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रविवार, 24 अगस्त 2025

अगस्त २४, संजा, व्यंग्य लेख, मुहावरा, कौआ स्नान, शिक्षक, चित्र अलंकार, मंदिर,

 सलिल सृजन अगस्त २४

*
गीत
जन्म दिवस हर सुबह मनाएँ, आँख मूँद लें रजनी में हम
सपने हों साकार यत्न कर, निराकार हों तो न करें गम
मनोरमा हो रश्मि विभा की, पाखी शोभित नीलाम्बर में
विजय-स्मृति हो पद्म गुच्छ सी, ज्योति अमर हो निविड़ तिमिर में
हो संदीप प्रदीप पथिक मैं, संग देवकीनंदन पाऊँ
हर हिंदुस्तानी मनोज हो, सदा भारती की जय गाऊँ
अंजु लता सम नीलोफ़र हँस, साथ चले जय हिंद गुँजाए
त्यागी राज करे पूनम सह, शरतचंद्र अमृत बरसाए
सूरज दीप्त दिनेश दिवाकर, ओमप्रकाश बिखेरे भू पर
ता ता धिन्ना नाचे मिन्नी, परी तनूजा उपमा मिलकर
योगी दुर्गा-राधा की जय, कहे मुरारि राजमणि पाए
जनसेवक राजेंद्र बन सके, करुणा हरदम हृदय बसाए
नमन अन्नपूर्णा सरस्वती, वेदप्रकाश महेश बिखेरे
सरला मनी हंस देवांशी, हों संजीव लगाएँ फेरे
सृजन कुंज पुष्पित मुकुलित हो, कथ्य भाव रस लय आनंदी
स्नेह सलिल सिंचन कर, मधुकर, छंद गुँजाए परमानंदी
२४-८-२०२२
***
निमाड़ी पर्व : संजा (छाबड़ी)
गीतात्मक लोक पर्व संजा बाई (छाबड़ी)
निमाड़ की किशोरी बालिकाओ द्वारा भाद्र माह की पूर्णिमा से अश्विन माह की सर्वपितृ अमावस्या तक मनाया जाता है । इन 16 दिनों तक चलने वाले गीतात्मक मांडना पर्व को गीतों के माध्यम मनाया जाता है मांडना बनाए में 16 दिन पूनम का पाटला और चाँद ,तारे ,सूरज , पाँच कुँआरा, बंदनवार डोकरा डोकरी ,निसरणी, छाबड़ी, रुनझुन की गाड़ी, कोट किल्ला ,वान्या की हाटडी,मोर,बिजौरा, पंखा, कौवा,कुआ,बावड़ी,आदि बनाये जाते है। गीत गाये जाते है और आरती प्रसाद बांटा जाता है... संजा कौंन ?उनका सामाजिक आत्मिक और आद्यात्मिक स्वरूप क्या है संजा के गीतों में कहा जाता है-
"संजा सहेलड़ि बाज़ार में खेले
बजार में रमे
वा कोणा जी नी बेटी
वा खाय खाजा रोटी
पठानी चाल चाले
रजवाड़ी बोली बोले
संजा एडो संजा का माथा बेड़ो "........
गीत का भाव है कि संजा निडर,साहसी, राजसी वैभव को जीने वाली हमारी सखी है जो कोना जी की बेटी है खाजा खाती है पठानी चाल से चलती है परन्तु वो जल के प्रतीक जीवन में स्वभिमानी पनिहारिन की तरह कर्मशील है।
दोस्तों निमाड़ की किशोरीय अंतरिक्षीय कल्पना पटल पर प्रारम्भ में चाँद और सूरज का प्रादुर्भाव होता है रात और दिन की तरह ,सुख और दुःख की तरह, संघर्ष की तपिश और सफलता की चांदनी की तरह वो जीवन के कर्मशीलता की साधना में सोलह संस्कारों से अभिसिंचित सोलह दिवसीय लोक महोत्सव में रूपांतरित हो जीवन को गीतात्मक से परिलक्षित और परिभाषित कर फिर जीवन की अनन्तता में विसर्जित हो जाता है।
***
श्रद्धांजलि
सुषमा गईं, डूबा अरुण भी, शोक का है यह समय।
गौरव बढ़ाया देश का, देगा गवाही खुद समय।।
जन से सदा रिश्ते निगाहे, थे प्रभावी दक्ष भी-
वाक्पटुता-विद्वता अद्भुत रही कहता समय।।
*
धूमिल न होंगी याद, छवियाँ, कार्यपटुता भी कभी।
दल से उठे ऊपर, कमाया जन-समर्थन नाम भी।।
दृढ़ता-प्रखरता-अभयता का त्रिवेणी दोनों रहे-
इतिहास लेगा नाम दोनों ने किए सत्कार्य भी।।
***
छंद सलिला
नवाविष्कृत मात्रिक दंडक
*
विधान-
प्रति पद ५६ मात्रा।
यति- १४-१४-१४-१४।
पदांत-भगण।
*
अवस्था का बहाना मत करें, जब जो बने करिए, समय के साथ भी चलिए, तभी होगा सफल जीवन।
गिरें, उठकर बढ़ें मंजिल मिले तब ही तनिक रुकिए, न चुकिए और मत भगिए, तभी फागुन बने सावन।
न सँकुचें लें मदद-दें भी, न कोई गैर है जग में, सभी अपने न सच तजिए, कहें सच मन न हो उन्मन-
विरागी हों या अनुरागी, करें श्रम नित्य तज आलस, न केवल मात्र जप करिए, स्वेद-सलिला करे पावन।।
*
टीप-छंद लक्षणानुसार नाम सुझाएँ।
संजीव
२४-८-२०१९
***
व्यंग्य लेख
अफसर, नेता और ओलंपिक
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
ओलंपिक दुनिया का सबसे बड़ा खेल कुंभ होता है। सामान्यत:, अफसरों और नेताओं की भूमिका गौड़ और खिलाडियों और कोचों की भूमिका प्रधान होना चाहिए। अन्य देशों में ऐसा होता भी है पर इंडिया में बात कुछ और है। यहाँ अफसरों और नेताओं के बिना कौआ भी पर नहीं मार सकता। अधिक से अधिक अफसर सरकारी अर्थात जनगण के पैसों पाए विदेश यात्रा कर सैर-सपाट और मौज-मस्ती कर सकें इसलिए ज्यादा से ज्यादा खिलाडी और कोच चुने जाने चाहिए। खिलाडी ऑलंपिक स्तर के न भी हों तो कोच और अफसर फर्जी आँकड़ों से उन्हें ओलंपिक स्तर का बता देंगे। फर्जीवाड़ा की प्रतियोगिता हो तो स्वर्ण, रजत और कांस्य तीनों पदक भारत की झोली में आना सुनिश्चित है। यदि आपको मेरी बात पर शंका हो तो आप ही बताएं की इन सुयोग्य अफसरों और कोचों के मार्गदर्शन में जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर श्रेष्ठ प्रदर्शन और ओलंपिक मानकों से बेहतर प्रदर्शन कर चुके खेलवीर वह भी एक-गो नहीं सैंकड़ों अपना प्रदर्शन दुहरा क्यों नहीं पाते?
कोई खिलाडी ओलंपिक तक जाकर सर्वश्रेष्ठ न दे यह नहीं माना जा सकता। इसका एक ही अर्थ है कि अफसर अपनी विदेश यात्रा की योजना बनाकर खिलाडियों के फर्जी आँकड़े तैयार करते हैं जिसमें इन्डियन अफसरशाही को महारत हासिल है। ऐसा करने से सबका लाभ है, अफसर, नेता, कोच और खिलाडी सबका कद बढ़ जाता है, घटता है केवल देश का कद। बिके हुई खबरिया चैनल किसी बात को बारह-चढ़ा कर दिखाते हैं ताकि उनकी टी आर पी बढ़े, विज्ञापन अधिक मिलें और कमाई हो। इस सारे उपक्रम में आहत होती हैं जनभावनाएँ, जिससे किसी को कोई मतलब नहीं है।
रियो से लौटकर रिले रेस खिलाडी लाख कहें कि उन्हें पूरी दौड़ के दौरान कोई पेय नहीं दिया गया, वे किसी तरह दौड़ पूरी कर अचेत हो गईं। यह सच सारी दुनिया ने देखा लेकिन बेशर्म अफसरशाही आँखों देखे को भी झुठला रही है। यह तय है कि सच सामने लानेवाली खिलाड़ी अगली बार नहीं चुनी जाएगी। कोच अपना मुँह बंद रखेगा ताकि अगली बार भी उसे ही रखा जाए। केर-बेर के संग का इससे बेहतर उदाहरण और कहाँ मिलेगा? अफसरों को भेज इसलिए जाता है की वे नियम-कायदे जानकार खिलाडियों को बता दें, आवश्यक व्यवस्थाएं कर दें ताकि कोच और खिलाडी सर्वश्रेष्ठ दे सकें पर इण्डिया की अफसरशाही आज भी खुद को खुदमुख्तार और बाकि सब को गुलाम समझती है। खिलाडियों के सहायक हों तो उनकी बिरादरी में हेठी हो जाएगी। इसलिए, जाओ, खाओ, घूमो, फिरो, खरीदी करो और घरवाली को खुश रखो ताकि वह अन्य अफसरों की बीबीयों पर रौब गांठ सके।
रियो ओलंपिक में 'कोढ़ में खाज' खेल मंत्री जी ने कर दिया। एक राजनेता को ओलंपिक में क्यों जाना चाहिए? क्या अन्य देशों के मंत्री आते है? यदि नहीं, तो इंडियन मंत्री का वहाँ जाना, नियम तोडना, चेतावनी मिलना और बेशर्मी से खुद को सही बताना किसी और देश में नहीं हो सकता। व्यवस्था भंग कर खुद को गौरवान्वित अनुभव करने की दयनीय मानसिकता देश और खिलाडियों को नीच दिखती है पर मोटी चमड़ी के मंत्री को इस सबसे क्या मतलब?
