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शुक्रवार, 29 मई 2015

doha-sortha salila: sanjiv

दोहा-सोरठा सलिला:

छंद सवैया सोरठा, लुप्त नहीं- हैं मौन
ह्रदय बसाये पीर को, देख रहे चुप कौन?
*
करे पीर से प्रेम जब, छंद तभी होता प्रगट  
बसें कलम में तभी रब, जब आँसू हों आँख में 
*
पीर-प्रेम का साथ ही, राधा-मीरावाद
सूर-यशोदा पीर का, ममतामय अनुवाद
*
शब्द-शब्द आनंद, श्वास-श्वास में जब बसे
तभी गुंजरित छंद, होते बनकर प्रार्थना
*
धुआँ कामना हो गयी, छूटी श्वासा रेल 
जग-जीवन लगने लगा, जीत-हार का खेल 
*
किशन देखता मौन, कितने कहाँ सरोज हैं?
शब्द-वेध कर कौन, बने धंनजय 'सलिल' फिर.
***

गुरुवार, 28 मई 2015

गीत: sanjiv

अभिनव प्रयोग
दोहा-सोरठा गीत
संजीव
*
इतना ही इतिहास,
मनुज, असुर-सुर का रहा
हर्ष शोक संत्रास,
मार-पीट, जय-पराजय
*
अक्षर चुप रह देखते, क्षर करते अभिमान
एक दूसरे को सता, कहते हम मतिमान
सकल सृष्टि का कर रहा, पल-पल अनुसन्धान
किन्तु नहीं खुद को 'सलिल', किंचित पाया जान
अपनापन अनुप्रास,
श्लेष स्नेह हरदम रहा
यमक अधर धर हास,
सत्य सदा कहता अभय
*
शब्द मुखर हो बोलते,  शिव का करिए गान
सुंदर वह जो सनातन, नश्वर तन-मन मान
सत चित में जब बस रहे, भाषा हो रस-खान
पा-देते आनंद तब, छंद न कर अभिमान
जीवन में परिहास,
हो भोजन में नमक सा
जब हो छल-उपहास
साध्य, तभी होती प्रलय
*
मुखड़ा संकेतित करे, रोकें नहीं उड़ान
हठ मत ठानें नापना, क्षण में सकल वितान
अंतर से अंतर मिटा, रच अंतरा सुजान
गति-यति, लय मत भंग कर, तभी सधेगी तान
कुछ कर ले सायास,
अनायास कुछ हो रहा
देखे मौन सहास
अंश पूर्ण में हो विलय
***

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

sortha muktak

सोरठा मुक्तक:

तन-मन रखिए साफ़, तब होगी दीपावली 
दुश्मन को कर माफ़, नीति नहीं है यह भली 
परख मीत की आप, करिए संकट में सदा-
दीन पाये इन्साफ, तब समझें विपदा टली 
*

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

aaj ki rachna

दोहा :

तुलसी जब तुल सी गयी, नागफनी के साथ
वह अंदर यह हो गयी, बाहर विवश उदास. 

शे'र :
लिए हाथों में अपना सर चले पर
नहीं मंज़िल को सर कर सके अब तक

मुकतक :

मेरा गीत शहीद हो गया, दिल-दरवाज़ा नहीं खुला
दुनियादारी हुई तराज़ू, प्यार न इसमें कभी तुला
राह देख पथराती अखियाँ, आस निराश-उदास हुई
किस्मत गुपचुप रही देखती, कभी न पाई विहँस बुला

हाइकु :

ईंट रेत का
मंदिर मनहर
देव लापता

जनक छंद :

नोबल आया हाथ जब
उठा गर्व से माथ तब
आँख खोलना शेष अब

सोरठा :

घटे रमा की चाह, चाह शारदा की बढ़े
गगन न देता छाँह, भले शीश पर जा चढ़े

क्षणिका :

पुज परनारी संग
श्री गणेश गोबर हुए
रूप - रूपए का खेल
पुजें परपुरुष साथ पर
लांछित हुईं न लक्ष्मी

***

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

sortha salila: ho n yantra ka das sanjiv

सोरठा सलिला:
हो न यंत्र का दास
संजीव
*
हो न यंत्र का दास, मानव बने समर्थ अब
रख खुद पर विश्वास, 'सलिल' यांत्रिकी हो सफल
*
गुणवत्ता से आप, करिए समझौता नहीं
रहिए सदा सतर्क, श्रेष्ठ तभी निर्माण हो
*
भूलें नहीं उसूल, कालजयी निर्माण हों
कर त्रुटियाँ उन्मूल, यंत्री नव तकनीक चुन
*
निज भाषा में पाठ, पढ़ो- कठिन भी हो सरल
होगा तब ही ठाठ, हिंदी जगवाणी बने
*
ईश्वर को दें दोष, ज्यों बिन सोचे आप हम
पाते हैं संतोष, त्यों यंत्री को कोसकर
*
जब समाज हो भ्रष्ट, कैसे अभियंता करे
कार्य न हों जो नष्ट, बचा रहे ईमान भी
*
करें कल्पना आप, करिए उनको मूर्त भी
समय न सकता नाप, यंत्री के अवदान को
*
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'