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शुक्रवार, 28 जून 2019

दोहा मुक्तिका

दोहा मुक्तिका:
काम न आता प्यार 
काम न आता प्यार यदि, क्यों करता करतार।। 
जो दिल बस; ले दिल बसा, वह सच्चा दिलदार।। 
*
जां की बाजी लगे तो, काम न आता प्यार।
सरहद पर अरि शीश ले, पहले 'सलिल' उतार।।
*
तूफानों में थाम लो, दृढ़ता से पतवार।
काम न आता प्यार गर, घिरे हुए मझधार।।
*
गैरों को अपना बना, दूर करें तकरार।
कभी न घर में रह कहें, काम न आता प्यार।।
*
बिना बोले ही बोलना, अगर हुआ स्वीकार।
'सलिल' नहीं कह सकोगे, काम न आता प्यार।।
*
मिले नहीं बाज़ार में, दो कौड़ी भी दाम।
काम न आता प्यार जब, रहे विधाता वाम।।
*
राजनीति में कभी भी, काम न आता प्यार।
दाँव-पेंच; छल-कपट से, जीवन हो निस्सार।।
*
काम न आता प्यार कह, करें नहीं तकरार।
कहीं काम मनुहार दे, कहीं काम इसरार।।
*
२८.६.२०१८, ७९९९५५९६१८

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

दोहा मुक्तिका

दोहा मुक्तिका
*
झुरमुट से छिप झाँकता, भास्कर रवि दिननाथ।
गाल लाल हैं लाज से, दमका ऊषा-माथ।।
*
कागा मुआ मुँडेर पर, बैठ न करता शोर।
मन ही मन कुछ मानता, मना रहे हैं हाथ।।
*
आँख टिकी है द्वार पर, मन उन्मन है आज।
पायल को चुप हेरती, चूड़ी कंडा पाथ।।
*
गुपचुप आ झट बाँह में, भरे बाँह को बाँह।
कहे न चाहे 'छोड़ दो', देख न ले माँ साथ।।
*
कुकड़ूँ कूँ ननदी करे, देवर देता बाँग।
बीरबहूटी छुइमुई, छोड़ न छोड़े हाथ।।
***
संवस, ९.४.२०१९
७९९९५५९६१८

दोहा मुक्तिका

दोहा मुक्तिका
*
सत्य सनातन नर्मदा, बाँच सके तो बाँच.
मिथ्या सब मिट जाएगा, शेष रहेगा साँच..
*
कथनी-करनी में कभी, रखना तनिक न भेद.
जो बोया मिलता वही, ले कर्मों को जाँच..
*
साँसें अपनी मोम हैं, आसें तपती आग.
सच फौलादी कर्म ही सह पाता है आँच..
*
उसकी लाठी में नहीं, होती है आवाज़.
देख न पाते चटकता, कैसे जीवन-काँच..
*
जो त्यागे पाता 'सलिल', बनता मोह विछोह.
एक्य द्रोह को जय करे, कहते पांडव पाँच..
***
संवस, ७९९९५५९६१८

बुधवार, 23 जनवरी 2019

दोहा मुक्तिका

दोहा मुक्तिका
*
हर संध्या संजीव हो, स्वप्नमयी हो रात।
आँख मिलाकर ज़िंदगी, करे प्रात से बात।।
*
मंजूषा मन की रहे, स्नेह-सलिल भरपूर।
द्वेष न कर पाए कभी, सजग रहें आघात।।
*
ऋतु बसंत की आ रही, झूम मंजरी शाख।
मधुरिम गीत सुना रही, दे कोयल को मात।।
*
जब-जब मन उन्मन हुआ, तुम ही आईं याद।
सफल साधना दे गई, सपनों की सौगात।।
*
तन्मय होकर रूप को, आराधा दिन-रैन।
तन तनहा ही रह गया. चुप अंतर्मन तात।।
*
संजीव
२३.१.२०१९