रियो ओलंपिक के मामले में प्रधानमंत्री को भी दिखे में रख गया। पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने खिलाडियों का हौसला बढ़ाने के लिए उनसे खुद पहल कर भेंट की। यदि उन्हें बताया जाता कि इनमें से किसी के पदक जीतने की संभावना नहीं है तो शायद वे ऐसा नहीं करते किन्तु अफसरों और पत्रकारों ने ऐसा माहौल बनाया मानो भारत के खलाड़ी अब तक के सबसे अधिक पदक जीतनेवाले हैं। झूठ का महल कब तक टिकता? सारे इक्के एक-एक कर धराशायी होते रहे।
अफसरों और कर्मचारियों की कारगुजारी सामने आई मल्ल नरसिह यादव के मामले में। दो हो बाते हो सकती हैं। या तो नरसिंह ने खुद प्रतिबंधित दवाई ली या वह षड्यन्त्र का शिकार हुआ। दोनों स्थितियों में व्यवस्थापकों की जिम्मेदारी कम नहीं होती किन्तु 'ढाक के तीन पात' किसी के विरुद्ध कोइ कदम नहीं उठाया गया और देश शर्मसार हुआ।
असाधारण लगन, परिश्रम और समर्पण का परिचय देते हुए सिंधु, साक्षी और दीपा ने देश की लाज बचाई। उनकी तैयारी में कोई योगदान न करने वाले नेताओं में होड़ लग गयी है पुरस्कार देने की। पुरस्कार दें है तो पाने निजी धन से दें, जनता के धन से क्यों? पिछले ओलंपिक के बाद भी यही नुमाइश लगायी गयी थी। बाद में पता चला कई घोषणावीरों ने खिलाडियों को घोषित पुरस्कार दिए ही नहीं। अत्यधिक धनवर्षा, विज्ञापन और प्रचार के चक्कर में गत ओलंपिक के सफल खिलाडी अपना पूर्व स्तर भी बनाये नहीं रख सके और चारों खाने चित हो गए। बैडमिंटन खिलाडी का घुटना चोटिल था तो उन्हें भेजा ही क्यों गया? वे अच्छा प्रदर्शन तो नहीं ही कर सकीं लंबी शल्यक्रिया के लिए विवश भी हो गयीं।
होना यह चाइये की अच्छा प्रदर्शन कर्नेवले खिलाडी अगली बार और अच्छा प्रदर्शन कर सकें इसके लिए उन्हें खेल सुविधाएँ अधिक दी जानी चाहिए। भुकमद, धनराशि और फ़्लैट देने नहीं सुधरता। हमारा शासन-प्रशासन परिणामोन्मुखी नहीं है। उसे आत्मप्रचार, आत्मश्लाघा और व्यक्तिगत हित खेल से अधिक प्यारे हैं। आशा तो नहीं है किन्तु यदि पूर्ण स्थिति पर विचार कर राष्ट्रीय खेल-नीति बनाई जाए जिसमें अफसरों और नेताओं की भूमिका शून्य हो। हर खेल के श्रेष्ठ कोच और खिलाडी चार सैलून तक प्रचार से दूर रहकर सिर्फ और सिर्फ अभ्यास करें तो अगले ओलंपिक में तस्वीर भिन्न नज़र आएगी। हमारे खिलाडियों में प्रतिभा और कोचों में योग्यता है पर गुड़-गोबर एक करने में निपुण अफसरशाही और नेता को जब तक खेओं से बाहर नहीं किया जायेगा तब तक खेलों में कुछ बेहतर होने की उम्मीद आकाश कुसुम ही है।
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हिंदी दिवस पर विशेष
मुहावरा कौआ स्नान
*
कौआ पहुँचा नदी किनारे, शीतल जल से काँप-डरा रे!
कौवी ने ला कहाँ फँसाया, राम बचाओ फँसा बुरा रे!!
*
पानी में जाकर फिर सोचे, व्यर्थ नहाकर ही क्या होगा?
रहना काले का काला है, मेकप से मुँह गोरा होगा। .
*
पूछा पत्नी से 'न नहाऊँ, क्यों कहती हो बहुत जरूरी?'
पत्नी बोली आँख दिखाकर 'नहीं चलेगी अब मगरूरी।।'
*
नहा रहे या बेलन, चिमटा, झाड़ू लाऊँ सबक सिखाने
कौआ कहे 'न रूठो रानी! मैं बेबस हो चला नहाने'
*
निकट नदी के जाकर देखा पानी लगा जान का दुश्मन
शीतल जल है, करूँ किस तरह बम भोले! मैं कहो आचमन?
*
घूर रही कौवी को देखा पैर भिगाये साहस करके
जान न ले ले जान!, मुझे जीना ही होगा अब मर-मर के
*
जा पानी के निकट फड़फड़ा पंख दूर पल भर में भागा
'नहा लिया मैं, नहा लिया' चिल्लाया बहुत जोर से कागा
*
पानी में परछाईं दिखाकर बोला 'डुबकी देखो आज लगाई
अब तो मेरा पीछा छोडो, ओ मेरे बच्चों की माई!'
*
रोनी सूरत देख दयाकर कौवी बोली 'धूप ताप लो
कहो नर्मदा मैया की जय, नाहक मुझको नहीं शाप दो'
*
गाय नर्मदा हिंदी भारत भू पाँचों माताओं की जय
भागवान! अब दया करो चैया दो तो हो पाऊँ निर्भय
*
उसे चिढ़ाने कौवी बोली' आओ! संग नहा लो-तैर'
कर ''कौआ स्नान'' उड़ा फुर, अब न निभाओ मुझसे बैर
*
बच्चों! नित्य नहाओ लेकिन मत करना कौआ स्नान
रहो स्वच्छ, मिल खेलो-कूदो, पढ़ो-बढ़ो बनकर मतिमान
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***
दोहा सलिला:
शिक्षक पारसमणि सदृश...
*
शिक्षक पारसमणि सदृश, करे लौह को स्वर्ण.
दूर करे अज्ञानता, उगा बीज से पर्ण..
*
सत-शिव-सुंदर साध्य है, साधन शिक्षा-ज्ञान.
सत-चित-आनंद दे हमें, शिक्षक गुण-रस-खान..
*
शिक्षक शिक्षा दे सदा, सकता शिष्य निखार.
कंकर को शंकर बना, जीवन सके सँवार..
*
शिक्षक वह जो सिखा दे, भाषा गुण विज्ञान.
नेह निनादित नर्मदा, बहे बना गुणवान..
*
प्रतिभा को पहचानकर, जो दिखलाता राह.
शिक्षक उसको जानिए, जिसमें धैर्य अथाह..
*
जान-समझ जो विषय को, रखे पूर्ण अधिकार.
उस शिक्षक का प्राप्य है, शत शिष्यों का प्यार..
*
शिक्षक हो संदीपनी, शिष्य सुदामा-श्याम.
बना सकें जो धरा को, तीरथ वसुधा धाम..
*
विश्वामित्र-वशिष्ठ हों, शिक्षक ज्ञान-निधान.
राम-लखन से शिष्य हों, तब ही महिमावान..
*
द्रोण न हों शिक्षक कभी, ले शिक्षा का दाम.
एकलव्य से शिष्य से, माँग अँगूठा वाम..
*
शिक्षक दुर्वासा न हो, पल-पल दे अभिशाप.
असफल हो यदि शिष्य तो, गुरु को लगता पाप..
*
राधाकृष्णन को कभी, भुला न सकते छात्र.
जानकार थे विश्व में, वे दर्शन के मात्र..
*
महीयसी शिक्षक मिलीं, शिष्याओं का भाग्य.
करें जन्म भर याद वे, जिन्हें मिला सौभाग्य..
*
शिक्षक मिले रवीन्द्र सम, शिष्य शिवानी नाम.
मणि-कांचन संयोग को, करिए विनत प्रणाम..
*
ओशो सा शिक्षक मिले, बने सरल-हर गूढ़.
विद्वानों को मात दे, शिष्य रहा हो मूढ़..
*
हो कलाम शिक्षक- 'सलिल', झट बन जा तू छात्र.
गत-आगत का सेतु सा, ज्ञान मिले बन पात्र..
*
ज्यों गुलाब के पुष्प में, रूप गंध गुलकंद.
त्यों शिक्षक में समाहित, ज्ञान-भाव-आनंद..
२४-८-२०१६
===
मंदिर अलंकार
हिंदी पिंगल ग्रंथों में चित्र अलंकार की चर्चा है. जिसमें ध्वज, धनुष, पिरामिड आदि के शब्द चित्र की चर्चा है. वर्तमान में इस अलंकार में लिखनेवाले अत्यल्प हैं. मेरा प्रयास मंदिर अलंकार
हिंदी
जन-मन
में बसी जन
प्रतिनिधि हैं दूर.
परदेशी भाषा रुचे
जिनको वे जन सूर.
जनवाणी पर सुहाता कैसा अद्भुत नूर
जन आकांक्षा गीत है, जनगण-हित संतूर
२४-८-२०१५
***
नवगीत:
मस्तक की रेखाएँ …
*
मस्तक की रेखाएँ
कहें कौन बाँचेगा?
*
आँखें करतीं सवाल
शत-शत करतीं बवाल।
समाधान बच्चों से
रूठे, इतना मलाल।
शंका को आस्था की
लाठी से दें हकाल।
उत्तर न सूझे तो
बहाने बनायें टाल।
सियासती मन मुआ
मनमानी ठाँसेगा …
*
अधरों पर मुस्काहट
समाधान की आहट।
माथे बिंदिया सूरज
तम हरे लिये चाहत।
काल-कर लिये पोथी
खोजे क्यों मनु सायत?
कल का कर आज अभी
काम, तभी सुधरे गत।
जाल लिये आलस
कोशिश पंछी फाँसेगा…
२४.८.२०१४
***

