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गुरुवार, 19 मई 2016

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ब्‍लॉग बनाना कितना आसान

ब्‍लॉग शब्‍द वेब और लॉग से मिलकर बने शब्‍द वेबलॉग का संक्षिप्‍त रूप है। भारत में ब्‍लॉग बनाने के लिए ब्‍लॉगर.कॉम सबसे ज्‍यादा लोकप्रिय है। यह वेबसाइट का आसान विकल्‍प है और इसके द्वारा बहुत आसानी से सारे संसार में अपनी बात पहुँचाई जा सकती है। ब्‍लॉग बनाने की सुविधा नि:शुल्‍क उपलब्‍ध है। इसके लिए सिर्फ एक इंटरनेट कनेक्‍शन, एक अदद कम्‍प्‍यूटर और एक ईमेल आईडी की आवश्‍यकता होती है। यह ईमेल एकाउंट किसी भी वेबसाइट का हो सकता है। ब्‍लॉग बनाने के लिए इंटरनेट ब्राउजर में www.blogger.com टाइप करें। खुलने वाले पृष्‍ठ परयूजरनेम और पॉसवर्ड वाले खानों में अपने पहले से बनाए हुए ईमेल (यदि ईमेल एकाउंट न हो, तो पहले उसे बना लें) के यूजरनेम और पॉसवर्ड लिखें और साइन-इन कर दें। उसके बाद सामने आने वाले फार्म में जरूरी जानकारी भरें और आगे बढ़े।

आगे बढ़ने पर आपसे ब्‍लॉग का नाम पूछा जाएगा। यह हिन्‍दी और अंग्रेजी दोनों में हो सकता है। ब्‍लॉग के नाम के बाद अगला कॉलम ब्‍लॉग एड्रेस का होता है। इसमें http:// तथा .blogspot.com पहले से लिखा होता है, उसके बीच में आप मनचाहा एड्रेस भर सकते हैं। यदि आप मेरा वतन नामक ब्‍लॉग बनाना चाहते हैं, तो आपके ब्‍लॉग का पता हो जाएगा http://meravatan.blogspot.com। लेकिन यदि meravatan नाम को पहले से किसी व्‍यक्ति ने रजिस्‍टर्ड करा रखा होगा, तो आप उसमें एक  बढ़ाकर meraavatan भी कर सकते हैं अथवा अन्‍य कोई अंक वगैरह जोड़ कर भी ट्राई कर सकते हैं। जो पता यहां पर स्‍वीकृत हो जाएगा, वही आपके ब्‍लॉग का यूआरएल कहलाएगा और उसे टाइप करके पूरे विश्‍व में आपका ब्‍लॉग देखा जा सकेगा।

ब्‍लॉग का नाम, पता (और वर्ड वेरीफिकेशन भरने) के बाद दूसरे स्‍टेप में आपसे टेम्‍पलेट चुनने के लिए कहा जाएगा। टेम्‍पलेट का मतलब होता है, ब्‍लॉग का रंग-रूप। वहाँ पर जो भी डिजाइन उपलब्‍ध हों, उसमें से कोई एक चुन लें औरकन्‍टीन्‍यू करें। वर्तमान में आप अपने ब्‍लॉग के पोस्टिंग मोड में हैं। ब्‍लॉग के नाम के नीचे जहाँ पर पोस्टिंग लिखा हुआ दिख रहा है, उसके दाईं ओर क्रमश: कमेंट्स और सेटिंग लिखा हुआ है। आप सेटिंग विकल्‍प का चयन कर लें। सेटिंग मोड में सर्वप्रथम बेसिक टैब होता है। उसमें पेज के नीचे की ओर इनेबल ट्रांसलिटरेशन होता है। उसेयस कर दें तथा किये गये संशोधन को सेव कर लें। तदुपरांत सेटिंग के फॉरमेटिंग टैब का चयन करें। इसमेंटाइम ज़ोन के सामने दिये गये विकल्‍पों में (GMT+05.30) India Standard Time तथा लैंग्‍वेज में हिन्‍दी’ का ऑप्‍शन चुन लें। ऐसा करने के बाद पेज के नीचे मौजूद सेव ऑप्‍शन को क्लिक करके सभी सेटिंग को सुरक्षित कर लें।

