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मंगलवार, 11 मई 2021

दोहे गीता अध्याय २

 ॐ
श्रीमद्भग्वद्गीता  
*
छोटा मन रखकर कभी, बड़े न होते आप। 
औरों के पैरों कभी, खड़े न होते आप।।  
*
भीष्म भरम जड़ यथावत, ठुकराएँ बदलाव। 
अहंकार से ग्रस्त हो, खाते-देते घाव
*
अर्जुन संशय पूछता प्रश्न, न करता कर्म। 
मोह और आसक्ति को समझ रहा निज धर्म
*
पल-पल परिवर्तन सतत, है जीवन का मूल
कंकर हो शंकर कभी, और कभी हो धूल
*
उहापोह में भटकता, भूल रहा निज कर्म। 
चिंतन कर परिणाम का, करता भटक विकर्म
*
नहीं करूँगा युद्ध मैं, कहता धरकर शस्त्र। 
सम्मुख योद्धा हैं अगिन, लिए हाथ में अस्त्र
*
जो जन्मा वह मरेगा, उगा सूर्य हो अस्त। 
कब होते विद्वानजन, सोच-सोचकर त्रस्त
*
मिलीं इन्द्रियाँ इसलिए, कर उनसे तू कर्म। 
फल क्या होगा इन्द्रियाँ, सोच न करतीं धर्म
*
चम्मच में हो भात या, हलवा परसें आप।  
शोक-हर्ष सकता नहीं, है चम्मच में व्याप
*
मीठे या कटु बोल हों, माने कान समान। 
शोक-हर्ष करता नहीं, मन मत बन नादान
*
जीवन की निधि कर्म है, करते रहना धर्म। 
फल का चिन्तन व्यर्थ है, तज दो मान विकर्म
*
सांख्य शास्त्र सिद्धांत का, ज्ञान-कर्म का मेल। 
योगी दोनों साधते, जग-जीवन हो खेल
*
सम्यक समझ नहीं अगर, तब ग्रस लेता मोह
बुद्धि भ्रमित होती तभी, तन करता विद्रोह
*
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। 
संशय कर देता भ्रमित, फल चिंता तज मीत
*
केवल देह न सत्य है, तन में मन भी साथ। 
तन-मन भूषण आत्म के, मूल एक परमात्म
*
आत्मा लेती जन्म जब, तब तन हो आधार। 
वस्त्र सरीखी बदलती, तन खुद बिन आकार।।
*
सांख्य ज्ञान सँग कर्म का, सम्मिश्रण है मीत।  
मन प्रवृत्ति कर विवेचन, सहज निभाए रीत
*
तर्क कुतर्क न बन सके, रखिए इसका ध्यान। 
सांख्य कहे भ्रम दूर कर, कर्म करे इंसान
*
देखें अपने दोष खुद, कहें न करिए शर्म
दोष दूर कर कर्म कर, वरिए अपना धर्म
*
कर सकते; करते नहीं, जो होते बदनाम। 
कर सकते जो कीजिए, तभी मिले यश-मान
*
होनी होती है अटल, होगी मत कर सोच। 
क्या कब कैसे सोचकर, रखो न किंचित लोच
*
दो पक्षों के बीच में, जा संशय मत पाल। 
बढ़ता रह निज राह पर, कर्म योग मत टाल
*
हानि-लाभ हैं एक से, यश-अपयश सम मान। 
सोच न फल कर कर्म निज, पाप न इसको जान
*
ज्ञान योग के साथ कर, कर्म योग का मेल। 
अपना धर्म न भूल तू, घटनाक्रम है खेल
*
हानि लाभ जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ। 
करता चल निज कर्म तू, उठा-झुका कर माथ
*
तज कर फल आसक्ति तू, करते जा निज कर्म। 
बंधन बने न कर्म तब, कर्म योग ही धर्म
*
१०-५-२०२१ 

