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शनिवार, 4 अगस्त 2018

muktak

मुक्तक 
*
हिंदी कहो, हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, नित जाल पर
हिंदी- तिलक हँसकर लगाओ, भारती के भाल पर
विश्व वाणी है यही, कल सब कहेंगे सत्य यह
मीडिया-मित्रों कहो 'जय हिन्द-हिंदी' जाल पर
*
हिंदी में हिंदी नहीं तो, सब दुखी हो जाएँगे
बधावा या मर्सिया इंग्लिश में रटकर गाएँगे?
आरती या भजन समझेंगे नहीं जब देवता-
कहो कोंवेंट-प्रेमियों वरदान कैसे पाएँगे?
*
गले मिल, झगड़ा करो स्वीकार है
अधर पर रख अधर सिल, स्वीकार है
छोड़ दें हिंदी किसी भी शर्त पर
है असंभव यही अस्वीकार है
*



रविवार, 24 दिसंबर 2017

navgeet

एक रचना -
हिंदी भाषी 
*
हिंदी भाषी ही 
हिंदी की 
क्षमता पर क्यों प्रश्न उठाते?
हिंदी जिनको
रास न आती
दीगर भाषा बोल न पाते।
*
हिंदी बोल, समझ, लिख, पढ़ते
सीढ़ी-दर सीढ़ी है चढ़ते
हिंदी माटी,हिंदी पानी
श्रम करके मूरत हैं गढ़ते
मैया के माथे
पर बिंदी
मदर, मम्मी की क्यों चिपकाते?
हिंदी भाषी ही
हिंदी की
क्षमता पर क्यों प्रश्न उठाते?
*
जो बोलें वह सुनें - समझते
जो समझें वह लिखकर पढ़ते
शब्द-शब्द में अर्थ समाहित
शुद्ध-सही उच्चारण करते
माँ को ठुकरा
मौसी को क्यों
उसकी जगह आप बिठलाते?
हिंदी भाषी ही
हिंदी की
क्षमता पर क्यों प्रश्न उठाते?
*
मनुज-काठ में पंचस्थल हैं
जो ध्वनि के निर्गमस्थल हैं
तदनुसार ही वर्ण विभाजित
शब्द नर्मदा नद कलकल है
दोष हमारा
यदि उच्चारण
सीख शुद्ध हम नहीं सिखाते
हिंदी भाषी ही
हिंदी की
क्षमता पर क्यों प्रश्न उठाते?
*
अंग्रेजी के मोह में फँसे
भ्रम-दलदल में पैर हैं धँसे
भरम पाले यह जगभाषा है
जाग पायें तो मोह मत ग्रसे
निज भाषा का
ध्वज मिल जग में
हम सब काश कभी फहराते
***

रविवार, 19 नवंबर 2017

ghanaksharee

घनाक्षरी
हिंदी मैया का जैकारा, गुंजा दें सारे विश्वों, देवों, यक्षों-रक्षों में, वे भी आ हिंदी बोलें। हिंदी मैया दिव्या-भव्या, श्रव्या-नव्या, दूजी कोई भाषा ऐसी ना थी, ना है, ना होगी हिंदी बोलें।। हिंदी मैया गैया रेवा भू, माताएँ पाँचों पूजें, दूरी मेटें आओ भेंटें, एका हो हिंदी बोलें हिंदी है छंदों से नाता, हिंदी गीतों की उद्गाता, ऊषा-संध्या चंदा-तारे, सीखें रे हिंदी बोलें
***

बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

muktak

पञ्च मुक्तक
सम्मिलन साहित्यकारों का सुफलदायी रहे
सत्य-शिव-सुन्दर सुपथ हर कलम आगे बढ़ गहे
द्वन्द भाषा-बोलिओं में, सियासत का इष्ट है-
शारदा-सुत हिंद-हिंदी की सतत जय-जय कहे
*
नेह नर्मदा तीर पधारे शब्ददूत हिंदी माँ के
अतिथिदेव सम मन भाते हैं शब्ददूत हिंदी माँ के
भाषा, पिंगल शास्त्र, व्याकरण हैं त्रिदेवियाँ सच मानो
कथ्य, भाव, रस देव तीन हैं शब्ददूत हिंदी माँ के
*
अक्षर सुमन, शब्द-हारों से, पूजन भारत माँ का हो
गीतों के बन्दनवारों से, पूजन शारद माँ का हो
बम्बुलियाँ दस दिश में गूँजें, मातु नर्मदा की जय-जय
जस, आल्हा, राई, कजरी से, वंदन हिंदी माँ का हो
*
क्रांति का अभियान हिंदी विश्ववाणी बन सजे
हिंद-हिंदी पर हमें अभिमान, हिंदी जग पुजे
बोलियाँ-भाषाएँ सब हैं सहोदर, मिलकर गले -
दुन्दुभी दस दिशा में अब सतत हिन्दी की बजे
*
कोमल वाणी निकल ह्रदय से, पहुँच ह्रदय तक जाती है
पुलक अधर मुस्कान सजाती, सिसक नीर बरसाती है
वक्ष चीर दे चट्टानों का, जीत वज्र भी नहीं सके-
'सलिल' धार बन नेह-नर्मदा, जग की प्यास बुझाती है
*

