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गुरुवार, 28 अक्टूबर 2021

कविता: सफाई

कविता:
सफाई
*
मैंने देखा सपना एक
उठा तुरत आलस को फेंक
बीजेपी ने कांग्रेस के
कार्यालय की करी पुताई। 
नीतीश ने लालू के घर के  
कपड़ों की करवाई धुलाई। 
माया झाड़ू लिए
मुलायम की राहों से बीनें काँटे। 
और मुलायम ममतामय हो
लगा रहे फतवों को चाँटे। 
जयललिता की देख दुर्दशा
करुणा-भर करूणानिधि रोयें। 
अब्दुल्ला श्रद्धा-सुमनों की
अवध पहुँ कर खेती बोयें। 
गज़ब! सोनिया ने मोहन का  
पूजन निज गृह में करवाया। 
जन्म अष्टमी पर ममता ने 
सोहर सबको झूम सुनाया। 
स्वामी जी को गिरिजाघर में
प्रेयर करते हमने देखा। 
और शंकराचार्य मिले
मस्जिद में करते सबकी सेवा। 
मिले सिक्ख भाई कृपाण से
खापों के फैसले मिटाते। 
बम्बइया निर्देशक देखे
यौवन को कपड़े पहनाते। 
डॉक्टर और वकील छोड़कर फीस
काम जल्दी निबटाते। 
न्यायाधीश एक पेशी में
केसों का फैसला सुनाते। 
थानेदार सड़क पर मंत्री जी का
था चालान कर रहा। 
बिना जेब के कपड़े पहने
टी. सी. सीटें बाँट हँस रहा। 
आर. टी. ओ. लाइसेंस दे रहा
बिना दलाल के सच तुम मानो। 
अगर देखना ऐसा सपना
चद्दर ओढ़ो लम्बी तानो
***
२८-१०-२०१४