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शुक्रवार, 24 मई 2013

bundeli muktika acharya sanjiv verma 'salil'

बुन्देली मुक्तिका:
मंजिल की सौं...
संजीव
*
मंजिल की सौं, जी भर खेल
ऊँच-नीच, सुख-दुःख. हँस झेल

रूठें तो सें यार अगर
करो खुसामद मल कहें तेल

यादों की बारात चली
नाते भए हैं नाक-नकेल

आस-प्यास के दो कैदी
कार रए साँसों की जेल

मेहनतकश खों सोभा दें
बहा पसीना रेलमपेल
*