*
अपनी करनी कर सदा, कथनी कर ले मौन।
किस पल उससे भेंट हो, कह पाया कब-कौन??
*
करता वह, कर्ता वही, मानव मात्र निमित्त।
निर्णायक खुद को समझ, भरमाता है चित्त।।
*
चित्रकार वह; दृश्य वह, वही चित्र है मित्र।
जीव समझता स्वयं को, माया यही विचित्र।।
*
बिंब प्रदीपा ज्योति का, सलिल-धार में देख।
निज प्रकाश मत समझ रे!, चित्त तनिक सच लेख।।
३०.६.२०१८
***
आज की कार्यशाला:
रचना-प्रतिरचना
गुरु सक्सेना नरसिंहपुर-संजीव वर्मा सलिल जबलपुर
*
समुच्चय और आक्षेप अलंकार
घनाक्षरी छंद
दुर्गा गणेश ब्रह्मा विष्णु महेश
पांच देव मेरे भाग्य के सितारे चमकाइये
पांचों का भी जोर भाग्य चमकाने कम पड़े
रामकृष्ण जी को इस कार्य में लगाइए।
रामकृष्ण जी के बाद भाग्य ना चमक सके
लगे हाथ हनुमान जी को आजमाइए।
सभी मिलकर एक साथ मुझे कॉलोनी में
तीस बाई साठ का प्लाट दिलवाइए।
३०-६-२०१७
***
प्रतिरचना:
देव! कवि 'गुरु' प्लाट माँगते हैं आपसे
गुरु गुड, चेले को शुगर आप मानिए।
प्लाट ऐसा दे दें धाँसू कवितायें हो सकें,
चेले को भूखंड दे भवन एक तानिए।
प्रार्थना है आपसे कि खाली मन-मंदिर है,
सिया-उमा, भोले- हनुमान संग विराजिए।
सियासत हो रही अवध में न आप रुकें,
नर्मदा 'सलिल' सँग आ पंजीरी फाँकिये।
***
मुक्तक
मतभेदों की नींव पर खड़े कर मतैक्य के महल अगर हम
मनभेदों को भुला सकें तो घट जायेंगे निश्चय ही गम
मानव दुविधा में सुविधा की खोज करे, कुछ पाएगा ही
कुछ कोशिश करना ही होगी, फहराना ही है यदि परचम
*
गले अजनबी से मिलकर यूँ लगा कि कोई अपना है
अपने मिले मगर अपनापन लगा कि केवल सपना है
बारिश ठंडी ग्रीष्म न ठहरे, आए आकर चले गए-
सलिल तुम्हारा भाग्य न बदला, नाहक माला जपना है
***
गीत
तुलसी
*
तुलसी को
अपदस्थ कर गयी
आकर नागफनी।
सहिष्णुता का
पौधा सूखा
घर-घर तनातनी।
*
सदा सुहागन मुरझाई है
खुशियाँ दूर हुईं।
सम्बन्धों की नदियाँ सूखीं
या फिर पूर हुईं।
आसों-श्वासों में
आपस में
बातें नहीं बनी।
तुलसी को
अपदस्थ कर गयी
आकर नागफनी।
*
जुही-चमेली पर
चंपा ने
क्या जादू फेरा।
मगरमस्त संग
'लिव इन' में
हैं कैद, कसा घेरा।
चार दिनों में
म्यारी टूटी
लकड़ी रही घुनी।
तुलसी को
अपदस्थ कर गयी
आकर नागफनी।
*
झुके न कोई तो कैसे
हो तालमेल मुमकिन।
बर्तन रहें खटकते फिर भी
गा-नाचें ता-धिन।
तृप्ति चाहते
प्यासों ने ध्वनि
कलकल नहीं सुनी।
तुलसी को
अपदस्थ कर गयी
आकर नागफनी।
***
पुस्तक सलिला-
'लोकल विद्वान' व्यंग्य का रोचक वितान
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[पुस्तक विवरण- लोकल विद्वान, व्यंग्य लेख संगर्ह, अशोक भाटिया, प्रथम संस्करण, ISBN ९७८-९३-८५९४२-१०-५, २०.५ से. मी. x १४ से. मी., पृष्ठ ९६, मूल्य ८०/-, आवरण पेपरबैक, दोरंगी, बोधि प्रकाशन, ऍफ़ ७७, सेक़्टर ९, मार्ग ११, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम, जयपुर ३०२००६, दूरभाष ०१४१ २५०३९८९, व्यंग्यकार संपर्क बसेरा, सेक़्टर १३, करनाल १३२००१ चलभाष ९४१६११५२१००, ahsokbhatiahes@gmail.com]
*
हिंदी गद्य के लोकप्रय विधाओं में व्यंग्य लेख प्रमुख है। व्यंञकार समसामयिक घटनाओं और समस्याओं की नब्ज़ पर हाथ रखकर उनके कारन और निदान की सीढ़ी चर्चा न कर इंगितों, व्यंगोक्तियों और वक्रोक्तियों के माध्यम से गुदगुदाने, चिकोटी काटने या तीखे व्यंग्य के तिलमिलाते हुए पाठक को चिंतन हेतु प्रेरित करता है। वह उपचार न कर, उपचार हेतु चेतना उत्पन्न करता है
