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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

मुक्तिका: कौन चला वनवास रे जोगी? -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                            
कौन चला वनवास रे जोगी?

संजीव 'सलिल'
*

*

कौन चला वनवास रे जोगी?
अपना ही विश्वास रे जोगी.
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बूँद-बूँद जल बचा नहीं तो
मिट न सकेगी प्यास रे जोगी.
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भू -मंगल तज, मंगल-भू की
खोज हुई उपहास रे जोगी.
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फिक्र करे हैं सदियों की, क्या
पल का है आभास रे जोगी?
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गीता वह कहता हो जिसकी
श्वास-श्वास में रास रे जोगी.
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अंतर से अंतर मिटने का
मंतर है चिर हास रे जोगी.
*
माली बाग़ तितलियाँ भँवरे
माया है मधुमास रे जोगी.
*
जो आया है वह जायेगा
तू क्यों हुआ उदास रे जोगी.
*
जग नाकारा समझे तो क्या
भज जो खासमखास रे जोगी.
*
राग-तेल, बैराग-हाथ ले
रब का 'सलिल' खवास रे जोगी.
*
नेह नर्मदा नहा 'सलिल' सँग
तब ही मिले उजास रे जोगी.
*