भजन:

संजीव
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प्रभु! स्वीकारो करूँ नमन शत...
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हम मृण्मय मानव हैं माना,
आदत गलती कर पछताना.
पहले काम करें मनमाना-
दोष तुझे फिर देते नाना.
अब न करेंगे कोई बहाना,
जाने बस तेरा जस गाना.
प्रभु! हमसे क्रोधित होना मत
प्रभु! स्वीकारो करूँ नमन शत...
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तुम बिन माटी है सारा जग,
चाह रही मन की मन को ठग.
कौन बताये चलना किस मग?
उठें न तुम तक जा पायें पग.
पिंजरा आस, विकल प्यासा खग-
हिम्मत नहीं बढ़ें रखकर डग.
प्रभ! विनती तुम ही राखो पत.
प्रभु! स्वीकारो करूँ नमन शत...
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अपने मैं से खुद ही हारा,
फिरता दर-दर हो बेचारा.
पर-संपति को ललच निहारा,
दौड़-गिरा फिर तका सहारा.
जाना है तज सकल पसारा।
तुझको अब तक रहा बिसारा.
प्रभु! पा लूँ तुमको दो हिम्मत
प्रभु! स्वीकारो करूँ नमन शत...
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salil.sanjiv@gmail.comhttp://divyanarmada.blogspot.