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रविवार, 31 अक्तूबर 2021

गीत

गीत

*

श्वास श्वास समिधा है
आस-आस वेदिका
*
अधरों की स्मित के
पीछे है दर्द भी
नयनों में शोले हैं
गरम-तप्त, सर्द भी
रौनकमय चेहरे से
पोंछी है गर्द भी
त्रास-त्रास कोशिश है
हास-हास साधिका
*
नवगीती बन्नक है
जनगीति मन्नत
मेहनत की माटी में
सीकर मिल जन्नत
करना है मंज़िल को
धक्का दे उन्नत
अभिनय के छंद रचे
नए नाम गीतिका
*
सपनों से यारी है
गर्दिश भी प्यारी है
बाधाओं को टक्कर
देने की बारी है
रोप नित्य हौसले
महकाई क्यारी है
स्वाति बूँद पा मुक्ता
रच देती सीपिका
***
संजीव
९४२५१८३२४४

२८ वार्णिक दण्डक छंद

छंद कार्यशाला -
२८ वार्णिक दण्डक छंद
विधान - २८ 
वार्णिक, ६-१४-१८-२३-२८ पर यति।
४३ मात्रिक, १०-११--७-६-९ पर यति।
गणसूत्र - र त न ज म य न स ज ग।
*
नाद से आल्हाद, झर कर ही रहेगा, देख लेना, समय खुद, देगा गवाही
अक्षरों में भाव, हर भर जी सकेगा, लेख लेना, सृजन खुद, देगा सुनाई
शब्द हो नि:शब्द, अनुभव ले सकेगा, सीख देगा, घुटन झट होगी पराई
भाव में संचार, रस भर पी सकेगा, लीक होगी, नवल फिर हो वाह वाही
*
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
९४२५१८३२४४
salil.sanjiv@gmail.com

लघुकथा: पटखनी

लघुकथा:
पटखनी
*
सियार के घर में उत्सव था। उसने अतिउत्साह में पड़ोस के नीले सियार को भी न्योता भेज दिया।
शेर को आश्चर्य हुआ कि उसके टुकड़ों पर पलनेवालावफादार सियार उससे दगाबाजी करनेवाले  नीले सियार को को आमंत्रित कर रहा है।
आमंत्रित नीले सियार को याद आया कि उसने विदेश में वक्तव्य दिया था: 'शेर को जंगल में अंतर्राष्ट्रीय देख-रेख में चुनाव कराने चाहिए'। 
सियार लोक में आपके विरुद्ध आंदोलन, फैसले और दहशतगर्दी पर आपको क्या कहना है? किसी पत्रकार ने पूछा तो उसे दुम दबाकर भागना पड़ा था।
'शेर तो शेरों की जमात का नेता है, सियार उसे अपना नुमाइंदा नहीं मानते' नीले सियार ने आते ही वक्तव्य दिया तो केले खा रहे बंदरों ने तुरंत  कुलाटियाँ खाते हुए उछल-कूदकर चैनलों पर बार-बार यही राग अलापना शुरू कर दिया।
'हम सियार तो नीले सियार को अपने साथ बैठने लायक भी नहीं मानते, नेता कैसे हो सकता है वह हमारा?' आमंत्रणकर्ता युवा सियार ने पूछा।
'सूरज पर थूकने से सूरज मैला नहीं होता, अपना ही मुँह गन्दा होता है' भालू ने कहा।
'शेर सिर्फ शेरों का नहीं पूरे जंगल का नेता है' कोयल ने कहा 'लेकिन उसे भी केवल शेरों के हितों की बात न कर, अन्य प्रजाति के पशु-पक्षियों के भी हित साधने चाहिए।' 
'जानवरों के बीच नफरत फ़ैलाने और दूरियाँ बढ़ानेवाले घातक समाचार बार-बार प्रसारित करनेवाले बिकाऊ बंदरों पर कार्यवाही हो।  कोटि-कोटि जनता का अनमोल समय और  बर्बाद करने का हक़ इन्हें किसने दिया?' भीड़ को गरम होता देखकर बंदरों और नीले सियार को होना पड़ा नौ दो ग्यारह।
सभी विस्मित रह गये चुनाव का परिणाम देखकर कि मतदाताओं ने कोयल को विजयी बनाकर शेर और नीले सियार दोनों को दे दी थी पटखनी। 
***

शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

अप्रतिम सृजनशिल्पी गिरिमोहन 'गुरु

अप्रतिम सृजनशिल्पी गिरिमोहन 'गुरु'  
संपादक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'  
*
भाग १ 
१. व्यक्तित्व - 
अ. पूर्वजों की यश गाथा 
आ. किलकारी (बचपन)
इ. जीवट (जीवन संघर्ष) 
ई. समाज सेवा  - (सामाजिक कार्य, पर्यावरणीय कार्य, धार्मिक कार्य, शैक्षिक कार्य)
उ. उपलब्धियाँ  
भाग २. कृतित्व 
साहित्यिक सृजन 
क. मुझे नर्मदा कहो नवगीत संग्रह १९९८ 
ख. ग़ज़ल का दूसरा किनारा २००३ 
ग. जनक छंद मणि मालिका २००९ 
घ. पं. गिरिमोहन गुरु के नवगीत २०१०  
च. जुगनुओं से उजाला मुक्तक संग्रह २०१० 
छ. गीतों की ओर गीत संग्रह २०११  
ज. ग़ज़ल के छिलके २०११ 
झ. दोहे देहरी द्वार दोहा संग्रह २०१३ 
ऐसो मध्य प्रदेश हमारो  आकाशवाणी  गीत  
धार्मिक सृजन  
ट. आस्था के अठारह दीप चालीसा संग्रह   २०१३ 
ठ. श्री नर्मदा व्रत कथा 
ड. जय जय आंजनेय 
ढ. नर्मदा पुराण २०२० 
ण. शिव पुराण २०२१ 
लघु पुस्तिकाएँ 
त. बालबोध गीता    २००४ , थ. श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग चालीसा, द. गृहस्थ गीता २ - २००१, ध. दत्तात्रेय चालीसा २००४, न. संत गजानन चालीसा २००८, प. आरती प्रदीप २०११-१७, फ. नर्मदा भक्ति गीत २०१९, ब. श्री राधा चालीसा २०१९, भ. गृहस्थ गुरु गीता २०१९। 
भाग ३ 
निकष पर 
द्वार खड़े इतिहास के, सं. डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', २००६  
समीक्षा प्रकाश सतसई, सं. डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र - डॉ. शरद नारायण खरे, २००७ 
य. गिरिमोहन गुरु और उनका काव्य - सतबीर सिंह, २००७ 
र. पं. गिरिमोहन गुरु के काव्य का समीक्षात्मक अध्ययन, भारती मिश्रा २००८ 
ल. समीक्षा के नए आयाम, डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय २०१२
व. समीक्षा के अभिनव सोपान, डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय २०१५  
श. समीक्षा के बढ़ते चरण, डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा २०१५ 
ष. समीक्षा के बढ़ते चरण, डॉ. कृष्णगोपाल मिश्रा २०१५ समीक्षा के नए स्वर आचार्य नर्मदा प्रसाद मालवीय २०१७ 
स. समीक्षा के नए संदर्भ, डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' २०१८ 
ह. पं. गिरिमोहन गुरु का काव्य : एक अनुशीलन, डॉ. विजय महादेव गाडे २०१८ 
पं. गिरिमोहन गुरु का काव्य : एक मूल्यांकन, डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र  सं. डॉ. विजय महादेव गाडे २०१९
समीक्षा के नए क्षितिज : पं. गिरिमोहन गुरु का काव्य, डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय, सं. भारती मिश्रा २०१९  
- लघु पुस्तिकाएँ : समीक्षा के बढ़ते चरण सं. गिरिवर गिरि गोस्वामी 'निर्मोही' २०१५,समीक्षा के नए-नए स्वर सं. मनोज जैन 'मधुर', समीक्षा के प्रतिस्वर, सं. ब्रजमोहन पांडे   
- अन्य : गुरु गरिमा के छंद - डॉ. शरद नारायण खरे २०१०, दोहे गुरु के द्वार, विजय गिरि २०१२, समीक्षा के नए द्वीप सं. पं. गिरि मोहन गुरु २०२१ 
- पत्रिकाओं में गुरु जी 
भाग ४
भाषान्तरण / भाषानुवाद 
त्रिवेणी संगम,  तृप्ति बेन गोस्वामी २०१२
जनक छंद मणिमालिका - तेलुगु डॉ. एम. रंगय्या  २०१२, मैथिली विनय बाबू मिश्र  २०१३, राजस्थानी मुखराम माकड़ 'माहिर' २०१४, छत्तीसगढ़ी बुधराम यादव २०१६, तमिल डॉ. एन. सुंदरम २०१६, मराठी डॉ. विजय महादेव गाडे २०१८ 
जय जय आंजनेय - गुजराती डॉ. कमल पुंजाणी २०२०, मराठी  डॉ. विजय महादेव गाडे २०२०  
भाग ५ 

 
   