हिंदी व्यंग्य लेखन को हाशिये से मुख्य धारा में लाने में हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवींद्रनाथ त्यागी, श्री लाल शुक्ल आदि की परंपरा को समृद्ध करनेवाले वर्तमान व्यंग्यकारों में अशोक भाटिया उल्लेखनीय हैं। भाटिया जी हिंदी प्राध्यापक हैं इसलिए उनमें विधा के उद्भव, विकास तथा वर्तमान की चेतना और विकास के प्रति संवेदनशील दृष्टि है। स्पष्ट समझ उन्हें हास्य औेर व्यंग्य के मध्य बारीक सीमा रख का उल्लंघन नहीं करने देती। वे व्यंग्य और लघुकथा के क्षेत्र में चर्चित रहे हैं।
विवेच्य कृति लोकल विद्वान में २१ व्यंग्य लेख तथा १४ व्यंग्यात्मक लघुकथाएँ हैं। कुत्ता न हो पाने का दुःख में लोभवृत्ति, लोकल विद्वान में बुद्धिजीवियों के पाखण्ड, महान बनने के नुस्खे में आत्म प्रचार, चलते-चलते में प्रदर्शन वृत्ति , कुत्ता चिंतन सार में स्वार्थपरता, नेता और अभिनेता में राजनैतिक विद्रूप , साड़ीवाद में महिलाओं की सौंदर्यप्रियता, मेले का ग्रहण में मेलों की आड़ में होते कदाचार, असंतोष धन में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पारम्परिक मुहावरों के नए अर्थ, तेरा क्या होगा? में आचरण के दोमुंहेपन, निठल्ले के बोल में राजनैतिक नेता के मिथ्या प्रलाप, फाल करने का सुख में अंग्रेजी शब्द के प्रति मोह, विलास राम शामिल के कारनामे में साहित्यकारों के प्रपंचों, रबड़श्री भारतीय खेल दल में क्रीड़ा क्षेत्र व्याप्त विसंगतियों, किस्म-किस्म की समीक्षा में विषय पर विश्लेषणपरक विवेचन, इम्तहान एक सभ्य फ्राड में शिक्षा जगत की कमियों, साहित्य के ओवरसियर में लेखका का आत्ममोह, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर में धन-लोभ, पीड़ा हरण समारोह में साहित्य क्षेत्र में व्याप्त कुप्रवृत्तियों, नौ सौ चूहे बिल्ली और हज में राजनीति तथा नई प्रेम कथा में प्रेम के नाम पर हो रहे दुराचार पर अशोक जी ने कटाक्ष किये हैं।
इन व्यंग्य लेखों में प्रायः आकारगत संतुलन, वैचारिक मौलिकता, शैलीगत सहजता, वर्णनात्मक रोचकता और विषयगत है जो पाठक को बाँधे रखने के साथ सोचने के लिए प्रवृत्त करता है। अशोक जी विषयों का चयन सामान्य जन के परिवेश को देखकर करते हैं इसलिए पाठक की उनमें रूचि होना स्वाभाविक है। वे आम बोलचाल की भाषा के पक्षधर हैं, इसलिए अंग्रेजी-उर्दी के शब्दों का स्वाभाविकता के साथ प्रयोग करते हैं।
लघु कथाओं में अशोक जी किसी न किसी मानवीय प्रवृत्ति के इर्द-गिर्द कथानक बुनते हुए गंभीर चुटकी लेते हैं। रोग और इलाज में नेताओं की बयानबाजी, क्या मथुरा क्या द्वारका में अफसर की बीबी की ठसक, सच्चा प्यार में नयी पीढ़ी में व्याप्त प्रेम-रोग, दोहरी समझ में वैचारिक प्रतिबद्धता के भाव, अच्छा घर में प्रच्छन्न दहेज़, वीटो में पति-पत्नी में अविश्वास, अंतहीन में बेसिर पैर की गुफ्तगू, साहब में अधिकारियों के काम न करने, दर्शन में स्वार्थ भाव से मंदिर जाने, एस एम एस में व्यक्तिगत संपर्क के स्थान पर संदेश भेजने, पहचान में आदमी को किसी न किसी आधार पर बाँटने तथा दान में स्वार्थपरता को केंद्र में रखकर अशोक जी ने पैने व्यंग्य किये हैं।
