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शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

नयी कलम: गीत - अमन दलाल

गीत

अमन दलाल

तुम्हे निमंत्रण जो दिया है
जिससे रोशन हूँ मैं,वो दिया है...

चंदन की महकती छाप है उसमें
स्नेह भरा मधुर अलाप हैं उसमें
धड़कने जो हैं, ह्रदय में,
उनकी जीवंत थाप हैं उसमें,
तुम्ही पर निर्भर हैं गान उसका
तुम्ही पर निर्भर मान उसका
तुम्हारी यादों के एकांत में,
हर पल बोझिल जो जिया है
तुम्हे जो निमंत्रण दिया है.......

स्वरों में तुम्हारे जो झनकार सी है,
अधरों पर ये हँसी अलंकार सी है,
मन को मात्र उन्ही की मुग्धता है ,
माथे पर जो सलवटें श्रृंगार सी हैं.
अब तुम भी कहो,दो बातें छल की,
नैनों में छिपे गहरे जल की,
अब क्यों इन होंठो को सिया हैं
तुम्हे जो निमंत्रण दिया हैं…….

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