सोमवार, 18 सितंबर 2017

doha salila

समस्या पूर्ति
'हिंदी की तस्वीर
'हिंदी की तस्वीर' शब्दों का उपयोग करते हुए पद्य की किसी भी विधा में रचना टिप्पणी के रूप में प्रस्तुत करें।
*
हिंदी की तस्वीर के, अनगिन उजले पक्ष
जो बोलें वह लिख-पढ़ें, आम लोग, कवि दक्ष
*
हिदी की तस्वीर में, भारत एकाकार
फूट डालती स्वार्थवश, अंग्रेजी आधार
*
हिंदी की तस्वीर में, सरस सार्थक छंद
जितने उतने हैं कहाँ, नित्य रचें कविवृंद
*
हिंदी की तस्वीर या, पूरा भारत देश
हर बोली मिलती गले, है आनंद अशेष
*
हिंदी की तस्वीर में, भरिए अभिनव रंग
उनकी बात न कीजिए, जो खुद ही बदरंग
*
हिंदी की तस्वीर पर अंग्रेजी का फ्रेम
नौकरशाही मढ़ रही, नहीं चाहती क्षेम
*
हिंदी की तस्वीर में, गाँव-शहर हैं एक
संस्कार-साहित्य मिल, मूल्य जी रहे नेक
*
हिंदी की तस्वीर में, मैं-तू हैं इक जान
हमको दोनों लुभाते, राम और रहमान
*
हिंदी की तस्वीर में, जुड़ें नित्य नव देश
'सलिल' निकट है वह समय, होगा एक न शेष
***
salil.sanjiv@gmail.com,९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

bhasha geet

भाषा गीत  

हिंद और हिंदी की जय-जयकार करें हम 
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम 
*
भाषा सहोदरी होती है, हर प्राणी की 
अक्षर-शब्द बसी छवि, शारद कल्याणी की 
नाद-ताल, रस-छंद, व्याकरण शुद्ध सरलतम 
जो बोले वह लिखें-पढ़ें, विधि जगवाणी की 
संस्कृत सुरवाणी अपना, गलहार करें हम 
हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम 
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम 
*
असमी, उड़िया, कश्मीरी, डोगरी, कोंकणी,
कन्नड़, तमिल, तेलुगु, गुजराती, नेपाली,
मलयालम, मणिपुरी, मैथिली, बोडो, उर्दू 
पंजाबी, बांगला, मराठी सह संथाली 
सिंधी सीखें बोल, लिखें व्यवहार करें हम 
हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम 
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम 

ब्राम्ही, प्राकृत, पाली, बृज, अपभ्रंश, बघेली,
अवधी, कैथी, गढ़वाली, गोंडी, बुन्देली, 
राजस्थानी, हल्बी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, 
भोजपुरी, मारिया, कोरकू, मुड़िया, नहली,
परजा, गड़वा, कोलमी से सत्कार करें हम 
हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम 
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम 

शेखावाटी, डिंगल, हाड़ौती, मेवाड़ी 
कन्नौजी, मागधी, खोंड, सादरी, निमाड़ी, 
सरायकी, डिंगल, खासी, अंगिका, बज्जिका, 
जटकी, हरयाणवी, बैंसवाड़ी, मारवाड़ी,
मीज़ो, मुंडारी, गारो मनुहार करें हम 
हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम 
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम 
*
देवनागरी लिपि, स्वर-व्यंजन, अलंकार पढ़ 
शब्द-शक्तियाँ, तत्सम-तद्भव, संधि, बिंब गढ़ 
गीत, कहानी, लेख, समीक्षा, नाटक रचकर 
समय, समाज, मूल्य मानव के नए सकें मढ़ 
'सलिल' विश्व, मानव, प्रकृति-उद्धार करें हम 
हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम 
भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम 
**** 
गीत में ५ पद ६६ (२२+२३+२१) भाषाएँ / बोलियाँ हैं। १,२ तथा ३ अंतरे लघुरूप में पढ़े जा सकते हैं। पहले दो अंतरे पढ़ें तो भी संविधान में मान्य भाषाओँ की वन्दना हो जाएगी।
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नवगीत:
अपना हर पल है हिन्दीमय....
संजीव 'सलिल'
*
अपना हर पल है हिन्दीमय 
एक दिवस क्या खाक मनाएँ?

