दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 18 जुलाई 2024
जुलाई १८, सॉनेट, बाल गीत, रसभरी, दोहे, लहर, शब्द, अंगरेजी, राखी, प्रताप, लघुकथा,
रविवार, 1 अक्टूबर 2023
मेरी बगिया के फूल, प्रताप
कवित्व और सांगितिकता प्रधान काव्य को ‘गीतिकाव्य’ कहते हैं। ‘गीति’ का अर्थ हृदय की रागात्मक भावना को छन्दोबद्ध रूप में प्रकट करना है। गीति की आत्मा भावातिरेक है। अपनी रागात्मक अनुभूति और कल्पना से कवि वर्ण्यवस्तु को भावात्मक बना देता है। गीतिकाव्य में काव्यशास्त्रीय रूढ़ियों और परम्पराओं से मुक्त होकर वैयक्तिक अनुभव को सरलता से अभिव्यक्त किया जाता है। किसी विशिष्ट विषय पर केंद्रित प्रबंध योजनानुसार रचित गीतिकाव्य को प्रबंधकाव्य कहते हैं। प्रबंधकाव्य के दो रूप महाकाव्य (विषय से संबद्ध सकल घटनाक्रम पर केंद्रित) तथा खंड काव्य (किसी घटना विशेष या कालखंड विशेष पर केंद्रित) हैं। मुक्तक काव्य विषय विषय के बंधन से मुक्त रहता है।
मुक्तककाव्य की परम्परा स्फुट सन्देश रचनाओं के रूप में वैदिक युग से ही प्राप्त होती है। ऋग्वेद में सरमा नामक कुत्ते को सन्देशवाहक के रूप में भेजने का प्रसंग है। वैदिक मुक्तककाव्य के उदाहरणों में वसिष्ठ और वामदेव के सूक्त, उल्लेखनीय हैं। रामायण, महाभारत और उनके परवर्ती ग्रन्थों में भी इस प्रकार के स्फुट प्रसंग विपुल मात्रा में उपलब्ध होते हैं। कदाचित् महाकवि वाल्मीकि के शोकोद्गारों में यह भावना गोपित रूप में रही है। पतिवियुक्ता प्रवासिनी सीता के प्रति प्रेषित श्री राम के संदेशवाहक हनुमान, दुर्योधन के प्रति धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा प्रेषित श्रीकृष्ण और सुन्दरी दयमन्ती के निकट राजा नल द्वारा प्रेषित सन्देशवाहक हंस इसी परम्परा के अन्तर्गत गिने जाने वाले प्रसंग हैं। इस सन्दर्भ में भागवत पुराण का वेणुगीत तथा कालिदास कृत मेघदूत उद्धरणीय है जिनकी रसविभोर करने वाली भावना व छवि अब तक मुक्तक काव्यों का आदर्श है।
इस पृष्ठ भूमि में ''मेरी बगिया के फूल'' युवा कवि राहुल प्रताप सिंह रचित मुक्तककाव्य है। राहुल समर्पित अध्येता और कर्मठ शिष्य है। वह जिससे जो सीखने योग्य है, सीखता है और विनम्र सम्मान भाव समर्पित कर निरंतर सीखता रहता है, वह उन ज्ञान पिपासुओं में नहीं है जो पंछी की तरह चंद बूंदें पीकर तृप्त हो जाते हैं। इस प्रवृत्ति का परिणाम यह है कि राहुल ने हिंदी व संस्कृत काव्य सलिलाओं की विविध छंद निर्झरियों में अवगाहन कर संतुष्टि पाई है तथा अब वह विविध छंद रचनाओं के माध्यम से काव्यामृत अपने पाठकों को पिला रह है। ''मेरी बगिया के फूल'' के फूल के आरंभ में परंपरा का निर्वहन करते हुए पूज्य जनों (पुरखों और देवगणों) के प्रति प्रणति निवेदन पश्चात ऋतुराज बसंत का यशगान ६४ मात्रिक चौपाई छंद में किया गया है-
पतझड़ में झरकर धरणी पर, पल्लव पुष्प यहाँ बिखरे जब।
नव -पल्लव नव -पुष्प दिखें, तब नव आगंतुक सखा यहाँ सब।।
भ्रमर-पुष्प आलिंगन करते, मन को विचलित ये करते तब।
योग प्रताप करें हठ का अरु, मन को करतेहै वश में अब।।
हिंदी के आदिकवियों में से एक अमीर खुसरो (1253 ईस्वी - अक्तूबर 1325) लोक काव्य 'कहमुकरी' (कोई बात कहकर न स्वीकारना) की ३३ रचनाओं में कहमुकरीकार राहुल ने आशु चिंतन, अवलोकन सामर्थ्य और रसिक दृष्टि का परिचय दिया है-