नवगीत: राष्ट्रलक्ष्मी, सांध्य सुंदरी

नवगीत:
राष्ट्रलक्ष्मी!
श्रम सीकर है
तुम्हें समर्पित
खेत, फसल, खलिहान
प्रणत है
अभियन्ता, तकनीक
विनत है
बाँध-कारखाने
नव तीरथ
हुए समर्पित
कण-कण, तृण-तृण
बिंदु-सिंधु भी
भू नभ सलिला
दिशा, इंदु भी
सुख-समृद्धि हित
कर-पग, मन-तन
समय समर्पित
पंछी कलरव
सुबह दुपहरी
संध्या रजनी
कोशिश ठहरी
आसें-श्वासें
झूमें-खांसें
अभय समर्पित
शैशव-बचपन
यौवन सपने
महल-झोपड़ी
मानक नापने
सूरज-चंदा
पटका-बेंदा
मिलन समर्पित
***

नवगीत:
सांध्य सुंदरी
तनिक न विस्मित
न्योतें नहीं इमाम
जो शरीफ हैं नाम का
उसको भेजा न्योता
सरहद-करगिल पर काँटों की
फसलें है जो बोता
मेहनतकश की
थकन हरूँ मैं
चुप रहकर हर शाम
नमक किसी का, वफ़ा किसी से
कैसी फितरत है
दम कूकुर की रहे न सीधी
यह ही कुदरत है
खबरों में
लाती ही क्यों हैं
चैनल उसे तमाम?
साथ न उसके मुसलमान हैं
बंदा गंदा है
बिना बात करना विवाद ही
उसका धंधा है
थूको भी मत
उसे देख, मत
करना दुआ-सलाम
***३०-१०-२०१४

द्विपदियाँ, शे'र

द्विपदियाँ, शे'र
इस दिल की बेदिली का आलम न पूछिए
तूफ़ान सह गया मगर क़तरे में बह गया
*
दिलदारों की इस बस्ती में दिलवाला बेमौत मारा
दिल के सौदागर बन हँसते मिले दिलजले हमें यहाँ
*
दिल पर रीझा दिल लेकिन बिल देख नशा काफूर हुआ
दिए दिवाली के जैसे ही बुझे रह गया शेष धुँआ
*
दिलकश ने ही दिल दहलाया दिल ले कर दिल नहीं दिया
बैठ है हर दिल अज़ीज़ ले चाक गरेबां नहीं सिया
*
३०-१०-२०१४

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

नवगीत

नवगीत:
देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे
राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं
अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे
भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते
हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे
मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है
पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे
***

नवगीत:
सुख-सुविधा में
मेरा-तेरा
दुःख सबका
साझा समान है
पद-अधिकार
करते झगड़े
अहंकार के
मिटें न लफ़ड़े
धन-संपदा
शत्रु हैं तगड़े
परेशान सब
अगड़े-पिछड़े
मान-मनौअल
समाधान है
मिल-जुलकर जो
मेहनत करते
गिरते-उठते
आगे बढ़ते
पग-पग चलते
सीढ़ी चढ़ते
तार और को
खुद भी तरते
पगतल भू
करतल वितान है
***
नवगीत:
ज़िम्मेदार
नहीं है नेता
छप्पर औरों पर
धर देता
वादे-भाषण
धुआंधार कर
करे सभी सौदे
उधार कर
येन-केन
वोट हर लेता
सत्ता पाते ही
रंग बदले
यकीं न करना
किंचित पगले
काम पड़े
पीठ कर लेता
रंग बदलता
है पल-पल में
पारंगत है
बेहद छल में
केवल अपनी
नैया खेता
***

नवगीत:
आओ रे!
मतदान करो
भारत भाग्य विधाता हो
तुम शासन-निर्माता हो
संसद-सांसद-त्राता हो
हमें चुनो
फिर जियो-मरो
कैसे भी
मतदान करो
तूफां-बाढ़-अकाल सहो
सीने पर गोलियाँ गहो
भूकंपों में घिरो-ढहो
मेलों में
दे जान तरो
लेकिन तुम
मतदान करो
लालटेन, हाथी, पंजा
साड़ी, दाढ़ी या गंजा
कान, भेंगा या कंजा
नेता करनी
आप भरो
लुटो-पिटो
मतदान करो
पाँच साल क्यों देखो राह
जब चाहो हो जाओ तबाह
बर्बादी को मिले पनाह
दल-दलदल में
फँसो-घिरो
रुपये लो
मतदान करो
नाग, साँप, बिच्छू कर जोड़
गुंडे-ठग आये घर छोड़
केर-बेर में है गठजोड़
मत सुधार की
आस धरो
टैक्स भरो
मतदान करो
***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2021

चिंतन

चिंतन  
सब प्रभु की संतान हैं, कोऊ ऊँच न नीच  
*
'ब्रह्मम् जानाति सः ब्राह्मण:' जो ब्रह्म जानता है वह ब्राह्मण है। ब्रह्म सृष्टि कर्ता हैं। कण-कण में उसका वास है। इस नाते जो कण-कण में ब्रह्म की प्रतीति कर सकता हो वह ब्राह्मण है। स्पष्ट है कि ब्राह्मण होना कर्म और योग्यता पर निर्भर है, जन्म पर नहीं। 'जन्मना जायते शूद्र:' के अनुसार जन्म से सभी शूद्र हैं। सकल सृष्टि ब्रह्ममय है, इस नाते सबको सहोदर माने, कंकर-कंकर में शंकर, कण-कण में भगवान को देखे, सबसे समानता का व्यवहार करे, वह ब्राह्मण है। जो इन मूल्यों की रक्षा करे, वह क्षत्रिय है, जो सृष्टि-रक्षार्थ आदान-प्रदान करे, वह वैश्य है और जो इस हेतु अपनी सेवा समर्पित कर उसका मोल ले-ले वह शूद्र है। जो प्राणी या जीव ब्रह्मा की सृष्टि निजी स्वार्थ / संचय के लिए नष्ट करे, औरों को अकारण कष्ट दे वह असुर या राक्षस है।

व्यावहारिक अर्थ में बुद्धिजीवी वैज्ञानिक, शिक्षक, अभियंता, चिकित्सक आदि ब्राह्मण, प्रशासक, सैन्य, अर्ध सैन्य बल आदि क्षत्रिय, उद्योगपति, व्यापारी आदि वैश्य तथा इनकी सेवा व सफाई कर रहे जन शूद्र हैं। सृष्टि को मानव शरीर के रूपक समझाते हुए इन्हें क्रमशः सिर, भुजा, उदर व् पैर कहा गया है। इससे इतर भी कुछ कहा गया है। राजा इन चारों में सम्मिलित नहीं है, वह ईश्वरीय प्रतिनिधि या ब्रह्मा है। राज्य-प्रशासन में सहायक वर्ग कार्यस्थ (कायस्थ नहीं) है। कायस्थ वह है जिसकी काया में ब्रम्हांश जो निराकार है, जिसका चित्र गुप्त है, आत्मा रूप स्थित है।

'चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानं सर्व देहिनाम्।', 'कायस्थित: स: कायस्थ:' से यही अभिप्रेत है। पौरोहित्य कर्म एक व्यवसाय है, जिसका ब्राह्मण होने न होने से कोई संबंध नहीं है। ब्रह्म के लिए चारों वर्ण समान हैं, कोई ऊँचा या नीचा नहीं है। जन्मना ब्राह्मण सर्वोच्च या श्रेष्ठ नहीं है। वह अत्याचारी हो तो असुर, राक्षस, दैत्य, दानव कहा गया है और उसका वध खुद विष्णु जी ने किया है। गीता रहस्य में लोकमान्य टिळक जो खुद ब्राह्मण थे, ने लिखा है -

गुरुं वा बाल वृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतं
आततायी नमायान्तं हन्या देवाविचारयं

ब्राह्मण द्वारा खुद को श्रेष्ठ बताना, अन्य वर्णों की कन्या हेतु खुद पात्र बताना और अन्य वर्गों को ब्राह्मण कन्या हेतु अपात्र मानना, हर पाप (अपराध) का दंड ब्राह्मण को दान बताने दुष्परिणाम सामाजिक कटुता और द्वेष के रूप में हुआ।
***

