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शुक्रवार, 18 जून 2021

दोपदी, मुक्तक, कवित्त

दोपदी 
पा पा कह मंज़िल पाने को, जो करते प्रोत्साहित
प्यार उन्हें करते सब बच्चे, पापा कह होते नत
*
मुक्तक 
श्रेया है बगिया की कलिका, झूमे नित्य बहारों संग।
हर दिन होली रात दिवाली, पल-पल खुशियाँ भर दें रंग।।
कदम-कदम बढ़ नित नव मंजिल पाओ, दुनिया देखे दंग।
रुकना झुकना चुकना मत तुम, जीतो जीवन की हर जंग।।
*
कवित्त
*
शिवशंकर भर हुंकार, चीन पर करो प्रहार, हो जाए क्षार-क्षार, कोरोना दानव।
तज दो प्रभु अब समाधि, असहनीय हुई व्याधि, भूकलंक है उपाधि, देह भले मानव।।
करता नित अनाचार, वक्ष ठोंक दुराचार, मिथ्या घातक प्रचार, करे कपट लाघव।
स्वार्थ-रथ हुआ सवार, धोखा दे करे वार, सिंह नहीं है सियार, मिटा दो अमानव।।
***
१८-६-२०२०

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

dopadi-doha

दोपदी
*
अब न ललक फूल की बाकी रही
आदमी fool हो गया शायद
*
फूल कर कुप्पा प्रशंसा से हुए
सु-मन ने काँटा चुभा पिचका दिया
*
*
दोहा सलिला
*
गौ भाषा को दोह ले, दोहा दुग्ध समान
गागर में सागर भरे, पढ़-समझें मतिमान
*
बात मर्म की कह रहा, सुनिये धरकर धीर
शाह भिखारी ही मिले, मिले अमीर फ़क़ीर
*
पैर उठाये है 'सलिल', जब तक सर का भार
सर अकड़ा है गर्व से, सर पर सर बलिहार
*
रूप चन्द्र का निरखकर, सविता क्यों सन्तप्त?
दर्शन राम किशोर के, कर हो जाए तृप्त
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लता विटप तरु धन्य हैं, प्रीत करें मिथिलेश
सींच 'सलिल' कर दूर दें, मन में व्यथा अशेष
*
तुम रखते ही हो नहीं, सूखा हुआ गुलाब
इसीलिये भारी लगे, तुम्हें किताब जनाब
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दूर न दर्शन रह गये, मोबाइल में देख
अब उर में खिंचती नहीं, है यादों की रेख
*
क्या जवाब दूँ बतायें, नहीं रहा कुछ सूझ
मौन हुई मति क्यों कहें, बात न आती बूझ
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मौन न हों मति सोचकर, दोहा लिख लें एक
मन से मन की बात हो, दोहे में सविवेक
*
६.९.२०१६