रविवार, 11 मई 2025

मई ११, बाल गीत, लँगड़ी, मुक्तिका, कौआ स्नान, विरहणी छंद, मातृ दिवस

सलिल सृजन मई ११
मातृ दिवस
*
गीत
माँ के माथे सज्जित था-है
शुभ सिंदूर सजा देंगे।
नहीं पोंछने देंगे तुझको
पाकिस्तान मिटा देंगे।।
.
करता तू नापाक हरकतें
शर्म नहीं तुझको आती,
बेगैरत तू भीख माँगता
लड़ करता खुद बर्बादी।
धूल चटाई है पहले भी
अब फिर धूल चटा देंगे।।
.
टूट चुका है पहले भी तू,
सम्हल न तो फिर टूटेगा,
साया साथ न देगा तेरा
रो निज माथा कूटेगा।
घटता जाता है तू दिन-दिन
नामों-निशां हटा देंगे।।
.
सबक सिखाया कई बार
पर तूने वह बिसराया है,
महाकाल को आमंत्रित कर
सत्यानाश कराया है।
कान पकड़कर माफी माँगे
वह हालत करवा देंगे।।
११.५.२०२५
***
घर में पूजन सम्बन्धी नियम कायदे
अधिकांश हिन्दुओं के घर में पूजन के लिए छोटे छोटे मंदिर बने होते है जहां की वो भगवान की नियमित पूजा करते है। लेकिन हममे में से अधिकांश लोग अज्ञानतावश पूजन सम्बन्धी छोटे छोटे नियमों का पालन नहीं करते है। जिससे की हमे पूजन का सम्पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। आज हम आपको घर में पूजन सम्बन्धी कुछ ऐसे ही नियम बताएँगे जिनका पालन करने से हमे पूजन का श्रेष्ठ फल शीघ्र प्राप्त होगा।
★★★★★★★★★★★★★★★
कैसी मूर्तियां रखनी चाहिए मंदिर में :
घर के मंदिर में ज्यादा बड़ी मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि यदि हम मंदिर में शिवलिंग रखना चाहते हैं तो शिवलिंग हमारे अंगूठे के आकार से बड़ा नहीं होना चाहिए। शिवलिंग बहुत संवेदनशील होता है और इसी वजह से घर के मंदिर में छोटा सा शिवलिंग रखना शुभ होता है। अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी छोटे आकार की ही रखनी चाहिए। अधिक बड़ी मूर्तियां बड़े मंदिरों के लिए श्रेष्ठ रहती हैं, लेकिन घर के छोटे मंदिर के लिए छोटे-छोटे आकार की प्रतिमाएं श्रेष्ठ मानी गई हैं।
★★★★★★★★★★★★★★★
पूजा करते समय किस दिशा की ओर होना चाहिए अपना मुंह :
घर में पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होगा तो बहुत शुभ रहता है। इसके लिए पूजा स्थल का द्वार पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। यदि यह संभव ना हो तो पूजा करते समय व्यक्ति का मुंह पूर्व दिशा में होगा तब भी श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं।
★★★★★★★★★★★★★★★
मंदिर तक पहुंचनी चाहिए सूर्य की रोशनी और ताजी हवा :
घर में मंदिर ऐसे स्थान पर बनाया जाना चाहिए, जहां दिनभर में कभी भी कुछ देर के लिए सूर्य की रोशनी अवश्य पहुंचती हो। जिन घरों में सूर्य की रोशनी और ताजी हवा आती रहती है, उन घरों के कई दोष स्वतः: ही शांत हो जाते हैं। सूर्य की रोशनी से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है।
★★★★★★★★★★★★★★★
पूजन के बाद पूरे घर में कुछ देर बजाएं घंटी :
यदि घर में मंदिर है तो हर रोज सुबह और शाम पूजन अवश्य करना चाहिए। पूजन के समय घंटी अवश्य बजाएं, साथ ही एक बार पूरे घर में घूमकर भी घंटी बजानी चाहिए। ऐसा करने पर घंटी की आवाज से नकारात्मकता नष्ट होती है और सकारात्मकता बढ़ती है।
★★★★★★★★★★★★★★★
पूजन सामग्री से जुड़ी खास बातें :
पूजा में बासी फूल, पत्ते अर्पित नहीं करना चाहिए। स्वच्छ और ताजे जल का ही उपयोग करें। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि तुलसी के पत्ते और गंगाजल कभी बासी नहीं माने जाते हैं, अत: इनका उपयोग कभी भी किया जा सकता है। शेष सामग्री ताजी ही उपयोग करनी चाहिए। यदि कोई फूल सूंघा हुआ है या खराब है तो वह भगवान को अर्पित न करें।
★★★★★★★★★★★★★★★
पूजन कक्ष में नहीं ले जाना चाहिए ये चीजें :
घर में जिस स्थान पर मंदिर है, वहां चमड़े से बनी चीजें, जूते-चप्पल नहीं ले जाना चाहिए। मंदिर में मृतकों और पूर्वजों के चित्र भी नहीं लगाना चाहिए। पूर्वजों के चित्र लगाने के लिए दक्षिण दिशा क्षेत्र रहती है। घर में दक्षिण दिशा की दीवार पर मृतकों के चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन मंदिर में नहीं रखना चाहिए।
पूजन कक्ष में पूजा से संबंधित सामग्री ही रखना चाहिए। अन्य कोई वस्तु रखने से बचना चाहिए।
★★★★★★★★★★★★★★★
पूजन कक्ष के आसपास शौचालय नहीं होना चाहिए :
घर के मंदिर के आसपास शौचालय होना भी अशुभ रहता है। अत: ऐसे स्थान पर पूजन कक्ष बनाएं, जहां आसपास शौचालय न हो। यदि किसी छोटे कमरे में पूजा स्थल बनाया गया है तो वहां कुछ स्थान खुला होना चाहिए, जहां आसानी से बैठा जा सके।
★★★★★★★★★★★★★★★
रोज रात को मंदिर पर ढंकें पर्दा :
रोज रात को सोने से पहले मंदिर को पर्दे से ढंक देना चाहिए। जिस प्रकार हम सोते समय किसी प्रकार का व्यवधान पसंद नहीं करते हैं, ठीक उसी भाव से मंदिर पर भी पर्दा ढंक देना चाहिए। जिससे भगवान के विश्राम में बाधा उत्पन्न ना हो।
★★★★★★★★★★★★★★★
सभी मुहूर्त में करें गौमूत्र का ये उपाय :
वर्षभर में जब भी श्रेष्ठ मुहूर्त आते हैं, तब पूरे घर में गौमूत्र का छिड़काव करना चाहिए। गौमूत्र के छिड़काव से पवित्रता बनी रहती है और वातावरण सकारात्मक हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार गौमूत्र बहुत चमत्कारी होता है और इस उपाय घर पर दैवीय शक्तियों की विशेष कृपा होती है।
★★★★★★★★★★★★★★★
खंडित मूर्तियां ना रखें :
शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।
★★★★★★★★★★★★★★★
फूल चढाने सम्बन्धी नियम :
सदैव दाएं हाथ की अनामिका एवं अंगूठे की सहायता से फूल अर्पित करने चाहिए। चढ़े हुए फूल को अंगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारना चाहिए। फूल की कलियों को चढ़ाना मना है, किंतु यह नियम कमल के फूल पर लागू नहीं है।
★★★★★★★★★★★★★★★
तुलसी चढाने सम्बन्धी नियम :
तुलसी के बिना ईश्वर की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंगल, शुक्र, रवि, अमावस्या, पूर्णिमा, द्वादशी और रात्रि और संध्या काल में तुलसी दल नहीं तोड़ना चाहिए।तुलसी तोड़ते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक है। खंडित शिवलिंग की पूजा हो सकती है पर खंडित शिव मूर्ति की नहीं, जाने क्यों ?
★★★★★★★★★★★★★★★
भगवान भोलेनाथ की दो रूपों में पूजा की जाती है मूर्ति रूप और शिवलिंग रूप में। महादेव का मूर्तिपूजन भी श्रेष्ठ है लेकिन लिंग पूजन सर्वश्रेष्ठ है माना जाता है। हमारे शास्त्रों द्वारा शिवजी सहित किसी भी देवी देवता की खंडित, टूटी-फूटी मूर्ति का पूजन निषेध है तथा ऐसी मूर्तियों को पूजा घर में रखने की मनाही है। लेकिन शिवलिंग एक अपवाद है।
★★★★★★★★★★★★★★★
महामृत्युंजय मंदिर -रीवा
शास्त्रों के अनुसार शिवजी का प्रतीक शिवलिंग कहीं से टूट जाने पर भी खंडित नहीं माना जाता। शिवलिंग चाहे कितना ही खंडित हो जाए वो सदेव ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। ऐसा इसलिए है कि भगवान शिव ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल अर्थात निराकार कहे गए हैं। भोलेनाथ का कोई रूप नहीं है उनका कोई आकार नहीं है वे निराकार हैं। महादेव का ना तो आदि है और ना ही अंत। लिंग को शिवजी का निराकार रूप ही माना जाता है। जबकि शिव मूर्ति को उनका साकार रूप। केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते है। इस रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। शिवलिंग बहुत ज्यादा टूट जाने पर भी पूजनीय है। अत: हर परिस्थिति में शिवलिंग का पूजन सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग का पूजन किसी भी दिशा से किया जा सकता है लेकिन पूजन करते वक्त भक्त का मुंह उत्तर दिशा की ओर हो तो वह सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
०००
मुक्तिका
*
कोरोना की टाँग अड़ी है
सबकी खटिया हुई खड़ी है
मुश्किल में है आज जिंदगी
सतत मौत की लगी झड़ी है
शासनतंत्र-प्रशासन असफल
भीत मीडिया विषम घड़ी है
जनगण मरता है, मरने दो
सत्ता की लालसा बड़ी है
रोजी-रोटी के लाले हैं
व्यापारी की नियत सड़ी है
अस्पताल औषधि अति मँहगे
केर-बेर की जुड़ी कड़ी है
मेहनतकश का जीना दूभर
भक्तों का दल लिए छड़ी है
११-५-२०२१
***
श्रीमद्भग्वद्गीता
*
छोटा मन रखकर कभी, बड़े न होते आप।
औरों के पैरों कभी, खड़े न होते आप।।
*
भीष्म भरम जड़ यथावत, ठुकराएँ बदलाव।
अहंकार से ग्रस्त हो, खाते-देते घाव।।
*
अर्जुन संशय पूछता प्रश्न, न करता कर्म।
मोह और आसक्ति को समझ रहा निज धर्म।।
*
पल-पल परिवर्तन सतत, है जीवन का मूल।
कंकर हो शंकर कभी, और कभी हो धूल।।
*
उहापोह में भटकता, भूल रहा निज कर्म।
चिंतन कर परिणाम का, करता भटक विकर्म।।
*
नहीं करूँगा युद्ध मैं, कहता धरकर शस्त्र।
सम्मुख योद्धा हैं अगिन, लिए हाथ में अस्त्र।।
*
जो जन्मा वह मरेगा, उगा सूर्य हो अस्त।
कब होते विद्वानजन, सोच-सोचकर त्रस्त।।
*
मिलीं इन्द्रियाँ इसलिए, कर उनसे तू कर्म।
फल क्या होगा इन्द्रियाँ, सोच न करतीं धर्म।।
*
चम्मच में हो भात या, हलवा परसें आप।
शोक-हर्ष सकता नहीं, है चम्मच में व्याप।।
*
मीठे या कटु बोल हों, माने कान समान।
शोक-हर्ष करता नहीं, मन मत बन नादान।।
*
जीवन की निधि कर्म है, करते रहना धर्म।
फल का चिन्तन व्यर्थ है, तज दो मान विकर्म।।
*
सांख्य शास्त्र सिद्धांत का, ज्ञान-कर्म का मेल।
योगी दोनों साधते, जग-जीवन हो खेल।।
*
सम्यक समझ नहीं अगर, तब ग्रस लेता मोह
बुद्धि भ्रमित होती तभी, तन करता विद्रोह।।
*
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
संशय कर देता भ्रमित, फल चिंता तज मीत।।