साहित्य समीक्षा_ दोहा-दोहा नर्मदा सुरेन्द्र सिंह पंवार

साहित्य समीक्षा_
दोहा-दोहा नर्मदा
सुरेन्द्र सिंह पंवार
सम्पादक- “साहित्य-संस्कार”
[कृति- दोहा-दोहा नर्मदा/ संपादक-आचार्य संजीव ‘सलिल’- प्रो.(डा) साधना वर्मा/ प्रकाशक- विश्व वाणी हिंदी संस्थान,समन्वय प्रकाशन अभियान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन,जबलपुर ४८२००१, पृष्ठ १६०, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, मूल्य- २५०/-]
*
छोटे से आकार में, भरे गूढतम अर्थ।
दोहा दुर्लभ छंद है, साधें इसे समर्थ।।
तेरह-ग्यारह पर यति, गुरु-लघु सोहे अंत।
ओज,सोज,साखी सबद, दोहा गाये संत।।
कालजयी-छंद ‘दोहा’, अपभ्रंश काल से अब तक अपनी स्वाभाविक ठसक और बनक के साथ विद्यमान है. देखा जाए तो दोहा, “मत चूको....” से स्फूर्त लक्ष्यवेध और प्रेम-दिवाणी का “नगर ढिंढोरा” है। दोहा, ‘रामबोला’ को “तुलसीदास”बनाने तथा “झूठी पातर भकत है” सुनाकर सामंतों को झुकाने की सामर्थ्य रखता है। शक्ति, भक्ति, अनुरक्ति, प्रकृति...सभी कुछ, दोहे में समाया जा सकता है.
“अरथ अधिक अरु आखर थोरे” (संक्षिप्तता) और “घाव करें गंभीर” (मारकता) के कारण दोहा की लोकप्रियता सर्वकालिक है. एक बात और, दोहा पढ़ने-सुनने एवं सराहने वाले को ऐसा लगाना चाहिए कि कहने वाले ने उसके मन की बात कही है, बस!----दोहाकारकौन है? यह जानने की उत्सुकता उसे नहीं होती।
अध्यवसायी आचार्य संजीव ‘सलिल’ और उनकी जीवन संगिनी प्रो.(डॉ) साधना वर्मा ने देश भर के ४५ दोहाकारों के सौ-सौ दोहे संग्रहित कर ३ दोहा-संकलन सम्पादित किये हैं. विश्ववाणी हिंदी संस्थान की "शान्तिराज पुस्तक माला" योजनान्तर्गत समन्वय प्रकाशन अभियान, जबलपुर से प्रकाशन अनुक्रम में ‘दोहा शतक मञ्जूषा-१’ का शीर्षक है, “दोहा-दोहा नर्मदा”.१७०० से अधिक दोहों के इस साझा-संकलन में देश भर के १५ दोहाकारों की साझा अभिव्यक्तियाँ हैं, जिनमें ईश्वर, इंसान, जीवन-मृत्यु, अलस्सुबह की दिनचर्याएँ- चाँदनी रात में चाँद की तारों से छेड-छाड़, बचपन-यौवन-बुढापा, यथार्थ को देखने का जज्बा, भौतिक वस्तुओं की उपलब्धियों की मरीचिका, सर्वमांगल्य भाव-वसुधैव कुटुम्बकम की परिकल्पना, भाषायी विवाद-सामाजिक टकराव-आतंकवाद, राजनीति
का लक्ष्य, स्वार्थ और दिशाभ्रम, धर्म-आस्तिकता-पाखण्ड, उद्यमेन हि सिध्यन्ति का जयघोष, अर्थाभावजनित लाचारी, युवा रोजगार की संभावनाएँ, तकनीकी और अंतरजाल, नौकरी की विवशताएँ, प्रतिभा-पलायन, सेवानिवृत-जीवन, स्त्री-विमर्श, प्रकृति, नेह-नर्मदा, बदलते मौसम, पर्यावरण-प्रदूषण इत्यादि बहुवर्णी विषय हैं।
दोहाकारों ने महानगरों के आधुनिक जीवन की दुर्बलताओं और संकीर्णताओं को प्राथमिकता से उकेरा है-----
जब से मेरे गाँव में, पड़े शहर के पाँव।
भाई-चारा हारता, जीते नफरत दाँव।। -सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’/१२
तिनका-तिनका जोड़कर, किया भवन तैयार।
रहने की बारी हुई, मिला देहरी-द्वार।। -श्रीधर प्रसाद व्दिवेदी/३८
कोख किराया ले रही,ममता है लाचार।
चौपालें खामोश हैं, खून सने अख़बार।। -विनोद जैन ‘वाग्धर’/३१
चना चबैना बाजरा, मक्का रोटी साग।
सब गरीब से छिन गया,हुआ अमीरी राग।। -प्रेमबिहारी मिश्र/६
सच है, जब मानव-मूल्यों में गिरावट आती है, समाज की विषमतायें-
विद्रूपतायें गहराने लगतीं हैं, तो कवि-मन व्यथित हो जाता है, उसकी कलम भौथरीहो जाती है और ऐसी परिस्थितियों में उपजे दोहे, विष-बुझे तीरों जैसी व्यंजना देतेहैं—
चला मुखौटों का चलन, जब से सीना तान।
गिद्धों के तन भी सजे, हंसों के परिधान।। -विजय बागरी/१०
मंदिर के ठेके बिकें, पूजा है व्यापार।
कैसे-कैसे ठग यहाँ, बन-बैठे अवतार।। -प्रेमबिहारी मिश्र/८५
न्यायालय में भी हुई, हाय! न्याय की हार।
सत्य खड़ा कटघरे में, झूठ जयी जयकार।। -विनोद जैन ‘वाग्धर’/१००
ऐसा अक्सर होता है, कि जिस विशेष-क्षेत्र से रचनाकार का संबंध होता है, वह संकोचरहित होकर उसके ज्ञान का उपयोग करता है। अपनी वर्गीय चेतना को दोहाबध्द करते समय दोहाकार आंचलिकता को महत्व देता है। ऐसे दोहों में यथास्थिति दर्शन तो है किन्तु दिशा-निर्देशन का अभाव है-
दिवस बिताते काम में, लौटे शाम जरूर।
रोज कमाकर खा रहे, हमसे भले मजूर।। -मिथलेश राज बड़गैया /८३
अवसर-सीमा असीमित, उठ छू लो आकाश।
अंतहीन अवसर सुलभ, चमके युवा प्रकाश।। -त्रिभुवन कौल/५४
धूप निगोड़ी सो रही, मूंड उघारे आज।
पीपर झौरे बैठकर, बिसरी परदा-लाज।। -आभा सक्सेना ‘दूनवी’/८१
पावस नाचे झूमकर, पुरवा गाए गीत।
हरियाली धरती हुई, पा अंबर की प्रीत।। -रामेश्वर प्रसाद सारस्वत/२६
वैसे संकलन के दोहों का सौन्दर्य-बोध आंतरिक, अन्त:गर्भित, सामाजिक
और संस्कारी है। वर्जित प्रदेशों में प्रवेश कर ये दोहे अनुर्वर भूमिकाओं को चेतनाके अमृत-जल से सिंचित कर नए युग के अनुरूप बहुरंगी गुलाबों की खेती उगा रहे हैं परन्तु कहीं-कहीं गुलाब के साथ कैक्टस से भी लगाव दिखाई देता है. तथापि दोहाकार भाषा और छंद के प्रति संवेदित हैं, जीवन के प्रति सदाशयी हैं, कुल मिलाकर वे अपने कुल-धर्म का पालन कर रहे हैं-
कथनी-करनी में नहीं, करना कोई भेद।
हो मतभेद भले मगर, तनिक न हो मनभेद।। -छाया सक्सेना ‘प्रभु’/97)
तुरपाई दुःख की करें, रफू शोक कर संग।
मन में पालें हौसला, तन हो सके विहंग। -श्यामल सिन्हा/८
माया नट के पाँव में, घुँघरू बँधे हजार।
छम-छम ध्वनि सब सुन रहे, कैसे उतरे पार।। -चंद्रकांता अग्निहोत्री/३१
जीवन ऊर्जा-शिखर है, परम तपस्या राम।
जाना जिसने प्रेम को, जान लिया यह धाम।। -छगन लाल गर्ग ‘विज्ञ’/१
बिन गुरुत्व धरती नहीं, धुर बिन चले न चाक।
गुरुजल बिन बिजली नहीं, गुरु के बिना न धाक।।-डॉ. गोपालकृष्ण भट्ट ‘आकुल’/ ५१
वाकई, वर्मा-दम्पति बधाई के पात्र हैं। वे आचार्य रामचंद्र शुक्ल युग के
सृदश ऐसे नये कवि(दोहाकार) तैयार कर रहे हैं, जो जीवन की विषमताओं की ओर देखते हैं, जो आज के व्यस्त, व्यापृत युग में दोहा की प्रासंगिकता को सिध्द करते हुए अलंकारिकता, भाव-गाम्भीर्य, सरसता, संदेशात्मकता, अर्थ-गौरवता आदि की कसौटी पर स्तरीय-दोहों का सृजन कर रहे हैं। जो यह जानते हैं कि बिहारी जैसी समाहारी शक्ति सम्पन्न भाषा, कबीर की सहजता-सरलता और रहीम जैसी नीतिपरकता दोहों को जीवंत बनाती है। वे यह भी जानते हैं कि उन्हें दोहों की परिमाणात्मकता की अपेक्षा उसकी गुणात्मक प्रभावोत्पादकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और इसी में दोहा, दोहाकार, दोहा-संकलन और संपादक-व्दय की सफलता सन्निहित है। “दोहा-दोहा नर्मदा” के इस सारस्वत-अनुष्ठान को अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘तार-सप्तक’ के कवियों की रचना-श्रंखला से जोड़कर देखा जा सकता है. संकलित दोहों में विशेष की शक्ति तो है। वे, आम–आदमी की जुबान पर चढ़ेंगे, लोक- व्यवहृत भी होंगेऔर जिनके चलते ‘दोहा शतक मञ्जूषा’ में सम्मिलित होने वालेदोहाकार, ‘तार-सप्तकों’ के कवियों-सी प्रतिष्ठा पा सकेंगे, ऐसा विश्वास है।
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२०१ शास्त्रीनगर,गढ़ा,जबलपुर, चलभाष- चलभाष- ९३००१०४२९६/ ७०००३८८३३२ email-pawarss2506@gmail.com 

