कुल पेज दृश्य

doha muktak fagun लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
doha muktak fagun लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 23 मार्च 2019

दोहा मुक्तक

दोहा
पर्वत शिखरों पर बसी, धूप-छाँव सँग शाम.
वृक्षों पर कलरव करें, नभचर आ आराम..
फागुन के मुक्तक
संजीव 'सलिल'
*
बसा है आपके ही दिल में प्रिय कब से हमारा दिल.
बनाया उसको माशूका जो बिल देने के है काबिल..
चढ़ायी भाँग करके स्वांग उससे गले मिल लेंगे-
रहे अब तक न लेकिन अब रहेंगे हम तनिक गाफिल..
*
दिया होता नहीं तो दिया दिल का ही जला लेते.
अगर सजती नहीं सजनी न उससे दिल मिला लेते..
वज़न उसका अधिक या मेक-अप का कौन बतलाये?
करा खुद पैक-अप हम क्यों न उसको बिल दिला लेते..
*
फागुन में गुन भुलाइए बेगुन हुजूर हों.
किशमिश न बनिए आप अब सूखा खजूर हों..
माशूक को रंग दीजिए रंग से, गुलाल से-
भागिए मत रंग छुड़ाने खुद मजूर हों..
२३-३-२०१३ 
*
salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.blogspot.in