बुधवार, 16 जनवरी 2019

doha muktika

दोहा मुक्तिका
संजीव 

दोहा दर्पण में दिखे, साधो सच्चा रूप। 
पक्षपात करता नहीं, भिक्षुक हो या भूप।।
*
सार-सार को गह रखो, थोथा देना फेंक।
मनुज स्वभाव सदा रखो, जैसे रखता सूप।।
*
प्यासा दर पर देखकर, द्वार न करना बंद।
जल देने से कब करे, मना बताएँ कूप।।
*
बिसरा गौतम-सीख दी, तज अचार-विचार।
निर्मल चीवर मलिन मन, नित प्रति पूजें स्तूप।।
*
खोट न अपनी देखती, कानी सबको टोंक।
सब को कहे कुरूप ज्यों, खुद हो परी अनूप।।
***
१६-१२-२०१८

रविवार, 16 दिसंबर 2018

doha muktika

दोहा मुक्तिका
संजीव 

दोहा दर्पण में दिखे, साधो सच्चा रूप। 
पक्षपात करता नहीं, भिक्षुक हो या भूप।।
*
सार-सार को गह रखो, थोथा देना फेंक।
मनुज स्वभाव सदा रखो, जैसे रखता सूप।।
*
प्यासा दर पर देखकर, द्वार न करना बंद।
जल देने से कब करे, मना बताएँ कूप।।
*
बिसरा गौतम-सीख दी, तज अचार-विचार।
निर्मल चीवर मलिन मन, नित प्रति पूजें स्तूप।।
*
खोट न अपनी देखती, कानी सबको टोंक।
सब को कहे कुरूप ज्यों, खुद हो परी अनूप।।
***
१६-१२-२०१८

सोमवार, 26 नवंबर 2018

doha muktika

दोहा मुक्तिका
*
स्नेह भारती से करें, भारत माँ से प्यार। 
छंद-छंद को साधिये, शब्द-ब्रम्ह मनुहार।।
*
कर सारस्वत साधना, तनहा रहें न यार।
जीव अगर संजीव हों, होगा तब उद्धार।।
*
मंदिर-मस्जिद बन गए, सत्ता हित हथियार।।
मन बैठे श्री राम जी, कर दर्शन सौ बार।।
*
हर नेता-दल चाहता, उसकी हो सरकार।।
नित मनमानी कर सके, औरों को दुत्कार।।
*
सलिला दोहा मुक्तिका, नेह-नर्मदा धार।
जो अवगाहे हो सके, भव-सागर से पार।।
*
संजीव
२५.११.२०१८

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

दोहा मुक्तिका

दोहा मुक्तिका
*
नव हिलोर उल्लास की, बनकर सृजन-उमंग.
शब्द लहर के साथ बह, गहती भाव-तरंग .
*
हिय-हुलास झट उमगकर, नयन-ज्योति के संग.
तिमिर हरे उजियार जग, देख सितारे दंग.
*
कालकूट को कंठ में, सिर धारे शिव गंग.
चंद मंद मुस्का रहा, चुप भयभीत अनंग.
*
रति-पति की गति देख हँस, शिवा दे रहीं भंग.
बम भोले बम-बम कहें, बजा रहे गण चंग.
*
रंग भंग में पड़ गया, हुआ रंग में भंग.
फागुन में सावन घटा, छाई बजा मृदंग.
*
चम-चम चमकी दामिनी, मेघ घटा लग अंग.
बरसी वसुधा को करे, पवन छेड़कर तंग.
*
मूषक-नाग-मयूर, सिंह-वृषभ न करते जंग.
गणपति मोदक भोग पा, नाच जमाते रंग.
***
संजीव, ७९९९५५९६१८
१९.१०.२०१८, salil.sanjiv@mail.com

बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

doha muktika

दोहा मुक्तिका  
*
भू की दुर्गति देखकर, भुवन भास्कर क्रुद्ध। 
रक्त नेत्र कर छेड़ते, सघन तिमिर से युद्ध।।
*
दिनकर दे चेतावनी, सुधरो या हो नष्ट। 
कष्ट न दो अब प्रकृति को, बनो मनुज अब बुद्ध।।
*
चित्र गुप्त हर कर्म का, फल मिलना प्रारब्ध। 
सुधर प्रदूषण दूर कर, करो कर्म-चित शुद्ध।।
*
ठूँठ हुए सब वृक्ष क्यों, गईं नदी क्यों सूख?
हरा-भरा फिर कर मनुज, मत हो प्रकृति विरुद्ध।।
*
कीचड़-दलदल में खिले, कमल किस तरह बोल?
कलकल-कलरव हो तभी, जब हो स्वार्थ निरुद्ध।। 
१६.१०.२०१८,
संजीव ७९९९५५९६१८ 

गुरुवार, 28 जून 2018

doha muktika

दोहा मुक्तिका:
काम न आता प्यार
*
काम न आता प्यार यदि, क्यों करता करतार।।
जो दिल बस; ले दिल बसा, वह सच्चा दिलदार।।
*
जां की बाजी लगे तो, काम न आता प्यार।
सरहद पर अरि शीश ले, पहले 'सलिल' उतार।।
*
तूफानों में थाम लो, दृढ़ता से पतवार।
काम न आता प्यार गर, घिरे हुए मझधार।।
*
गैरों को अपना बना, दूर करें तकरार।
कभी न घर में रह कहें, काम न आता प्यार।।
*
बिना बोले ही बोलना, अगर हुआ स्वीकार।
'सलिल' नहीं कह सकोगे, काम न आता प्यार।।
*
मिले नहीं बाज़ार में, दो कौड़ी भी दाम।
काम न आता प्यार जब, रहे विधाता वाम।।
*
राजनीति में कभी भी, काम न आता प्यार।
दाँव-पेंच; छल-कपट से, जीवन हो निस्सार।।
*
काम न आता प्यार कह, करें नहीं तकरार।
कहीं काम मनुहार दे, कहीं काम इसरार।।
*
२८.६.२०१८, ७९९९५५९६१८

बुधवार, 14 जून 2017

doha muktika

सामयिक दोहा मुक्तिका:
संदेहित किरदार.....
संजीव 'सलिल
*
लोकतंत्र को शोकतंत्र में, बदल रही सरकार.
असरदार सरदार सशंकित, संदेहित किरदार..

योगतंत्र के जननायक को, छलें कुटिल-मक्कार.
नेता-अफसर-सेठ बढ़ाते, प्रति पल भ्रष्टाचार..

आम आदमी बेबस-चिंतित, मूक-बधिर लाचार.
आसमान छूती मंहगाई, मेहनत जाती हार..

बहा पसीना नहीं पल रहा, अब कोई परिवार.
शासक है बेफिक्र, न दुःख का कोई पारावार..

राजनीति स्वार्थों की दलदल, मिटा रही सहकार.
देश बना बाज़ार- बिकाऊ, थाना-थानेदार..

अंधी न्याय-व्यवस्था, सच का कर न सके दीदार.
काले कोट दलाल- न सुनते, पीड़ित का चीत्कार..

जनमत द्रुपदसुता पर, करे दु:शासन निठुर प्रहार.
कृष्ण न कोई, कौन सकेगा, गीता-ध्वनि उच्चार?

सबका देश, देश के हैं सब, तोड़ भेद-दीवार.
श्रृद्धा-सुमन शहीदों को दें, बाँटें-पायें प्यार..

सिया जनास्था का कर पाता, वनवासी उद्धार.
सत्ताधारी भेजे वन को, हर युग में हर बार..

लिये खडाऊँ बापू की जो, वही बने बटमार.
'सलिल' असहमत जो वे भी हैं, पद के दावेदार..

'सलिल' एक है राह, जगे जन, सहे न अत्याचार.
अफसरशाही को निर्बल कर, छीने निज अधिकार..