ब्‍लॉग की सेटिंग संशोधित करने के बाद पोस्टिंग और सेटिंग वाली लाइन के ऊपर बाईं ओर नजर डालें। वहां पर ईमेल आईडी के बगल में डैशबोर्ड लिखा नजर आएगा। इसे क्लिक करें, जिससे ब्‍लॉग का डैशबोर्ड खुल जाएगा।डैशबोर्ड में आप द्वारा बनाये गये  (सभी) ब्‍लॉग के उपलब्‍ध ऑप्‍शन, आपकी ब्‍लॉग सम्‍बंधी प्रोफाइल और आप द्वाराफालो (पसंद) किये गये अन्‍य ब्‍लॉगों की ताजी पोस्‍टें (लेख) प्रदर्शित होते हैं। डैशबोर्ड में बाईं ओर दिये एडिट प्रोफाइल का चयन करें और जरूरत के अनुसार जानकारी भरकर अपनी प्रोफाइल अपडेट कर लें। यदि आपके पास अपने फोटो की डिजिटल इमेज हो, तो उसे भी यहां पर अपलोड कर दें। इससे डैशबोर्ड में आपका फोटो दिखने लगेगा। संशोधन करने के बाद नीचे की ओर दिये सेव बटन को दबा कर इन्‍हें सुरक्षित कर लें।

अब आप पुन: डैशबोर्ड में जाएँ। वहाँ पर ब्‍लॉग के नाम के नीचे पोस्टिंग, कमेंट्स, सेटिंग, डिजाइन, मोनेटाइज, स्‍टैट्स आदि विकल्‍प दिख रहे होंगे। पोस्टिंग के द्वारा नया लेख लिखने (ब्‍लॉग की भाषा में इसे पोस्‍ट कहा जाता है) और पुरानी पोस्‍ट को एडिट (संशोधित) करने का काम किया जाता है। कमेंट्स के द्वारा ब्‍लॉग पर आने वाली टिप्‍पणियों को मैनेज किया जाता है। सेटिंग विकल्‍प के द्वारा ब्‍लॉग की तकनीकी व्‍यवस्‍था बदली जाती है। डिजाइनके द्वारा ब्‍लॉग की बनावट संशोधित की जाती है तथा मोनेटाइज के द्वारा ब्‍लॉग पर विज्ञापन लगाए जाते हैं। (ये दोनों विकल्‍प अभी आपके काम के नहीं हैं।) उसके बाद स्‍टैटस का विकल्‍प है, जिसमें ब्‍लॉग पर आने वाले सभी पाठकों का विस्‍तृत विवरण दर्ज रहता है।

कैसे करें हिन्‍दी टाइपिंग? 
ब्‍लॉग में लिखना आरम्‍भ करने के लिए डैशबोर्ड में‍ स्थित पोस्टिंग विकल्‍प को चुनें और न्‍यू पोस्‍ट के कम्‍पोजमोड का चयन करके अपनी मनचाही बात लिखना शुरू कर दें। इस समय आपके ब्‍लॉग में ट्रांसलिटरेशन सुविधा ऑन है, जिसके द्वारा आप रोमन अक्षरों का प्रयोग करके हिन्‍दी में लिख सकते हैं। जैसे अगर आपको लिखना है-मेरा भारत महान। इसके लिए आप अपने कीबोर्ड से टेक्‍स्‍ट एरिया में ‘meraa bhaarat mahaan’ लिखें, वह अपने आप मेरा भारत महान में बदल जाएगा।

