होली पर राधा- माधव
शार्दुला
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जमुना के तीर, रंग उड़े न अबीर, राधा होती रे अधीर, कान्हा जान लो!
सुभ सुवर्ण सरीर, नैना नील तुनीर, ता में रँगे जदुवीर, राधा मान लो!
लख-लख हुरिहार*, टेसू परस अंगार, राधा जाए न सिधार, कान्हा जान लो!
हिरदय त्यौहार, कब तिथि के उधार, ये तो जग-व्यवहार, राधा मान लो!
निकसे कन्हाई, काहे प्रीत लगाई, होती जग में हंसाई, कान्हा जान लो!
आखर अढ़ाई, मन-आतम बंधाई, माधो-श्यामा परछाईं, रा धा मान लो!
दुनु कमलक फूल, जाएं अलगल कूल, बिंधे बिरह त्रिसूल, कान्हा जान लो! **
तन छनिक दुकूल, तोरे दुःख निरमूल, प्रीति तारे भव-शूल, राधा मान लो!
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* हुरिहार = होली खेलने वाले
** मिथिला के एक खेल 'अटकन-मटकन' से प्रेरित, जिसमें बीच में कहते हैं "कमलक फूल दुनु अलगल जाय".