*
केवल देह न सत्य है, तन में मन भी साथ।
तन-मन भूषण आत्म के, मूल एक परमात्म।।
*
आत्मा लेती जन्म जब, तब तन हो आधार।
वस्त्र सरीखी बदलती, तन खुद बिन आकार।।
*
सांख्य ज्ञान सँग कर्म का, सम्मिश्रण है मीत।
मन प्रवृत्ति कर विवेचन, सहज निभाए रीत।।
*
तर्क कुतर्क न बन सके, रखिए इसका ध्यान।
सांख्य कहे भ्रम दूर कर, कर्म करे इंसान।।
*
देखें अपने दोष खुद, कहें न करिए शर्म।
दोष दूर कर कर्म कर, वरिए अपना धर्म।।
*
कर सकते; करते नहीं, जो होते बदनाम।
कर सकते जो कीजिए, तभी मिले यश-मान।।
*
होनी होती है अटल, होगी मत कर सोच।
क्या कब कैसे सोचकर, रखो न किंचित लोच।।
*
दो पक्षों के बीच में, जा संशय मत पाल।
बढ़ता रह निज राह पर, कर्म योग मत टाल।।
*
हानि-लाभ हैं एक से, यश-अपयश सम मान।
सोच न फल कर कर्म निज, पाप न इसको जान।।
*
ज्ञान योग के साथ कर, कर्म योग का मेल।
अपना धर्म न भूल तू, घटनाक्रम है खेल।।
*
हानि लाभ जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ।
करता चल निज कर्म तू, उठा-झुका कर माथ।।
*
तज कर फल आसक्ति तू, करते जा निज कर्म।
बंधन बने न कर्म तब, कर्म योग ही धर्म।।
*
१०-५-२०२१
बाल गीत:
लँगड़ी खेलें.....
*
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लँगड़ी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लँगड़ी खेलें.....
*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लँगड़ी खेलें.....
***
बाल कविता
मुहावरा कौआ स्नान
*
कौआ पहुँचा नदी किनारे, शीतल जल से काँप-डरा रे!
कौवी ने ला कहाँ फँसाया, राम बचाओ फँसा बुरा रे!!
*
पानी में जाकर फिर सोचे, व्यर्थ नहाकर ही क्या होगा?
रहना काले का काला है, मेकप से मुँह गोरा होगा। .
*
पूछा पत्नी से 'न नहाऊँ, क्यों कहती हो बहुत जरूरी?'
पत्नी बोली आँख दिखाकर 'नहीं चलेगी अब मगरूरी।।'
*
नहा रहे या बेलन, चिमटा, झाड़ू लाऊँ सबक सिखाने
कौआ कहे 'न रूठो रानी! मैं बेबस हो चला नहाने'
*
निकट नदी के जाकर देखा पानी लगा जान का दुश्मन
शीतल जल है, करूँ किस तरह बम भोले! मैं कहो आचमन?
*
घूर रही कौवी को देखा पैर भिगाये साहस करके
जान न ले ले जान!, मुझे जीना ही होगा अब मर-मर के
*
जा पानी के निकट फड़फड़ा पंख दूर पल भर में भागा
'नहा लिया मैं, नहा लिया' चिल्लाया बहुत जोर से कागा
*
पानी में परछाईं दिखाकर बोला 'डुबकी आज लगाई
अब तो मेरा पीछा छोडो, ओ मेरे बच्चों की माई!'
*
रोनी सूरत देख दयाकर कौवी बोली 'धूप ताप लो
कहो नर्मदा मैया की जय, नाहक मुझको नहीं शाप दो'
*
गाय नर्मदा हिंदी भारत भू पाँचों माताओं की जय
भागवान! अब दया करो चैया दो तो हो पाऊँ निर्भय
*
उसे चिढ़ाने कौवी बोली' आओ! संग नहा लो-तैर'
कर ''कौआ स्नान'' उड़ा फुर, अब न निभाओ मुझसे बैर
*
बच्चों! नित्य नहाओ लेकिन मत करना कौआ स्नान
रहो स्वच्छ, मिल खेलो-कूदो, पढ़ो-बढ़ो बनकर मतिमान
११-५-२०२०
***
छंद सलिला:
सुजान / विरहणी छंद
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १४-९, चरणांत गुरु लघु (तगण, जगण)
लक्षण छंद:
बनिए सुजान नित्य तान / छंद का वितान
रखिए भुवन-निधि अंत में / गुरु-लघु पहचान
तजिए न आन रीति जान / कर्म कर महान
करिए निदान मीत ठान / हो नया विहान
उदाहरण:
१. प्रभु चित्रगुप्त निराकार / होते साकार
कण-कण में आत्म रूप हैं, देव निराकार
अक्षर अनादि शब्द ब्रम्ह / सृजें काव्य धार
कथ्य लय ऱस बिम्ब सोहें / सजे अलंकार
२. राम नाम ही जगाधार / शेष सब असार
श्याम नाम ही जप पुकार / बाँट 'सलिल' प्यार
पुरुषार्थ-भाग्य नीति सुमति / भवसागर पार
करे-तरे ध्यान धरें हँस / बाँके करतार
३. समय गँवा मत, काम बिना / सार सिर्फ काम
बिना काम सुख-चैन छिना / लक्ष्य एक काम
काम कर निष्काम तब ही / मिल पाये नाम
ज्यों की त्यों चादर धर जा / ईश्वर के धाम
११-५-२०१४
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
***
दोहा गाथा ५
दोहा भास्कर काव्य नभ
*
दोहा भास्कर काव्य नभ, दस दिश रश्मि उजास ‌
गागर में सागर भरे, छलके हर्ष हुलास ‌ ‌
रस, भाव, संधि, बिम्ब, प्रतीक, शैली, अलंकार आदि काव्य तत्वों की चर्चा करने का उद्देश्य यह है कि पाठक दोहों में इन तत्वों को पहचानने और सराहने के साथ दोहा रचते समय इन तत्वों का समावेश कर सकें। ‌
रसः
काव्य को पढ़ने या सुनने से मिलनेवाला आनंद ही रस है। काव्य मानव मन में छिपे भावों को जगाकर रस की अनुभूति कराता है। भरत मुनि के अनुसार "विभावानुभाव संचारी संयोगाद्रसनिष्पत्तिः" अर्थात् विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। रस के ४ अंग स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव व संचारी भाव हैं-
स्थायी भावः मानव ह्र्दय में हमेशा विद्यमान, छिपाये न जा सकनेवाले, अपरिवर्तनीय भावों को स्थायी भाव कहा जाता है।
रस: १. श्रृंगार, २. हास्य, ३. करुण, ४. रौद्र, ५. वीर, ६. भयानक, ७. वीभत्स, ८. अद्भुत, ९. शांत, १०. वात्सल्य, ११. भक्ति।
क्रमश:स्थायी भाव: १. रति, २. हास, ३. शोक, ४. क्रोध, ५. उत्साह, ६. भय, ७. घृणा, ८. विस्मय, निर्वेद, ९. १०. संतान प्रेम, ११. समर्पण।
विभावः
किसी व्यक्ति के मन में स्थायी भाव उत्पन्न करनेवाले कारण को विभाव कहते हैं। व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति भी विभाव हो सकती है। ‌विभाव के दो प्रकार आलंबन व उद्दीपन हैं। ‌
आलंबन विभाव के सहारे रस निष्पत्ति होती है। इसके दो भेद आश्रय व विषय हैं ‌
आश्रयः
जिस व्यक्ति में स्थायी भाव स्थिर रहता है उसे आश्रय कहते हैं। ‌शृंगार रस में नायक नायिका एक दूसरे के आश्रय होंगे।‌
विषयः
जिसके प्रति आश्रय के मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न हो, उसे विषय कहते हैं ‌ "क" को "ख" के प्रति प्रेम हो तो "क" आश्रय तथा "ख" विषय होगा।‌
उद्दीपन विभाव:
आलंबन द्वारा उत्पन्न भावों को तीव्र करनेवाले कारण उद्दीपन विभाव कहे जाते हैं। जिसके दो भेद बाह्य वातावरण व बाह्य चेष्टाएँ हैं। वन में सिंह गर्जन सुनकर डरनेवाला व्यक्ति आश्रय, सिंह विषय, निर्जन वन, अँधेरा, गर्जन आदि उद्दीपन विभाव तथा सिंह का मुँह फैलाना आदि विषय की बाह्य चेष्टाएँ हैं ।
अनुभावः
आश्रय की बाह्य चेष्टाओं को अनुभाव या अभिनय कहते हैं। भयभीत व्यक्ति का काँपना, चीखना, भागना आदि अनुभाव हैं। ‌
संचारी भावः
आश्रय के चित्त में क्षणिक रूप से उत्पन्न अथवा नष्ट मनोविकारों या भावों को संचारी भाव कहते हैं। भयग्रस्त व्यक्ति के मन में उत्पन्न शंका, चिंता, मोह, उन्माद आदि संचारी भाव हैं। मुख्य ३३ संचारी भाव निर्वेद, ग्लानि, मद, स्मृति, शंका, आलस्य, चिंता, दैन्य, मोह, चपलता, हर्ष, धृति, त्रास, उग्रता, उन्माद, असूया, श्रम, क्रीड़ा, आवेग, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अवमर्ष, अवहित्था, मति, व्याथि, मरण, त्रास व वितर्क हैं।
रस
१. श्रृंगार
अ. संयोग श्रृंगार:
तुमने छेड़े प्रेम के, ऐसे राग हुजूर
बजते रहते हैं सदा, तन-मन में संतूर
- अशोक अंजुम, नई सदी के प्रतिनिधि दोहाकार
आ. वियोग श्रृंगार:
हाथ छुटा तो अश्रु से, भीग गये थे गाल ‌
गाड़ी चल दी देर तक, हिला एक रूमाल
- चंद्रसेन "विराट", चुटकी चुटकी चाँदनी
२. हास्यः
आफिस में फाइल चले, कछुए की रफ्तार ‌
बाबू बैठा सर्प सा, बीच कुंडली मार
- राजेश अरोरा"शलभ", हास्य पर टैक्स नहीं
व्यंग्यः
अंकित है हर पृष्ठ पर, बाँच सके तो बाँच ‌
सोलह दूनी आठ है, अब इस युग का साँच
- जय चक्रवर्ती, संदर्भों की आग
३. करुणः
हाय, भूख की बेबसी, हाय, अभागे पेट ‌
बचपन चाकर बन गया, धोता है कप-प्लेट
- डॉ. अनंतराम मिश्र "अनंत", उग आयी फिर दूब
४. रौद्रः
शिखर कारगिल पर मचल, फड़क रहे भुजपाश ‌
जान हथेली पर लिये, अरि को करते लाश
- संजीव
५. वीरः
रणभेरी जब-जब बजे, जगे युद्ध संगीत ‌
कण-कण माटी का लिखे, बलिदानों के गीत
- डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा "यायावर", आँसू का अनुवाद
६. भयानकः
उफनाती नदियाँ चलीं, क्रुद्ध खोलकर केश ‌
वर्षा में धारण किया, रणचंडी का वेश
- आचार्य भगवत दुबे, शब्दों के संवाद
७. वीभत्सः
हा, पशुओं की लाश को, नोचें कौए गिद्ध ‌
हा, पीते जन-रक्त फिर, नेता अफसर सिद्ध
- सलिल
८. अद्भुतः
पांडुपुत्र ने उसी क्षण, उस तन में शत बार ‌
पृथक-पृथक संपूर्ण जग, देखे विविध प्रकार
- डॉ. उदयभानु तिवारी "मधुकर", श्री गीता मानस
९. शांतः
जिसको यह जग घर लगे, वह ठहरा नादान ‌
समझे इसे सराय जो, वह है चतुर सुजान
- डॉ. श्यामानंद सरस्वती "रौशन", होते ही अंतर्मुखी
१० . वात्सल्यः
छौने को दिल से लगा, हिरनी चाटे खाल ‌
पान करा पय मनाती, चिरजीवी हो लाल
-संजीव
११. भक्तिः
दूब दबाये शुण्ड में, लंबोदर गजमुण्ड ‌
बुद्धि विनायक हे प्रभो!, हरो विघ्न के झुण्ड
- भानुदत्त त्रिपाठी "मधुरेश", दोहा कुंज
११-५-२०१३
***
गीत:
ओ मेरे मन...
*
धूप-छाँव सम सुख-दुःख आते-जाते रहते.
समय-नदी में लहर-भँवर प्रति पल हैं बहते.
राग-द्वेष से बचकार , शुभ का कर ले चिंतन.
ओ मेरे मन...
*
पुलक मिलन में, विकल विरह में तपना-दहना.
ऊँच-नीच को मौन भाव से चुप हो सहना.
बात दूसरों की सुन, खुद भी कर मन-मंथन.
ओ मेरे मन...
*
पीर-व्यथा अपने मन की मत जग से कहना?
यादों की उजली चादर को फिर-फिर तहना.
दुनियावालों! दुनियादारी करती उन्मन.
ओ मेरे मन...
११-५-२०१२
***
मुक्तक
भारत का धन जो विदेश में उसको भारत लायेंगे.
रामदेव बाबा के संग हम सच की अलख जगायेंगे..
'सलिल'-साधना पूरी हो संकल्प सभी जन-गण ले अब-
राजनीति हो लोकनीति, हम नया सवेरा लायेंगे..
११-५-२०११