कम्‍प्‍यूटर द्वारा टाइप की जाने वाली यह हिन्‍दी आमतौर से प्रयोग में लाए जाने वाले ट्रू टाइप फांट से भिन्‍न होती है और यूनिकोड टाइप फांट कहलाती है। हमारे कम्‍प्‍यूटरों में यह  फांट मंगल के नाम से उपलब्‍ध रहता है। (हो सकता है यह आपको शुरू में थोड़ा सा असहज लगे, लेकिन दो-चार दिन प्रैक्टिस करने के बाद आप इसे सीख जाएंगे और धड़ल्‍ले से टाइप करने लगेंगे।) यदि किन्‍हीं कारणवश यहाँ पर ट्रांसलिटरेशन अर्थात लिप्‍यांतरण काम नहीं कर रहा है, तो आप http://hindikalam.com/ अथवा यहां पर जाकर वहाँ लिप्‍यांतरण के द्वारा हिन्‍दी में लिख सकते हैं। उसके बाद उसे वहां से कॉपी करके यहाँ पर पेस्‍ट कर सकते हैं। 

यदि आपने हिन्‍दी टाइपिंग सीखी है, तो यहां पर जाकर टाइप मशीन की तरह सीधे हिन्‍दी में टाइप कर सकते हैं। और हाँ, यदि आप अपने कम्‍प्‍यूटर में बिना इंटरनेट चलाए (ऑफलाइन रहकर) भी यूनिकोड में टाइप करना चाहते हैं, तो उसके लिए इस लिंक पर जाकर वहाँ दिये गये निर्देशों का पालन करें। आपका कम्‍प्‍यूटर यूनिकोड हिन्‍दी के लिए सक्षम हो जाएगा।

ब्‍लॉग को बनाने के बाद सबसे जरूरी काम है, उसको पाठकों के अनुकूल बनाना, ताकि आपके ब्‍लॉग के बारे में अधिक के अधिक लोग जानें और आपकी लेखनी से लाभान्वित हो सकें।
साभार- हिंदी वर्ल्ड 

शनिवार, 15 मई 2010

विशेष लेख: हिंदी की प्रासंगिकता और चिट्ठाकार -संजीव वर्मा 'सलिल

विशेषलेख:                                           
                        हिंदी की प्रासंगिकता और चिट्ठाकार  


संजीव वर्मा 'सलिल'

हिंदी जनवाणी तो हमेशा से है...समय इसे जगवाणी बनाता जा रहा है. जैसे-जिसे भारतीय विश्व में फ़ैल रहे हैं वे अधकचरी ही सही हिन्दी भी ले जा रहे हैं. हिंदी में संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, उर्दू , अन्य देशज भाषाओँ या अंगरेजी शब्दों के सम्मिश्रण से घबराने के स्थान पर उन्हें आत्मसात करना होगा ताकि हिंदी हर भाव और अर्थ को अभिव्यक्त कर सके. 'हॉस्पिटल' को 'अस्पताल' बनाकर आत्मसात करने से भाषा असमृद्ध होती है किन्तु 'फ्रीडम' को 'फ्रीडमता' बनाने से नहीं. दीनिक जीवन में  व्याकरण सम्मत भाषा हमेशा प्रयोग में नहीं ली जा सकती पर वह अशीत्या, शोध या गंभीर अभिव्यक्ति हेतु अनुपयुक्त होती है. हमें भाषा के प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च तथा  शोधपरक रूपों में भेद को समझना तथा स्वीकारना होगा. तत्सम तथा तद्भव शब्द हिंदी की जान हैं किन्तु इनका अनुपात तो प्रयोग करनेवाले की समझ पर ही निर्भर है.
हिंदी में शब्दों की कमी को दूर करने की ओर भी लगातार काम करना होगा. इस सिलसिले में सबसे अधिक प्रभावी भूमिका चिट्ठाकार निभा सकते हैं. वे विविध प्रदेशों, क्षेत्रों, व्यवसायों, रुचियों, शिक्षा, विषयों, विचारधाराओं, धर्मों तथा सर्जनात्मक प्रतिभा से संपन्न ऐसे व्यक्ति हैं जो प्रायः बिना किसी राग-द्वेष या स्वार्थ के सामाजिक साहचर्य के प्रति असमर्पित हैं. उनमें से हर एक को अलग-अलग शब्द भंडार की आवश्यकता है. कभी शब्द मिलते हैं कभी नहीं. यदि वे न मिलनेवाले शब्द को अन्य चिट्ठाकारों से पूछें तो अन्य अंचलों या बोलियों के शब्द भंडार में से अनेक शब्द मिल सकेंगे. जो न मिलें उनके लिये शब्द गढ़ने का काम भी चिट्ठा कर सकता है. इससे हिंदी का सतत विकास होगा. सिविल इन्जीनियरिंग को हिंदी में नागरिकी अभियंत्रण या स्थापत्य यांत्रिकी किअटने कहना चाहेंगे? इसके लिये अन्य उपयुक्त शब्द क्या हो? 'सिविल' की हिंदी में न तो स्वीकार्यता है न सार्थकता...फिर क्या करें? सॉइल, सिल्ट, सैंड, के लिये मिट्टी/मृदा, धूल तथा रेत का प्रयोग मैं करता हूँ पर उसे लोग ग्रहण नहीं कर पाते. 

