मुक्तिका:
आराम है
संजीव 'सलिल'
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आराम है
संजीव 'सलिल'
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मुक्तिका:
आराम है
संजीव 'सलिल'
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स्नेह के हाथों बिका बेदाम है.
जो उसी को मिला अल्लाह-राम है.
मन थका, तन चाहता विश्राम है.
मुरझता गुल झर रहा निष्काम है.
अब यहाँ आराम ही आराम है.
गर हुए बदनाम तो भी नाम है..
जग गया मजदूर सूरज भोर में
बिन दिहाड़ी कर रहा चुप काम है..
नग्नता निज लाज का शव धो रही.
मन सिसकता तन बिका बेदाम है..
चन्द्रमा ने चन्द्रिका से हँस कहा
प्यार ही तो प्यार का परिणाम है..
चल 'सलिल' बन नीव का पत्थर कहीं
कलश बनना मौत का पैगाम है..
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