शक्ति पर्व पर स्तुति:
माँ अम्बिके…
संजीव
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माँ अम्बिके जगदंबिके करिए कृपा दुःख-दर्द हर
माँ अम्बिके…
संजीव
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माँ अम्बिके जगदंबिके करिए कृपा दुःख-दर्द हर
ज्योतित रहे मन-प्राण मैया दीजिए सुख-शांति भर
दीपक जला वैराग का तम दूर मन से कीजिए
सन्तान हम आये शरण में शांति-सुख दे दीजिए
आगार हो मन भक्ति का अनुरक्ति का सदयुक्ति का
सद्पथ दिखा संसार सागर से तरण भव-मुक्ति का
अन्याय-अत्याचार से हम लड़ सकें संघर्ष कर
आपद-विपद को जीत आगे बढ़ सकें उत्कर्ष कर
संकट घिरा है, देश-भाषा चाहती उद्धार हो
दम तोडते विश्वास-आशा कर दया माँ तार दो
भोगी असुर-सुर बैठ सत्ता पर करें अन्याय शत
रिश्वत-घुटाले रोज अनगिन करें, करना माफ़ मत
सरहद सुरक्षित है नहीं, आतंकवादी सर चढ़े
बैठ संसद में उचक्के, स्वार्थ साधें नकचढ़े
बाँध पाती आँख पर, मंडी लगाये न्याय की
चिंता है वकीलों को, हो रहे अन्याय की
वनराजवाहिनी! मार डाले शेर हमने कर क्षमा
वन काट डाले, ग्राम तज मन शहर में भटका-रमा
कोंक्रीट के जंगल उगाकर, कैद खुद ही हो गए
परिवार का सुख नष्टकर, दुःख-बीज हमने बो दिए
अश्लीलता प्रिय, नग्नता ही हो रही आराध्य है
शुचिता नहीं सम्पन्नता ही अब हमारा साध्य है
बाज़ार दुनिया का बड़ा बन बेचते निज अस्मिता
आदर्श की हम जलाते निज हाथ से हँसकर चिता
उपदेश देने में निपुण पर आचरण से हीन हैं
संपन्न नेता हो रहे पर देशवासी दीन हैं
उठ-जागकर माँ हमें दो कुछ दंड, थोडा प्यार दो
सत्पथ दिखाओ माँ हमें, संत्रास हरकर तार दो
जय भारती की हो सकल जग में सपन साकार हो
जय भारती की हो सकल जग में सपन साकार हो
भारत बने सिरमौर गौरव का न पारावार हो
रिपुमर्दिनी संबल हमें दो, रच सकें इतिहास नव
हो साधना सच की सफल, 'संजीव' चाहे हास नव
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Sanjiv verma 'Salil'*
salil.sanjiv@gmail.com
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