*************

रविवार, 9 अप्रैल 2017

doha muktika

दोहा मुक्तिका 
*
सत्य सनातन नर्मदा, बाँच सके तो बाँच. 
मिथ्या सब मिट जाएगा, शेष रहेगा साँच.. 
*
कथनी-करनी में तनिक, रखना कभी न भेद. 
जो बोया मिलता वही, ले कर्मों को जाँच.. 
*
साँसें अपनी मोम हैं, आसें तपती आग. 
सच फौलादी कर्म ही सह पाता है आँच.. 
*
उसकी लाठी में नहीं, होती है आवाज़. 
देख न पाते चटकता कैसे जीवन-काँच.. 
*
जो त्यागे पाता 'सलिल', बनता मोह विछोह. 
एक्य द्रोह को जय करे, कहते पांडव पाँच.. 
***

बुधवार, 25 जनवरी 2017

doha muktika

एक दोहा
हर दल ने दलदल मचा, साधा केवल स्वार्थ
हत्या कर जनतंत्र की, कहते- है परमार्थ
*
एक दोहा मुक्तिका
निर्मल मन देखे सदा, निर्मलता चहुँ ओर
घोर तिमिर से ज्यों उषा, लाये उजली भोर
*
नीरस-सरस न रस रहित, रखते रसिक अँजोर
दोहा-रस संबंध है, नद-जल, गागर-डोर
*
मृगनयनी पर सोहती, गाढ़ी कज्जल-कोर
कृष्णा एकाक्षी लगा, लगे अमावस घोर
*
चित्त चुराकर कह रहे, जो अकहे चितचोर
उनके चित का मिल सका, कहिये किसको छोर
*
आँख मिला मन मोहते, झुकती आँख हिलोर
आँख फिरा लें जान ही, आँख दिखा झकझोर
****

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

doha muktika

दोहा मुक्तिका-
*
साक्षी साक्षी दे रही, मत हो देश उदास
जीत बनाती है सदा, एक नया इतिहास
*
कर्माकर ने दिखाया, बाकी अभी उजास
हिम्मत मत हारें करें, जुटकर सतत प्रयास
*
जीत-हार से हो भले, जय-जय या उपहास
खेल खिलाड़ी के लिए, हर कोशिश है खास
*
खेल-भावना ही हरे, दर्शक मन की प्यास
हॉकी-शूटिंग-आर्चरी, खेलो हो बिंदास
*
कहाँ जाएगी जीत यह?, कल आएगी पास
नित्य करो अभ्यास जुट, मन में लिए हुलास
*
निराधार आलोचना, भूल करो अभ्यास
सुन कर कर दो अनसुना, मन में रख विश्वास
*
मरुथल में भी आ सके, निश्चय ही मधुमास
आलोचक हों प्रशंसक, डिगे न यदि विश्वास
***

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

doha muktika

दोहा मुक्तिका 
*
जो करगिल पर लड़ मरे, उनके गायें गान 
नेता भी हों देश-हित, कभी-कहीं क़ुर्बान 
*
सुविधा-भत्ते-पद नहीं, एकमेव हो लक्ष्य
सेना में भेजें कभी, अपनी भी संतान
*
पेंशन संकट हो सके, चन्द दिनों में दूर
अफसर-सुत सैनिक बनें, बाबू-पुत्र जवान
*
व्यवसायी के वंशधर, सरहद पर बन्दूक
थामें तो कर चुराकर, बनें न धन की खान
*
अभिनेता कुलदीप हों, सीमा पर तैनात
नर-पशु को मारें नहीं, वे बनकर सलमान
*
जज-अधिवक्ता-डॉक्टर, यंत्री-ठेकेदार
अनुशासित होकर बनें, देश हेतु वरदान
*
एन.सी.सी. में हर युवा, जाकर पाये दृष्टि
'सलिल' तभी बन सकेंगे, तरुण देश का मान
***

सोमवार, 21 सितंबर 2015

doha muktika:a

दोहा मुक्तिका :

जंगल-पर्वत मिटाकर, धरा कर रहा गर्म
भोग रहा अंजाम पर, मनुज न करता शर्म
*
काम करो निष्काम रह, गीता में उपदेश
कृष्ण दे गये, सुन-समझ, करते रहिए कर्म
*
मेहनतकश का काम ही, प्रभु की पूजा मान
अश्रु पोंछना स्वार्थ बिन, सच्चा मानव धर्म
*
पत्थर से सिर फोड़ मत, युक्ति लगा दे तोड़
मत कठोर मधुकर रहे सदा कली सँग नर्म 
*
अहं भुला रस-भाव में, जाता जब कवि डूब 
सफल वही कविता 'सलिल', जिसमें जीवन मर्म
*