कविता: सफाई

कविता:
सफाई
*
मैंने देखा सपना एक
उठा तुरत आलस को फेंक
बीजेपी ने कांग्रेस के
कार्यालय की करी पुताई। 
नीतीश ने लालू के घर के  
कपड़ों की करवाई धुलाई। 
माया झाड़ू लिए
मुलायम की राहों से बीनें काँटे। 
और मुलायम ममतामय हो
लगा रहे फतवों को चाँटे। 
जयललिता की देख दुर्दशा
करुणा-भर करूणानिधि रोयें। 
अब्दुल्ला श्रद्धा-सुमनों की
अवध पहुँ कर खेती बोयें। 
गज़ब! सोनिया ने मोहन का  
पूजन निज गृह में करवाया। 
जन्म अष्टमी पर ममता ने 
सोहर सबको झूम सुनाया। 
स्वामी जी को गिरिजाघर में
प्रेयर करते हमने देखा। 
और शंकराचार्य मिले
मस्जिद में करते सबकी सेवा। 
मिले सिक्ख भाई कृपाण से
खापों के फैसले मिटाते। 
बम्बइया निर्देशक देखे
यौवन को कपड़े पहनाते। 
डॉक्टर और वकील छोड़कर फीस
काम जल्दी निबटाते। 
न्यायाधीश एक पेशी में
केसों का फैसला सुनाते। 
थानेदार सड़क पर मंत्री जी का
था चालान कर रहा। 
बिना जेब के कपड़े पहने
टी. सी. सीटें बाँट हँस रहा। 
आर. टी. ओ. लाइसेंस दे रहा
बिना दलाल के सच तुम मानो। 
अगर देखना ऐसा सपना
चद्दर ओढ़ो लम्बी तानो
***
२८-१०-२०१४

बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

करवाचौथ

करवाचौथ  

*
अर्चना कर सत्य की, शिव-साधना सुन्दर करें।
जग चलें गिर उठ बढ़ें, आराधना तम हर करें।।
*
कौन किसका है यहाँ?, छाया न देती साथ है।
मोह-माया कम रहे, श्रम-त्याग को सहचर करें।।
*
एक मालिक है वही, जिसने हमें पैदा किया।
मुक्त होकर अहं से, निज चित्त प्रभु-चाकर करें।।
*
वरे अक्षर निरक्षर, तब शब्द कविता से मिले।
भाव-रस-लय त्रिवेणी, अवगाह चित अनुचर करें।।
*
पूर्णिमा की चंद्र-छवि, निर्मल 'सलिल में निरखकर।
कुछ रचें; कुछ सुन-सुना, निज आत्म को मधुकर करें।।
***
संजीव, ७९९९५५९६१८
करवा चौथ २७-१०-२०१८
जबलपुर

दोहा सलिला

दोहा सलिला :
कथ्य भाव रस छंद लय, पंच तत्व की खान
पड़े कान में ह्रदय छू, काव्य करे संप्राण
*
मिलने हम मिल में गये, मिल न सके दिल साथ
हमदम मिले मशीन बन, रहे हाथ में हाथ
*
हिल-मिलकर हम खुश रहें, दोनों बने अमीर
मिल-जुलकर हँस जोर से, महका सकें समीर.
*
मन दर्पण में देख रे!, दिख जायेगा अक्स
वो जिससे तू दूर है, पर जिसका बरअक्स
*
जिस देहरी ने जन्म से, अब तक करी सम्हार
छोड़ चली मैं अब उसे, भला करे करतार
*
माटी माटी में मिले, माटी को स्वीकार
माटी माटी से मिले, माटी ले आकार
*
मैं ना हूँ तो तू रहे, दोनों मिट हों हम
मैना - कोयल मिल गले, कभी मिटायें गम
***
२५-१०-२०१४ 

दीवाली के संग : दोहा का रंग

पंचपर्व
*
मन-कुटिया में
दीप बालकर
कर ले उजियारा।
तनिक मुस्कुरा
मिट जाएगा
सारा तम कारा।।
*
ले कुम्हार के हाथों-निर्मित
चंद खिलौने आज।
निर्धन की भी धनतेरस हो
सध जाए सब काज।
माटी-मूरत,
खील-बतासे
है प्रसाद प्यारा।।
*
रूप चतुर्दशी उबटन मल, हो
जगमग-जगमग रूप।
प्रणय-भिखारी गृह-स्वामी हो
गृह-लछमी का भूप।
रमा रमा में
हो मन, गणपति
का कर जयकारा।।
*
स्वेद-बिंदु से अवगाहन कर
श्रम-सरसिज देकर।
राष्ट्र-लक्ष्मी का पूजन कर
कर में कर लेकर।
निर्माणों की
झालर देखे
विस्मित जग सारा।।
*
अन्नकूट, गोवर्धन पूजन
भाई दूज न भूल।
बैरी समझ कूट मूसल से
पैने-चुभते शूल।
आत्म दीप ले
बाल, तभी तो
होगी पौ बारा।।
*
संजीव १२.१०.२०१६

दोहा सलिला:
दीवाली के संग : दोहा का रंग
संजीव 'सलिल' ,
*
सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न पार.
राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार..
*
आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल.
दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल..
*
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
*
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
*
दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर..
*
चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम.
जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम.
*
सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार.
दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार..
*
मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप.
तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप..
*
करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान.
रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान..
*
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
*
मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात.
साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात..
***

यम द्वितीय चित्रगुप्त पूजन पर विशेष भेंट:
भजन:
प्रभु हैं तेरे पास में...
- संजीव 'सलिल'
*
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
तन तो धोता रोज न करता, मन को क्यों तू साफ रे!
जो तेरा अपराधी है, उसको करदे हँस माफ़ रे..
प्रभु को देख दोस्त-दुश्मन में, तम में और प्रकाश में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
चित्र-गुप्त प्रभु सदा चित्त में, गुप्त झलक नित देख ले.
आँख मूंदकर कर्मों की गति, मन-दर्पण में लेख ले..
आया तो जाने से पहले, प्रभु को सुमिर प्रवास में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में..
*
मंदिर-मस्जिद, काशी-काबा मिथ्या माया-जाल है.
वह घट-घट कण-कणवासी है, बीज फूल-फल डाल है..
हर्ष-दर्द उसका प्रसाद, कडुवाहट-मधुर मिठास में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
भजन:
प्रभु हैं तेरे पास में...
संजीव 'सलिल'
*
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
निराकार काया में स्थित, हो कायस्थ कहाते हैं.
रख नाना आकार दिखाते, झलक तुरत छिप जाते हैं..
प्रभु दर्शन बिन मन हो उन्मन,
प्रभु दर्शन कर परम शांत मन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...


कोई न अपना सभी पराये, कोई न गैर सभी अपने हैं.
धूप-छाँव, जागरण-निद्रा, दिवस-निशा प्रभु के नपने हैं..
पंचतत्व प्रभु माटी-कंचन,
कर मद-मोह-गर्व का भंजन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
नभ पर्वत भू सलिल लहर प्रभु, 
पवन अग्नि रवि शशि तारे हैं.
कोई न प्रभु का, हर जन प्रभु का, 
जो आये द्वारे तारे हैं..
नेह नर्मदा में कर मज्जन,
प्रभु-अर्पण करदे निज जीवन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
२७-१०-२०११
दोहा दुनिया
कथ्य भाव रस छंद लय, पंच तत्व की खान
पड़े कान में ह्रदय छू, काव्य करे संप्राण
मिलने हम मिल में गये, मिल न सके दिल साथ
हमदम मिले मशीन बन, रहे हाथ में हाथ
हिल-मिलकर हम खुश रहें, दोनों बने अमीर
मिल-जुलकर हँस जोर से, महका सकें समीर.
मन दर्पण में देख रे!, दिख जायेगा अक्स
वो जिससे तू दूर है, पर जिसका बरअक्स
जिस देहरी ने जन्म से, अब तक करी सम्हार
छोड़ चली मैं अब उसे, भला करे करतार
माटी माटी में मिले, माटी को स्वीकार
माटी माटी से मिले, माटी ले आकार
मैं ना हूँ तो तू रहे, दोनों मिट हों हम
मैना - कोयल मिल गले, कभी मिटायें गम