शनिवार, 28 दिसंबर 2024

दिसंबर २८, कौआ स्नान, बहरे-मनसिरह, हाइबन, बाल कविता, मुहावरा, कौआ स्नान, हाइगा

सलिल सृजन दिसंबर २८ - आ
*
हाइगा 


पुराना पत्र 
बिन देखे दिखाए
तुम्हारी छवि।



















भीगी चिड़िया 
हताश खोज रही
छिपा सूरज।  















हाइबन
                जापानी भाषा के शब्द ‘हाइबन’  का अर्थ है ‘गद्य काव्य'।‘हाइबन’ गद्य तथा काव्य का मिश्रण है। हिंदी में गद्य-पद्य का मिश्रण 'गद्य-गीत' में हुआ किंतु आजकल यह विधा प्रचलन में लगभग नहीं है।  जापान में १७ वीं शताब्दी के कवि बाशो ने 'हाइबन' विधा का आरंभ वर्ष १६९० में अपने एक दोस्त को खत में सफरनामा / डायरी के रूप में ‘भूतों वाली झोंपड़ी’ लिख कर किया। इस खत के अंत में एक हाइकु लिखा गया था।

            सामान्यत: हाइबन की भाषा सरल, मनोरंजक तथा बिम्बात्मक होती है। हाइबन में आत्मकथा, लेख , लघुकथा या यात्रा का ज़िक्र होता है। इसमें गद्य लेखन के एक या दो अनुच्छेद और विषयानुसार एक या दो हाइकु आ सकते हैं। प्रस्तुत गद्य हाइकु की व्याख्या नहीं होता ,बल्कि जो वर्णन गद्य में किया है उसके अनुसार हाइकु लिखा जाता है। हाइबन की भाषा पूरी तरह सधी हुई, अनावश्यक शब्दावली रहित हो। गद्य अधिक लम्बा न हो।

उदाहरण:

            कल देर रात अचानक आकाश मेघाच्छादित हो गया और बेमौसम बरसात शुरू हो गई। सुबह रजाई से निकलने का मन ही नहीं हो रहा था। पानी रुकने पर खिड़की से झाँककर देखा तो सूर्य देवता संसद में अध्यक्ष की तरह प्रभाहीन और उदास थे, विपक्ष की तरह धूप की बोलती बंद थी और सत्ता पक्ष की तरह मेघ गरज रहे थे। मरता क्या न करता, लोकतंत्र में तंत्र से त्रस्त लोक की तरह बिस्तर छोड़ा और गरमागरम कॉफी की आस में श्रीमती जी की ओर निहारा। उन्होंने चुनाव जीत चुके नेता की तरह वायदों को जुमला बतलाकर मुँह फेर लिया था। 
हाल बेहाल 
बिन बताए आती
मुश्किल सदा। 
*
बाल कविता
मुहावरा कौआ स्नान
*
कौआ पहुँचा नदी किनारे, शीतल जल से काँप-डरा रे!
कौवी ने ला कहाँ फँसाया, राम बचाओ फँसा बुरा रे!!
*
पानी में जाकर फिर सोचे, व्यर्थ नहाकर ही क्या होगा?
रहना काले का काला है, मेकप से मुँह गोरा होगा। .
*
पूछा पत्नी से 'न नहाऊँ, क्यों कहती हो बहुत जरूरी?'
पत्नी बोली आँख दिखाकर 'नहीं चलेगी अब मगरूरी।।'
*
नहा रहे या बेलन, चिमटा, झाड़ू लाऊँ सबक सिखाने
कौआ कहे 'न रूठो रानी! मैं बेबस हो चला नहाने'
*
निकट नदी के जाकर देखा पानी लगा जान का दुश्मन
शीतल जल है, करूँ किस तरह बम भोले! मैं कहो आचमन?
*
घूर रही कौवी को देखा पैर भिगाये साहस करके
जान न ले ले जान!, मुझे जीना ही होगा अब मर-मर के
*
जा पानी के निकट फड़फड़ा पंख दूर पल भर में भागा
'नहा लिया मैं, नहा लिया' चिल्लाया बहुत जोर से कागा
*
पानी में परछाईं दिखाकर बोला 'डुबकी आज लगाई
अब तो मेरा पीछा छोडो, ओ मेरे बच्चों की माई!'
*
रोनी सूरत देख दयाकर कौवी बोली 'धूप ताप लो
कहो नर्मदा मैया की जय, नाहक मुझको नहीं शाप दो'
*
गाय नर्मदा हिंदी भारत भू पाँचों माताओं की जय
भागवान! अब दया करो चैया दो तो हो पाऊँ निर्भय
*
उसे चिढ़ाने कौवी बोली' आओ! संग नहा लो-तैर'
कर ''कौआ स्नान'' उड़ा फुर, अब न निभाओ मुझसे बैर
*
बच्चों! नित्य नहाओ लेकिन मत करना कौआ स्नान
रहो स्वच्छ, मिल खेलो-कूदो, पढ़ो-बढ़ो बनकर मतिमान
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कार्यशाला-
छंद बहर का मूल है- १.
*
उर्दू की १९ बहरें २ समूहों में वर्गीकृत की गयी हैं।
१. मुफरद बहरें-
इनमें एक ही अरकान या लय-खण्ड की पुनरावृत्ति होती है।
इनके ७ प्रकार (बहरे-हज़ज सालिम, बहरे-ऱज़ज सालिम, बहरे-रमल सालिम, बहरे-कामिल, बहरे-वाफिर, बहरे-मुतक़ारिब तथा बहरे-मुतदारिक) हैं।
२. मुरक्कब बहरें-
इनमें एकाधिक अरकान या लय-खण्ड मिश्रित होते हैं।
इनके १२ प्रकार (बहरे-मनसिरह, बहरे-मुक्तज़िब, बहरे-मुज़ारे, बहरे-मुजतस, बहरे-तवील, बहरे-मदीद, बहरे-बसीत, बहरे-सरीअ, बहरे-ख़फ़ीफ़, बहरे-जदीद, बहरे-क़रीब तथा बहरे-मुशाकिल) हैं।
*
क. बहरे-मनसिरह
बहरे-मनसिरह मुसम्मन मतबी मौक़ूफ़-
इस बहर में बहुत कम लिखा गया है। इसके अरकान 'मुफ़तइलुन फ़ायलात मुफ़तइलुन फ़ायलात' (मात्राभार ११११२ २१२१ ११११२ २१२१) हैं।
यह १८ वर्णीय अथधृति जातीय शारद छंद है जिसमें ९-९ पर यति तथा पदांत में जगण (१२१) का विधान है।
यह २४ मात्रिक अवतारी जातीय छंद है जिसमें १२-१२ मात्राओं पर यति तथा पदांत में १२१ है।
उदाहरण-
१.
थक मत, बोझा न मान, कदम उठा बार-बार
उपवन में शूल फूल, भ्रमर कली पे निसार
पगतल है भू-बिछान, सर पर है आसमान
'सलिल' नहीं भूल भूल, दिन-दिन होगा सुधार
२.
जब-जब तूने कहा- 'सच', तब झूठा बयान
सच बन आया समक्ष, विफल हुआ न्याय-दान
उर्दू व्याकरण के अनुसार गुरु के स्थान पर २ लघु या दो लघु के स्थान पर गुरु मात्रा का प्रयोग करने पर छंद का वार्णिक प्रकार बदल जाता है जबकि मात्रिक प्रकार तभी बदलता है जब यह सुविधा पदांत में ली गयी हो। हिंदी पिंगल-नियम यह छूट नहीं देते।
३.
अरकान 'मुफ्तइलुन फ़ायलात मुफ्तइलुन फ़ायलात' (मात्राभार २११२ २१२१ २११२ २१२१)
क्यों करते हो प्रहार?, झेल सकोगे न वार
जोड़ नहीं, छीन भी न, बाँट कभी दे पुकार
कायम हो शांति-सौख्य, भूल सकें भेद-भाव
शांत सभी हों मनुष्य, किस्मत लेंगे सुधार
४.
दिल में हम अप/ने नियाज़/रखते हैं सो/तरह राज़
सूझे है इस/को ये भेद/जिसकी न हो/चश्मे-कोर
प्रथम पंक्ति में ए, ओ, अ की मात्रा-पतन दृष्टव्य।
(सन्दर्भ ग़ज़ल रदीफ़-काफ़िया और व्याकरण, डॉ. कृष्ण कुमार 'बेदिल')
२८.१२.२०१६
=============
लघुकथा -
कब्रस्तान
*
महाविद्यालय के प्राचार्य मुख्य अतिथि को अपनी संस्था की गुणवत्ता और विशेषताओं की जानकारी दे रहे थे. पुस्तकालय दिखलाते हुए जानकारी दी की हमारे यहाँ विषयों की पाठ्य पुस्तकें तथा सन्दर्भ ग्रंथों के साथ-साथ अच्छा साहित्य भी है. हम हर वर्ष अच्छी मात्र में साहित्यिक पुस्तकें भी क्रय करते हैं.
आतिथि ने उनकी जानकारी पर संतोष व्यक्त करते हुए पुस्तकालय प्रभारी से जानना चाहा कि गत २ वर्षों में कितनी पुस्तकें क्रय की गयीं, विद्यार्थियों ने कितनी पुस्तकें पढ़ने हेतु लीं तथा किन पुस्तकों की माँग अधिक थी? उत्तर मिला इस वर्ष क्रय की गयी पुस्तकों की आदित जांच नहीं हुई है, गत वर्ष खरीदी गयी पुस्तकें दी नहीं जा रहीं क्योंकि विद्यार्थी या तो विलम्ब से वापिस करते हैं या पन्ने फाड़ लेते हैं.
नदी में बहते पानी की तरह पुस्तकालय से प्रतिदिन पुस्तकों का आदान-प्रदान न हो तो उसका औचित्य और सार्थकता ही क्या है? तब तो वह किताबों का कब्रस्तान ही हो जायेगा, अतिथि बोले और आगे चल दिए.
***
लघुकथा-
सफ़ेद झूठ
*
गाँधी जयंती की सुबह दूरदर्शन पर बज रहा था गीत 'दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल', अचानक बेटे ने उठकर टीवी बंद कर दिया। कारण पूछने पर बोला- '१८५७ से लेकर १९४६ में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अज्ञातवास में जाने तक क्रांतिकारियों ने आत्म-बलिदान की अनवरत श्रंखला की अनदेखी कर ब्रिटेन संसद सदस्यों से में प्रश्न उठवानेवालों को शत-प्रतिशत श्रेय देना सत्य से परे है. सत्यवादिता के दावेदार के जन्म दिन पर कैसे सहन किया जा सकता है सफ़ेद झूठ?
२८.१२.२०१५
***


शनिवार, 24 अगस्त 2024

अगस्त २४, मंदिर चित्र अलंकार, कौआ स्नान, दोहा, शिक्षक, व्यंग्य लेख, मात्रिक दंडक,