नित सोलह शृंगार रचाऊँ।
उसे देखकर मैं इठलाऊँ।
सम्मुख उसके करूँ समर्पण।
क्या सखि साजन?, ना सखि दर्पण।।२९।।
६४ मात्रिक चौपाई की आरंभिक ३ पाइयों (चरणों) में पहेली रूप में कुछ कहना, चौथी पाई के अर्ध भाग में सखी द्वारा उत्तर बूझना और शेष अर्ध भाग में नायिका द्वारा उस उत्तर को नकारकर समान लक्षण युक्त अन्य उत्तर बताना, गागर में सागर भरने की तरह है। कहमुकरीकार की शब्द सामर्थ्य और अभिव्यक्ति क्षमता की कठिन परीक्षा लेती है 'कहमुकरी'। किस तरह एक छंद के विधान का पालन करते हुए समर्थ कवि नव छंद का अन्वेषण करता है, उसका श्रेष्ठ उदाहरण है 'कहमुकरी'। राहुल इस कसौटी पर खरे उतरे हैं।
११ कुंडलिनी छंद (एक विषय पर केंद्रित दो समतुकांती द्विपदियाँ जिनका चौथा-पाँचवा चरण समान हो) भी छंद से नव छंद रचना का उदाहरण है-
आया था जब जगत में, बिलख रहा था खूब।
धीरे-धीरे फिर दिखी, मनमोहक सी दूब।
मनमोहक सी दूब, दिखी हरियाली माया।
लगता ऐसा आज, पुन: है सावन आया।।
कुण्डलिया (एक दोहा+एक रोला) छंद में राहुल ने समसामयिक प्रसंगों को उठाया है। दोहा और रोल की लय भिन्नता को साधने में कुंडलिकार को सफलता मिली है।
हिंदी भाषा का करें, स्वयं वही अपमान
जो कहते फिरते दिखें, यही राष्ट्र की शान।।
यही राष्ट्र की शान, बताते जो नर नारी।
हिंदी का उपयोग लगे क्यों उनको भारी।
कहता सदा प्रताप, बने माथे की बिंदी।
देखो कैसे लोग रटेंगे हिंदी-हिंदी।।
सार छंद में विवाह गीत, आरक्षित रेल डब्बे का हाल, सरस छंद में शीत वर्णन, आनंदवर्धक छंद में मातृ वंदना, विधाता छंद में गीत, गीता, पंच चामर, लावणी, ककुभ, ताटंक, अर्धाली, तोटक, पंचचामर, दोहा, रोला, सोरठा, मुक्तक, संस्मरण आदि विविध विधाओं का सृजन कर राहुल ने अपनी सृजन सामर्थ्य का परिचय इस कृति में दिया है।
राहुल के पास शब्द सामर्थ्य है, शब्द चयन का सलीका भी है, छंदों में उनकी रुचि और छंद विधान की समझ भी है। कमी है तो छंद-को आत्मसात करने की। इसके पहले कि एक छंद पर अधिकार हो, वे दूसरे-तीसरे छंद को लिखने लगते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि पूर्व छंद पर अधिकार होने के पहले ही वे अन्य छंद रच रहे होते हैं। आत्म कथ्य और संस्मरण में भी यही जल्दबाजी की गई है। 'मेरी बगिया के फूल' के रचनाकार को समझना होगा कि फूल को महकने का समय देना होता है। एक फूल खिलते ही उसमें पानी सींचना बंद कर नया पौधा लगा दें तो अनेक कलियाँ अनखिली ही मुरझा जाती हैं।
'मेरी बगिया के फूल' एक रंग-बिरंगा गुलदस्ता है जिसकर रूप-रस का पान कर मन आह्लादित हो जाता है। इस बगिया के बागबान में प्रतिभा है, समझ है और सामर्थ्य भी। विश्ववाणी हिंदी का सारस्वत कोश उनकी कलम से नि:सृत विविध विधायी अनेक कृतियों से समृद्ध-संपन्न हो, यही कामना है।
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मंगलवार, 18 जुलाई 2023
अकबर, प्रताप, लघुकथा, राखी, अलंकार, दोहा, शब्द, अंग्रेजी, लहर,सोनेट, बाल कविता
शनिवार, 18 जुलाई 2020
विमर्श: इतिहास और भविष्य
गुरुवार, 18 जुलाई 2019
विमर्श: इतिहास और भविष्य
इतिहास और भविष्य
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अकबर महान है या महाराणा प्रताप???