बोलें-लिखें नित्य अंग्रेजी 
जो वे एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को कहते पिछडी. 
पर भाषा उन्नत बतलाते. 

घरवाली से आँख फेरकर
देख पडोसन को ललचाते. 

ऐसों की जमात में बोलो,
हम कैसे शामिल हो जाएँ?...
*
हिंदी है दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक की भाषा. 

जिसकी ऐसी गलत सोच है,
उससे क्या पालें हम आशा?

इन जयचंदों की खातिर
हिंदीसुत पृथ्वीराज बन जाएँ...
*
ध्वनिविज्ञान-नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में माने जाते.

कुछ लिख, कुछ का कुछ पढने की 
रीत न हम हिंदी में पाते. 

वैज्ञानिक लिपि, उच्चारण भी 
शब्द-अर्थ में साम्य बताएँ...
*
अलंकार, रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की बिम्ब अनूठे. 

नहीं किसी भाषा में मिलते,
दावे करलें चाहे झूठे. 

देश-विदेशों में हिन्दीभाषी 
दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएँ...
*
अन्तरिक्ष में संप्रेषण की 
भाषा हिंदी सबसे उत्तम. 

सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन में
हिंदी है सर्वाधिक सक्षम.

हिंदी भावी जग-वाणी है 
निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...
*
-----------------------------------
एक रचना -
हिंदी भाषी
*
हिंदी भाषी ही
हिंदी की 
क्षमता पर क्यों प्रश्न उठाते?
हिंदी जिनको
रास न आती
दीगर भाषा बोल न पाते।
*
हिंदी बोल, समझ, लिख, पढ़ते
सीढ़ी-दर सीढ़ी है चढ़ते
हिंदी माटी,हिंदी पानी
श्रम करके मूरत हैं गढ़ते
मैया के माथे
पर बिंदी
मदर, मम्मी की क्यों चिपकाते?
हिंदी भाषी ही
हिंदी की
क्षमता पर क्यों प्रश्न उठाते?
*
जो बोलें वह सुनें - समझते
जो समझें वह लिखकर पढ़ते
शब्द-शब्द में अर्थ समाहित
शुद्ध-सही उच्चारण करते
माँ को ठुकरा
मौसी को क्यों
उसकी जगह आप बिठलाते?
हिंदी भाषी ही
हिंदी की
क्षमता पर क्यों प्रश्न उठाते?
*
मनुज-काठ में पंचस्थल हैं
जो ध्वनि के निर्गमस्थल हैं
तदनुसार ही वर्ण विभाजित
शब्द नर्मदा नद कलकल है
दोष हमारा
यदि उच्चारण
सीख शुद्ध हम नहीं सिखाते
हिंदी भाषी ही
हिंदी की
क्षमता पर क्यों प्रश्न उठाते?
*
अंग्रेजी के मोह में फँसे
भ्रम-दलदल में पैर हैं धँसे
भरम पाले यह जगभाषा है
जाग पायें तो मोह मत ग्रसे
निज भाषा का
ध्वज मिल जग में
हम सब काश कभी फहराते
***
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हाइकू गीत 
*
बोल रे हिंदी 
कान में अमरित 
घोल रे हिंदी 
*
नहीं है भाषा
है सभ्यता पावन
डोल रे हिंदी
*
कौन हो पाए
उऋण तुझसे, दे
मोल रे हिंदी?
*
आंग्ल प्रेमी जो
तुरत देना खोल
पोल रे हिंदी
*
झूठा है नेता
कहाँ सच कितना?
तोल रे हिंदी
*
--------------------------
मुक्तक
हिंदी का उद्घोष छोड़, उपयोग सतत करना है
कदम-कदम चल लक्ष्य प्राप्ति तक संग-संग बढ़ना है
भेद-भाव की खाई पाट, सद्भाव जगाएँ मिलकर
गत-आगत को जोड़ सके जो वह पीढ़ी गढ़ना है
*
