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गुरुवार, 17 जून 2021

मुक्तक गीत

मुक्तक गीत:
जिसकी यादों में 'सलिल', खोया सुबहो-शाम.
कण-कण में वह दीखता, मुझको आठों याम..
दूरियाँ उससे जो मेरी हैं, मिटा लूँ तो चलूँ
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……
*
मैं तो साया हूँ, मेरा ज़िक्र भी कोई क्यों करे.
जब भी ले नाम मेरा, उसका ही जग नाम वरे..
बाग़ में फूल नया कोई खिला लूँ तो चलूँ
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ …… 
*
ईश अम्बर का वो, वसुधा का सलिल हूँ मैं तो
वास्तव में वही श्री है, कुछ नहीं हूँ मैं तो..
बनूँ गुमनाम, मिला नाम भुला लूँ तो चलूँ.
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……
*
वही वो शेष रहे, नाम न मेरा हो कहीं.
यही अंतिम हो 'सलिल', अब तो न फेरा हो कहीं..
नेह का गेह तजे देह, विदा दो तो चलूँ.
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……
१७-६-२०१०
****************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम/ सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

सरस्वती वंदना अंबरीश श्रीवास्तव

सरस्वती वंदना
अंबरीश श्रीवास्तव, सीतापुर
*
चतुर्भुजी माँ ब्राह्मी, वीणा पुस्तक सार | 
ज्ञान स्रोत हिन्दी बने, इसका हो व्यवहार || 
ज्ञानदायिनी शारदे, सब हों हिन्दी मीत | 
हिन्दी के व्यवहार से, छाये सबमें प्रीति || 
दुर्गम है हिन्दी नहीं, जन जन की आवाज़ | 
उर अंतर में ये बसी, अनुशासित अंदाज || 
यति गति लय भी गद्य में, रक्खें इसका ध्यान | 
अपनी शैली में लिखें , होगा कार्य महान || 
बोधगम्य हिन्दी लिखें, भरें शब्द भंडार | 
छोटे छोटे वाक्य हों , समुचित वर्ण प्रकार || 
सहज सौम्य अनुकूलतम, शब्दों का विन्यास | 
मुखरित होयें भाव सब , कर लें यही प्रयास || 
देना होगा ध्यान अब, देखें चिन्ह विराम | 
मात्राएँ सब ठीक हों, अवलोकें अभिराम || 
शब्दों की संयोजना , मन में उठते भाव | 
हिंदी में अभिव्यंजना , छोड़े अमिट प्रभाव || 
हिन्दी में सब काम हो , हिन्दी हो आधार | 
मातु करो सब पर कृपा, अपनी ये मनुहार ||