गुरुवार, 6 मई 2021

कृष्ण चिंतन क्रमांक -११

 *

विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
कृष्ण चिंतन क्रमांक -११
आत्मीय स्वजन!
जय श्री कृष्ण,
कृष्ण जी की कृपा एवं आदरणीय आचार्य संजीव 
वर्मा 'सलिल' जी के मार्गदर्शन में आगामी सोमवार १० मई को दोपहर ४ बजे से ६ बजे के मध्य फेसबुक पर कृष्ण चिंतन की दसवीं गोष्ठी आयोजित होने जा रही है। लिंक सोमवार अपरान्ह दी जाएगी।
सहभागिता के इच्छुक साथी अपने नाम तथा चलभाष क्रमांक यहाँ अंकित करें।  
विषय - 'गीता मेरी दृष्टि में'।
समय - अधिकतम ७ मिनट।
संयोजक : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी।
संचालन : सरला वर्मा जी।
मुख्य वक्ता : डॉ सुरेश कुमार वर्मा जी।
सरस्वती वंदना - छाया सक्सेना जी ।
*
अध्याय २ सांख्य योग -  
वक्ता - सर्व आदरणीय
विषय प्रवर्तन -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी। 
चौदह वक्ता ५ - ५ श्लोकों का अध्ययन-मनन कर उन पर अपना लिखित चिंतन ७ - ७ मिनिट में प्रस्तुत करेंगे। सहभागिता के इच्छुक साथी अपने नाम तथा चलभाष क्रमांक तत्काल संचालक सरला वर्मा जी को वॉट्सऐप क्रमांक ९७७०६ ७७४५३ पर सूचित करें तथा स्वीकृति मिलने पर दिए गए श्लोकों पर केंद्रित अपना टंकित आलेख शनिवार ८-५-२०२१ को रात्रि तक भेज दें। निराशा से बचने के लिए शीघ्रता करें। भेजने के पहले आलेख का वचन कर समयावधि जाँच लें।    
मुख्य वक्ता - डॉ. सुरेश कुमार वर्मा जी।
                   - आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी।  
आभार - संजीव वर्मा 'सलिल'।
गीता आरती - 
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अनुरोध - वक्ताओं से निवेदन है कि 
- आवंटित श्लोकों का अध्ययन कर उन पर चिन्तन-मनन कर, अपने मौलिक विचार व्यक्त करें। श्लोक तथा अथवा अर्थ सबको सुलभ है। 
- कृपया, समयावधि का ध्यान रखें। संबोधन, आभार आदि में समय नष्ट न कर सीधे विषय पर आएँ ताकि पूरी बात कह सकें।   
- पटल से २० मिनिट पहले जुड़कर नेटवर्क आदि जाँच लें। 
- अपने क्रम पर बोलते समय माइक अनम्यूट (चालू) करें, शेष समय माइक म्यूट (बंद) रखें। 
- नेट संपर्क न जुड़ने या किसी अन्य कारण से न जुड़ सकने की स्थिति में संयोजक / संचालक को यथाशीघ्र सूचित कर दें ताकि वैकल्पिक व्यवस्था की जा सके।
- अपने विचार टंकित कर संचालक को एक दिन पूर्व भेज दें। किसी कारणवश आप उपस्थित न हों तो आपका आलेख अन्य द्वारा प्रस्तुत कर क्रम-भंग रोका जा सकेगा।
- पटल पर संचालक, अध्यक्ष व मुख्य अतिथि के अतिरिक्त अधिकतम ३ वक्ता ही रह सकते हैं, शेष साथी श्रोता के रूप में प्रारंभ से अंत तक जुड़े रहें। पहला वक्ता बोले तो दूसरा प्रस्तुति के लिए तैयार रहे। पहले वक्ता के जाते ही तीसरे वक्ता को पटल पर स्थान दिया जाएगा। इस तरह क्रम जारी रहेगा। जो वक्ता अन्यों को नहीं सुनेगा, उसे आगामी चर्चाओं में अवसर नहीं मिलेगा। 
- श्रोता बंधु सुनने के साथ-साथ अपने विचार और जिज्ञासाएँ टिप्पणी स्थल (चैट बॉक्स) में अंकित करते रहें। सभी श्लोकों पर चर्चा के पश्चात मुख्य वक्ता सभी प्रस्तुतियों और पूरे अध्याय पर अपने विचार व्यक्त करेंगे।
- अध्याय १ व २ संबंधी जिज्ञासाएँ संचालक को भेजी जा सकती हैं।
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