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शुक्रवार, 26 मार्च 2021

दोहा होली

दोहा सलिला:
दोहा पिचकारी लिये
संजीव 'सलिल'
*
दोहा पिचकारी लिये,फेंक रहा है रंग.
बरजोरी कुंडलि करे, रोला कहे अभंग.. 
*
नैन मटक्का कर रहा, हाइकु होरी संग.
फागें ढोलक पीटती, झांझ-मंजीरा तंग.. 
*
नैन झुके, धड़कन बढ़ी, हुआ रंग बदरंग.
पनघट के गालों चढ़ा, खलिहानों का रंग.. 
*
चौपालों पर बह रही, प्रीत-प्यार की गंग.
सद्भावों की नर्मदा, बजा रही है चंग.. 
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गले ईद से मिल रही, होली-पुलकित अंग.
क्रिसमस-दीवाली हुलस, नर्तित हैं निस्संग.. 
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गुझिया मुँह मीठा करे, खाता जाये मलंग.
दाँत न खट्टे कर- कहे, दहीबड़े से भंग.. 
*
मटक-मटक मटका हुआ, जीवित हास्य प्रसंग.
मुग्ध, सुराही को तके, तन-मन हुए तुरंग.. 
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बेलन से बोला पटा, लग रोटी के अंग.
आज लाज तज एक हैं, दोनों नंग-अनंग.. 
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फुँकनी को छेड़े तवा, 'तू लग रही सुरंग'.
फुँकनी बोली: 'हाय रे! करिया लगे भुजंग'.. 
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मादल-टिमकी में छिड़ी, महुआ पीने जंग.
'और-और' दोनों करें, एक-दूजे से मंग.. 
*
हाला-प्याला यों लगे, ज्यों तलवार-निहंग.
भावों के आवेश में, उड़ते गगन विहंग.. 
*
खटिया से नैना मिला, भरता माँग पलंग.
उसने बरजा तो कहे:, 'यही प्रीत का ढंग'.. 
*
भंग भवानी की कृपा, मच्छर हुआ मतंग.
पैर न धरती पर पड़ें, बेपर उड़े पतंग.. 
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रंग पर चढ़ा अबीर या, है अबीर पर रंग.
बूझ न कोई पा रहा, सारी दुनिया दंग.. 
*
मतंग=हाथी, विहंग = पक्षी,

रविवार, 14 मार्च 2021

दोहा-सलिला रंगमयी

दोहा-सलिला रंगमयी 
*
लहर-लहर पर कमल दल, सुरभित-प्रवहित देख
मन-मधुकर प्रमुदित अमित, कर अविकल सुख-लेख
*
कर वट प्रति झुक नमन झट, कर-सर मिल नत-धन्य
बरगद तरु-तल मिल विहँस, करवट-करवट अन्य
*
कण-कण क्षण-क्षण प्रभु बसे, मनहर मन हर शांत
हरि-जन हरि-मन बस मगन, लग्न मिलन कर कांत
*
मल-मल कर मलमल पहन, नित प्रति तन कर स्वच्छ
पहन-पहन खुश हो 'सलिल', मन रह गया अस्वच्छ
*
रख थकित अनगिनत जन, नत शिर तज विश्वास
जनप्रतिनिधि जन-हित बिसर, स्वहित वरें हर श्वास
*
उछल-उछल कपि हँस रहा, उपवन सकल उजाड़
किटकिट-किटकिट दंत कर, तरुवर विपुल उखाड़
*
सर! गम बिन सरगम सरस, सुन धुन सतत सराह
बेगम बे-गम चुप विहँस, हर पल कहतीं वाह
*
सरहद पर सर! हद भुला, लुक-छिप गुपचुप वार
कर-कर छिप-छिप प्रगट हों, हम सैनिक हर बार
*
कलकल छलछल बह सलिल, करे मलिनता दूर
अमल-विमल जल तुहिन सम, निर्मलता भरपूर
*

शुक्रवार, 5 मार्च 2021

दोहा होली

होली के दोहे 
*
होली का हर रंग दे, खुशियाँ कीर्ति समृद्धि.
मनोकामना पूर्ण हों, सद्भावों की वृद्धि..
स्वजनों-परिजन को मिले, हम सब का शुभ-स्नेह.
ज्यों की त्यों चादर रखें, हम हो सकें विदेह..
प्रकृति का मिलकर करें, हम मानव श्रृंगार.
दस दिश नवल बहार हो, कहीं न हो अंगार..
स्नेह-सौख्य-सद्भाव के, खूब लगायें रंग.
'सलिल' नहीं नफरत करे, जीवन को बदरंग..
जला होलिका को करें, पूजें हम इस रात.
रंग-गुलाल से खेलते, खुश हो देख प्रभात..
भाषा बोलें स्नेह की, जोड़ें मन के तार.
यही विरासत सनातन, सबको बाटें प्यार..
शब्दों का क्या? भाव ही, होते 'सलिल' प्रधान.
जो होली पर प्यार दे, सचमुच बहुत महान..\*
५-३-२०१५ 

मंगलवार, 2 मार्च 2021

दोहा की होली

दोहा की होली
*
दीवाली में दीप हो, होली रंग-गुलाल
दोहा है बहुरूपिया, शब्दों की जयमाल
*
जड़ को हँस चेतन करे, चेतन को संजीव
जिसको दोहा रंग दे, वह न रहे निर्जीव
*
दोहा की महिमा बड़ी, कीर्ति निरुपमा जान
दोहा कांतावत लगे, होली पर रसखान
*
प्रथम चरण होली जले, दूजे पूजें लोग
रँग-गुलाल है तीसरा, चौथा गुझिया-भोग
*
दोहा होली खेलता, ले पिचकारी शिल्प
बरसाता रस-रंग हँस, साक्षी है युग-कल्प
*
दोहा गुझिया, पपडिया, रास कबीरा फाग
दोहा ढोलक-मँजीरा, यारों का अनुराग
*
दोहा रच-गा, झूम सुन, होला-होली धन्य
दोहा सम दूजा नहीं. यह है छंद अनन्य
***
होलिकोत्सव २-३-२०१८

शुक्रवार, 29 मार्च 2019

होली दोहा

होली दोहा सलिला:
*
मले उषा के गाल पर, सूरज छेड़ गुलाल
बादल पिचकारी लिए, फगुआ हुआ कमाल.
*
नीता कहती नैन से, कहे सुनीता-सैन.
विनत विनीता चुप नहीं, बोले मीठे बैन.
*
दोहा ने मोहा दिखा, भाव-भंगिमा खूब.
गति-यति-लय को रिझा कर, गया रास में डूब.
*
रोगी सिय द्वारे खड़ा, है लंकेश बुखार.
भिक्षा सुई-दवाई पा, झट से हुआ फरार.
*
शैया पर ही हो रहे, सारे तीरथ-धाम.
नर्स उमा शिव डॉक्टर, दर्द हरें निष्काम
*
बीमा? री! क्यों कराऊँ?, बीमारी है दूर.
झट बीमारी आ कहे:, 'नैनोंवाले सूर.'
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लाली पकड़े पेट तो, लालू पूछें हाल.
'हैडेक' होता पेट में, सुन हँस सब बेहाल.
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'फ्रीडमता' 'लेडियों' को, काए न देते लोग?
देख विश्व हैरान है, यह अंगरेजी रोग.
*
२९.३.२०१८