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रविवार, 12 फ़रवरी 2012

स्मृति गीत : जब तुम बसंत बन थीं आयीं - संजीव वर्मा 'सलिल'

स्मृति गीत :

जब तुम बसंत बन थीं आयीं - 

संजीव वर्मा 'सलिल'



स्मृति गीत :
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
मेरा जीवन वन प्रांतर सा
उजड़ा, नीरस, सूना-सूना. 
हो गया अचानक मधुर-सरस
आशा-उछाह लेकर दूना. 
उमगा-उछला बन मृग-छौना
जब तुम बसंत बन थीं आयीं..


दिन में भी देखे थे सपने,
कुछ गैर बन गये थे अपने.
तब बेमानी से पाये थे 
जग के मानक, अपने नपने.
बाँहों ने चाहा चाहों को
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुमसे पाया विश्वास नया.
अपनेपन का आभास नया.
नयनों में तुमने बसा लिया 
जब बिम्ब मेरा सायास नया?
खुद को खोना भी हुआ सुखद
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
अधरों को प्यारे गीत लगे
भँवरा-कलिका मन मीत सगे.
बिन बादल इन्द्रधनुष देखा
निशि-वासर मधु से मिले पगे.
बरसों का साथ रहा पल सा
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जीवन रजनी-'मावस 
नयनों में मन में है पावस.
हर श्वास चाहती है रुकना
ज्यों दीप चाहता है बुझना.
करता हूँ याद सदा वे पल
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
सुन रुदन रूह दुःख पायेगी.
यह सोच अश्रु निज पीता हूँ.
एकाकी क्रौंच हुआ हूँ मैं
व्याकुल अतीत में जीता हूँ.
रीता कर पाये कर फिर से
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*
तुम बिन जग-जीवन हुआ सजा 
हर पल चाहूँ आ जाये कजा.
किससे पूछूँ क्यों मुझे तजा?
शायद मालिक की यही रजा.
मरने तक पल फिर-फिर जी लूँ 
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
*******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

शोक:
श्रीमती सरोज वर्मा दिवंगत
दीप पर्व के पूर्व ही धन तेरस २४-१०-२०११ को अलबुकर्क न्यू अमेरिका में
पूज्या भाभीश्री श्रीमती सरोज वर्मा ने प्रातः ५.१० बजे (भारतीय
समयानुसार सायं ४.४० बजे) वैस्कुलाइटिस नामक रोग की गत ३ माह से चल रही
चिकित्सा के बीच इहलीला समाप्त कर देवलोक प्रस्थान कर दिया. उनके स्वजनों
 के संपर्क सूत्र निम्न हैं:
sanjeev_varma@comcast.net , arti prasad <surti1988@gmail.com>,
abhimanyu.rai@gmail.com, anjali.manoj@gmail.com, divashree@gmail.com,
manoj.saxena@gmail.com, priyashree.rai@gmail.com, sprasad@unm.edu,
ssv777@hotmail.com, rkvarma@eng.uwo.ca, sanjeev_varma@comcast.net,
sarvesh@mit.edu, avivarma87@gmail.com, priyanka.varma92@gmail.कॉम

 हृदयांजलि:

सरोज भाभी जी के महाप्रस्थान पर:

भाभी माँ तुम चली गयीं...
*
रहे रोकते हम मत जाओ, लेकिन तुमको जाना था.
भारत से या अमरीका से, यह तो महज ठिकाना था.
देह भले ही चली गयी हो,
मन से लेकिन नहीं गयीं.
भाभी माँ तुम चली गयीं...
*
ईश सती के अब सतीश भैया सचमुच एकाकुल हैं.
सती नाम धरकर सरोज का, गईं- स्वजन शोकाकुल हैं..
तुमसे पाया स्नेह अपरिमित, तुम ममता-आकार रहीं.
भारतीय नारी की प्रतिकृति, शुचि-सेवा साकार रहीं..
सकल विश्व घर माना तुमने,
घर से लेकिन नहीं गयीं.
भाभी माँ तुम चली गयीं...
*
माँ की बहू लाड़ली थीं तुम, अंत समय तक साथ रहीं.
करे सभी कर्त्तव्य, न रीता कभी वही तुम हाथ रहीं..
धन तेरस को निर्धन हैं हम, नयन रो रहे प्राण विकल.
रूप चतुर्थी है कुरूप सी, दुर्विपाक है काल सबल..
यादें है पाथेय हमारा,
छवियाँ मन से नहीं गयीं.
भाभी माँ तुम चली गयीं...
*
संस्कार राजीव लिए, संजीव लिए कर्मठता हैं.
मंजुलता अंजली लिए, आरती लिए प्रांजलता है..
मौली-सविता लिए विरासत, स्नेह-दीप उजियार रहीं.
नव पीढ़ी नव गति नव लय ले, भावी का आधार रहीं..
माँ के पग-चिन्हों का कर
अनुसरण, अकेली चली गयीं.
भाभी माँ तुम चली गयीं...
******
दिव्यनर्मदा परिवार की हार्दिक शोकांजलि.