कुल पेज दृश्य

sohan paroha 'salil' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
sohan paroha 'salil' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 10 जुलाई 2013

दोहा सलिला :6 सोहन परोहा 'सलिल'

doha salila

pratinidhi doha kosh 6- 

Soahn Paroha 'Salil', jabalpur  


प्रतिनिधि दोहा कोष ६: 

 इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती  नवीन सी. चतुर्वेदी, पूर्णिमा बर्मन तथा प्रणव भारती,  डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र' तथा अर्चना मलैया के दोहे। आज अवगाहन कीजिए श्री सोहन परोहा 'सलिल' रचित दोहा सलिला में :


*
जन्म: 8 नवम्बर 1975 जबलपुर  मध्य प्रदेश आत्मज: ।
जीवन संगी: श्रीमति शिवानी परोहा 'कौमुदी'।
शिक्षा: ।
सृजन विधा: कविता, लघुकथा आदि. 
संपर्क : परोहा डेवलपर्स, गोविन्द भवन, सिविल लाइन्स जबलपुर। चलभाष : ०९८२७३९६९१४।  सोहन परोहा 'सलिल'
*
कागा अब मत बोलियो, मत ठगियो विश्वास
जानेवाले कब फिरें, करें कौन की आस
*
सारे रंग बेरंग हैं, सारी खुशियाँ चूर
होली के त्यौहार में, सांवरिया हैं दूर
*
बिरहा की इस आग में, जरत जिया दिन रैन
तिस पर ये कोयल मुई, बोले मीठे बैन
*
मन व्याकुल है शाम से, अब घिर आई रात
झींगुर का कोमल रुदन, करे और आघात
*
सलिल तुम्हारे साथ भी, अजब विरोधाभास
तन है माया जाल में, मन में है सन्यास 
*
निष्ठुर  है यह जग सलिल, करता है उपहास
तुम निस्पृह होकर जियो, करो न रोदन हास
*
पंख खुले होते अगर, छू लेते आकाश
पिंजरा है ये जगत का, कैसे आऊँ पास
*
तन के पंच प्रदीप हैं, जलते हैं अविराम
जीवन भर जो काल से, करते हैं संग्राम
*
आये थे  संसार में, लेकर जीवन-ज्योत
समय हुआ तो उड़ चले, देखो प्राण कपोत
*
है शब्दों के रूप में, जीवन का संगीत
करुणा का आवेग है, लिखता है जो गीत
*
इन गीतों में ही सलिल, अंकित हैं उदगार
युग युग से हैं जो सदा, कविता के आधार
*****