सामान्यतः धूल-मिट्टी को एक मान लिया जाता है. रोक , स्टोन, बोल्डर, पैबल्स, एग्रीगेट को हिंदी में क्या कहें?  मैं इन्हें चट्टान, पत्थर, बोल्डर, रोड़ा, तथा गिट्टी लिखता हूँ . बोल्डर के लिये कोई शब्द नहीं है? रेत के परीक्षण में  'मटेरिअल रिटेंड ऑन सीव' तथा 'मटेरिअल पास्ड फ्रॉम सीव' को हिंदी में क्या कहें? मुझे एक शब्द याद आया 'छानन' यह किसी शब्द कोष में नहीं मिला. छानन का अर्थ किसी ने छन्नी से निकला पदार्थ बताया, किसी ने छन्नी पर रुका पदार्थ तथा कुछ ने इसे छानने पर मिला उपयोगी या निरुपयोगी पदार्थ कहा.

काम करते समय आपके हाथ में न तो शब्द कोष होता है, न समय. सामान्यतः लोग गलत-सलत अंगरेजी लिखकर काम चला रहे हैं. लोक निर्माण विभाग की दर अनुसूची आज भी सिर्फ अंगरेजी मैं है. निविदा हिन्दी में है किन्तु उस हिन्दी को कोई नहीं समझ पाता, अंगरेजी अंश पढ़कर ही काम करना होता है. किताबी या संस्कृतनिष्ठ अनुवाद अधिक घातक है जो अर्थ का अनर्थ कर देता है. न्यायलय में मानक भी अंगरेजी पाठ को ही माना जाता है. हर विषय और विधा में यह उलझन है. मैं मानता हूँ कि इसका सामना करना ही एकमात्र रास्ता है किन्तु चिट्ठाजगत में एक मंच ऐसा ही कि ऐसे प्रश्न उठाकर समाधान पाया जा सके तो...? सोचें...

                             भाषा और साहित्य से सरकार जितना दूर हो बेहतर... जनतंत्र में जन, लोकतंत्र में लोक, प्रजातंत्र में प्रजा हर विषय में सरकार का रोना क्यों रोती है? सरकार का हाथ होगा तो चंद अंगरेजीदां अफसर वातानुकूलित कमरों में बैठकर ऐसे हवाई शब्द गढ़ेगे जिन्हें जनगण जान या समझ ही नहीं सकेगा. राजनीति विज्ञान में 'लेसीज फेयर' का सिद्धांत है आशय वह सरकार सबसे अधिक अच्छी है जो सबसे कम शासन करती है. भाषा और साहित्य के सन्दर्भ में यही होना चाहिए. लोकशक्ति बिना किसी भय और स्वार्थ के भाषा का विकास देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप करती है. कबीर, तुलसी सरकार नहीं जन से जुड़े और जन में मान्य थे. भाषा का जितना विस्तार इन दिनों ने किया अन्यों ने नहीं. शब्दों को वापरना, गढ़ना, अप्रचलित अर्थ में प्रयोग करना और एक ही शब्द को अलग-अलग प्रसंगों में अलग-अलग अर्थ देने में इनका सानी नहीं. 