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

दुर्गा कवच सानुवाद

दुर्गा कवच साधुवाद
*
मार्कण्डेय उवाच:
यद् गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं   नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि   पितामह।।१।।
मार्कण्डे' बोले रहस्य जो गुप्त सर्व रक्षाकारक।
कहें पितामह है प्रसिद्ध जो कवच, बन सकूँ मैं धारक।।
मार्कण्डेय जी ने कहा है --हे पितामह! जो साधन संसार में अत्यन्त गोपनीय है, जिनसे मनुष्य मात्र की रक्षा होती है, वह साधन मुझे बताइए ।
*
ब्रह्मोवाच:
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् 
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व   महामुने।।२।।
विधि बोले अति गुप्त कवच, सबका करता उपकार सदा।
देवों का है कवच पुण्य, हे महामुने!सुन लो कहता।।
ब्रह्मा जी ने कहा-हे ब्राह्मण!  सम्पूर्ण प्राणियों का कल्याण करनेवाला देवों का कवच यह स्तोत्र है, इसके पाठ करने से साधक सदैव सुरक्षित रहता है, अत्यन्त गोपनीय है, हे महामुने! उसे सुनिए ।
*
प्रथमं शैलपुत्री च,द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति, कूष्माण्डेति  चतुर्थकम्।।३।।
शैलसुता है पहली, दूजी ब्रह्मचारिणी यह जानो।
शक्ति तीसरी शशिघंटा है, कूष्माण्डा चौथी मानो।।
हे मुने ! दुर्गा माँ की नौ शक्तियाँ हैं-पहली शक्ति का नाम शैलपुत्री ( पर्वतकन्या) , दूसरी शक्ति का नाम ब्रह्मचारिणी (परब्रह्म परमात्मा को साक्षात कराने वाली ) , तीसरी शक्ति चन्द्रघण्टा हैं। चौथी शक्ति कूष्माण्डा ( सारा संसार जिनके उदर में निवास करता हो ) हैं।
*
पंचमं स्कन्दमातेति, षष्ठं कात्यायनीति  च।
सप्तमं कालरात्रीति, महागौरीति चाष्टमम्।।४।।
शक्ति पाँचवी कार्तिक माता, छठवीं कात्यायनी सुनो।
कालरात्रि हैं सप्तम,अष्टम शक्ति महागौरी गुन लो।
पाँचवीं शक्ति स्कन्दमाता (कार्तिकेय की जननी) हैं। छठी शक्ति कात्यायनी (महर्षि कात्यायन के अप्रतिभ तेज से उत्पन्न होनेवाली) हैं सातवीं शक्ति कालरात्रि (महाकाली) तथा आठवीं शक्ति महागौरी हैं।
*
नवमं सिद्धिदात्री, च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि, ब्रह्मणैव महात्मना।।५।।
नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री हैं, नौ दुर्गा ये जग जाने।
इन नामों की महिमा अनुपम, सुनो महात्मा विधि माने।।
नवीं शक्ति सिद्धिदात्री हैं और ये नव दुर्गा कही गई हैं। हे महात्मा! उक्त नामों को ब्रह्म ने बताया है।
*
अग्निना दह्यमानस्तु , शत्रुमध्ये गतो रणे ।
विषमे दुर्गमे चैव , भयार्ता: शरणं गता: ।।६ ।।
मनुज अग्नि में घिर जलता या, शत्रु बीच रण में घिरता।
विषम परिस्थिति में फँसता, पा दुर्गा चरण शरण बचता।।
जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, युद्ध भूमि मे शत्रुओं से घिर गया हो तथा अत्यन्त कठिन विपत्ति में फँस गया हो, वह यदि भगवती दुर्गा की शरण का सहारा ले ले ।
*
न तेषां जायते , किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि , शोक-दु:ख भयं न हि ।।७ ।।

तो इसका कभी युद्ध या संकट में कोई कुछ विगाड़ नहीं सकता , उसे कोई विपत्ति घेर नहीं सकती न उसे शोक , दु:ख तथा भय की प्राप्ति नहीं हो सकती है।

यैस्तु भक्तया स्मृता नूनं , तेषां वृद्धि : प्रजायते ।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि ! , रक्षसे तान्न  संशय: ।।८ ।।
जो लोग भक्तिपूर्वक भगवती का स्मरण करते हैं , उनका अभ्युदय होता रहता है। हे भगवती ! जो लोग तुम्हारा स्मरण करते हैं , निश्चय ही तुम उनकी रक्षा करती हो।

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा , वाराही महिषासना ।
ऐन्द्री गजसमारूढा , वैष्णवी  गरूड़ासना   ।।९ ।।
चण्ड -मुण्ड का विनाश करने वाली देवी चामुण्डा प्रेत के वाहन पर निवास करती हैं ,वाराही महिष के आसन पर रहती हैं , ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है, वैष्नवी का वाहन गरुड़  है।

माहेश्वरी  वृषारूढ़ा ,  कौमारी शिखिवाहना  ।
लक्ष्मी:  पद्मासना देवी , पद्महस्ता  हरिप्रिया ।।१० ।।
माहेश्वरी बैल के वाहन पर तथा कौमारी मोर के आसन पर विराजमान हैं। श्री विष्णुपत्नी भगवती लक्ष्मी  के हाथों में कमल है तथा वे कमल के आसन पर निवास करती हैं।

श्वेतरूपधरा  देवी, ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी   हंससमारूढ़ा , सर्वाभरण भूषिता ।।११।।
श्वेतवर्ण वाली ईश्वरी वृष-बैल पर सवार हैं , भगवती ब्राह्मणी ( सरस्वती ) सम्पूर्ण आभूषणों से युक्त हैं तथा वे हंस पर विराजमान रहती हैं।

इत्येता  मातर:  सर्वा: , सर्वयोग समन्विता ।
नाना भरण शोभाढ्या , नानारत्नोपशोभिता: ।।१२ ।।
अनेक आभूषण तथा रत्नों से देदीप्यमान उपर्युक्त सभी देवियाँ सभी योग शक्तियों से युक्त हैं।

दृश्यन्ते  रथमारूढ़ा , देव्य:  क्रोधसमाकुला: ।
शंख  चक्र  गदां शक्तिं, हलं च मूसलायुधम् ।।१३ ।।
इनके अतिरिक्त और भी देवियाँ हैं, जो दैत्यों के विनाश के लिए तथा भक्तों की रक्षा के लिए क्रोधयुक्त रथ में सवार हैं तथा उनके हाथों में शंख ,चक्र ,गदा ,शक्ति, हल, मूसल हैं।

खेटकं तोमरं चैव, परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं  त्रिशूलं  च ,  शार्ड़गमायुधमुत्तमम्।।१४।।
खेटक, तोमर, परशु , (फरसा) , पाश , भाला, त्रिशूल तथा उत्तम शार्ड़ग धनुष आदि अस्त्र -शस्त्र हैं।

दैत्यानां  देहनाशाय , भक्तानामभयाय  च ।
धारन्तया  युधानीत्थ , देवानां च हिताय वै ।।१५ ।।
जिनसे देवताओं की रक्षा होती है तथा देवी जिन्हें दैत्यों को नाश तथा भक्तों के मन से भय नाश करने के लिए धारण करती हैं।

नमस्तेस्तु  महारौद्रे, महाघोर पराक्रमें।
महाबले  महोत्साहे ,  महाभयविनाशिनि ।।१६ ।।
महाभय का विनाश करने वाली , महान बल, महाघोर क्रम तथा महान उत्साह से सुसम्पन्न हे महारौद्रे तुम्हें नमस्कार है।

त्राही मां देवि ! दुष्प्रेक्ष्ये , शत्रूणां भयवद्धिनि ।
प्राच्यां  रक्षतु  मामेन्द्री , आग्नेय्यामग्निदेवता ।।१७ ।।
हे शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली देवी ! तुम मेरी रक्षा करो। दुर्घर्ष तेज के कारण मैं तुम्हारी ओर देख भी नहीं सकता । ऐन्द्री शक्ति पूर्व दिशा में मेरी रक्षा करें तथा अग्नि देवता की आग्नेयी शक्ति अग्निकोण में हमारी रक्षा करें।

दक्षिणेअवतु  वाराही , नैरित्वां  खडगधारिणी ।
प्रतीच्यां वारूणी रक्षेद्- , वायव्यां  मृगवाहिनी ।।१८ ।।
वाराही शक्ति दक्षिन दिशा में, खडगधारिणी नैरित्य कोण में, वारुणी शक्ति पश्चिम दिशा में तथा मृग के ऊपर सवार रहने वाली शक्ति वायव्य कोण में हमारी रक्षा करें।

उदीच्यां पातु कौमारी , ईशान्यां  शूलधारिणी ।
उर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेद , धस्ताद्  वैष्नवी तथा ।।१९ ।।
भगवान कार्तिकेय की शक्ति कौमारी उत्तर दिशा में , शूल धारण करने वाली ईश्वरी शक्तिईशान कोण में ब्रह्माणी ऊपर तथा वैष्नवी शक्ति नीचे हमारी रक्षा करें।

एवं दश दिशो रक्षे , चामुण्डा  शववाहना ।
जया मे चाग्रत: पातु , विजया पातु पृष्ठत: ।।२० ।।
इसी प्रकार शव के ऊपर विराजमान चामुण्डा देवी दसों दिशा में हमारी रक्षा करें।आगे जया ,पीछे विजया हमारी रक्षा करें।

अजिता वामपाश्वे तु , दक्षिणे चापराजिता ।
शिखामुद्योतिनी रक्षे, दुमा मूर्घिन व्यवस्थिता ।।२१ ।।
बायें भाग में अजिता, दाहिने हाथ में अपराजिता, शिखा में उद्योतिनी तथा शिर में उमा हमारी रक्षा करें।

