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रविवार, 5 अगस्त 2012

गीत: गीत के नीलाभ नभ पर... --संजीव 'सलिल'

कालजयी गीतकार राकेश जी को समर्पित:

एक गीत:
गीत के नीलाभ नभ पर...
संजीव 'सलिल'




*
गीत के नीलाभ नभ पर, चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो, रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
*




भावनाओं की लहरियाँ, कामनाओं की शिला पर,
सिर पटककर तोड़तीं दम, पुनर्जन्मित हो विहँसतीं.
नित नयी संभावनाओं के झंकोरे, ओषजन बन-
श्वास को नव आस देते, कोशिशें फिर-फिर किलकतीं..
स्वेद धाराएँ प्रवाहित हो अबाधित, आशु कवि सी
प्रीत के पीताभ पट पर,  खंचित अर्पण-पर्ण जैसी...
गीत के नीलाभ नभ पर, चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो, रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
*




क्षर करे आराधना, अक्षर निहारे मौन रहकर,
सत्य-शिव-सुंदर सुपासित, हो सुवासित आत्म गहकर.
लौह तन को वासना का, जंग कर कमजोर देता-
त्याग-संयम से बने स्पात, तप-आघात सहकर..
अग्नि-कण अगणित बनाते अमावस भी पूर्णिमा सी
नीत के अरुणाभ घट पर, निखरते  ऋतु-वर्ण जैसी..
गीत के नीलाभ नभ पर, चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो, रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
*




Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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