सम सामायिक पर सहज, सुबोध, रोचक शैली में तीखे व्यंग्य पाठक को चिंतन दृष्टि देने समर्थ हैं। अशोक जी की १२ पुस्तकें पूर्व प्रकाशित हैं। उनकी सूक्ष्म अवलोकन वृत्ति उन्हें दैनन्दिन जीवन के प्रसंगों पर नए कोण से देखने, सोचने और लिखने सक्षम बनाती है। इस व्यंग्य संग्रह का स्वागत होगा।
***
***
मुक्तक
मतभेदों की नींव पर खड़े कर मतैक्य के महल अगर हम
मनभेदों को भुला सकें तो घट जायेंगे निश्चय ही गम
मानव दुविधा में सुविधा की खोज करे, कुछ पाएगा ही
कुछ कोशिश करना ही होगी, फहराना ही है यदि परचम
३०-६-२०१६
दो पदी
गले अजनबी से मिलकर यूँ लगा कि कोई अपना है
अपने मिले मगर अपनापन लगा कि केवल सपना है
३०-६-२०१५
***
छंद सलिला:
दण्डकला छंद
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-८-६, पदांत लघुगुरु, चौकल में पयोधर (लघु गुरु लघु / जगण) निषेध।
लक्षण छंद: यति दण्डकला दस / आठ आठ छह / लघु गुरु सदैव / पदांत हो
जाति लाक्षणिक गिन / रखें हर पंक्ति / बत्तिस मात्रा / सुखांत हो
उदाहरण:
१. कल कल कल प्रवहित / नर्तित प्रमुदित / रेवा मैया / मन मोहे
निर्मल जलधारा / भय-दुःख हारा / शीतल छैयां / सम सोहे
कूदे पर्वत से / छप-छपाक् से / जलप्रपात रच / हँस नाचे
चुप मंथर गति बह / पीर-व्यथा दह / सत-शिव-सुंदर / नित बाँचे
२. जय जय छत्रसाल / योद्धा-मराल / शत वंदन नर / नाहर हे!
'बुन्देलखंडपति / यवननाथ अरि / अभिनन्दन असि / साधक हे
बल-वीर्य पराक्रम / विजय-वरण क्षम / दुश्मन नाशक / रण-जेता
थी जाती बाजी / लाकर बाजी / भव-सागर नौ/का खेता
३. संध्या मन मोहे / गाल गुलाबी / चाल शराबी / हिरणी सी
शशि देख झूमता / लपक चूमता / सिहर उठे वह / घरनी सी
कुण्डी खड़काये / ननद दुपहरी / सास निशा खों-/खों खांसे
देवर तारे ससु/र आसमां बह/ला मन फेंके / छिप पांसे
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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नवगीत
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इसरो को शाबाशी
किया अनूठा काम
'पैर जमाकर
भू पर
नभ ले लूँ हाथों में'
कहा कभी
न्यूटन ने
सत्य किया
इसरो ने
पैर रखे
धरती पर
नभ छूते अरमान
एक छलाँग लगाई
मंगल पर
है यान
पवनपुत्र के वारिस
काम करें निष्काम
अभियंता-वैज्ञानिक
जाति-पंथ
हैं भिन्न
लेकिन कोई
किसी से
कभी न
होता खिन्न
कर्म-पुजारी
सच्चे
नर हों या हों नारी
समिधा
लगन-समर्पण
देश हुआ आभारी
गहें प्रेरणा हम सब
करें विश्व में नाम
२४-९-२०१४
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भोजपुरी हाइकु:
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आपन बोली
आ ओकर सुभाव
मैया क लोरी.
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खूबी-खामी के
कवनो लोकभासा
पहचानल.
*
तिरिया जन्म
दमन आ शोषण
चक्की पिसात.
*
बामनवाद
कुक्कुरन के राज
खोखलापन.
*
छटपटात
अउरत-दलित
सदियन से.
*
राग अलापे
हरियल दूब प
मन-माफिक.
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गहरी जड़
देहात के जीवन
मोह-ममता.
३०-६-२०१४
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