मंगलवार, 29 मई 2018

साहित्य त्रिवेणी ७ अम्बरीश श्रीवास्तव 'अंबर' -हिंदी चित्रपटीय गीतों में छंद

७. हिंदी चित्रपटीय गीतों में छंद
इंजी० अंबरीष श्रीवास्तव ‘अंब

परिचय: आत्मज श्रीमती मिथलेश-स्व. रामकुमार श्रीवास्तव। शिक्षा: स्नातकभूकंपरोधी डिजाइन इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम,  आर्कीटेक्चरल इंजीनियर।  प्रकाशित: काव्य संग्रह जो सरहद पे जाए तथा देश को प्रणाम है, उपलब्धि: इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड २००७, सरस्वती रत्न सम्मानअभियंत्रण श्री सम्मान। अभिरुचि: बाँसुरी वादन,कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ। पता:९१,आगा कालोनी, सिविल लाइंस, सीतापुर।  चलभाष:९४१५०४७०२०८८५३२७३०६६८२९९१३२२३७, दूरभाष: ०५८६२-२४४४४०, ईमेल: ambarishji@gmail.com,  http://www.worldlibrary.in/articles/eng/Ambarish_Srivastava
*
साहित्य, किसी वाङमय की समग्र सामग्री का नाम है। इस नश्वर संसार में जितना भी साहित्य मिलता है उनमें सर्वाधिक प्राचीनतम ऋग्वेद है और ऋग्वेद को छंदोबद्ध रूप में ही रचा गया है है। यह इस बात का अकाट्य प्रमाण है कि उस समय भी कला व विशेष कथन हेतु छंदों का प्रयोग होता था। छंद को यदि पद्य रचना का मापदंड कहें तो किसी प्रकार की अतिशयोक्ति न होगी। बिना कठिन साधना के कविता में छंद योजना को कदापि साकार नहीं किया जा सकता।वैदिकच्छंदसां प्रयोजनमाह आचार्यो वटः, स्वर्यं यशस्यमायुष्यं पुण्यं वृध्दिकरं शुभम्। कीर्तिमृग्यं यशस्यञ्च छंदसां ज्ञानमुच्यते ॥इति
हमारी हिंदी फिल्मों के अत्यंत कर्णप्रिय व मधुर गीत बरबस ही हम सबका मन मोह लेते हैं। प्रश्न उठता है कि उनके कर्णप्रिय होने का राज क्या है? इसका सटीक उत्तर है कि वे किसी न किसी छंद पर आधारित होते ही हैं। आवश्यक नहीं है कि वे सिर्फ एक ही छंद विशेष में ढले हों अपितु उनके स्थायी व अंतरा में अलग-अलग छंदों का प्रयोग भी देखने को मिलते हैं। गीतों की यही छंदबद्धता उनमें आकर्षण उत्पन्न करते हुए उन्हें गेय बनाती है। पुराने फ़िल्मी गीतों का प्रारंभ बहुधा एक दोहे से हुए करता था जो कि हमारे मन को आह्लादित करता था। चाँद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा गीत में उसका आरंभ सब तिथियन का चंद्रमा, जो देखा चाहो आज। धीरे-धीरे घूँघटा, सरकाओ सरताज' दोहे से ही हुआ है। अब विधाता या शुद्धगा छंद आधारित फ़िल्मी गीतों पर एक दृष्टि डालते हैं.... 
विधाता छंद:
विधान: यमाता दीर्घ चारों हों विधाता छंद हो जाए / जहाँ चारों मिलें साथी वहाँ आनंद हो जाए विधाता या शुद्धगा छंद का सूत्र है: (यगण+गुरु) x ४ अर्थात ४ x (यमाता गा) यहाँ गा का तात्पर्य गुरु से है) या १२२२ १२२२ १२२२ १२२२। उर्दू में इसे बहर-ए-हज़ज़ मुसम्मन सालिम कहते हैं जिसके अरकान हैं 'मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन' इस छंद पर आधारित फ़िल्मी गीतों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:
(१)   बहारों फू/ल बरसाओ/ मेरा महबू/ब आया है 
(२)  किसी पत्थर / की मूरत से/ मुहब्बत का/ इरादा है 
(३)  भरी दुनिया / में आके दिल/ को समझाने/ कहाँ जाएँ 
(४) चलो इक बा/र फिर से अज/नबी बन जा/एँ हम दोनों  
(५) ये मेरा प्रे/म पत्र पढ़कर/ कि तुम नारा/ज ना होना 