                                                      
चिट्ठा जगत ही हिंदी को विश्व भाषा बना सकता है? अगले पाँच सालों के अन्दर विश्व की किसी भी अन्य भाषा की तुलना में हिंदी के चिट्ठे अधिक होंगे. के उनकी सामग्री भी अन्य भाषाओँ के चिट्ठों की सामग्री से अधिक प्रासंगिक, उपयोगी व् प्रमाणिक होगी? इस प्रश्न का उत्तर यदि 'हाँ' है तो सरकारी मदद या अड़चन से अप्रभावित हिन्दी सर्व स्वीकार्य होगी, इस प्रश्न का उत्तर यदि 'नहीं" है तो हिंदी को 'हां' के लिये जूझना होगा...अन्य विकल्प नहीं है. शायद अकम ही लोग यह जानते हैं कि विश्व के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मंडल और आकाशगंगा के परे संभावित सभ्यताओं से संपर्क के लिये विश्व की सभी भाषाओँ का ध्वनि और लिपि को लेकर वैज्ञानिक परीक्षण कर संस्कृत तथा हिन्दी को सर्वाधिक उपयुक्त पाया है तथा इनदोनों और कुछ अन्य भाषाओँ में अंतरिक्ष में संकेत प्रसारित किए जा रहे हैं ताकि अन्य सभ्यताएँ धरती से संपर्क कर सकें. अमरीकी राष्ट्रपति अमरीकनों को बार-बार हिन्दी सीखने के लिये चेता रहे हैं किन्तु कभी अंग्रेजों के गुलाम भारतीयों में अभी भी अपने आकाओं की भाषा सीखकर शेष देशवासियों पर प्रभुत्व ज़माने की भावना है. यही हिन्दी के लिये हानिप्रद है.


भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है तो भारतीयों की भाषा सीखना विदेशियों की विवशता है. विदेशों में लगातार हिन्दी शिक्षण और शोध का कार्य बढ़ रहा है. हर वर्ष कई विद्यालयों और कुछ विश्व विद्यालयों में हिंदी विभाग खुल रहे हैं. हिन्दी निरंतर विकसित हो रहे है जबकि उर्दू समेत अन्य अनेक भाषाएँ और बोलियाँ मरने की कगार पर हैं. इस सत्य को पचा न पानेवाले अपनी मातृभाषा हिन्दी के स्थान पर राजस्थानी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, अवधी, ब्रज, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, निमाड़ी, बुन्देली या बघेली लिखाकर अपनी बोली को राष्ट्र भाषा या विश्व भाषा तो नहीं बना सकते पर हिंदी भाषियों की संख्या कुछ कम जरूर दर्ज करा सकते हैं. इससे भी हिन्दी का कुछ बनना-बिगड़ना नहीं है. आगत की आहत को पहचाननेवाला सहज ही समझ सकता है कि हिंदी ही भावी विश्व भाषा है. आज की आवश्यकता हिंदी को इस भूमिका के लिये तैयार करने के लिये शब्द निर्माण, शब्द ग्रहण, शब्द अर्थ का निर्धारण, अनुवाद कार्य तथा मौलिक सृजन करते रहना है जिसे विश्व विद्यालयों की तुलना में अधिक प्रभावी तरीके से चिट्ठाकर कर रहे हैं.

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम/ सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम