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शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

दोहा मुक्तिका ... आस प्रिया है श्वास की --संजीव 'सलिल



दोहा मुक्तिका ...
आस प्रिया है श्वास की
संजीव 'सलिल
*
आस प्रिया है श्वास की, जीवन है मधु मास.
त्रास-हास सम भाव से, सहिये बनिए ख़ास..

रास न थामें और की, और न थामे रास.
करें नियंत्रण स्वयं पर, तभी रचाएं रास..

कोई न ग्रस्त काल को, सभी काल के ग्रास.
बन कर सूरज चमक ले, बौना हो खग्रास..

जब मुश्किल का समय हो कोई न डाले घास.
तिमिर घेर ले तो नहीं, आती छाया पास..

हो संकल्प सुदृढ़ अगर, चले मरुत उनचास.
डिगा नहीं सकता तनिक, होता सफल प्रयास..

तम पग-तल धरकर दिया, देता 'सलिल' उजास.
मौन भाव से मौत वर, होता नहीं उदास..

कौन जिसे होता नहीं, कभी सत्य-आभास.
सच वर ले यदि 'सलिल' हो, जीवन सुमन-सुवास..

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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

रविवार, 21 अगस्त 2011

एक रचना: काल --संजीव 'सलिल'

एक रचना:                                                                                
काल
--संजीव 'सलिल'

*
काल की यों करते परवाह...
*
काल ना सदय ना निर्दय है.
काल ना भीत ना निर्भय है.
काल ना अमर ना क्षणभंगुर-
काल ना अजर ना अक्षय है.
काल पल-पल का साथी है
काल का सहा न जाए दाह...
*
काल ना शत्रु नहीं है मीत.
काल ना घृणा नहीं है प्रीत.
काल ना संग नहीं निस्संग-
काल की हार न होती जीत.
काल है आह कभी है वाह...
*
काल माने ना राजा-रंक.
एक हैं सूरज गगन मयंक.
काल है दीपक तिमिर उजास-
काल है शंका, काल निश्शंक.
काल अनचाही पलती चाह...
*
काल को नयन मूँदकर देख.
काल है फलक खींच दे रेख.
भाल को छूकर ले तू जान-
काल का अमित लिखा है लेख.
काल ही पग, बाधा है राह...
*
काल का कोई न पारावार.
काल बिन कोई न हो व्यापार.
काल इकरार, काल इसरार-
काल इंकार, काल स्वीकार.
काल की कोई न पाये थाह...
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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com