रविवार, 28 जून 2015

doha muktika: sanjiv

दोहा मुक्तिका:
संजीव 
*
उगते सूरज की करे, जगत वंदना जाग 
जाग न सकता जो रहा, उसका सोया भाग 
*
दिन कर दिनकर ने कहा, वरो कर्म-अनुराग 
संध्या हो निर्लिप्त सच, बोला: 'माया त्याग'
*
तपे दुपहरी में सतत, नित्य उगलता आग 
कहे: 'न श्रम से भागकर, बाँधो सर पर पाग 
*
उषा दुपहरी साँझ के, संग खेलता फाग 
दामन पर लेकिन लगा, कभी न किंचित दाग
*
निशा-गोद में सर छिपा, करता अचल सुहाग 
चंद्र-चंद्रिका को मिला, हँसे- पूर्ण शुभ याग 
*
भू भगिनी को भेंट दे, मार तिमिर का नाग 
बैठ मुँड़ेरे भोर में, बोले आकर काग 
*
'सलिल'-धार में नहाये, बहा थकन की झाग
जग-बगिया महका रहा, जैसे माली बाग़ 
***  

शनिवार, 20 जून 2015

muktika: sanjiv

अभिनव प्रयोग 
दोहा मुक्तिका:
संजीव 
*
इस दुनिया का सार है, माटी लकड़ी आग 
चाहे  तू कह ले इसे, खेती बाड़ी साग 
*
तन-बरतन कर साफ़- भर, जीवन में अनुराग
मन हरियाने के लिये, सूना झूम सुन फाग 
 *
सदा सुहागिन श्वास हो, गाये आस विहाग 
प्यास-रास सँग-सँग पले, हास न छूटे-जाग 
*
ज्यों की त्यों चादर रहे, अपनेपन से ताग  
ढाई आखर के लिये, थोड़ा है हर त्याग 
*
बीन परिश्रम की बजा, रीझे मंज़िल-नाग 
सच की राह न छोड़ना, लगे न कोई दाग 
*
हर अंकुर हो पल्ल्वित, तब ऊँची हो पाग 
कलियाँ मुस्काती रहें, रहे महकता बाग़ 
*
धूप-छाँव जैसे पलें, मन में राग-विराग 
मनुज करे जग को मलिन, स्वच्छ करे नित काग. 
***

शुक्रवार, 21 जून 2013

doha muktika: --sanjiv

दोहा मुक्तिका:
राधा धारा प्रेम की :
संजीव
*
राधा धारा प्रेम की, श्याम स्नेह-सौगात।
बरसाने  में बरसती, बिन बादल बरसात।।
*
माखनचोर न मोह मन, चित न चुरा चितचोर।
गोवर्धन गो पालकर, नृत्य दिखा बन मोर।।
*
पानी दूषित कर किया, जन हित पर आघात।
नाग कालिया को पड़ी, सहनी सर पर लात।।
*
आँख चुरा मुँह फेरकर, गया दिखाकर पीठ।
नहीं  बेवफा वफ़ा की, माँग फेर ले दीठ।।
*
तंदुल ले त्रैलोक्य दे, कभी बढ़ाये चीर।
कौन कृष्ण सम मित्र की, हर सकता है पीर।।
*
विपद वृष्टि की सह सके, कृष्ण-ग्वाल मिल साथ।
देवराज निज सर धुनें, झुका सदा को माथ।।
*
स्नेह-'सलिल' यमुना विमल, निर्मल भक्ति प्रभात
राधा-मीरा कूल दो, कृष्ण कमल जलजात।।
*
कुञ्ज गली का बावरा, कर मन-मन्दिर वास।
जसुदा का छोरा 'सलिल', हुआ जगत विख्यात।।
*