(६)  कभी पलकों/ में आँसू हैं/ कभी लब पे/ शिकायत है  
(७) ख़ुदा भी आ/समां से जब/ ज़मीं पर दे/खता होगा  
(८)  ज़रा नज़रों/ से कह दो जी/ निशाना चू/क ना जाए  
(९)  मुहब्बत ही/ न समझे जो/ वो जालिम प्या/र क्या जाने  
(१०) हजारों ख्वा/हिशें इतनी/ कि हर ख्वाहिश/ पे दम निकले  
(११) बहुत पहले/ से उन क़दमों/ की आहट जा/न लेते हैं 
(१२)  मुझे तेरी/ मुहब्बत का/ सहारा मिल/ गया होता  
(१३) सुहानी चाँ/दनी रातें/ हमें सोने/ नहीं देतीं  
(१४) कभी तन्हा/ईयों में भी/ हमारी या/द आएगी   
गीतिका छंद: 
पिंगलशास्त्र के अनुसार गीतिका छंद का विधान निम्न है: चार चरण, १४ पर यति देते हुए प्रत्येक में १४-१२ के क्रम से २६ मात्राएँ, ३री१०वीं१७वी२४वी मात्रा अनिवार्यतः लघु, कम से कम प्रथम दो व अंतिम दो चरण समतुकांत, अंत में गुरु-लघु/रगण, कर्णमधुर
गीतिका में ही छंद गीतिका की परिभाषा: 
चार चरणी छंद मात्रिकअंत लघु-गुरु 'गीतिका'
योग है छब्बीस मात्राप्रति चरणसुर प्रीति का
तीन दस सत्रह व चौबिसचाहिए लघु मात्रिका
शेष बारह चौदवीं यतितुक मनोहर वीथिका
गीतिका का शिल्प सूत्र गीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका’, गणसूत्र राजभागा राजभागा राजभागा राजभा अर्थात २१२२ २१२२ २१२१ २१२ है यहाँ गा का तात्पर्य गुरु से है  का उर्दू विधान में इसे बहर-ए-रमल मुसम्मन महजूफ़ कहते हैं सके अरकान फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन हैं। इस छंद पर आधारित कुछ फ़िल्मी गीत निम्नलिखित हैं:.  
(१) दिल ही दिल में/ ले लिया दिल/ मेहरबानी/ आपकी 
(२) आपकी नज/रों ने समझा/ प्यार के का/ बिल मुझे (स्थायी) उपरोक्त गीत के अंतरे में निम्न प्रकार से शिल्प में आंशिक  परिवर्तित हो रहा है:
जी हमें मं/ जूर था/ आपका ये/ फैसला (राजभागा राजभा राजभागा राजभा)
कह रही है/ हर नजर/ बंदापरवर/ शुक्रिया (राजभागा राजभा राजभागा राजभा)
तद्पश्चात उपरोक्त गीत पुनः मूल शिल्प में आ जाता है 
हँस के अपनी/ ज़िन्दगी में/ कर लिया शा/मिल मुझे
(३) दिल के टुकड़े/ टुकड़े करके/ मुस्कुरा के/ चल दिए
(४)  चुपके चुपके/ रात दिन आँ/सू बहाना/ याद है
(५) हुस्नवालों/ को खबर क्या/ बेखुदी क्या/ चीज है
(६) यारी है ई/मान मेरा/ यार मेरी/ ज़िंदगी
(७) मंज़िलें अप/नी जगह हैं/ रास्ते अप/नी जगह
(८) सरफरोशी/ की तमन्ना/ अब हमारे/ दिल में है 
(९) ऐ गम-ए-दिल/ क्या करूँ ऐ/ वहशत-ए-दिल/ क्या करूँ  
आजकल कुछ विद्वान् 'हिंदी ग़ज़ल को गीतिका कहते हैं। मेरे विचार में इसमें कहे गए मतले और मकते को छोड़कर हिन्दी ग़ज़ल विभिन्न छंदों पर आधारित एक ऐसी विधा है जिसमें कहे गए अधिकांशतः शेरों के में प्रति शेर एक मुक्त पंक्ति का प्रयोग होता ही होता है।  संभवतः इसीलिए आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी ने ‘हिंदी ग़ज़ल को मुक्तिका नाम दिया है| उनके इस कथन में हमारी भी पूर्ण सहमति है |
भुजंगप्रयात छंद: 
इस छंद पर आधारित निम्नलिखित गीत की छटा ही निराली है इसका गणसूत्र यमाता यमाता यमाता यमाता १२२ १२२ १२२ १२२ व उर्दू में अरकान फईलुन फईलुन फईलुन फईलुन है इसका गण विन्यास निम्न है:
तेरे प्या/र का आ/सरा चा/हता हूँ
१२२/ १२२/ १२२/ १२२
वफ़ा कर/ रहा हूँ/ वफ़ा चा/हता हूँ
दुपट्टे/ के कोने/ को मुँह में/ दबा के
ज़रा दे/ख लो इस/ तरफ मुस/कुराके