ये कैसा प्रश्न,कैसा मुद्दा आज पूरे देश मे उठाया जा रहा है??ऐसी दुविधा उत्पन्न करने वाले महानुभावों से मेरा अनुरोध है कि आप इतिहास बदलने पर जितना ज़ोर दे रहे हैं उतना प्रयास व उतना समय एक नया इतिहास गढ़ने में दीजिये।
एक विदुषी ने अपने पन्ने पर अकबर पर लगाए जा रहे आक्षेपों पर आपत्ति करते हुए प्रताप से तुलना पर आपत्ति की है. इस सिलसिले में अपना मत प्रस्तुत कर रहा हूँ आप सबकी राय जानने के लिए.
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इतिहास को पढ़ें और समझें तब कुछ कहें. अकबर कहीं से सुख सुविधा के लिए आया नहीं था. उसके बाप-दादे आये थे. अकबर भारत में ही पैदा हुआ और पाला-पोसा गया था. अकबर केवल सत्ता और भोग-विलास के लिए अपने ही देशवासियों पर जुल्म करता गया. रानी दुर्गावती और चाँद बीबी अकबर की माँ की उम्र की थीं किन्तु दोनों के रूप-लावण्य के चर्चे सुनकर उनक्को अपने हरम में लाने के लिए अकबर ने आक्रमण कर उनके समृद्ध सुसंचालित राज्य नष्ट कर दिए. बुंदेलखंड की विदुषी सुंदरी राय प्रवीण को अपने पास भेजने के लिए ओरछा के राजा को विवश किया. यह दीगर बात है कि राय प्रवीण अपनी बुद्धिमता से बच गयीं. महाराणा प्रताप भी अकबर से बहुत बड़े थे. भारतीय होते हुए भी अकबर ने खुद को कभी भारतीय नहीं समझा, खुद को मुगलिया और तैमूरी कहता रहा. अकबर इस देश की मिट्टी का गुनाहगार है. रावण ने लंका के खिलाफ कभी कुछ नहीं किया. अकबर ने भारत के हित में कुछ नहीं किया. अफ़सोस की खुद को बुद्धिजीवी समझनेवाले बिना इतिहास को समझे दूसरों को कटघरे में खड़ा करते हैं. गोंडवाने के मूल निवासी दुर्गावती के बलिदान के लगभग २७० साल बाद भी उन्हें पूजते और अकबर को लानत भेजते हैं. यही स्थिति राजस्थान में है. क्या आपको यह ज्ञात है कि अकबर के नवरत्नों में सम्मिलित बीरबल और तानसेन भारतीय राजाओं के गद्दार थे. उन्हें अपने राज्यों के भेद बताने और अपने ही राज्यों पर मुग़ल आक्रमण में मदद का पुरस्कार दिया गया था. भारतीय होने के नाते भारत की परम्परा और मूल्यों को समझकर इतिहास का मूल्यांकन करें तो बेहतर होगा.