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रविवार, 22 जनवरी 2012

हास्य कुंडली: --संजीव 'सलिल'

हास्य कुंडली
संजीव 'सलिल'
*

कल्लू खां गोरे मिले, बुद्धू चतुर सुजान.
लखपति भिक्षा माँगता, विद्यापति नादान..
विद्यापति नादान, कुटिल हैं भोला भाई.
देख सरल को जटिल, बुद्धि कवि की बौराई.
कलमचंद अनपढ़े, मिले जननायक लल्लू.
त्यागी करते भोग, 'सलिल' गोरेमल कल्लू..
*
अचला-मन चंचल मिला, कोमल-चित्त कठोर.
गौरा-वर्ण अमावसी, श्यामा उज्जवल भोर..
श्यामा उज्जवल भोर, अर्चना करे न पूजा.
दृष्टिविहीन सुनयना, सुलभा सदृश न दूजा..
मधुरा मृदुल कोकिला, कर्कश दिल दें दहला.
रक्षा करें आक्रमण, मिलीं विपन्ना कमला..
*
कहाँ कै मरे कैमरे, लेते छायाचित्र.
छाया-चित्र गले मिलें, ज्यों घनिष्ठ हों मित्र..
ज्यों घनिष्ठ हों मित्र, रात-दिन चंदा-सूरज.
एक बिना दूजा बेमानी, ज्यों धरती-रज..
लोकतंत्र में शोकतंत्र का राज्य है यहाँ.
बेहयाई नेता ने ओढ़ी, शर्म है कहाँ?..
*
जल न जलन से पायेगा, तू बेहद तकलीफ.
जैसे गजल कहे कोइ, बिन काफिया-रदीफ़..
बिन काफिया-रदीफ़, रुक्न-बहरों को भूले.
नहीं गाँव में शेष, कजरिया सावन झूले..
कहे 'सलिल कविराय', सम्हाल जग में है फिसलन.
पर उन्नति से खुश हो, दिल में रह ना जलन..
*