सलिल सृजन अगस्त २४
*
गीत
जन्म दिवस हर सुबह मनाएँ, आँख मूँद लें रजनी में हम
सपने हों साकार यत्न कर, निराकार हों तो न करें गम
मनोरमा हो रश्मि विभा की, पाखी शोभित नीलाम्बर में
विजय-स्मृति हो पद्म गुच्छ सी, ज्योति अमर हो निविड़ तिमिर में
हो संदीप प्रदीप पथिक मैं, संग देवकीनंदन पाऊँ
हर हिंदुस्तानी मनोज हो, सदा भारती की जय गाऊँ
अंजु लता सम नीलोफ़र हँस, साथ चले जय हिंद गुँजाए
त्यागी राज करे पूनम सह, शरतचंद्र अमृत बरसाए
सूरज दीप्त दिनेश दिवाकर, ओमप्रकाश बिखेरे भू पर
ता ता धिन्ना नाचे मिन्नी, परी तनूजा उपमा मिलकर
योगी दुर्गा-राधा की जय, कहे मुरारि राजमणि पाए
जनसेवक राजेंद्र बन सके, करुणा हरदम हृदय बसाए
नमन अन्नपूर्णा सरस्वती, वेदप्रकाश महेश बिखेरे
सरला मनी हंस देवांशी, हों संजीव लगाएँ फेरे
सृजन कुंज पुष्पित मुकुलित हो, कथ्य भाव रस लय आनंदी
स्नेह सलिल सिंचन कर, मधुकर, छंद गुँजाए परमानंदी
२४-८-२०२२
***
निमाड़ी पर्व : संजा (छाबड़ी)
गीतात्मक लोक पर्व संजा बाई (छाबड़ी)
निमाड़ की किशोरी बालिकाओ द्वारा भाद्र माह की पूर्णिमा से अश्विन माह की सर्वपितृ अमावस्या तक मनाया जाता है । इन 16 दिनों तक चलने वाले गीतात्मक मांडना पर्व को गीतों के माध्यम मनाया जाता है मांडना बनाए में 16 दिन पूनम का पाटला और चाँद ,तारे ,सूरज , पाँच कुँआरा, बंदनवार डोकरा डोकरी ,निसरणी, छाबड़ी, रुनझुन की गाड़ी, कोट किल्ला ,वान्या की हाटडी,मोर,बिजौरा, पंखा, कौवा,कुआ,बावड़ी,आदि बनाये जाते है। गीत गाये जाते है और आरती प्रसाद बांटा जाता है... संजा कौंन ?उनका सामाजिक आत्मिक और आद्यात्मिक स्वरूप क्या है संजा के गीतों में कहा जाता है-
"संजा सहेलड़ि बाज़ार में खेले
बजार में रमे
वा कोणा जी नी बेटी
वा खाय खाजा रोटी
पठानी चाल चाले
रजवाड़ी बोली बोले
संजा एडो संजा का माथा बेड़ो "........
गीत का भाव है कि संजा निडर,साहसी, राजसी वैभव को जीने वाली हमारी सखी है जो कोना जी की बेटी है खाजा खाती है पठानी चाल से चलती है परन्तु वो जल के प्रतीक जीवन में स्वभिमानी पनिहारिन की तरह कर्मशील है।
दोस्तों निमाड़ की किशोरीय अंतरिक्षीय कल्पना पटल पर प्रारम्भ में चाँद और सूरज का प्रादुर्भाव होता है रात और दिन की तरह ,सुख और दुःख की तरह, संघर्ष की तपिश और सफलता की चांदनी की तरह वो जीवन के कर्मशीलता की साधना में सोलह संस्कारों से अभिसिंचित सोलह दिवसीय लोक महोत्सव में रूपांतरित हो जीवन को गीतात्मक से परिलक्षित और परिभाषित कर फिर जीवन की अनन्तता में विसर्जित हो जाता है।
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श्रद्धांजलि
सुषमा गईं, डूबा अरुण भी, शोक का है यह समय।
गौरव बढ़ाया देश का, देगा गवाही खुद समय।।
जन से सदा रिश्ते निगाहे, थे प्रभावी दक्ष भी-
वाक्पटुता-विद्वता अद्भुत रही कहता समय।।
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धूमिल न होंगी याद, छवियाँ, कार्यपटुता भी कभी।
दल से उठे ऊपर, कमाया जन-समर्थन नाम भी।।
दृढ़ता-प्रखरता-अभयता का त्रिवेणी दोनों रहे-
इतिहास लेगा नाम दोनों ने किए सत्कार्य भी।।
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छंद सलिला
नवाविष्कृत मात्रिक दंडक
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विधान-
प्रति पद ५६ मात्रा।
यति- १४-१४-१४-१४।
पदांत-भगण।
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अवस्था का बहाना मत करें, जब जो बने करिए, समय के साथ भी चलिए, तभी होगा सफल जीवन।
गिरें, उठकर बढ़ें मंजिल मिले तब ही तनिक रुकिए, न चुकिए और मत भगिए, तभी फागुन बने सावन।
न सँकुचें लें मदद-दें भी, न कोई गैर है जग में, सभी अपने न सच तजिए, कहें सच मन न हो उन्मन-
विरागी हों या अनुरागी, करें श्रम नित्य तज आलस, न केवल मात्र जप करिए, स्वेद-सलिला करे पावन।।
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टीप-छंद लक्षणानुसार नाम सुझाएँ।
संजीव
२४-८-२०१९
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व्यंग्य लेख
अफसर, नेता और ओलंपिक
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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ओलंपिक दुनिया का सबसे बड़ा खेल कुंभ होता है। सामान्यत:, अफसरों और नेताओं की भूमिका गौड़ और खिलाडियों और कोचों की भूमिका प्रधान होना चाहिए। अन्य देशों में ऐसा होता भी है पर इंडिया में बात कुछ और है। यहाँ अफसरों और नेताओं के बिना कौआ भी पर नहीं मार सकता। अधिक से अधिक अफसर सरकारी अर्थात जनगण के पैसों पाए विदेश यात्रा कर सैर-सपाट और मौज-मस्ती कर सकें इसलिए ज्यादा से ज्यादा खिलाडी और कोच चुने जाने चाहिए। खिलाडी ऑलंपिक स्तर के न भी हों तो कोच और अफसर फर्जी आँकड़ों से उन्हें ओलंपिक स्तर का बता देंगे। फर्जीवाड़ा की प्रतियोगिता हो तो स्वर्ण, रजत और कांस्य तीनों पदक भारत की झोली में आना सुनिश्चित है। यदि आपको मेरी बात पर शंका हो तो आप ही बताएं की इन सुयोग्य अफसरों और कोचों के मार्गदर्शन में जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर श्रेष्ठ प्रदर्शन और ओलंपिक मानकों से बेहतर प्रदर्शन कर चुके खेलवीर वह भी एक-गो नहीं सैंकड़ों अपना प्रदर्शन दुहरा क्यों नहीं पाते?
कोई खिलाडी ओलंपिक तक जाकर सर्वश्रेष्ठ न दे यह नहीं माना जा सकता। इसका एक ही अर्थ है कि अफसर अपनी विदेश यात्रा की योजना बनाकर खिलाडियों के फर्जी आँकड़े तैयार करते हैं जिसमें इन्डियन अफसरशाही को महारत हासिल है। ऐसा करने से सबका लाभ है, अफसर, नेता, कोच और खिलाडी सबका कद बढ़ जाता है, घटता है केवल देश का कद। बिके हुई खबरिया चैनल किसी बात को बारह-चढ़ा कर दिखाते हैं ताकि उनकी टी आर पी बढ़े, विज्ञापन अधिक मिलें और कमाई हो। इस सारे उपक्रम में आहत होती हैं जनभावनाएँ, जिससे किसी को कोई मतलब नहीं है।
रियो से लौटकर रिले रेस खिलाडी लाख कहें कि उन्हें पूरी दौड़ के दौरान कोई पेय नहीं दिया गया, वे किसी तरह दौड़ पूरी कर अचेत हो गईं। यह सच सारी दुनिया ने देखा लेकिन बेशर्म अफसरशाही आँखों देखे को भी झुठला रही है। यह तय है कि सच सामने लानेवाली खिलाड़ी अगली बार नहीं चुनी जाएगी। कोच अपना मुँह बंद रखेगा ताकि अगली बार भी उसे ही रखा जाए। केर-बेर के संग का इससे बेहतर उदाहरण और कहाँ मिलेगा? अफसरों को भेज इसलिए जाता है की वे नियम-कायदे जानकार खिलाडियों को बता दें, आवश्यक व्यवस्थाएं कर दें ताकि कोच और खिलाडी सर्वश्रेष्ठ दे सकें पर इण्डिया की अफसरशाही आज भी खुद को खुदमुख्तार और बाकि सब को गुलाम समझती है। खिलाडियों के सहायक हों तो उनकी बिरादरी में हेठी हो जाएगी। इसलिए, जाओ, खाओ, घूमो, फिरो, खरीदी करो और घरवाली को खुश रखो ताकि वह अन्य अफसरों की बीबीयों पर रौब गांठ सके।
रियो ओलंपिक में 'कोढ़ में खाज' खेल मंत्री जी ने कर दिया। एक राजनेता को ओलंपिक में क्यों जाना चाहिए? क्या अन्य देशों के मंत्री आते है? यदि नहीं, तो इंडियन मंत्री का वहाँ जाना, नियम तोडना, चेतावनी मिलना और बेशर्मी से खुद को सही बताना किसी और देश में नहीं हो सकता। व्यवस्था भंग कर खुद को गौरवान्वित अनुभव करने की दयनीय मानसिकता देश और खिलाडियों को नीच दिखती है पर मोटी चमड़ी के मंत्री को इस सबसे क्या मतलब?
रियो ओलंपिक के मामले में प्रधानमंत्री को भी दिखे में रख गया। पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने खिलाडियों का हौसला बढ़ाने के लिए उनसे खुद पहल कर भेंट की। यदि उन्हें बताया जाता कि इनमें से किसी के पदक जीतने की संभावना नहीं है तो शायद वे ऐसा नहीं करते किन्तु अफसरों और पत्रकारों ने ऐसा माहौल बनाया मानो भारत के खलाड़ी अब तक के सबसे अधिक पदक जीतनेवाले हैं। झूठ का महल कब तक टिकता? सारे इक्के एक-एक कर धराशायी होते रहे।
अफसरों और कर्मचारियों की कारगुजारी सामने आई मल्ल नरसिह यादव के मामले में। दो हो बाते हो सकती हैं। या तो नरसिंह ने खुद प्रतिबंधित दवाई ली या वह षड्यन्त्र का शिकार हुआ। दोनों स्थितियों में व्यवस्थापकों की जिम्मेदारी कम नहीं होती किन्तु 'ढाक के तीन पात' किसी के विरुद्ध कोइ कदम नहीं उठाया गया और देश शर्मसार हुआ।