मालाधरी ललाटे च , भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी ।
त्रिनेत्रा  च  भ्रूवोर्मध्ये , यमघण्टा च नासिके ।।२२ ।।
ललाट में मालाधरी , दोनों भौं में यशस्विनी ,भौं के मध्य में त्रिनेत्रा तथा नासिका में यमघण्टा हमारी रक्षा करें।
शंखिनी  चक्षुषोर्मध्ये , श्रोत्रयोर्द्वार   वासिनी ।
कपोलो कालिका रक्षेत् , कर्णमूले  तु  शांकरी ।।२३ ।।ल

दोनों नेत्रों के बीच में शंखिनी , दोनों कानों के बीच में द्वारवासिनी , कपाल में कालिका , कर्ण के मूल भाग में शांकरी हमारी रक्षा करें।
नासिकायां सुगंधा  च , उत्तरोष्ठे  च  चर्चिका ।
अधरे   चामृतकला , जिह्वायां  च  सरस्वती ।।२४ ।।
नासिका के बीच का भाग सुगन्धा , ओष्ठ में चर्चिका , अधर में अमृतकला तथा जिह्वा में सरस्वती हमारी रक्षा करें।

दन्तान् रक्षतु कौमारी , कण्ठ देशे तु चण्डिका ।
घण्टिकां चित्रघंटा च , महामाया च तालुके ।।२५ ।।
कौमारी दाँतों की , चंडिका कण्ठ-प्रदेश की , चित्रघंटा गले की तथा महामाया तालु की रक्षा करें।

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् , वाचं  मे  सर्वमंगला ।
ग्रीवायां भद्रकाली  च ,  पृष्ठवंशे  धनुर्धरी   ।।२६ ।।
कामाक्षी ठोढ़ी की , सर्वमंगला वाणी की , भद्रकाली ग्रीवा की तथा धनुष को धारण करने वाली रीढ़ प्रदेश की रक्षा करें।

नीलग्रीवा  बहि:कण्ठे  ,  नलिकां  नलकूबरी  ।
स्कन्धयो:  खंगिनी  रक्षेद् ,  बाहू मे वज्रधारिनी ।।२७ ।।
कण्ठ से बाहर नीलग्रीवा और कण्ठ की नली में नलकूबरी , दोनों कन्धों की खंगिनी तथा वज्र को धारण करने वाली दोनों बाहु की रक्षा करें।

हस्तयोर्दण्डिनी  रक्षे - ,  दम्बिका चांगुलीषु च ।
नखाच्छुलेश्वरी  रक्षेत् ,  कुक्षौ रक्षेत्  कुलेश्वरी ।।२८ ।।
दोनों हाथों में दण्ड को धारण करने वाली तथा अम्बिका अंगुलियों में हमारी रक्षा करें । शूलेश्वरी नखों की तथा कुलेश्वरी कुक्षिप्रदेश में स्थित होकर हमारी रक्षा करें ।

स्तनौ  रक्षेन्महादेवी , मन:शोक   विनाशिनी ।
हृदये  ललिता  देवी ,  उदरे  शूलधारिणी  ।।२९ ।।
महादेवी दोनों स्तन की , शोक को नाश करने वाली मन की रक्षा करें । ललिता देवी हृदय में तथा शूलधारिणी उत्तर प्रदेश में स्थित होकर हमारी रक्षा करें ।

नाभौ च कामिनी रक्षेद् ,  गुह्यं गुह्येश्वरी तथा ।
पूतना  कामिका  मेद्रं ,  गुदे  महिषवाहिनी  ।।३० ।।
नाभि में कामिनी तथा गुह्य भाग में गुह्येश्वरी हमारी रक्षा करें। कामिका तथा पूतना लिंग की तथा महिषवाहिनी गुदा में हमारी रक्षा करें।

कट्यां   भगवती  ,  रक्षेज्जानुनि   विन्ध्यवासिनी ।
जंघे   महाबला रक्षेद् ,   सर्वकामप्रदायिनी     ।।३१ ।।
भगवती कटि प्रदेश में तथा विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें। सम्पूर्ण कामनाओं को प्रदान करने वाली  महाबला जांघों की रक्षा करें।

गुल्फयोर्नारसिंही  च  , पादपृष्ठे तु  तैजसी ।
पादाड़्गुलीषु  श्री रक्षेत् , पादाधस्तलवासिनी ।।३२ ।।
नारसिंही दोनों पैर के घुटनों की , तेजसी देवी दोनों पैर के पिछले भाग की, श्रीदेवी पैर की अंगुलियों की तथा तलवासिनी पैर के निचले भाग की रक्षा करें।

नखान्  दंष्ट्राकराली  च , केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी  ।
रोमकूपेषु  कौनेरी  ,       त्वचं वागीश्वरी तथा ।।३३ ।।
दंष्ट्राकराली नखों की , उर्ध्वकेशिनी देवी केशों की , कौवेरी रोमावली के छिद्रों में तथा वागीश्वरी हमारी त्वचा की रक्षा करें।

रक्त-मज्जा - वसा -मांसा , न्यस्थि- मेदांसि  पार्वती ।
अन्त्राणि  कालरात्रिश्च , पित्तं च मुकुटेश्वरी  ।।३४ ।।
पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, मांस , हड्डी और मेदे की रक्षा करें । कालरात्रि आँतों की तथा मुकुटेश्वरी पित्त की रक्षा करें ।

पद्मावती   पद्मकोशे , कफे  चूड़ामणिस्तथा ।
ज्वालामुखी  नखज्वाला , मभेद्या  सर्वसन्धिषु ।।३५ ।।
पद्मावती सहस्र दल कमल में , चूड़ामणि कफ में , ज्वालामुखी नखराशि में उत्पन्न तेज की तथा अभेद्या सभी सन्धियों में हमारी रक्षा करें।

शुक्रं  ब्रह्माणिमे  रक्षे , च्छायां छत्रेश्वरी तथा ।
अहंकारं मनो बुद्धिं ,   रक्षेन् मे धर्मधारिणी  ।।३६ ।।
ब्रह्माणि शुक्र की , छत्रेश्वरी छाया की , धर्म को धारण करने वाली , हमारे अहंकार , मन तथा बुद्धि की रक्षा करें।

प्राणापानौ    तथा , व्यानमुदान च समानकम् ।
वज्रहस्ता च मे रक्षेद , प्राणंकल्याणं शोभना ।।३७ ।।
वज्रहस्ता प्राण , अपान , व्यान , उदान तथा समान वायु की , कल्याण से सुशोभित होने वाली कल्याणशोभना ,हमारे प्राणों की रक्षा करें।

रसे रूपे गन्धे च , शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।
सत्वं   रजस्तमश्चचैव , रक्षेन्नारायणी सदा ।।३८ ।।
रस , रूप , गन्ध , शब्द तथा स्पर्श रूप विषयों का अनुभव करते समय योगिनी तथा हमारे सत्व , रज , एवं तमोगुण की रक्षा नारायणी देवी करें ।

आयु रक्षतु वाराही, धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यश: कीर्ति च लक्ष्मी च , धनं विद्यां च चक्रिणी ।।३९ ।।
वाराही आयु की , वैष्णवी धर्म की , चक्रिणी यश और कीर्ति की , लक्ष्मी , धन तथा विद्या की रक्षा करें।

गोत्रमिन्द्राणि  मे  रक्षेत् , पशुन्मे  रक्ष चण्डिके ।
पुत्रान्  रक्षेन्महालक्ष्मी ,    भार्यां रक्ष्तु  भैरवी ।।४० ।।
हे इन्द्राणी , तुम मेरे कुल की तथा हे चण्डिके , तुम हमारे पशुओं की रक्षा करो ।हे महालक्ष्मी मेरे पुत्रों की तथा भैरवी देवी हमारी स्त्री की रक्षा करें।

पन्थानं  सुपथा  रक्षेन्मार्गं , क्षेमकरी    तथा ।
राजद्वारे   महालक्ष्मी , र्विजया  सर्वत: स्थिता ।।४१ ।।
सुपथा हमारे पथ की , क्षेमकरी ( कल्याण करने वाली ) मार्ग की रक्षा करें। राजद्वार पर महालक्ष्मी तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया भयों से हमारी रक्षा करें।

रक्षाहीनं  तु  यत्  स्थानं , वर्जितं कवचेन तु ।
तत्सर्वं  रक्ष मे  देवी !  जयन्ती  पापनाशिनी ।।४२ ।।
हे देवी ! इस कवच में जिस स्थान की रक्षा नहीं कही गई है उस अरक्षित स्थान में पाप को नाश करने वाली , जयन्ती देवी ! हमारी रक्षा करें।

पदमेकं   न   गच्छेतु , यदीच्छेच्छुभमात्मन:   ।
कवचेनावृतो   नित्यं  ,  यत्र  यत्रैव  गच्छति  ।।४३ ।।
यदि मनुष्य  अपना कल्याण चाहे तो वह कवच के पाठ के बिना एक पग भी कहीं यात्रा न करे । क्योंकि कवच का पाठ करके चलने वाला मनुष्य जिस-जिस स्थान पर जाता है।