हमें लू/ट लो मे/रे नजदी/क आ के
के मैं आ/ ग से खे/ लना चा/हता हूँ
वफ़ा कर/ रहा हूँ/ वफ़ा चा/हता हूँ
मत्त सवैया या राधेश्यामी छंद:
अत्यंत लोक-प्रचलित छंद मत्त सवैया या राधेश्यामी छंद जिस पर पंडित राधेश्याम ने राधेश्याम रामायण रची है की बात ही निराली है अपने बचपन में हम, गाँवों में बच्चे-बच्चे को राधेश्यामी रामायण गाते हुए देखा करते थे। हमारे द्वारा रची गयी 'मत्त सवैयामें ही 'मत्त सवैयाकी परिभाषा  निम्न है:
कुल चार चरण गुरु अंतहि हैसब महिमा प्रभु की है गाई 
प्रति चरण जहाँ बत्तिस मात्रायति सोलह-सोलह पर भाई 
उपछंद समान सवैया कापदपादाकुलक चरण जोड़े 
कर नमन सदा परमेश्वर कोक्षण भंगुर जीवन दिन थोड़े 
चार चरण युक्त 'मत्त सवैयाछंद में प्रत्येक पंक्ति  में ३२ मात्राएँ होती हैं, १६१६ मात्राओं पर यति व् अंत गुरु से होता  है। इस पर आधारित गीत है आ जाओ तड़पते हैं अरमां अब रात गुज़रने वाली है. (मात्राएँ १६,१६)
उपरोक्त के जाओ शब्द में  का उच्चारण लघुवत है |
वाचिक द्विभक्ति छंद:  
वाचिक द्विभक्ति छंद का गणसूत्र है 'ताराज यमातागा ताराज यमातागा', २२१ १२२२ २२१ १२२२, मफ़ईलु मफाईलुन मफ़ईलु मफाईलुन  
(१) सौ बार/ जनम लेंगे/ सौ बार/ फ़ना होंगे  
(२) हंगामा/ है क्यों बरपा/थोड़ी सी/ जो पी ली है  
(३) हम तुमसे/ जुदा होके/ मर जायें/गे रो रो के 
(४) जब दीप/ जले आना/ जब शाम/ ढले जाना 
(५) साहिल से/ खुदा हाफ़िज़/ जब तुमने/ कहा होगा  
(६) इक प्यार/ का नगमा है/मौजों की/ रवानी है 
(७) हम आप/की आँखों में/ इस दिल को/ बसा दे तो 
(८) बचपन की/ मुहब्बत को/ दिल से न/ जुदा करना,
    जब याद/ मेरी आए/ मिलने की/ दुआ करना.  -स्थायी)
    घर मेरी/ उम्मीदों का/ अपना कि/ ये जाते हो
    दुनिया ही/ मुहब्बत की/ लूटे लि/ए जाते हो
    जो गम दि/ए जाते हो/ उस गम की/ दवा करना  -अंतरा 
यहाँ पर सबसे विशेष बात यह है कि फ़िल्मी गीतों की धुन सहज ही कंठस्थ हो जाती है। अतः इन धुनों को सहारा लेकर इन धुनों में ही छंद रचना अत्यंत सहज हो जाता है।  इसके बाद जब हम मात्राओं व गणों की गणना करते हैं तो वह तत्संबंधित छंद पर एकदम खरी ही उतरती है।  
 इस प्रकार से हिन्दी चित्रपटीय गीतों कि जितनी विवेचना की जाएगी अर्थात हम जितने ही गहरे उतारेंगें, हमें उनमें निहित छंदों से उतनी ही अधिक आनंद की अनुभूति होगी। 
 (टिप्पणी: उपरोक्त सभी गीतों में लघु-गुरु का निर्धारण उनके उच्चारण के अनुसार किया गया है।)
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गुरुवार, 21 मई 2009

काव्य-किरण : दोहांजलि -अंबरीश श्रीवास्तव


माँ की महिमा


नैनन में है जल भरा, आँचल में आशीष

तुम सा दूजा नहि यहाँ , तुम्हें नवायें शीश


कंटक सा संसार है, कहीं न टिकता पांव

अपनापन मिलता नहीं , माँ के सिवा न ठांव


लोहू से सींचा हमें, काया तेरी देन

संस्कार अपने सब दिए, अद्भुत तेरा प्रेम


रातों को भी जागकर, हमें लिया है पाल

ऋण तेरा कैसे चुके, सोंचे तेरे लाल


स्वारथ है कोई नहीं , ना कोई व्यापार

माँ का अनुपम प्रेम है,. शीतल सुखद बयार


जननी को जो पूजता , जग पूजै है सोय

महिमा वर्णन कर सके, जग में दिखै न कोय


माँ तो जग का मूल है, माँ में बसता प्यार

मातृ-दिवस पर पूजता, तुझको सब संसार


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