असाधारण लगन, परिश्रम और समर्पण का परिचय देते हुए सिंधु, साक्षी और दीपा ने देश की लाज बचाई। उनकी तैयारी में कोई योगदान न करने वाले नेताओं में होड़ लग गयी है पुरस्कार देने की। पुरस्कार दें है तो पाने निजी धन से दें, जनता के धन से क्यों? पिछले ओलंपिक के बाद भी यही नुमाइश लगायी गयी थी। बाद में पता चला कई घोषणावीरों ने खिलाडियों को घोषित पुरस्कार दिए ही नहीं। अत्यधिक धनवर्षा, विज्ञापन और प्रचार के चक्कर में गत ओलंपिक के सफल खिलाडी अपना पूर्व स्तर भी बनाये नहीं रख सके और चारों खाने चित हो गए। बैडमिंटन खिलाडी का घुटना चोटिल था तो उन्हें भेजा ही क्यों गया? वे अच्छा प्रदर्शन तो नहीं ही कर सकीं लंबी शल्यक्रिया के लिए विवश भी हो गयीं।
होना यह चाइये की अच्छा प्रदर्शन कर्नेवले खिलाडी अगली बार और अच्छा प्रदर्शन कर सकें इसके लिए उन्हें खेल सुविधाएँ अधिक दी जानी चाहिए। भुकमद, धनराशि और फ़्लैट देने नहीं सुधरता। हमारा शासन-प्रशासन परिणामोन्मुखी नहीं है। उसे आत्मप्रचार, आत्मश्लाघा और व्यक्तिगत हित खेल से अधिक प्यारे हैं। आशा तो नहीं है किन्तु यदि पूर्ण स्थिति पर विचार कर राष्ट्रीय खेल-नीति बनाई जाए जिसमें अफसरों और नेताओं की भूमिका शून्य हो। हर खेल के श्रेष्ठ कोच और खिलाडी चार सैलून तक प्रचार से दूर रहकर सिर्फ और सिर्फ अभ्यास करें तो अगले ओलंपिक में तस्वीर भिन्न नज़र आएगी। हमारे खिलाडियों में प्रतिभा और कोचों में योग्यता है पर गुड़-गोबर एक करने में निपुण अफसरशाही और नेता को जब तक खेओं से बाहर नहीं किया जायेगा तब तक खेलों में कुछ बेहतर होने की उम्मीद आकाश कुसुम ही है।
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हिंदी दिवस पर विशेष
मुहावरा कौआ स्नान
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कौआ पहुँचा नदी किनारे, शीतल जल से काँप-डरा रे!
कौवी ने ला कहाँ फँसाया, राम बचाओ फँसा बुरा रे!!
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पानी में जाकर फिर सोचे, व्यर्थ नहाकर ही क्या होगा?
रहना काले का काला है, मेकप से मुँह गोरा होगा। .
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पूछा पत्नी से 'न नहाऊँ, क्यों कहती हो बहुत जरूरी?'
पत्नी बोली आँख दिखाकर 'नहीं चलेगी अब मगरूरी।।'
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नहा रहे या बेलन, चिमटा, झाड़ू लाऊँ सबक सिखाने
कौआ कहे 'न रूठो रानी! मैं बेबस हो चला नहाने'
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निकट नदी के जाकर देखा पानी लगा जान का दुश्मन
शीतल जल है, करूँ किस तरह बम भोले! मैं कहो आचमन?
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घूर रही कौवी को देखा पैर भिगाये साहस करके
जान न ले ले जान!, मुझे जीना ही होगा अब मर-मर के
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जा पानी के निकट फड़फड़ा पंख दूर पल भर में भागा
'नहा लिया मैं, नहा लिया' चिल्लाया बहुत जोर से कागा
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पानी में परछाईं दिखाकर बोला 'डुबकी देखो आज लगाई
अब तो मेरा पीछा छोडो, ओ मेरे बच्चों की माई!'
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रोनी सूरत देख दयाकर कौवी बोली 'धूप ताप लो
कहो नर्मदा मैया की जय, नाहक मुझको नहीं शाप दो'
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गाय नर्मदा हिंदी भारत भू पाँचों माताओं की जय
भागवान! अब दया करो चैया दो तो हो पाऊँ निर्भय
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उसे चिढ़ाने कौवी बोली' आओ! संग नहा लो-तैर'
कर ''कौआ स्नान'' उड़ा फुर, अब न निभाओ मुझसे बैर
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बच्चों! नित्य नहाओ लेकिन मत करना कौआ स्नान
रहो स्वच्छ, मिल खेलो-कूदो, पढ़ो-बढ़ो बनकर मतिमान
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दोहा सलिला:
शिक्षक पारसमणि सदृश...
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शिक्षक पारसमणि सदृश, करे लौह को स्वर्ण.
दूर करे अज्ञानता, उगा बीज से पर्ण..
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सत-शिव-सुंदर साध्य है, साधन शिक्षा-ज्ञान.
सत-चित-आनंद दे हमें, शिक्षक गुण-रस-खान..
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शिक्षक शिक्षा दे सदा, सकता शिष्य निखार.
कंकर को शंकर बना, जीवन सके सँवार..
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शिक्षक वह जो सिखा दे, भाषा गुण विज्ञान.
नेह निनादित नर्मदा, बहे बना गुणवान..
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प्रतिभा को पहचानकर, जो दिखलाता राह.
शिक्षक उसको जानिए, जिसमें धैर्य अथाह..
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जान-समझ जो विषय को, रखे पूर्ण अधिकार.
उस शिक्षक का प्राप्य है, शत शिष्यों का प्यार..
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शिक्षक हो संदीपनी, शिष्य सुदामा-श्याम.
बना सकें जो धरा को, तीरथ वसुधा धाम..
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विश्वामित्र-वशिष्ठ हों, शिक्षक ज्ञान-निधान.
राम-लखन से शिष्य हों, तब ही महिमावान..
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द्रोण न हों शिक्षक कभी, ले शिक्षा का दाम.
एकलव्य से शिष्य से, माँग अँगूठा वाम..
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शिक्षक दुर्वासा न हो, पल-पल दे अभिशाप.
असफल हो यदि शिष्य तो, गुरु को लगता पाप..
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राधाकृष्णन को कभी, भुला न सकते छात्र.
जानकार थे विश्व में, वे दर्शन के मात्र..
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महीयसी शिक्षक मिलीं, शिष्याओं का भाग्य.
करें जन्म भर याद वे, जिन्हें मिला सौभाग्य..
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शिक्षक मिले रवीन्द्र सम, शिष्य शिवानी नाम.
मणि-कांचन संयोग को, करिए विनत प्रणाम..
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ओशो सा शिक्षक मिले, बने सरल-हर गूढ़.
विद्वानों को मात दे, शिष्य रहा हो मूढ़..
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हो कलाम शिक्षक- 'सलिल', झट बन जा तू छात्र.
गत-आगत का सेतु सा, ज्ञान मिले बन पात्र..
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ज्यों गुलाब के पुष्प में, रूप गंध गुलकंद.
त्यों शिक्षक में समाहित, ज्ञान-भाव-आनंद..
२४-८-२०१६
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मंदिर अलंकार
हिंदी पिंगल ग्रंथों में चित्र अलंकार की चर्चा है. जिसमें ध्वज, धनुष, पिरामिड आदि के शब्द चित्र की चर्चा है. वर्तमान में इस अलंकार में लिखनेवाले अत्यल्प हैं. मेरा प्रयास मंदिर अलंकार
हिंदी
जन-मन
में बसी जन
प्रतिनिधि हैं दूर.
परदेशी भाषा रुचे
जिनको वे जन सूर.
जनवाणी पर सुहाता कैसा अद्भुत नूर
जन आकांक्षा गीत है, जनगण-हित संतूर
२४-८-२०१५

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नवगीत:
मस्तक की रेखाएँ …
संजीव
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मस्तक की रेखाएँ
कहें कौन बाँचेगा?
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आँखें करतीं सवाल
शत-शत करतीं बवाल।
समाधान बच्चों से
रूठे, इतना मलाल।
शंका को आस्था की
लाठी से दें हकाल।
उत्तर न सूझे तो
बहाने बनायें टाल।
सियासती मन मुआ
मनमानी ठाँसेगा …
*
अधरों पर मुस्काहट
समाधान की आहट।
माथे बिंदिया सूरज
तम हरे लिये चाहत।
काल-कर लिये पोथी
खोजे क्यों मनु सायत?
कल का कर आज अभी
काम, तभी सुधरे गत।
जाल लिये आलस
कोशिश पंछी फाँसेगा…
२४.८.२०१४ 
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