तत्र   तत्रार्थलाभश्च ,  विजय:  सार्वकामिक: ।
यं यं चिन्तयते  कामं तं तं , प्राप्नोति  निश्चितम ।।४४ ।।
उसे वहाँ- वहाँ धन का लाभ होता है और कामनाओं को सिद्ध करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह पुरुष जिस जिस अभीष्ट वस्तु को चाहता है वह वस्तु उसे निश्चय ही प्राप्त होती है।

परमैश्वर्यमतुलं  प्राप्स्यते , भूतले पुमान ।
 निर्भयो  जायते मर्त्य: , सड़्ग्रामेष्वपराजित: ।। ४५ ।।
कवच का पाठ करने वाला इस पृथ्वी पर अतुल ऐश्वर्य प्राप्त करता है । वह किसी से नहीं डरता और युद्ध में उसे कोई हरा भी नहीं सकता ।

रोमकूपेषु  कौनेरी,  त्वचं वागीश्वरी तथा।।३३ ।।
दंष्ट्राकराली नखों की , उर्ध्वकेशिनी देवी केशों की , कौवेरी रोमावली के छिद्रों में तथा वागीश्वरी हमारी त्वचा की रक्षा करें।

रक्त-मज्जा - वसा -मांसा , न्यस्थि- मेदांसि  पार्वती ।
अन्त्राणि  कालरात्रिश्च , पित्तं च मुकुटेश्वरी  ।।३४ ।।
पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, मांस , हड्डी और मेदे की रक्षा करें । कालरात्रि आँतों की तथा मुकुटेश्वरी पित्त की रक्षा करें ।

पद्मावती   पद्मकोशे , कफे  चूड़ामणिस्तथा ।
ज्वालामुखी  नखज्वाला , मभेद्या  सर्वसन्धिषु ।।३५ ।।
पद्मावती सहस्र दल कमल में , चूड़ामणि कफ में , ज्वालामुखी नखराशि में उत्पन्न तेज की तथा अभेद्या सभी सन्धियों में हमारी रक्षा करें।
शुक्रं  ब्रह्माणिमे  रक्षे , च्छायां छत्रेश्वरी तथा ।
अहंकारं मनो बुद्धिं ,   रक्षेन् मे धर्मधारिणी  ।।३६ ।।
ब्रह्माणि शुक्र की , छत्रेश्वरी छाया की , धर्म को धारण करने वाली , हमारे अहंकार , मन तथा बुद्धि की रक्षा करें।

प्राणापानौ    तथा , व्यानमुदान च समानकम् ।
वज्रहस्ता च मे रक्षेद , प्राणंकल्याणं शोभना ।।३७ ।।
वज्रहस्ता प्राण , अपान , व्यान , उदान तथा समान वायु की , कल्याण से सुशोभित होने वाली कल्याणशोभना ,हमारे प्राणों की रक्षा करें।

रसे रूपे गन्धे च , शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।
सत्वं   रजस्तमश्चचैव , रक्षेन्नारायणी सदा ।।३८ ।।
रस , रूप , गन्ध , शब्द तथा स्पर्श रूप विषयों का अनुभव करते समय योगिनी तथा हमारे सत्व , रज , एवं तमोगुण की रक्षा नारायणी देवी करें ।

आयु रक्षतु वाराही, धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यश: कीर्ति च लक्ष्मी च , धनं विद्यां च चक्रिणी ।।३९ ।।
वाराही आयु की , वैष्णवी धर्म की , चक्रिणी यश और कीर्ति की , लक्ष्मी , धन तथा विद्या की रक्षा करें।

गोत्रमिन्द्राणि  मे  रक्षेत् , पशुन्मे  रक्ष चण्डिके ।
पुत्रान्  रक्षेन्महालक्ष्मी ,    भार्यां रक्ष्तु  भैरवी ।।४० ।।
हे इन्द्राणी , तुम मेरे कुल की तथा हे चण्डिके , तुम हमारे पशुओं की रक्षा करो ।हे महालक्ष्मी मेरे पुत्रों की तथा भैरवी देवी हमारी स्त्री की रक्षा करें।

पन्थानं  सुपथा  रक्षेन्मार्गं , क्षेमकरी    तथा ।
राजद्वारे   महालक्ष्मी , र्विजया  सर्वत: स्थिता ।।४१ ।।
सुपथा हमारे पथ की , क्षेमकरी ( कल्याण करने वाली ) मार्ग की रक्षा करें। राजद्वार पर महालक्ष्मी तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया भयों से हमारी रक्षा करें।

रक्षाहीनं  तु  यत्  स्थानं , वर्जितं कवचेन तु ।
तत्सर्वं  रक्ष मे  देवी !  जयन्ती  पापनाशिनी ।।४२ ।।
हे देवी ! इस कवच में जिस स्थान की रक्षा नहीं कही गई है उस अरक्षित स्थान में पाप को नाश करने वाली , जयन्ती देवी ! हमारी रक्षा करें।

पदमेकं   न   गच्छेतु , यदीच्छेच्छुभमात्मन:   ।
कवचेनावृतो   नित्यं  ,  यत्र  यत्रैव  गच्छति  ।।४३ ।।
यदि मनुष्य  अपना कल्याण चाहे तो वह कवच के पाठ के बिना एक पग भी कहीं यात्रा न करे । क्योंकि कवच का पाठ करके चलने वाला मनुष्य जिस-जिस स्थान पर जाता है।

तत्र   तत्रार्थलाभश्च ,  विजय:  सार्वकामिक: ।
यं यं चिन्तयते  कामं तं तं , प्राप्नोति  निश्चितम ।।४४ ।।
उसे वहाँ- वहाँ धन का लाभ होता है और कामनाओं को सिद्ध करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह पुरुष जिस जिस अभीष्ट वस्तु को चाहता है वह वस्तु उसे निश्चय ही प्राप्त होती है।

परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते, भूतले पुमान।
 निर्भयो  जायते मर्त्य: , सड़्ग्रामेष्वपराजित: ।। ४५ ।।
कवच का पाठ करने वाला इस पृथ्वी पर अतुल ऐश्वर्य प्राप्त करता है । वह किसी से नहीं डरता और युद्ध में उसे कोई हरा भी नहीं सकता ।

त्रैलोक्ये तु भवेत् पूज्य: , कवचेनावृत:  पुमान् ।
इदं तु देव्या:  कवचं ,  देवानामपि   दुर्लभम्  ।।४६ ।।
तीनों लोकों में उसकी पूजा होती है।यह देवी का कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।

य: पठेत् प्रयतो नित्य , त्रिसंध्यं  श्रद्धयान्वित: ।
दैवीकला    भवेत्तस्य ,  त्रैलोक्येष्वपराजित: ।। ४७ ।।
जो लोग तीनों संध्या में श्रद्धापूर्वक इस कवच का पाठ करते हैं उन्हें देवी कला की प्राप्ति होती है। तीनों लोकों में उन्हें कोई जीत नहीं सकता ।

जीवेद  वर्षशतं , साग्रम  पमृत्युविवर्जित: ।
नश्यन्ति व्याधय: सर्वे , लूता  विस्फोटकादय: ।।४८ ।।
उस पुरुष की अपमृत्यु नहीं होती । वह सौ से भी अधिक वर्ष तक जीवित रहता है । इस कवच का पाठ करने से लूता ( सिर में होने वाला खाज का रोग मकरी ,) विस्फोटक (चेचक) आदि सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।

स्थावरं  जंगमं  चैव , कृत्रिमं  चाअपि  यद्विषम्  ।
अभिचाराणि  सर्वाणि , मन्त्र-यन्त्राणि भूतले  ।।४९ ।।
स्थावर तथा  कृत्रिम विष , सभी नष्ट हो जाते हैं ।मारण , मोहन तथा उच्चाटन आदि सभी प्रकार के किये गए अभिचार यन्त्र तथा मन्त्र , पृथवी तथा आकाश में विचरण करने वाले 

भूचरा: खेचराश्चैव , जलजा श्चोपदेशिका: ।
सहजा कुलजा माला , डाकिनी- शाकिनी तथा ।।५० ।।
ग्राम देवतादि, जल में उत्पन्न होने वाले तथा उपदेश से सिद्ध होने वाले सभी प्रकार के क्षुद्र देवता आदि कवच के पाठ करने वाले मनुष्य को देखते ही विनष्ट हो जाते हैं।जन्म के साथ उत्पन्न होने वाले ग्राम देवता ,कुल देवता , कण्ठमाला, डाकिनी, शाकिनी आदि ।

अन्तरिक्षचरा   घोरा , डाकिन्यश्च   महाबला: ।
ग्रह - भूत   पिशाचाश्च , यक्ष गन्धर्व - राक्षसा: ।।५१ ।।
अन्तरिक्ष में विचरण करने वाली अत्यन्त भयानक बलवान डाकिनियां ,ग्रह, भूत पिशाच ।