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गीत
*
देश-हितों हित
जो जीते हैं
उनका हर दिन अच्छा दिन है।
वही बुरा दिन
जिसे बिताया
हिंद और हिंदी के बिन है।
*
अपने मन में
झाँक देख लें
क्या औरों के लिए किया है?
या पशु, सुर,
असुरों सा जीवन
केवल निज के हेतु जिया है?
क्षुधा-तृषा की
तृप्त किसी की,
या अपना ही पेट भरा है?
औरों का सुख छीन
बना जो धनी
कहूँ सच?, वह निर्धन है।
*
जो उत्पादक
या निर्माता
वही देश का भाग्य-विधाता,
बाँट, भोग या
लूट रहा जो
वही सकल संकट का दाता।
आवश्यकता
से ज्यादा हम
लुटा सकें, तो स्वर्ग रचेंगे
जोड़-छोड़ कर
मर जाता जो
सज्जन दिखे मगर दुर्जन है।
*
बल में नहीं
मोह-ममता में
जन्मे-विकसे जीवन-आशा।
निबल-नासमझ
करता-रहता
अपने बल का व्यर्थ तमाशा।
पागल सांड
अगर सत्ता तो
जन-गण सबक सिखा देता है
नहीं सभ्यता
राजाओं की,
आम जनों की कथा-भजन है
***
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हिंदी पर दोहे
हिंदी कलश...
संजीव
*
घर-घर धर हिंदी कलश, हिंदी-मन्त्र  उचार.
हिन्दवासियों  का 'सलिल', हिंदी से उद्धार..
*
दक्षिणभाषी सीखते, हिंदी स्नेह समेत.
उनकी  भाषा सीख ले, होकर 'सलिल' सचेत..
*
हिंदी मैया- मौसियाँ, भाषा-बोली अन्य.
मातृ-भक्ति में रमा रह, मौसी होगी धन्य..
*
पशु-पक्षी तक बोलते, अपनी भाषा मीत.
निज भाषा भूलते, कैसी अजब अनीत??
*
माँ को आदर दे नहीं, मौसी से जय राम.
करे जगत में हो हँसी, माया मिली न राम..
*
हिंदी की तस्वीर
*
हिंदी की तस्वीर के, अनगिन उजले पक्ष 
जो बोलें वह लिख-पढ़ें, आम लोग, कवि दक्ष 
*
हिदी की तस्वीर में, भारत एकाकार
फुट डाल कर राज की, अंग्रेजी आधार
*
हिंदी की तस्वीर में, सरस सार्थक छंद
जितने उतने हैं कहाँ, नित्य रचें कविवृंद
*
हिंदी की तस्वीर या, पूरा भारत देश
हर बोली मिलती गले, है आनंद अशेष
*
हिंदी की तस्वीर में, भरिए अभिनव रंग
उनकी बात न कीजिए, जो खुद ही भदरंग
*
हिंदी की तस्वीर पर अंग्रेजी का फेम
नौकरशाही मढ़ रही, नहीं चाहती क्षेम
*
हिंदी की तस्वीर में, गाँव-शहर हैं एक
संस्कार-साहित्य मिल, मूल्य जी रहे नेक
*
करता है मन-प्राण जब, अर्पित रचनाकार
तब भाषा की मृदा से, रचना ले आकार
*
भाषा तन साहित्य की, आत्मा बिन निष्प्राण
शिवा रहित शिव शव सदृश, धनुष बिना ज्यों बाण
*
भाषा रथ को हाँकता, सत्ता सूत अजान
दिशा-दशा साहित्य दे, कैसे? दूर सुजान
*
अवगुंठन ही ज़िन्दगी, अनावृत्त है ईश
प्रणव नाद में लीन हो, पाते सत्य मनीष
*
पढ़ ली मन की बात पर, ममता साधे मौन
अपनापन जैसा भला, नाहक तोड़े कौन
*
जीव किरायेदार है, मालिक है भगवान
हुआ किरायेदार के, वश में दयानिधान
*
रचना रचनाकार से, रच ना कहे न आप
रचना रचनाकार में, रच जाती है व्याप
*
जल-बुझकर वंदन करे, जुगनू रजनी मग्न
चाँद-चाँदनी का हुआ, जब पूनम को लग्न
*
तिमिर-उजाले में रही, सत्य संतान प्रीति
चोली-दामन के सदृश, संग निभाते रीति
*
जिसे हुआ संतोष वह, रंक अमीर समान
असंतोषमय धनिक सम, दीन न कोई जान
*