ब्रह्म    -  राक्षस  - बेताला: , कुष्माण्डा   भैरवादय: ।
नश्यन्ति     दर्शनातस्य , कवचे हृदि   संस्थिते  ।।५२ ।।
ब्रह्म राक्षस , बेताल , कूष्माण्ड तथा भयानक भैरव आदि सभी अनिष्ट करने वाले जीव , कवच का पाठ करने वाले पुरुष को देखते ही विनष्ट हो जाते हैं।

मानोन्नतिर्भवेद्  राज्ञ , स्तेजोवृद्धिकरं  परम् ।
यशसा वर्धते सोअपि  ,  कीर्ति  मण्डितभूतले ।।५३ ।।
कवचधारी पुरूष को राजा के द्वारा सम्मान की प्राप्ति होती है। यह कवच मनुष्य के तेज की वृद्धि करने वाला है।कवच का पाठ करने वाला पुरुष  इस पृथ्वी को अपनी कीर्ति से  सुशोभित करता है और अपनी कीर्ति के साथ वह नित्य अभ्युदय को प्राप्त करता है।

जपेत्  सप्तशतीं  चण्डीं , कृत्वा  तु  कवचं  पुरा ।
यावद्  भूमण्डलं  धत्ते - , स - शैल - वनकाननम् ।।५४ ।।
जो पहले कवच का पाठ करके सप्तशती का पाठ करता है , उसकी पुत्र - पौत्रादि संतति पृथ्वी पर तब तक विद्धमान रहती है जब तक  पहाड़ , वन , कानन , और कानन से युक्त यह पृथ्वी टिकी हुई है।

तावत्तिष्ठति  मेदिन्यां , सन्तति:  पुत्र- पौत्रिकी ।
देहान्ते  परमं  स्थानं ,  यत्सुरैरपि  दुर्लभम्   ।।५५ ।।
कवच का पाठ कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाला मनुष्य मरने के बाद - महामाया की कृपा से देवताओं के लिए  जो अत्यन्त दुर्लभ स्थान है 
प्राप्नोति  पुरुषो  नित्यं ,  महामाया  प्रसादत: ।
लभते   परमं    रूपं  ,   शिवेन    सह   मोदते ।।५६ ।।
उसे प्राप्त कर लेता है और उत्तम रूप प्राप्त कर  शिवजी के साथ  आन्नदपूर्वक  निवास करता है।
।। इति  वाराह पुराणे  हरिहरब्रह्म विरचित  देव्या:  कवचं  समाप्तम्   ।।
********

हाइकु सलिला

हाइकु सलिला
संजीव
*
मैं मेहनत
तुम बनी प्रेरणा
हुए सफल।
*
देखा सपना
साथ तुम्हारे मैंने
पूरा होगा ही।
*
आ झूला झूलें
पेंग बढ़ाएँ ऐसी
आकाश छू लें।
*
आँखों आँखों में
बिन बोले बतियाँ
आओ कर लें।
*
क्या कहता है
धड़क रहा दिल?
दिल ही जाने।
*
२६-१०-२०२१

सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

हाइकु गीत

अभिनव प्रयोग 
राम हाइकु 
गीत  
(छंद वार्णिक, ५-७-५)
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
बल बनिए   
निर्बल का तब ही  
मिले प्रणाम।
क्षणभंगुर 
भव सागर, कर 
थामो हे राम।।
*
सुख तजिए / निर्बल की खातिर / दुःख सहिए।
मत डरिए / विपदा - आपद से / हँस लड़िए।।
सँग रहिए  
निषाद, शबरी के 
सुबहो-शाम।
क्षणभंगुर 
भव सागर, कर 
थामो हे राम।। 
मार ताड़का / खर-दूषण वध / लड़ करिए। 
तार अहल्या / उचित नीति पथ / पर चलिए।।
विवश रहे 
सुग्रीव-विभीषण
कर लें थाम। 
क्षणभंगुर 
भव सागर, कर 
थामो हे राम।।
*
सिय-हर्ता के / प्राण हरण कर / जग पुजिए।
आस पूर्ण हो / भरत-अवध की / नृप बनिए।।
त्रय माता, चौ  
बहिन-बंधु, जन
जिएँ अकाम। 
क्षणभंगुर 
भव सागर, कर 
थामो हे राम।।
*** 
२५-१०-२०२१  




सॉनेट

http://www.sonnettics.com/2004/09/


Tell-tale
Wednesday, September 22nd, 2004

Madmen know nothing. How then am I mad?
I know the mind of god, the mind of man
That madness is the heart of good and bad
And those who think they know this never can

That art and science merely serve to drape
Upon the naked form of what we know
We feel their chains and know we must escape
Or let them drag us down to hell below

Then every word we know is sounded near
And all the sounds, a sickly rhythm, make
A poem which the madmen only fear;’
Each beat a link which knowledge cannot break

And man is god when guilty of this art
It is the beating of his hideous heart
*
COVID-19
Monday, March 16th, 2020

Coronavirus reared its ugly head
In 2020, all around the world
To fight it we’ve been told to stay in bed
I wonder who’s in bed all snugly curled

The Donald? No. He thinks that he’s immune
Immune from common sense and nothing more
I wonder if this bug will change his tune
Or if the Donald’s just a stupid bore

My social distance grows and grows and grows
At every news report of quarantine
It’s news of death-by-snot from someone’s nose
While toilet paper’s nowhere to be seen!

Coronavirus, what a lovely mess
And when it ends is anybody’s guess.
*


ChristmasMonday,
December 23rd, 2019

Poor Jesus didn't mean to start a cult
Poor Christian folk believe the poor boy did
Be glad he doesn't see the poor result
Of how his life with "Christian" crap's been hid

Poor Mary was a simple girl, a teen
Who found that she was pregnant and unwed
Cast out, the "law" proclaimed she was "unclean"
Though true, it isn’t what the gospels said

Let’s steal the rustic solstice to ensure
Our celebration of poor Jesus stays
Alive, though he is dead, and let’s adjure
The simple, rustic people with our ways

We’ll call it “Christmas,” decorate with shit
No one will ever know the truth of it.
*
त्रिलोचन के कुछ सॉनेट
सिपाही और तमाशबीन
घायल हो कर गिरा सिपाही और कराहा.
एक तमाशबीन दौड़ा आया। फिर बोला,
''योद्धा होकर तुम कराहते हो, यह चोला
एक सिपाही का है जिस को सभी सराहा

करते हैं, जिस की अभिलाषा करते हैं, जो
दुर्लभ है, तुम आज निराशावादी-जैसा
निन्द्य आचरण करते हो। कहना सुन ऐसा
उधर सिपाही ने देखा जिस ओर खड़ा हो

उपदेशक बोला था। उन ओठों को चाटा
सूख गए थे जो, स्वर निकला, ''प्यास! खड़ा ही
सुनने वाला रहा। सिपाही पड़ा पड़ा ही
करवट हुआ, रक्त अपना पी कुछ दुख काटा

'जाओ चले, मूर्ख दुनिया में बहुत पड़े हैं।
उन्हें सिखाओ हम तो अपनी जगह अड़े हैं।
*
सॉनेट का पथ
इधर त्रिलोचन सॉनेट के ही पथ पर दौड़ा;
सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट; क्या कर डाला
यह उस ने भी अजब तमाशा। मन की माला
गले डाल ली। इस सॉनेट का रस्ता चौड़ा

अधिक नहीं है, कसे कसाए भाव अनूठे
ऐसे आएँ जैसे क़िला आगरा में जो
नग है, दिखलाता है पूरे ताजमहल को;
गेय रहे, एकान्विति हो। उसने तो झूठे

ठाटबाट बाँधे हैं। चीज़ किराए की है।
स्पेंसर, सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन की वाणी
वर्ड्सवर्थ, कीट्स की अनवरत प्रिय कल्याणी
स्वर-धारा है, उस ने नई चीज़ क्या दी है।

सॉनेट से मजाक़ भी उसने खूब किया है,
जहाँ तहाँ कुछ रंग व्यंग्य का छिड़क दिया है।
*
जब भौंरे ने आकर पहले पहले गाया
कली मौन थी। नहीं जानती थी वह भाषा
इस दुनिया की, कैसी होती है अभिलाषा
इस से भी अनजान पड़ी थी। तो भी आया

जीवन का यह अतिथि, ज्ञान का सहज सलोना
शिशु, जिस को दुनिया में प्यार कहा जाता है,
स्वाभिमान-मानवता का पाया जाता है
जिस से नाता। उस में कुछ ऐसा है टोना

जिस से यह सारी दुनिया फिर राई रत्ती
और दिखाई देने लगती है। क्या जाने
कौन राग छाती से लगता है अकुलाने,
इंद्रधनुष सी लहराती है पत्ती पत्ती।
*

सुमित्र
















शतवर्षी जीवन जियें, अग्रज बंधु सुमित्र। 
अंकित अपने हृदय, पर अमिट आपका चित्र।। 
गायत्री सुमिरन करें, भाव भावना दिव्य। 
काम कामना पूर्ण हो, हर्ष मिले नित नव्य।।
श्वास-श्वास संजीव हो, सफल साधना पूर्ण। 
हर संकट बाधा मिटे, पल भर में हो चूर्ण।।